शिक्षा-मनोविज्ञान का महत्व
अध्यापक के लिए शिक्षा-मनोविज्ञान क्यों
- प्रश्न उठता है कि शिक्षा मनोविज्ञान का ज्ञान अध्यापक के लिये क्यों आवश्यक है? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिये हमें अध्यापन-व्यवसाय की आवश्यकताओं को समझना होगा। शिक्षण में अध्यापक का सीधा सम्बन्ध छात्रों से होता है। वह छात्रों को प्रगति की राह दिखाने वाला एक मार्ग-प्रदर्शक है। यदि वह उचित तथा वैज्ञानिक विधियों से अपने विषय का ज्ञान छात्र तक पहुँचाता है तो वह निःसन्देह ही उसके व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
जी. लेस्टर ऐण्डर्सन ने अध्यापक के लिये शिक्षा मनोविज्ञान की आवश्यकता इस प्रकार बताई है-
1. सामग्री का चयन तथा व्यवस्था (Selection and management of Learning material)-
- अध्यापक का कार्य छात्र को नवीन ज्ञान तथा कौशल का प्रशिक्षण देना है। प्रत्येक स्तर पर ज्ञान प्रदान करने के लिए अनेक विधियों को अपनाना पड़ता है। शिक्षा मनोविज्ञान अध्यापक को शिक्षण सामग्री के उचित चयन तथा उसकी व्यवस्था का ज्ञान कराता है।
2. सीखने की क्रिया का मार्ग-प्रदर्शन (Guidance of Learning Activity)-
- अध्यापक की 'नियमन, अध्ययन-पठन, निरीक्षण' सूत्र के अनुसार अपनी पाठ्य सामग्री को छात्रों के समक्ष संजोकर प्रस्तुत करना पड़ता है। प्रत्येक बालक के सीखने का ढंग अलग होता है। अध्यापक को सीखने की क्रिया के मार्ग-प्रदर्शक का ज्ञान शिक्षा मनोविज्ञान ही देता है।
3. मूल्यांकन (Evaluation)-
- अध्यापक जो भी ज्ञान देता है, उसका प्रभाव तथा उस ज्ञान के कारण बालकों में क्या व्यावहारिक परिवर्तन हुए हैं, इसकी जानकारी शिक्षा मनोविज्ञान ही देता है। मूल्यांकन के अन्तर्गत कौन-कौन सी बातें ली जायें जिससे बालक का सम्पूर्ण रूप से मूल्यांकन हो जाये, आदि की जानकारी शिक्षा मनोविज्ञान ही प्रदान करता है।
हेनरी पी. स्मिथ ने भी अध्यापक के लिये शिक्षा मनोविज्ञान का अध्ययन इसलिये आवश्यक बताया है कि-
- 1. अध्यापक को लड़के-लड़कियों की प्रकृति, स्वभाव तथा आवश्यकताओं की जानकारी होती है।
- 2. बालकों के विकास की प्रक्रिया के मध्य उत्पन्न अनेक समस्याओं के निदान तथा उपचार के अवसर प्राप्त होते हैं।
- 3. अध्यापक को शिक्षा के उदार उद्देश्यों को समझने में सहायता मिलती है।
- 4. बालकों के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाने की सामर्थ्य के रहस्यों की जानकारी होती है।
- 5. अध्यापक को व्यावसायिक कुशलता की वृद्धि करने के लिये अनेक मूल्यवान तथ्यों की जानकारी होती है।
- संक्षेप में कहा जा सकता है- 'लड़के-लड़कियों की प्रकृति को समझने एवं उनके व्यवहार में परिवर्तन के लिये शिक्षा मनोविज्ञान से शक्ति मिलती है।'
- कुल मिलाकर शिक्षा-मनोविज्ञान अध्यापक को नवीन दृष्टिकोण, समस्या के प्रति नवीन अभिगमन (Approach) प्रदान करता है। अध्यापक कक्षा में उचित वातावरण का निर्माण करता है। वह बालकों के प्रति सहानुभूति रखता है। वह नवीन समस्याओं के हल करने में सूझ- वृझ से काम लेता है। कार्य एवं दायित्व को समझता है। नवीन मनोवैज्ञानिक विधियों तथा प्राविधियों को अपनाता है तो आवश्यकतानुसार उनका विकास भी करता है। छात्रों को उनकी योग्यता तथा क्षमता के अनुरूप मार्ग-प्रदर्शन प्रदान करता है। वह बालकों की बुद्धि तथा उसकी क्षमता का भी विकास करता है।
शिक्षा-मनोविज्ञान का महत्व (Importance of Educational Psychology)
शिक्षा-मनोविज्ञान ने समाज के समक्ष दो पहलू प्रस्तुत किये हैं 1. व्यावहारिक (Practical), 2. सैद्धान्तिक (Theoretical)। अध्यापक, छात्र, अभिभावक; सभी के लिये इसका सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक महत्व है। आज के युग में शिक्षा मनोविज्ञान के अभाव में शिक्षा की प्रक्रिया कुशलतापूर्वक सम्पादित नहीं की जा सकती। आधुनिक युग में शिक्षा का आधार ही मनोविज्ञान है। शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व इस प्रकार बताया जा सकता है-
1. बाल-केन्द्रित शिक्षा-
- प्राचीन समय में शिक्षा का केन्द्र बालक न होकर अध्यापक था। बालक की रुचियों, अभिवृत्ति तथा अभिरुचियों की परवाह किये बिना ही शिक्षण कार्य चलता था। अब समय बदल गया है और उसी के साथ-साथ शिक्षा का केन्द्र-बिन्दु बालक हो गया है। बालक की योग्यता, क्षमता, रुचि, अभिरुचि आदि के अनुसार पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का निर्माण किया गया है।
2. शिक्षण पद्धति में परिवर्तन-
- प्राचीन पद्धति में अध्यापक रटने (Cramming) पर बल देते थे। उनका विचार था कि रटने से बुद्धि का विकास होता है। मनोविज्ञान परीक्षणों ने रटने के अनौचित्य को सिद्ध कर दिया है। आज अनेक मनोवैज्ञानिक शिक्षण पद्धतियों का विकास हो गया है जिनके अनुसार शिक्षण देने से बालक की अन्तर्निहित शक्तियों का विकास होता है एवं अभिव्यक्ति को माध्यम मिलता है। डाल्टन (Dalton) योजना, प्रोजेक्ट (Project) पद्धति, किन्डरगार्टन (Kindergarten) एवं बेसिक शिक्षा ऐसी ही शिक्षण पद्धतियाँ हैं जिनमें बालक का सर्वांगीण विकास होता है।
3. पाठ्यक्रम-
- मनोवैज्ञानिक पहलुओं के विकास के पहले पाठ्यक्रम में इस बात पर बल दिया जाता था कि पाठ्यक्रम कठिन हो तथा उसमें अभ्यास अधिक हो। यही कारण है कि गणित में कठिनतम प्रश्न रखकर अभ्यास पर बल दिया जाता रहा। डेनिस ने शिक्षा- मनोविज्ञान का महत्व दर्शाते हुए कहा है- शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा में महत्वूपर्ण योगदान दिया है, इसका माध्यम रहे हैं अनेक मनोवैज्ञानिक परीक्षणों से ज्ञात छात्रों की क्षमताएँ तथा व्यक्तिगत भेद; इसने छात्रों के ज्ञान, विकास तथा परिपक्वता को समझने में भी योग दिया है। यही कारण है कि आज पाठ्यक्रम का निर्माण करते समय बालक की रुचियों, अभिवृत्ति, विकास आदि को ध्यान में रखा जाता है। अब पाठ्यक्रम बच्चों के लिए है, बच्चे पाठ्यक्रम के लिये नहीं हैं।
4. समय-सारिणी (Time-Table) -
- शिक्षा मनोविज्ञान के कारण ही विद्यालयों में समय-सारिणी बनाते समय यह ध्यान रखा जाता है कि कौन-सा विषय पहले लिया जाय और कौन-सा बाद में। पहले बालकों की थकान, विश्राम, अवधान (Attention) आदि का कोई ध्यान नहीं रखा जाता था। उस समय अध्यापक की सुविधा का ध्यान, समय सारिणी बनाते समय रखा जाता था। छात्र की क्षमता तथा योग्यता का ध्यान बिल्कुल नहीं रखा जाता था। अब समय सारिणी बनाते समय मौसम, छात्रों की योग्यता, रुचि, व्यक्तिगत भेदों आदि का ध्यान रखा जाता है।
5. पाठ्य-सहगामी क्रियाएँ (Co-Curricular activities) -
- शिक्षा-मनोविज्ञान के विकास के कारण पाठ्यक्रम में अनेक महत्वपूर्ण पाठ्य सहगामी क्रियाओं को स्थान दिया जाने लगा है। पहले यह समझा जाता था कि पढ़ाई के अतिरिक्त की क्रियाओं से बालक अपना समय नष्ट करते हैं। अब यह विचार बदल गया है। वाद-विवाद प्रतियोगिता, निबन्ध, लेख, 11. शिक्षा के उद्देश्य की प्राप्ति में साधक (Helpful in achievement of Educational Goals)-शिक्षा-मनोविज्ञान कुल मिलाकर अध्यापक तथा छात्र के व्यवहार के इर्द-गिर्द रहता है। अतः वह शैक्षिक लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक होता है। स्किनर के अनुसार, "शिक्षा-मनोविज्ञान शिक्षक को ज्ञान प्रदान करता है एवं अध्यात्मिक ज्ञान के आधार पर शैक्षिक लक्ष्यों को प्राप्त करता है।"
07. वैयक्तिक भेदों पर बल (Emphasis on Individual Differences)-
- मनोविज्ञान का आधार व्यक्ति है। यह दो व्यक्तियों के समान व्यवहारों को समान क्रिया- प्रतिक्रियाओं का फल नहीं मानता। एक कक्षा में एक अध्यापक के शिक्षण को कुछ छात्र शीघ्र समझ लेते हैं और कुछ नहीं समझ पाते। अतः ऐसे वैयक्तिक भेदों से युक्त छात्रों को व्यक्तिगत शिक्षण का आवश्यकता होती है। मन्द बुद्धि, प्रतिभाशाली तथा विकलांग बालको की पृथक शिक्षा पर मनोविज्ञान इसीलिये बल देता है।