अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार
अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार (Economic Improvement of Ala-ud-Din Khilji)
- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार उसके प्रशासन का सबसे महत्त्वपूर्ण रूप हैं। डा. के. एस. लाल का कहना है कि, "ऐसा प्रतीत होता है कि किसानों का जीवन नीरस था और उनके रहन-सहन का दर्जा नीचा था।" मध्य युग इतिहास की सारी परिधि में शायद वही एक ऐसा शासक है जिसने आर्थिक सुधार किये और इन सुधारों के कारण ही लेनपूल ने उसे एक 'महान अर्थशास्त्री' का नाम दिया है।
- लगातार विजयों का अलाउद्दीन का शौक और मंगोलों के लगातार आक्रमणों ने उसके मन में यह बात बैठा दी थी कि एक बड़ी भारी सेना बनाकर रखना अति आवश्यक है। सेना पर व्यय करने के अतिरिक्त उसे प्रशासन चलाने के लिए भी धन की आवश्यकता थी। माना कि वह देवगिरि से बहुत-सा धन लाया था, उसे कई पराश्रित शक्तियों से भेंट-धन भी मिल रहा था और वह कृषकों से उपज का 50 प्रतिशत भी प्राप्त कर रहा था परन्तु फिर भी अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिए उसके पास पर्याप्त धन नहीं था। सेना तो वह घटा नहीं सकता था इसलिए उसने सैनिकों का वेतन घटा दिया परन्तु इस खातिर कि वे थोड़े वेतन में चैन से निर्वाह कर सकें उसने वस्तुओं के मूल्य घटाने और अन्य सुधार लागू करने का निश्चय कर लिया। उसके आर्थिक सुधारों की तह में वास्तव में यही प्रयोजन काम कर रहा था। इसके अतिरिक्त अपनी प्रजा पर मढ़ी हुई गरीबी के साथ-साथ उसने यह आवश्यक समझा कि वस्तुओं की कीमतें नियत कर दी जाएँ ताकि इस बात का निश्चय हो सके कि उनके पास प्रतिवर्ष जितना चाहिए उतना अनाज, दूध इत्यादि सामान तो बच ही जायेगा। वह नहीं चाहता था कि उसके लोग अमीर बनें जिससे ऐसा न हो कि वे विद्रोह और कलहशील सिद्ध हों।
अलाउद्दीन खिलजी के सुधार संक्षेप में इस प्रकार दिये जा सकते हैं-
(i) कीमतों पर नियंत्रण (Control on Prices):
- सर्वप्रथम एक व्यापारिक सूची तैयार की गई, जिसमें दैनिक प्रयोग की सब वस्तुओं का मूल्य लिख दिया गया। मूल्य बहुत ही थोड़े भाव पर निश्चित किए गए।
- मक्खन का अधिक से अधिक मूल्य ढाई सेर प्रति जीतल नियत किया गया। खांड का मूल्य 1 जीतल प्रति सेर लगाया गया। रेवड़ी, खीर, सब्जियाँ, चोपत्तियाँ, फल, कंघे, जूते, प्याले, घड़े, सुइयाँ और पान इत्यादि वस्तुओं के मूल्य भी नियत कर दिए गए। दासों, गऊओं, घोड़े और नौकरों तथा वेश्याओं की कीमतें भी नियत कर दी गईं। वध के लिए एक गाय डेढ़ टंक तक बिकती जबकि दूध देने वाली कोई गाय 3 से 4 टंक तक बिकती है। प्रथम श्रेणी के घोड़े 102 से 120 टंक तक खरीदे जा सकते। दूसरी श्रेणी के घोड़े 80 से 90 टंक तक में और तीसरी श्रेणी के 65 से 70 टंक में खरीदे जा सकते थे। एक दास लड़की का मूल्य 5 से 12 टंक तक नियत किया गया और एक वेश्या का 20 से 40 टंक तक। फरिश्ता की राय यह है कि जो कीमतें दिल्ली के लिए नियत की गईं वही देश के दूसरे भागों में भी चलती थीं परन्तु यह बात गलत प्रतीत होती है।
- क्या आप जानते हैं दुकानदारों को इन नियत मूल्यों पर चीजें बेचनी पड़तीं। अधिक भाव पर बेचना एक अपराध था और अपराध भी ऐसा जिसके लिए एक कठोर दण्ड मिलता। बारानी हमें बताता है कि एक बार शाहाना-ए-मंडी के बाईस कोड़े लगाए गए इस कारण कि उसने सुल्तान को अनाज का मूल्य डेढ़ जीतल तक बढ़ाने का सुझाव दिया था।
(ii) सप्लाई पर नियंत्रण (Control on Supply):
- अलाउद्दीन ने यह समझ लिया कि यदि सप्लाई पर नियंत्रण न किया गया तो कीमतें नियत करने से काम नहीं बनेगा। उसके हृदय में यह बात बैठ गई कि यदि उसकी योजना सफल होनी है तो वस्तुओं की सप्लाई समय पर होनी आवश्यक है। इसलिए उसने आज्ञा जारी कर दी कि कोई भी आदमी अपने पास दस मन से अधिक अनाज न रखे और फालतू अनाज नियत दाम पर बेच दे। अलाउद्दीन ने तत्संबंधी न्याय पालकों और स्थानीय अधिकारियों को भी आज्ञा दे दी कि तुम मुझे लिख कर दे दो कि कृषकों से जितना हो सके उतना अनाज प्राप्त करने का प्रयत्न करोगे। उसके अनुसार ही न्याय पालकों और जिलाधीशों ने 50 प्रतिशत उपज राज्य कर के रूप में प्राप्त करने के बाद कृषकों को बाध्य किया कि वे अपना फालतू अनाज नियत दामों पर यात्री व्यापारियों को बेच डालें। सप्लाई में बाधा मौसम के कारण भी हो सकती थी इसलिए सुल्तान ने अनाज के सरकारी गोदाम स्थापित किये जो अनाज की सप्लाई देते, जब फसल के असफल हो जाने के कारण किसान सप्लाई न कर सकते।
(iii) यातायात पर नियंत्रण (Control on Transport):
- सुल्तान ने न केवल बहुत-सी वस्तुओं के दाम और उनकी सप्लाई पर नियंत्रण किया अपितु उसने माल के यातायात पर भी नियंत्रण किया। एक स्थान से दूसरे स्थान तक माल ले जाने वाले व्यापारियों और बाजारों के नाम रजिस्टर्ड किये गये और माल को लाने ले जाने में उन्हें हर प्रकार की सुविधा दी गई।
(iv) राशन प्रणाली (Rationing System):
- कहीं किसी जगह सूखा अथवा दुर्भिक्ष न पड़ जाए इसके लिए अलाउद्दीन ने पहले से ही राशन-प्रणाली चालू कर दी। ऐसे संकटकाल में लोगों को अनिश्चित परिणाम में अनाज नहीं बेचा जा सकता था। उधर दूसरी ओर किसी मुहल्ले के रजिस्टर्ड हुए बकाल जिन्हें सरकारी गोदामों में अनाज मिलता था किसी भी व्यक्ति को आधे मन से अधिक नहीं बेच सकते थे।
- यह राशन प्रणाली अलाउद्दीन का अपना ही एक निराला विचार था और बारानी लिखता है कि अलाउद्दीन के भिन्न-भिन्न प्रकार के इन नियमों के कारण दिल्ली में एक बार भी दुर्भिक्ष नहीं पड़ा चाहे सूखा भी पड़ा और लोग यह समझने लग गये थे कि दुर्भिक्ष पड़ कर रहेगा।
(v) इस प्रणाली का सुचारु संगठन (Efficient Organisations of the System):
- अलाउद्दीन ने इस प्रणाली को बड़े सुचारु ढंग से संगठित किया, उसने दो अधिकारी नियुक्त किये शहाना-ए-मण्डी तथा दीवान-ए-रियासत। मलिक कबूल शहाना-ए-मण्डी अनाज या बाजार का निरीक्षक था जब कि दीवान-ए-रियासत कपड़ा तथा अन्य वस्तुओं के बाजार पर उत्तरदायी अधिकारी था। डा. ईश्वरी प्रसाद लिखता है-"सुल्तान अपने दासों को रोटी, गोश्त, हलवा, खरबूजा, ककड़ी आदि जैसी चीजें खरीदने के लिए बाजार को भेजा करता था और जब वे वापस आते तो उनकी लाई वस्तुओं को तोला जाता था और उनका वजन कम होता तो दुकानदार के शरीर से उतने ही वजन का गोश्त निकाल लिया जाता था ताकि तोल की कमी को पूरा किया जा सके।"
- मलिक कबूल के पास, जो शहाना-ए-मण्डी के रूप में कार्य करता था, घुड़सवारों तथा पदसवारों का एक बड़ा दल था जो उसके काम में उसकी सहायता करता। वह इस बात का ध्यान रखता कि व्यापारी लोग जल्दी-जल्दी और नियमित रूप से अनाज मण्डी में लाएँ, उसे नियत भावों पर बेचें और किसी प्रकार की चोर बाजारी न होने पाए। वह मण्डी के भावों तथा बाजारों के सामान्य हालात के बारे में सुल्तान को सूचना दिया करता। वह सुल्तान से सदैव डरता रहता और एक बार उसे इस कारण दण्ड मिला कि उसने सुल्तान को सुझाव दिया था कि गेहूँ का भाव डेढ़ जीतल प्रति मन बढ़ा दिया जाए। अनाज बाजार के अन्य अधिकारी ये थे-नासिद-ए-मण्डी जो वस्तुओं के गुण प्रकार की सूचना देता और मुनीहयात अर्थात् वे गुप्तचर जो सुल्तान को अपनी ओर से सूचना देते तथा दीवान-ए-रियासत अपनी ओर से वस्त्र बाजार की देख-रेख करता।
(vi) नियमों का लागूकरण और भयानक दण्ड व्यवस्था (Enforcement of Regulations and drastic punishments):
- सुल्तान बड़ी दृढ़ता से अपने नियमों को लागू करता। हर शहाना को अपनी मण्डी के लिए दाम-सूची की एक प्रति दी जाती ताकि वह पता लगा सके कि कहीं किसी व्यापारी ने अधिक दाम तो नहीं वसूल कर लिए। ये शहाना लोग हर प्रकार के व्यापारियों को दबाते, उन पर कोड़े लगाते और उन पर तरह-तरह के अत्याचार ढाते। याकूत तो यहाँ तक जाता कि यदि कोई व्यापारी कम तोलता तो वह उस कमी को पूरा करने के लिए उतने ही वजन का माँस उस व्यापारी के शरीर से कटवा देता। डा. पी. सरन के अनुसार, भाव-नियंत्रण प्रणाली (Price Control System) के अधीन परिस्थितियों के पूर्ण अध्ययन से हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि उन लोगों पर इसका सबसे अधिक बुरा असर पड़ा था। बेईमानी का पता लगाने के लिए सुल्तान स्वयं अपने दासों को बाजार भेजता कि रोटी, माँस, रेवड़ी, खीर इत्यादि वस्तुएँ तोलकर लाई जाएँ। यदि यह पता लगता कि वे तोल में कम हैं तो उनका उतना माँस काट लिया जाता। व्यापारी लोग इतने भयभीत हो गये कि प्रायः वे वास्तविक तोल से भी अधिक मात्रा में वस्तुएँ देते। डा. ईश्वरी प्रसाद लिखता है, "सुल्तान अपने दासों को रोटी, गोश्त, हलवा आदि जैसी चीजें खरीदने के लिए बाजार को भेजा करता था जब वे वापस आते तो उनकी लाई वस्तुओं को तोला जाता था। यदि उनका वजन कम होता तो दुकानदार के शरीर से उतने ही वजन का गोश्त निकाल लिया जाता था ताकि तोल की कमी को पूरा किया जा सके।"
- अलाउद्दीन उन गन्दे दलालों के विरुद्ध भी बड़ी कठोर कार्यवाही करता जो भोले-भाले लोगों का शोषण करते, यहाँ तक कि उनका जीवन दूभर हो गया और व मर जाने की इच्छा करते रहते।
इस प्रणाली की सफलता के कारण (Causes of the success of this system):
अलाउद्दीन की यह प्रणाली बड़ी सफल रही। इसके कई कारण थे-
(i) प्रणाली का दृढ़ता से लागूकरण (Rigorous enforcement of the system):
- सर्वप्रथम यह प्रणाली दृढ़ता से लागू की गई और जिस किसी ने इनमें से किसी भी नियम का उल्लंघन किया उसे कड़ा दण्ड दिया गया।
(ii) सुल्तान की व्यक्तिगत रुचि (Personal interest of the Sultan):
- दूसरी बात यह कि सुल्तान की व्यक्तिगत रुचि तथा उसकी देख-रेख ने भी इस प्रणाली को सफल बनाने में बड़ा काम किया। सुल्तान को भिन्न-भिन्न स्रोतों से इस प्रणाली की प्रगति के बारे में नियमपूर्वक सूचना मिलती रहती। इतना ही नहीं, वह प्रायः अपने दासों को बाजार भेजा करता कि कुछ निश्चित वस्तुएँ खरीद कर लायें ताकि वह देख सके कि व्यापारी लोग नियत भाव पर सामान बेचते हैं या नहीं। यदि वे भाव चढ़ाकर बेचते अथवा कम तोलते तो उन्हें दण्ड मिलता।
(iii) अधिकारियों का उत्साह तथा उनकी निष्पक्षता (Impartiality and Zeal of the Officers):
- दीवान-ए-रियासत याकूब तथा शहाना-ए-मण्डी मलिक कबूल जैसे अलाउद्दीन के अधिकारी बड़े उत्साह तथा बड़ी ईमानदारी से अपना कर्तव्य पूरा करते। यदि वे अपने कर्त्तव्य से तनिक भी भटक जाते अथवा थोड़ी-सी त्रुटि भी उनके काम में रह जाती तो उन्हें कड़ा दण्ड मिलता।
(iv) लोग गरीब होने पर विवश (Forced poverty of people):
- अलाउद्दीन ने लोगों को गरीब रहने पर विवश किया, इस बात ने भी उसकी इस प्रणाली को बहुत सफल बनाया। इन उपायों के कारण लोग अमीर नहीं बन सकते थे इसलिए वे विद्रोही तथा कलहशील भी नहीं बन सकते थे।
अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार प्रणाली के गुण तथा दोष (Merits and Demerits of the System)
गुण (Merits):
- अलाउद्दीन खिलजी के आर्थिक सुधार बड़े सफल तथा लाभदायक सिद्ध हुए। सुल्तान कहता था-"मुझे पता नहीं कि यह काम वैध (Lawful) अथवा अवैध (Unlawful) हैं जो मैं राज्य की भलाई या संकटकालीन स्थिति (Emergency) के लिए समुचित (Suitable) समझता हूँ, करता हूँ और आने वाले न्याय के रोज (Approaching day of judgement) मेरा क्या होगा उसका मुझे पता नहीं।" पहली बात यह कि इन सुधारों के कारण ही अलाउद्दीन एक योग्य तथा बलवान सेना बनाए रख सका। उसके पास भारी संख्या में ऐसे सैनिक थे जो थोड़ा वेतन लेते। फिर भी वह इन सुधारों के द्वारा उन्हें संतुष्ट रख सका क्योंकि उसने वस्तुएँ बड़ी सस्ती कर दीं। परिणाम यह हुआ कि इन सुधारों के सहारे सेना बलवान तथा योग्य बन गई और इससे मंगोल आक्रमणों के विरुद्ध राज्य सुरक्षित हो गया और विद्रोही राजा सरदार वश में हो गए।
- दूसरी बात, सब प्रकार का राजद्रोह समाप्त हो गया और लोगों का स्वभाव अनुशासित हो गया। अब कोई चोर बाजारी तथा धोखा धड़ी नहीं हो सकती थी। छोटे-छोटे अपराधों से लिए व्यापारियों को जो कड़ा दण्ड मिलता, उससे उनकी आदतें सुधर गईं। तीसरी बात, डा. ईश्वरी प्रसाद के मतानुसार जीवन की आवश्यकताओं के सस्ता हो जाने से लोगों के सुख में वृद्धि हो गई।
- चौथी बात, इन सुधारों ने लोगों को राज्य की व्यक्तिगत मनमानाशाही से जकड़ कर रख दिया।
दोष (Demerits):
- अलाउद्दीन के आर्थिक सुधार पूर्ण रूप से अच्छे नहीं थे। इलियट लिखता है-"हिन्दुओं की इतनी अधिक दुर्दशा हो गई थी कि खूतों और मुकद्दमों (Muqaddams) की पलियाँ मुसलमानों के घरों में जाकर किराये पर काम करती थीं।" उनके अन्दर दोष और त्रुटियाँ भी थीं। डा. परमात्मा सरन लिखता है-"अलाउद्दीन के नवीन व्यवहार (New Deal) का समस्त ब्योरा केवल एक ही निष्कर्ष की ओर इशारा करता है कि वह पूर्णतः अनुचित असमझपूर्ण तथा कृत्रिम प्रणाली (Artificial System) थी जो सभी वित्तीय विधियों (Economic Laws) के प्रतिकूल थी और जिसका मूल उद्देश्य सरकार को लाभ पहुँचाना था। परिणामतः उन लोगों को जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से उसके पैरों तले थे, ऐसी दुर्दशा, गरीबी और अपमान का सामना करना पड़ा जिसका हिसाब नहीं लगाया जा सकता।"
- पहली बात, अलाउद्दीन के सुधार किसी लोक भलाई के प्रयोजन का परिणाम नहीं थे। उसने ये सुधार केवल सेना के लिए ही जारी किये थे और सेना खल्क-ए-खुदा (The People of God) का एक अंश ही तो थी। वस्तुओं के सस्ता होने का लाभ सैनिकों को भी बहुत अधिक नहीं पहुँचा। यदि कीमतें कम थीं तो उनके वेतन भी तो कम थे। फिर यह सुधार राज्य के सभी भागों में लागू नहीं हुए। यह प्रणाली केवल देहली और उसके आस-पास के प्रदेशों में ही चली, न कि सारे देश भर में।
- दूसरी बात, इन सुधारों ने व्यापार की वृद्धि में बाधा डाली और उसे ठप्प कर दिया। दुकानदारों को अपनी वस्तुएँ सस्ते दामों और अधिक तोल पर देनी पड़ती। यदि वह अधिक दाम लेते अथवा कम तोलते तो उन्हें कठोर दण्ड मिलता। इस कारण व्यापारियों को वह लाभ न होता जो व्यापार की प्रगति के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा है, अतः वह व्यापार में कोई रुचि न रखते और इस प्रकार व्यापार ठप्प हो गया।
- तीसरा दोष यह था कि इन सुधारों से किसानों को बहुत हानि उठानी पड़ी। उन्हें, सबसे पहले उपज का पचास प्रतिशत लगान के रूप में देना पड़ता। उन्हें कई और कर भी चुकाने पड़ते, फिर उन्हें बहुत सस्ते दामों पर अपना अनाज बेचना पड़ता। तो यह स्वाभाविक बात है कि उनकी दशा बहुत बिगड़ गई और उन पर गरीबी लद गई।
- चौथा दोष यह था कि अलाउद्दीन की यह सुधार प्रणाली अति क्रूर थी। छोटे-छोटे अपराधों के लिए उनके अधिकारी व्यापारियों को बड़ा कड़ा दण्ड देते। यहाँ तक कि लोग इन अधिकारियों को प्लेग से भी अधिक घातक समझते और सरकारी क्लर्क बनना मौत से भी अधिक गिना जाता।
- अन्तिम दोष यह था कि अलाउद्दीन के नियम बड़े अस्थायी थे जो उसकी मौत के साथ ही मर गए। संक्षेप में बात यह है कि अलाउद्दीन के सुधारों से केवल देहली के लोगों तथा सैनिकों को ही लाभ पहुँचा। किसानों और व्यापारियों को इन सुधारों से बहुत हानि हुई। जो कुछ भी हो, थोड़े खर्चे पर एक बड़ी सेना रखने का अलाउद्दीन का उद्देश्य तो पूरा हो ही गया और उसी सेना से वह मंगोल आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना करने तथा अनेक विद्रोहों को दबाने में समर्थ हुआ।