मगध साम्राज्य की प्रगति के कारण
मगध साम्राज्य की प्रगति के निम्न कारण थे-
1 भौगोलिक स्थिति
- यह राज्य प्राकृतिक दृष्टि से काफी सुरक्षित था। इसकी पहली राजधानी गिरिव्रज या राजग्रह, चारों ओर से पहाड़ियों से घिरी हुई थी। अतः इन पर आसानी से दुश्मनों का आक्रमण नहीं हो सकता था। बाद की राजधानी पाटलीपुत्र गंगा और सोन नदियों के संगम पर बसा हुआ था तथा इसके इर्दगिर्द अन्य नदियाँ भी थी। अतः इसे बाहरी आक्रमण का खतरा नहीं रहता था। इस प्रकार दुश्मनों के आक्रमण की चिन्ता से मुक्त होकर मगधवासी अपने विकास एवं प्रसार का निरन्तर प्रयास करते रहे।
2 खनिज पदार्थो की प्रचुरता
- मगध में खनिज पदार्थो की प्रचुरता थी। यहां लोहा मिलता था, जिससे शुद्ध हथियार बनाए जाते थे, यह सुविधा अन्य राज्यों को प्राप्त नहीं थी। लोहे की खाने पूर्वी मध्य प्रदेश में भी थी जो अवन्ति की राजधानी उज्जैन के निकट थी। यही कारण था कि उत्तरी भारत में अपनी सर्वोच्चता कायम करने के लिए मगध को अवन्ति के साथ दीर्घ कालीन संघर्ष करना पड़ा। उज्जैन को अपने अधीन लाने में मगध को लगभग सौ वर्ष लग गये।
3 भौतिक समृद्धि
- यहां की भूमि अत्यन्त उर्वरा थी तथा उद्योग धन्धे विकसित थे। साम्राज्य आर्थिक दृष्टिकोण से काफी सम्पन्न था। राजाओं ने इस भौतिक सम्पन्नता का लाभ उठाया। वे कृषकों और व्यापारियों से कर वसूलने लगे जिसका उपयोग विशाल सेना खड़ी करने में किया गया।
4 पाटलीपुत्र की सामरिक स्थिति
- पाँचवी शताब्दी में मगध की राजधानी पाटलीपुत्र थी। यह गंगा, गंडक और सोन के संगम पर बसी हुई थी। इससे इसका सामरिक महत्व काफी था। इसके पश्चिम में सोन, उत्तर में गंगा तथा पूर्व और दक्षिण में पुनपुन नदियाँ बहती थी। अतः पाटलीपुत्र पानी की नाव की तरह था और इस पर कब्जा करना कठिन था।
5 शहरों का उदय
- मगध के राजाओं ने शहरों के उदय और सिक्कों के प्रचलन का भी लाभ उठाया। उत्तर-पूर्व भारत में व्यापार-व्यवसाय के कारण नए-नए शहरों का उदय हुआ। वहां व्यापारी कई विभिन्न व्यवसायों में लगे हुए थे। उनसे चुंगी, तटकर शुल्क आदि लिए जाते थे। राजा इनका उपयोग सैन्य संगठन में करता था।
6 सैन्य संगठन
- सैन्य संगठन में मगध को विशेष सुविधाएँ प्राप्त थी। भारतीय राज्यों को अश्व और रथ के उपयोग की जानकारी थी। मगध साम्राज्य की सेना एक प्रमुख अंग हस्ति सेना थी। अपने पड़ोसियों के साथ लड़ने में मगध साम्राज्य ने ही पहले-पहल बड़े पैमाने पर हाथियों का प्रयोग किया। मगध के पूर्वी भाग से हाथी की आपूर्ति होती थी। यूनानी स्रोतों के आधार पर हम जानते है कि नन्द की सेना में 6 हजार हाथी थे। दुर्गा या किलो को ध्वस्त करने में हाथी बड़े उपयोगी थे। दलदल भूमि या दुर्गम स्थानों में भी हाथी की सवारी सम्भव थी।
7 मगध के शासकों का योगदान
- मगध के उत्थान में वहां के शासकों की भी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। मगध में एक के बाद एक अनेक ऐसे शक्तिशाली शासक हुए जिन्होंने सैन्यबल और कूटनीति के आधार पर मगध की सीमा का विस्तार किया। मगध साम्राज्य की नींव बिम्बिसार और अजातशत्रु जैसे महान सेनानायकों और नीतिनिपुण शासकों ने डाली। अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए इन शासकों ने उचित-अनुचित प्रत्येक प्रकार का मार्ग अपनाया। बाद में शिशुनाग और महापद्यानन्द जैसे प्रतापी शासकों ने भी मगध की सीमा का विस्तार किया।
8 मगध का प्राचीन इतिहास
- हर्यक वंश के पहले मगध का इतिहास बहुत स्पष्ट नहीं है। मगध का उल्लेख पहली बार अथर्ववेद में मिलता है। ऋग्वेद में यद्यपि मगध का उल्लेख नहीं मिलता तथापि कोकट (किराट) नामक जाति और इसके शासक प्रेमचन्द्र का उल्लेख मिलता है। इसकी पहचान मगध से की जाती है। मगध और व्रात्यों का उल्लेख वैदिक साहित्य में उपेक्षा और अवहेलना की दृष्टि से किया गया है। अथर्व संहिता के व्रात्य भाग में ब्राह्मण सीमा के बाहर रहने वाले व्रात्य को पुंश्चली या वेश्या और मगध से सम्बन्ध कहा गया है। वेदों में मगध के ब्राह्मणों को निम्न श्रेणी का माना गया है क्योंकि उनके संस्कार ब्राह्मण विधियों के अनुसार नहीं हुए थे, वैदिक साहित्य से मगध की इतिहास की स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती। इसमें प्रमगन्द के अतिरिक्त मगध के अन्य किसी शासक का उल्लेख नहीं हुआ है। मगध के प्राचीन इतिहास की रूपरेखा महाभारत तथा पुराणों में मिलती है। इन ग्रन्थों के मुताबिक मगध के सबसे प्राचीन राजवंश का संस्थापक बृहद्रथ था। वह जरासंध का पिता एवं वसु वैश्य-उपरिचर का पुत्र था।
- मगध की आरम्भिक राजधानी वसुमती या गिरिव्रज की स्थापना का श्रेय वसु को ही दिया जाता था। वृहद्रथ का पुत्र जरासंध एक पराक्रमी शासक था, जिसने अनेक राजाओं को पराजित किया। अन्ततोगत्वा उसे श्रीकृष्ण के हाथो पराजित होकर मरना पड़ा।
9 मगध का स्वतंत्र वातावरण
- मगध का वातावरण अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्र था। चूंकि इसे अनार्यो का देश माना जाता था। इसलिए यहां ब्रह्मण व्यवस्था का कट्टरपन नहीं था। अनार्य तत्वों की बहुलता के कारण आर्यों का प्रभाव यहां कम था। यहां के लोगों में प्रसार की प्रवृत्ति और उत्साह उन राज्यों की अपेक्षा अधिक थी। जो बहुत दिनों से आर्यों के प्रभाव में थे। इन बदलती हुई आर्थिक परिस्थितियों का एक परिणाम विभिन्न प्रादेशिक और लोकप्रिय भाषाओं का विकास भी था। संस्कृति उस समय तक श्रेष्ठ बुद्धिजीवियों और पुरोहितों की भाषा बनकर रह गयी थी। इस कारण जन भाषाओं की आवश्यकता थी। इस कारण उस समय संस्कृत पर आधारित विभिन्न लोकप्रिय भाषाओं की उत्पत्ति हुई। संस्कृत का एक अधिक लोकप्रिय स्वरूप प्राकृत भाषा बनी। इसी कारण पाली और मगधी भाषा जिसमें महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश दिये, इस समय में विकसित और लोकप्रिय हुई। आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों का प्रभाव भारतीयों के धार्मिक विचारों पर आया। नवीन व्यापारी औद्योगिक मजदूर वर्ग तथा उपजातियों के निर्माण ने ब्राह्मणों की श्रेष्ठता को चुनौती देने वाली परिस्थितियों का निर्माण किया। नवीन जैन और बौद्ध धर्मो की उत्पत्ति और विकास का एक कारण बदलती हुई सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियाँ थी।