खिलजी के उत्तराधिकारी (Successor of Khilji)
1 मलिक काफूर (Malik Kafur)
- मलिक काफूर गुजरात प्रदेश के कम्बे स्थान का एक हिन्दू हिजड़ा था। जब 1297 ई. में नसरत खाँ ने गुजरात को जीता तो उसने काफूर को कम्बे में एक हजार दीनार में खरीद लिया। क्योंकि उसे हजार दीनार में खरीदा गया इसलिए वह हजार दीनारी कहलाने लगा। सुल्तान काफूर की शारीरिक आकृति और तीव्र बुद्धि से बड़ा प्रभावित हुआ। बात यहाँ तक पहुंची कि सुल्तान ने उसे एक मंत्री के पद तक उठा लिया।
- मलिक काफूर की सबसे बड़ी सफलता इस बात में थी कि उसी ने दक्षिणी भारत पर चढ़ाई की और दक्षिण के बहुत से राज्यों को जीता। 1306-12 ई. तक उसने देवगिरि, वारंगल, द्वारसमुद्र और मथुरा को पराजित किया। वह दक्षिण से बहुत-सी दौलत लूटकर लाया और साम्राज्य का बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति बन गया।
- मलिक काफूर ने सुल्तान पर एक अद्भुत प्रभाव डालना आंरभ किया। राज्य के बहुत से आवश्यक मामलों में सुल्तान इसी वजीर की सलाह लेता। काफूर ने सुल्तान के कान भर दिये कि उनकी पत्नी मलिकाजहाँ और बेटे खिजर खाँ एवं शादी खाँ उनके विरुद्ध षड्यंत्र कर रहे हैं। अलाउद्दीन ने उस पर विश्वास कर लिया और पत्नी और बेटों को कैद कर लिया। उसका सुल्तान पर इतना अधिक प्रभाव था कि उसके समझाने पर अलाउद्दीन ने अल्प खाँ को फाँसी पर चढ़ा दिया, जो कि मलिक काफूर का प्रतिद्वन्द्वी था।
- अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात् प्रतिद्वन्द्वी पक्षों ने युद्ध तैयारी की शुरू कर दी। इस समय तक मलिक काफूर ने पर्याप्त शक्ति प्राप्त कर ली थी। इसलिए वह अधिकाधिक महत्वाकांक्षी बनता जा रहा था। उसने एक-एक करके राजकुमारों को पराजित कर दिया। उसने बड़ी अधमता का व्यवहार किया और अलाउद्दीन की तरफ से एक जाली वसीयत (Will) बनायी जिसमें ओमर खाँ को उत्तराधिकारी दिखाया गया। राजकुमार की आयु केवल 6 वर्ष की थी। अतः वह वास्तविक शासक बन गया। उसका विचार सिंहासन पर दावा करने वाले सभी व्यक्तियों को मार कर या अन्य किसी तरीके से अपने मार्ग से दूर करने का था। मुबारक खाँ उसके क्रोध से बच गया और दूसरे दावेदारों को अवैध बना दिया गया। मलिक काफूर ने अलाउद्दीन की विधवा के साथ विवाह करके उसके सभी निजी खजाने और आभूषणों पर अधिकार कर लिया।
- अलाउद्दीन खिलजी की मौत के बाद मलिक काफूर ने स्वर्गवासी सुल्तान के बेटे शहाबुद्दीन को सिंहासन पर बैठाया और खुद उसका कार्यवाहक बन बैठा। अब उसने उन सभी शाही व्यक्तियों के विरुद्ध हाथ चलाना आरंभ किया जो उसके मार्ग में बाधा बन सकते थे। उसने खिजर खाँ और शादी खाँ की आँखें निकलवा दीं और उन्हें तथा उनकी माँ मलिकाजहाँ को बन्दी बना दिया। अब उसने मुबारक की हत्या का षड्यंत्र रचना आरंभ किया। यह बात कुछ सरदार सहन न कर सके। अतः उन्होंने मलिक काफूर के विरुद्ध एक करके उसे 6 फरवरी 1316 ई. को मरवा डाला।
- वास्तव में जिस नीति का मलिक काफूर ने अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद अनुसरण किया उससे खिलजी वंश के समर्थक असंतुष्ट हो गये। इसलिए उन्होंने उसके विरुद्ध षड्यंत्र शुरू कर दिया और वे सफल भी रहे। कहा जाता है कि सेना ने भी षड्यंत्रकारियों की सहायता की थी। जब मलिक काफूर के आदमी मुबारक के पास उसकी आँखें निकलने के लिए पहुँचे तो उसने उनको अपनी ओर प्रभावित कर लिया और उनको अपरिमित धन और पद देने का वचन दिया बशर्ते कि वे ही व्यक्ति काफूर को कत्ल कर दें और राजकुमार मुबारक को उसका सिंहासन दिला दें। कहा जाता है कि वे लोग ऐसा करने के लिए राजी हो गये और काफूर को समाप्त कर दिया गया। तब मुबारक अपने भाई ओमर खाँ का प्रतिराज (Regent) बन गया। लगभग 2 महीने बाद मुबारक ने अपने भाई को गिरफ्तार कर लिया और स्वयं सुल्तान बन गया। इस प्रकार मलिक काफूर का अन्त हुआ।
2 अमीर खुसरो (Amir Khusro)
- अमीर खुसरो, अमीर सैफुद्दीन का बेटा था। अभी वह लड़का ही था कि मंगोलों ने उसे पकड़ लिया। वह भारत आया और बलबन के बेटे राजकुमार मुहम्मद के दरबार में रहने लगा। मुहम्मद ने खुसरो को खूब संरक्षण दिया और उसके मरने पर खुसरो ने मुहम्मद पर एक शोक कविता लिखी।
- अमीर खुसरो अलाउद्दीन खिलजी के समय भी खूब फला-फूला। उसने तारीख-ए-अलाह लिखी जिसमें उसने अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का वर्णन किया। उसने आशिक नामक एक रमणीक रचना भी की जिसमें उसने देवलदेवी और खिजर खाँ के प्यार का वर्णन किया। वह एक महान् गायक भी था और उसे तूती-ए-हिन्द अर्थात् हिन्द की आवाज नामक उपाधि मिली।
- अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु के बाद भी अमीर खुसरो एक दरबारी कवि के रूप में चलता रहा। मुबारक शाह के काल में उसने नौ आकाश नामक एक रचना रची, जिसमें सुल्तान मुबारकशाह के इतिहास का वर्णन किया। बाद में तुगलक वंश के संस्थापक गयासुद्दीन तुगलक के संरक्षण में आ गया। उसके शासन काल में उसने 'तुगलकनामा' लिखा, जिसमें गयासुद्दीन के काम और उसकी सफलताओं का वर्णन किया। वह हिन्दी भी जानता था और उसने हिन्दी कविता करनी आरंभ कर दी। संक्षेप में यह कह सकते हैं कि खुसरो मध्य युगीन भारत का एक महान् विद्वान था।
3 अलाउद्दीन खिलजी के उत्तराधिकारी (Successors of Ala-Ud-Din Khilji)
शहाबुद्दीन और मलिक काफूर (1316 ई.)
- अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु 2 जनवरी 1316 ई. को हुई। उसके बाद मलिक काफूर ने उसके बेटे शहाबुद्दीन ऊमर को सिंहासन पर बैठाया और स्वयं उसका कार्यवाह शासक बना। अब उसने उन सभी शाही व्यक्तियों के विरुद्ध हाथ चलाया जो उसके मार्ग में बाधक बन सकते थे। उसने स्वर्गवासी सुल्तान के दो बेटों खिजर खाँ और शादी खाँ की आँखें निकलवा दीं। उसने मुबारिक को मरवाने का षड्यन्त्र भी किया परन्तु इससे पहले कि ऐसा हो सके कुछ सरदारों ने उसे 6 फरवरी 1316 ई. को मरवा डाला। अब मुबारिक सुल्तान बन गया।
मुबारिक (Mubarak) (1316-20)-
- फरवरी 1316 ई. में सिंहासन पर बैठने के बाद मुबारिक ने सरदारों को अपनी ओर कर लिया और बड़ी दृढ़ता से शासन करने लगा। उसने देवगिरी के विद्रोह को दबा दिया और उसके विद्रोही राजा हरपाल को मरवा डाला। परन्तु शीघ्र बाद ही मुबारिक ने विलासिता में समय खोना आरम्भ कर दिया। उसने अपनी सारी शक्ति अपने कृपापात्र खुसरो खाँ के हवाले कर दी जिसने 1320 ई. में राजा को मरवा डाला। इस प्रकार मुबारिक ने कोई चार वर्ष राज्य किया।
खुसरो खाँ (Khusro Khan) (1320 ई.)-
खुसरो खाँ आरम्भ में एक हिन्दू था। परन्तु बाद में उसने इस्लाम धर्म अंगीकार कर लिया। 1320 ई. में वह शासक बना। उसने हिन्दुओं से पक्षपात करना आरम्भ कर दिया और मुसलमानों से घृणा का व्यवहार किया। कट्टर पंथी मुसलमान बिगड़ उठे। गाजी मलिक के नेतृत्व में मुसलमानों ने खुसरो पर चढ़ाई कर दी और उसे पराजित करके मार डाला। अब गाजी मलिक तुगलक अगला सुल्तान बना। इस प्रकार खिलजी वंश का अन्त हुआ और तुगलक वंश का शासन आरम्भ हुआ। उसका पूरा नाम नासिरुद्दीन खुसरो था। उसके जन्म और उसकी जाति के विषय में मतभेद है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि वह गुजरात की एक निम्न जाति में पैदा हुआ था। कुछ व्यक्ति उसे जाति का भंगी भी बताते हैं। बाद में उसने इस्लाम धर्म अपना लिया था। निम्न जाति में जन्म लेने पर भी उसका मस्तिष्क कुशाग्र और अन्तर्भेदी था। अपनी तीव्र बुद्धि के कारण वह सुलतान मुबारिकशाह का प्रिय और विश्वासपात्र बन गया था। खुसरो में न बुद्धि की कमी थी और न शारीरिक बल की। उसने इसका सबूत तेलंगाना के शासक के विरुद्ध दिया। तेलंगाना की विजय के पश्चात् सुलतान ने उसको दिल्ली बुलाया अन्यथा वह दक्षिण में एक स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने का विचार कर रहा था। लेकिन उसके दिल्ली आने पर भी उसकी शक्ति कम न हुई। उसने एक बड़े ही सहज षड्यन्त्र द्वारा सुलतान को मरवा दिया। कहा जाता है कि सुलतान की हत्या के बाद खुसरो के दरबार के सभी अभिजात व्यक्तियों (Nobles) को बुलाकर रात भर में घर कैद (Room- arrest) कर लिया ओर उसके आदमी हरम में घुस गये जहाँ उन्होंने रानियों और राजकुमारों को कत्ल कर दिया। इस प्रकार खुसरो ने शाही परिवार को विध्वंस किया।
- फखरुद्दीन जूना नामक एक व्यक्ति खुसरो की सत्ता (Authority) को चुनौती देने के लिए उठ खड़ा हुआ। जूना का बाप गाजी मलिक दिपालपुर का गवर्नर था। जूना के हार बात की खबर अपने बाप को दे दी। गाजी क्रोध से भर गया। उसने खुसरो के विरुद्ध अपने अमीरों का समर्थन प्राप्त किया। अधिकतर अमीर उसके साथ हो गये। तब गाजी मलिक ने एक बड़ी सेना लेकर दिल्ली पर चढ़ाई कर दी। खुसरो की अव्यवस्थित सेना इधार-उधर भाग गयी। खुसरो भी मैदान छोड़कर भाग गया। अन्त में उसको गिरफ्तार करके मार दिया गया। गाजी मलिक को पता चला कि मुबारिकशाह का कोई भी सम्भव उत्तराधिकारी जीवित न बचा था इसलिए गाजी मलिक को मजबूरी में सुलतान बनना पड़ा। वह ग्यासुद्दीन तुगलक के नाम से 1320 ई. में सिंहासन पर बैठा और उसने एक नये वंश की स्थापना की।
4 कुतुबुद्दीन मुबारिक (1316 ई.-1320 ई.)
- उसका राज्यारोहण (His Accession)-मलिक काफूर की मृत्यु के पश्चात् कुतुबुद्दीन मुबारिक ने अमीरों और लोगों की सद्भावना से शासन करना शुरू कर दिया। उसने राज्यारोहण के तुरन्त ही बाद उसने अपने बाप के समय की दशा बदल दी। उसने कैदियों को मुक्त कर दिया। अतः उसने 'भूल जा और माफ करो' की नीति का अनुसरण किया, लेकिन मुबारिक के काफूर के हत्यारों के साथ सख्ती का बर्ताव किया क्योंकि वे बहुत अधिक विशेषाधिकार और सुविधाओं की माँग करते थे।
- उसका चरित्र (His Character)- मुबारिक के बाजार से सारे प्रतिबन्धों (Restrictions) को हटा लिया। जब्त की गयी जमीन भी लोगों में वितरित कर दी गई, कर उठा लिए गए। इस प्रकार जनता ने संतोष की साँस ली। इस सम्बन्ध में बारूनी हमको बताता है कि बहुत-सी "ये करो, ये न करो" बातों को हटा दिया गया था और लोग सादा जीवन व्यतीत करने लगे थे लेकिन जब मुबारिक ने अपने बाप द्वारा जारी किये गये अध्यादेशों (Ordinances) को हटा लिया तो अराजकता और नैतिक पतन फैल गये। दरबारी भ्रष्ट हो गये। स्वयं सुलतान भी काम वासनाओं में फँस गया। वह हमेशा औरतों और लड़कों के पीछे रहता था। बारूनी हमको इस प्रकार बताता है: "वह सदैव सुन्दर लड़कियों और दाढ़ी रहित (Beardless) लड़कों की माँग करता था।" लेकिन इससे भी अधिक बुरी बात यह हुई कि वह गुजरात के एक निम्न खानदान में पैदा हुए व्यक्ति के बुरे प्रभाव में पड़ गया। उसका नाम खुसरो था। सुलतान के विलासप्रिय जीवन का जनता ने भी अनुसरण किया। इससे प्रशासन में आलस्य और अव्यवस्था (Disorganisation) आ गई।
विद्रोह और उसका दमन (Revolt and their suppression)-
- सुलतान की विलासप्रिय और आलसी जीवन का लाभ उठाकर स्वार्थी लोगों ने षड्यंत्र रचने शुरू कर दिये और जहाँ-तहाँ उपद्रव भी हुए। गुजरात में एक शक्तिशाली विद्रोह रचा गया। देवगिरी के राजा हरपाल के अपने आपको स्वतंत्र शासक घोषित कर दिया। इन दो भीषण विद्रोहों को दबाने के लिए सुलतान ने अपने ससुर की सेवाओं का उपयोग किया उसने गुजरात में विद्रोह का दमन करने के लिए अपने ससुर ऐनल-मुल्क को भेजा और स्वयं सुलतान ने देवगिरी को कुचलने का कार्य अपने हाथ में लिया।
घटनाओं का दौर (Course of Events)-
- सुलतान ने देवगिरी पर आक्रमण किया। जब देवगिरी के राजा हरपाल ने सुना कि सुलतान उस पर आक्रमण करने के लिए आया है तो उसने भागने को प्रयत्न किया। लेकिन उसको पकड़कर मार डाला गया। उसका सर काटकर देवगिरी के दरवाजे पर लटका दिया गया। देवगिरी पर विजय पाने के बाद उसे जिलों में विभाजित कर दिया गया। प्रत्येक जिले में सुलतान ने सुरक्षा टुकड़ियाँ (Safety Troops) तैनात कर दी थीं। देवगिरी के अलावा पुलवर्ग सागर और द्वार समुद्र को भी जीतकर दिल्ली के अधीन कर दिया गया। इन विजित स्थानों पर भी तुर्की दस्ते तैनात कर दिये गये। देवगिरी में बहुत से हिन्दू मन्दिरों को गिराकर उनकी जगह मस्जिदें बनवा दी गयीं। सुलतान ने खसरो को मदुरा के लिए रवाना किया और मलिक को देवगिरी का गर्वनर बनाने के बाद वह दिल्ली वापस चला आया।
- एनुल मुल्क गुजरात पर आधिपत्य जमाने में सफल हुआ। गुजरात को भी सीधे दिल्ली के अधीन रखा गया। सुलतान ने वहाँ पर भी स्वयं अपने ढंग की प्रशासनिक व्यवस्था कायम की।
मुबारिक के विरुद्ध षड्यंत्र (Conspiracy against Mubarak) -
- देवगिरि विजय करने के बाद जब सुलतान दिल्ली की ओर वापस आ रहा था तो उसे रास्ते में एक षड्यंत्र योजना (Conspiracy plan) का सामना करना पड़ा। इस षड्यंत्र को मुबारिक के एक चचेरे भाई और फिरोज खिलजी के एक भतीजे ने रचा था उसका नाम आसिमुद्दीन था। षड्यंत्रकारियों की योजना थी कि सुलतान मुबारिक की मार्ग में हत्या कर दी जाए और ताज खिजरखाँ के एक दस वर्षीय पुत्र को पहनाया जाए। क्योंकि षड्यंत्रकारियों में से एक ने सुलतान को षड्यंत्र की सूचना दे दी इसलिये षड्यंत्र सफल न हो सका। सुलतान ने सभी षड्यंत्रकारियों को मरवा डाला। जब सुलतान ने इस षड्यंत्र के बारे में सुना तो क्रोध के मारे उसका संतुलन (Balance) जाता रहा। उसने खिजरखाँ समेत उसके समस्त परिवार को मरवा दिया। लेकिन वह खिजर खाँ के परिवार के प्रति इस सीमा तक तो उदार था कि उसने उसकी विधवा से स्वयं शादी कर ली।
अव्यवस्थित प्रशासन (Disorganised Administration) -
- दक्षिण में मुबारिक की सफलता विशेषतः देवगिरी पर विजय, ने उसको आधा पागल बना दिया था परिणामतः वह निर्दयी और कठोर बन गया। उसने अपने ससुर और अपने एक कृपापात्र हनून को मरवा दिया। कहा जाता है कि देवगिरि की विजय के बाद सुलतान ने प्रशासन के काम में लापरवाही करनी शुरू कर दी और वह विषय-वासना की ओर पूर्णतः झुक गया। कभी-कभी वह अपने नियमित दरबार में जनाना पोशाक में दिखाई देता था। उसने हिजड़ों (Eunuch) और वेश्याओं को दरबार के बूढ़े और अनुभवी कुलीन व्यक्तियों (nobles) के साथ भी स्वतंत्रतापूर्वक बोलने की इजाजत दे दी। उसके शासन के इन कौतुकी कार्यों का वर्णन करते हुए बारूनी लिखता है, "कभी-कभी सुलतान अपने दरबारियों में बिल्कुल नंगा होकर दौड़ लगाया करता था।" इन विषय-वासनापूर्ण घटनाओं का परिणाम यह हुआ कि लोगों में राजा के प्रति कोई सम्मान न रहा। हर जगह विद्रोह और क्रांति की आग भड़कने लगी। देवगिरी के गवर्नर यकलाकी (Yaklaki) ने विद्रोह का झण्डा उठाया और अपने आपको एक स्वतंत्र राजा घोषित कर दिया। लेकिन मुबारिक के एक निष्ठावान सेवक ने यकलाकी के विरुद्ध लड़ाई की और उसको पराजित करके दिल्ली भेज दिया। मुबारिक ने फाँसी की सजा न देकर उस पर दया की, लेकिन साथ ही साथ उसने उसके साथ बड़ी क्रूरता का व्यवहार किया। यकलाकी के कान और नाक काट लिये गये। कुछ दिन बाद उसको क्षमा कर दिया गया और उसे समाना (Samana) का गवर्नर बना दिया गया। खुसरो के सौतेले भाई ने गुजरात में विद्रोह कर दिया। उसको भी राजा के वफादार सेवकों ने पराजित कर दिया। मुबारिक का दोस्त खुसरो भी दक्षिण में एक स्वतंत्र राज्य बनाना चाहता था। जब राजा को यह खबर मिली तो उसने इस पर विश्वास न किया। उसने खुसरो को दिल्ली बुलाया और जिन लोगों ने खुसरो के इरादों की सूचना दी थी उनको सजा दी गयी।
मुबारिक का अन्त (End of Mubarik)-
- खुसरो हमेशा सिंहासन प्राप्त करने की योजनायें बनाया करता था। वह सोचता था कि जब तक उसके पास एक विशाल और व्यवस्थित सेना न हो तब तक वह अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा न कर सकता था। इसलिए उसने सुलतान से प्रार्थना की कि उसे अपने पास 40,000 सिपाही रखने की इजाजत दे दी जाए। सुलतान के तुरन्त आज्ञा प्रदान कर दी। इसके बाद उसके मित्र खुसरो ने विनय की कि उसे अपने मित्रों और संबंधियों से महल में कहीं भी एकान्त में मिलने की इजाजत दी जाय। सुलतान को कोई संदेह न था इसलिए उसने अपने मित्र को यह भी इजाजत दे दी। अतः खुसरो के लिए सिंहासन प्राप्त करने के लिए पृष्ठभूमि तैयार हो गयी। मुबारिक के एक बूढ़े अध्यापक के खुसरो के इन संदेहों के बारे में चेतावनी दी लेकिन उसने इन सन्देहों को कोई महत्त्व नहीं दिया। वह बराबर यही सोचता था कि खुसरो उसका बड़ा मित्र है।
- जब सब तैयारियाँ हो गयीं तो यह सब घटना अप्रैल 1320 ई. में घटी। 1320 ई. में अप्रैल की चौथी रात्रि को खुसरो के लोगों ने महल में प्रवेश किया। शुरू में खुसरो के आदमियों ने द्वारपालों को कत्ल किया। बहुत शोर मच गया। जब सुलतान मुबारिक ने महल में चहल-पहल सुनी तो उसने खुसरो से पूछा कि क्या बात है? खुसरो ने आत्मस्थित तौर पर बताया कि कुछ घोड़े अस्तबल से भाग गये हैं और उनको पकड़ा जा रहा है। इतने ही में कुछ सिपाही सुलतान के कमरे में दोड़े हुए आये। सुलतान भयभीत हो गया और वह हरम (Heram) की ओर दौड़ा। खुसरो ने उसको पकड़ लिया और सिपाहियों ने तुरन्त ही उसका सर काट दिय। अतः 1320 में खिलजी साम्राज्य की बुरी तरह अन्त हुआ। ठीक ही कहा गया है कि अघम-अघम ही होता है, वे बड़े-बड़े कामों के लायक नहीं होते। सुलतान ने खुसरो के साथ प्यार और मित्रता करके गलती की थी अन्यथा इतिहास के पृष्ठ अन्तिम खिलजी सुलतान मुबारिक के शासन का भिन्न ही प्रमाण देते।