मानवतावादी मनोविज्ञान एवं विकासात्मक सिद्धान्त (Humanistic Psychology and Developmental Theory)
- मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि बालक में व्यवहार सम्बन्धी परिवर्तन मूल प्रवृत्ति या जन्मजात प्रेरक के कारण विकसित होते हैं, जबकि संज्ञानात्मक विकास के सिद्धान्त तथा सामाजिक अधिगम सिद्धान्तों में माना जाता है कि घालकों में अधिकांश व्यवहार वातावरण सम्बन्धी कारको के प्रभाव से सीखे जाते हैं, परन्तु कुछ मनोवैज्ञानिकों (मैसलो, कार्ल रोजर्स) ने विकास की व्याख्या के लिए एक भिन्न प्रकार का दृष्टिकोण अपनाया, जिसे मानवतावादी दृष्टिकोण कहा जाता है।
- मैसलो ने विकास के सम्बन्ध में मानवतावादी सिद्धान्त का प्रतिपादन सन् 1960 में किया। मानवतावादी मनोवैज्ञानिकों ने मनोविश्लेषणवाद और व्यवहारवाद की विचारधाराओं की आलोचना ही नहीं की बल्कि इनका कहना था कि मनोविश्लेषणवाद और व्यवहारवाद में विकास के लिए बहुत ही संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाया गया है।
- मैसलो ने अपने सिद्धान्त में व्यक्ति की व्यक्तिगत वृद्धि, व्यक्तित्व के मूल्यों और आत्म- निर्देशन की क्षमता को ज्यादा महत्व दिया है। मैसलो का विचार है कि व्यक्ति का विकास संगठित प्रकार से होता है। मैसलो का मानना है कि व्यक्ति अनेक मनोवैज्ञानिक शक्तियों और क्षमताओं का केन्द्र होता है। प्रत्येक बालक विकास क्रम में स्वयं को पहचानने की क्षमता तथा आत्मबोध को अपने भीतर विकसित कर लेता है, जिसके कारण बालक समस्त आवश्यकताओं को जानने लगता है तथा उसे अपनी क्षमताओं और सीमाओं का ज्ञान भी होने लगता है, जिसके फलस्वरूप बालक में व्यक्तित्व का विकास प्रारम्भ हो जाता है। इसी कारण मैसलो के सिद्धान्त को सम्पूर्ण गत्यात्मक सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है।
मैसलो के सिद्धान्त की व्याख्या इस प्रकार है-
मैसलो के सिद्धान्त का मुख्य आधार अभिप्रेरणा सिद्धान्त है। मैसलो का विचार है कि व्यक्ति में व्यक्तिगत लक्ष्य तक पहुँचने की प्रवृत्ति पायी जाती है। इसी प्रवृत्ति से उसका व्यवहार निर्देशित होता है। उसका यह मत है कि मानव अभिप्रेरक न केवल जन्मजात होते हैं, बल्कि इन प्रेरकों को प्राथमिकता के आधार पर या शक्ति के आधार पर आरोही पदानुक्रम में व्यवस्थित किया जा सकता है। उसने मानव अभिप्रेरकों को प्राथमिकता के आधार पर निम्न प्रकार आरोही क्रम में व्यवस्थित किया है-
1. दैहिक या शारीरिक आवश्यकताएँ (Physiological Needs) -
- पानी पीने एवं भोजन करने की आवश्यकता, सोने की आवश्यकता, यौन आवश्यकता, अधिक तापक्रम या निम्न तापक्रम से बचने आदि की आवश्यकताएँ दैहिक या शारीरिक आवश्यकताओं के अन्तर्गत आती हैं। ये आवश्यकताएँ व्यक्ति के जैविक सम्पोषण से सम्बन्धित होती है। ये सबसे निचले स्तर की आवश्यकताएँ हैं। मैसलो के अनुसार इन निचले स्तर की आवश्यकताओं की प्रबलता या शक्ति इतनी अधिक होती है कि व्यक्ति में जब ये आवश्यकताएँ उत्पन्न होती हैं और इनका स्तर ऊपर की ओर उठता है तो व्यक्ति इनकी तुरन्त सन्तुष्टि करता है। मैसलो द्वारा वर्णित आवश्यकताओं के पदानुक्रम में ये आवश्यकताएँ भले ही सबसे निचले स्तर पर हैं, लेकिन ये आवश्यकताएँ व्यक्ति के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं।
2. सुरक्षा की आवश्यकताएँ (Safety Needs or Security Needs) -
- मैसलो का मानना है कि जब व्यक्ति की दैहिक या शारीरिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हो जाती है, तब इस सन्तुष्टि के बाद ही आवश्यकताओं के पदानुक्रम में द्वितीय स्तर की आवश्यकताएँ व्यक्ति में जन्म लेती हैं। ये दूसरे स्तर की आवश्यकताएँ, सुरक्षा सम्बन्धी आवश्यकताएँ हैं। इस प्रकार की आवश्यकताओं के अन्तर्गत शारीरिक सुरक्षा, स्थिरता, निर्भरता, बचाव, भय और चिन्ता से मुक्ति आदि आते हैं। अपने बाद के अध्ययनों के आधार पर मैसलो ने सुरक्षा की आवश्यकताओं के अन्तर्गत नियम-कानून बनाये रखने की आवश्यकता को भी जोड़ दिया।
- सुरक्षा की आवश्यकताएँ बच्चों में बहुत अधिक मात्रा में पायी जाती हैं, क्योंकि ये बच्चे अपने आपको असहाय और दूसरों पर निर्भर या आश्रित मानते हैं। एक परिपक्व और स्वस्थ व्यक्ति में भी इस प्रकार की आवश्यकताएँ होती हैं और वह सामान्य और सन्तुलित ढंग से अपनी इन सुरक्षा आवश्यकताओं की सन्तुष्टि करता है।
3. सम्बद्धता और स्नेह की आवश्यकताएँ (Belonging and Love Needs)-
- मैसलो का मानना है कि जब व्यक्ति की दैहिक या शारीरिक आवश्यकताएँ और सुरक्षा आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हो जाती है तब इस सन्तुष्टि के बाद ही आवश्कताओं के पदानुक्रम के तीसरे स्तर की आवश्यकताएँ व्यक्ति में जन्म लेती हैं। ये तीसरे स्तर की आवश्यकताएँ, सम्बद्धता और स्नेह सम्बन्धी आवश्यकताएँ हैं। मैसलो का सम्बद्धता की आवश्यकताओं से आशय है कि व्यक्ति इस आवश्यकता में परिवार तथा समाज में एक प्रतिष्ठित स्थान पाना चाहता है अथवा वह परिवार से, मित्रों से और समाज से सम्बद्धता चाहता है। वह परिवारजनों, मित्रों से ही सम्बद्धता नहीं चाहता है बल्कि पड़ोसियों से भी सम्बद्धता चाहता है। मैसलो का स्नेह की आवश्यकताओं से तात्पर्य है परिजनों, पड़ोसियों, मित्रों आदि से स्नेह पांने और स्नेह देने की आवश्यकताएँ.
4. सम्मान की आवश्यकताएँ (Esteem Needs)-
- मैसलो का विचार है कि जब व्यक्ति की दैहिक या शारीरिक आवश्यकताओं, सुरक्षा की आवश्यकताओं और सम्बद्धता और स्नेह की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हो जाती है तब इन आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के बाद ही आवश्यकताओं के पदानुक्रम के चौथे क्रम की आवश्यकताएँ व्यक्ति में जन्म लेती है इस चौथे पदानुक्रम की आवश्यकताएँ सम्मान की आवश्यकताएँ हैं। सम्मान की आवश्यकताओं में आत्म-सम्मान की आवश्यकता और दूसरे व्यक्तियों से सम्मान पाने की आवश्यकता सम्मिलित है। मैसलो के अनुसार, दूसरों से सम्मान पाने की आवश्यकताओं में व्यक्ति दूसरों से सम्मान पाना चाहता है, पहुंचान, प्रशंसा और स्वीकृति आदि को इच्छा भी सम्मान पाने की आवश्यकताओं में सम्मिलित हैं।
5. आत्म-सिद्धि की आवश्यकताएँ (Self-actualization Needs)- मैसलो द्वारा
- वर्णित आवश्यकताओं के पदानुक्रम मॉडल के सबसे अन्तिम स्तर पर व्यक्ति तब पहुँचता है, जब इस पाँचवें स्तर के नीचे चार स्तरों की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हो जाती है। दूसरे शब्दों में दैहिक या शारीरिक आवश्यकताओं, सुरक्षा की आवश्यकताओं, सम्बद्धता और स्नेह की आवश्यकताओं तथा सम्मान की आवश्यकताओं की सन्तुष्टि हो जाती है तभी व्यक्ति में आत्म-सिद्धि की आवश्यकताएँ उत्पन्न होती हैं। मैसलो का आत्मसिद्धि की आवश्यकताओं से तात्पर्य है आत्म-उन्नति की आवश्यकता है। इस आत्म-उन्नति में व्यक्ति अपनी योग्यताओं और अन्तःक्षमताओं से पूरी तरह अवगत होता है। साथ-साथ वह अपनी योग्यताओं और अन्तःक्षमताओं के अनुरूप अपने को विकसित और उन्नत करने की इच्छा रखता है।