अलाउद्दीन खिलजी का चरित्र तथा व्यक्तित्व
(Character and Personality of Ala-ud-Din Khilji)
अलाउद्दीन खिलजी का चरित्र तथा व्यक्तित्व
अलाउद्दीन खिलजी निस्संदेह भारत का सबसे महान मुस्लिम सम्राट हुआ है। वह तुच्छता की दशा से उठकर मध्य युग का एक महानतम शासक बन गया। उसका चरित्र यूँ तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
(क) एक मनुष्य के रूप में (As a Man)
(ख) एक सेनापति के रूप में (As a General)
(ग) एक शासक के रूप में (As a Ruler)
1 अलाउद्दीन खिलजी का चरित्रएक मानव के रूप में (As a Man)
(i) अनपढ़ परन्तु बड़ा बुद्धिमान (Illiterate but endowed with great commonsense):
- अकबर और रणजीत सिंह की तरह अलाउद्दीन भी एक अनपढ़ व्यक्ति था परन्तु उसमें काफी सामान्य समझ और बुद्धि थी। वह किसी भी विद्वान मौलाना के साथ वाद-विवाद में उलझ सकता था और साम्राज्य की सभी समस्याओं को समझ सकता था।
(ii) कठोर और निर्दयी
- अलाउद्दीन एक बहुत निर्दयी व्यक्ति था जिसमें मानवीय सहृदयता नाम मात्र की भी न थी। वह लोगों को अत्याचारपूर्ण दण्ड दिया करता। इलियट लिखता है-"हिन्दुओं की इतनी दुर्दशा हो गयी थी कि खूतों (Khuts) और मुकद्दमों (Mukaddams) की पत्नियाँ मुसलमानों के घरों में जाकर किराये पर काम किया करती थीं।" व्यापारियों को उसने दण्ड दिए, लोगों पर नसरत खां ने जो अत्याचार किये और सुलतान ने जिस निर्दयता से अपने ही सगे सम्बन्धियों को मार डाला यह सब सोचकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। डा. ईश्वरी प्रसाद कहता है, "अलाउद्दीन का राज्य मुस्लिम निरंकुशता की उच्च सीमा का प्रतीक है। वह स्वभाव से क्रूर तथा अनाराध्य था। यदि धर्म के आदेश और नियमानुकूल विधि (Conon Law) उसकी नीति में हस्तक्षेप करते तो वह उनको एक तरफ उठाकर रख देता था।" अपने चचा और ससुर जलालुद्दीन की हत्या और उलग खाँ को चोरी से विष देकर मारना-यह इस बात का प्रमाण है कि राजा के अन्दर शायद मनुष्यता थी ही नहीं। डा. पी. सरन लिखता है-"यह बात निश्चित है कि अलाउद्दीन के कार्य उसके लोकोपकारी (Philanthropic motives) जैसे अपनी जनता की सामान्य दशा में सुधार करना के परिणाम न थे। वे सरकार की कार्यकुशलता (Efficiency) के किसी विचार से भी न किये गये थे।"
(iii) एक धार्मिक व्यक्ति तथा कट्टर पंथी (A religious man and a fanatic):
- अमीर खुसरो और ईसामी के कथनानुसार अलाउद्दीन एक सच्चा मुसलमान था जो शरीयत के नियमों पर चलता और अपने काम-काज में इस्लाम धर्म का प्रदर्शन करता। यह अपने समकालीन मुस्लिम संतों का बड़ा आदर करता परन्तु वह राज्य के मामलों में काजियों और मौलानाओं का अनुचित हस्तक्षेप पसंद नहीं करता था और न ही उन्हें पथ-प्रदर्शक मानता। अलाउद्दीन एक कट्टर पंथी मुसलमान था जिसका हिन्दुओं के प्रति व्यवहार संतोषजनक नहीं था। उसने उन पर जजिया कर लगाया और सब प्रकार के अत्याचार ढाए। फिर भी वह फिरोजशाह तुगलक, सिकंदर लोधी अथवा औरंगजेब जैसा धर्मान्मत नहीं था। डा. परमात्मा सरन लिखता है- "सरकार की विभिन्न कार्यवाहियों और उसके उपायों (Measures) को विशेषतः शासक वर्ग (Ruling class) के हित में लागू किया जाता था। यदि उनसे जनता की कोई भलाई होती थी तो वह केवल अकस्मात् बात थी। यह उनके उपायों का गौण परिणाम (By product) मात्र थी और वह भलाई इस अभिप्राय से किये गये किसी कार्य का फल न थी।" लेनपूल लिखता है-"यद्यपि वह एक खूंखार और निस्संकोच क्रूर व्यक्ति था तथापि उसको एक दृढ़ और योग्य शासक की पदवी देने से कोई व्यक्ति इंकार न कर सकता था।"
(iv) एक महान शिकारी (A great Hunter):
- अलाउद्दीन को शिकार इत्यादि का बड़ा शौक था। वह नियमपूर्वक अपना कुछ समय कबूतर उड़ाने और कई प्रकार के जीवों का शिकार करने में लगाता।
(v) दुष्टाचारी नहीं (Not a Debauch):
- अलाउद्दीन यद्यपि एक बहुपत्निक था तो भी वह किसी स्त्री के प्रभावाधीन नहीं था। पहले-पहल वह शराब लिया करता था परन्तु बाद में उसने इसे छोड़ दिया। वास्तव में अलाउद्दीन ने खुले दुष्टाचार से बचकर जीवन व्यतीत किया।
2 अलाउद्दीन खिलजी एक सेनापति के रूप में (As a General)
- अलाउद्दीन एक निर्भीक और होनहार सेनानी था और अपने सेनानीपन के कारण ही वह तुच्छ-सी दशा से उठकर महान सम्राट् की पदवी तक पहुँच गया। कुछ लोग कहते हैं कि अलाउद्दीन स्वयं एक सेनानी नहीं था और उसकी विजयें उसके सेनापतियों के सहारे हुईं और वे सेनापति थे अल्प खाँ, जफर खाँ, नसरत खाँ और मलिक काफूर। परन्तु यह विचार पूर्णतया अशुद्ध है। अभी जबकि वह एक अज्ञात व्यक्ति था, अलाउद्दीन ने जलालुद्दीन के शासनकाल में मलिक छज्जू के विरुद्ध लड़कर और भीलसा पर चढ़ाई करके अपने आपको प्रसिद्ध कर लिया। उसके बाद उसने देवगिरि पर एक शानदार, प्रसिद्ध तथा सफल चढ़ाई करके दिखाई।
- सिंहासन पर बैठने के बाद अलाउद्दीन सुरक्षित रूप से राजधानी को छोड़कर न जा सका और इसलिए उसने उलूग खाँ और नसरत खाँ को गुजरात तथा अन्य प्रदेशों पर अधिकार करने भेजा था। 1299 ई. में अलाउद्दीन ने स्वयं कुतलुग ख्वाजा के नेतृत्व में आये हुए मंगोलों को करारी हार दी। मंगोलों के विरुद्ध चढ़ाई करने से पहले जिस प्रकार उसने मलिक अला-उल-मुल्क के साथ तर्क-वितर्क किया उसे पता लगता है कि उसके अन्दर कितना शौर्य भाव था। विदेशियों से न लड़ना वह घटिया प्रकार की कायरता समझता था। मंगोलों व राजपूतों के विरुद्ध लड़े गये अपने सभी युद्धों में सुल्तान ने दर्शा दिया कि उसके अन्दर संगठनात्मक योग्यता, कूटनीति तथा सैनिक निपुणता कूट-कूटकर भरी हुई थी। रणथम्भोर के अपने घेरे में जब उलग खाँ सफल न हो सका तो अलाउद्दीन ने स्वयं उस पर चढ़ाई की और अपने लगातार प्रयत्नों एवं सैनिक प्रतिभा के सहारे उसे पराजित करके छोड़ा। 1303 ई. में सुल्तान चित्तौड़ को जीतने में सफल हुआ वही चित्तौड़ जिस पर पहले के सुल्तान अधिकार न कर सके थे। अलाउद्दीन ही पहला मुस्लिम सुल्तान था जिसने दक्षिण पर चढ़ाई की और काफूर द्वारा देवगिरि, वारंगल, द्वार समुद्र और मथुरा के दक्षिणी राजाओं को पराजित किया।
- संक्षेप में यह कह सकते हैं कि अलाउद्दीन एक महान विजेता और बहुत उच्च सैनिक प्रतिभा वाला व्यक्ति था।
अलाउद्दीन खिलजी एक शासक के रूप में (As a Ruler)
(i) एक महान प्रशासक (A great administrator):
- डा. ईश्वरी प्रसाद लिखता है कि "अलाउद्दीन में एक जन्म जात सेनापति तथा शासक-प्रबंधक के गुण थे- ये दोनों बातें मध्य युगीन इतिहास में एक साथ कम दिखाई देती हैं।" वह न केवल एक निर्भीक सेनापति था परन्तु एक उत्तम प्रशासकीय युद्ध वाला व्यक्ति भी था। के.एस. लाल के शब्दों में, "एक शासन प्रबंधक के रूप में ही अलाउद्दीन अपने पूर्वगामियों से कहीं ऊँचा है और किसी रूप में हो न हो एक योद्धा के रूप में उसकी सफलताएँ एक संगठनकर्ता के रूप में उसकी सफलताओं के आगे फीकी पड़ जाती हैं।" श्री आर.सी. मजूमदार का कहना है कि "प्रशासक के रूप में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने शासन के प्रारम्भिक भाग में आश्चर्यजनक साहस दिखाया। पुजारी दायादता (Priestly heirarchy) के पथ-प्रदर्शन तथा सत्ता से स्वतंत्र होकर राज्य पर पहली बार शासन करने का श्रेय (Credit) उसी को है।"
- अलाउद्दीन ने एक बहुत ही मजबूत और बढ़िया प्रशासन स्थापित किया। उसने सरदारों की अनुचित शक्ति को दबाया और धार्मिक संस्थाओं को अपने नियंत्रण में रखा। उसने प्रान्तीय प्रशासन पर भी एक बड़ा नियंत्रण रखा और चौकसी बरती। उसने एक समान न्याय चुकाने का विशेष ध्यान रखा और अपराधियों को भयानक दण्ड दिये। उसने एक उत्तम गुप्तचर प्रणाली भी चलाई। अलाउद्दीन ने सैनिक प्रणाली का पुनर्गठन किया और अन्त में बहुत से आर्थिक सुधार भी किए। डा. के.एस. लाल कहता है, "अतिशयोक्ति होते हुए भी ये वाक्यांश इस प्रचलित विचारधारा की ओर ले जाते हैं कि राजा ही राज्य करता था और वह शाही निरपेक्षतावाद का जमाना था।"
- एक चलाक राजनीतिज्ञ अलाउद्दीन एक चलाक राजनीतिज्ञ था। उसने ताड़ लिया कि लगातार प्रदेश-हड़प नीति को अपनाने में बड़े खतरे हैं। इसलिए उसने दक्षिण के राज्यों को अपने साम्राज्य में नहीं मिलाया। उसने दक्षिण के राजकुमारों को पराजित करके उनसे खूब धन भेंट में लिया। परन्तु साथ ही उनके प्रदेश उन्हीं के अधिकार में छोड़ दिये। उससे अलाउद्दीन की बुद्धिमता और राजनीतिज्ञता का पता चलता है। इन राज्यों पर नियंत्रण रखना व्यावहारिक रूप से एक असंभव बात होती। अतः अलाउद्दीन की दक्षिणी नीति निस्संदेह बड़ी समझ और राजनीति की बात थी।
(ii) कला और विद्वता का महान संरक्षक
- यद्यपि वह स्वयं अनपढ़ था फिर भी अलाउद्दीन ने कवियों और विद्वानों को जी भर संरक्षण दिया। बारानी के कथनानुसार उसके दरबार में 46 बड़े विद्वान थे। उनमें सबसे बड़ा विद्वान अमीर खुसरो था जिसने 'तारीख-ए-अलाऊ' लिखी जिसमें उसने अलाउद्दीन की विजयों का वर्णन किया और 'आशिक' नाम की एक रमणीक रचना भी रची जिसमें देवलदेवी और खिजर खाँ का परस्पर प्यार दर्शाया गया है। अलाउद्दीन के दरबार में एक और महान साहित्यकार था। अमीर हसन देहलवी जिसे भारत साक्षी कहते हैं। इसके अतिरिक्त अन्य महान लेखक और धर्म पण्डित ये थे-अमीर अरसलान कोही, कबीरूद्दीन, शेख नजामुद्दीन और काजी मुगीस-उद्दीन।
- अलाउद्दीन भवन-निर्माण कला का बड़ा प्रेमी था जिसने 70,000 लोगों को भवन-निर्माण के कामों में लगा रखा था। उसके प्रसिद्ध भवन ये हैं यामिनी मस्जिद, अलाए-मीनार, अलाए-दरवाजा इत्यादि। सर वुल्जले हेग का कथन है-"अलाउद्दीन के शासन के साथ एक ऐसे युग का आरंभ होता है जिसे सल्तनत का साम्राज्यवादी युग (Imperialage) कहा जा सकता है जो लगभग आधी शताब्दी तक रहा।"
अलाउद्दीन का आलोचनात्मक अनुमान (Critical Estimate of Ala-Ud-Din)
- कुछ लोगों का मत है कि अलाउद्दीन ने कोई स्थायी सफलता प्राप्त नहीं की। कहते हैं कि उसकी सरकार का कोई ठोस आधार नहीं था और उसके शासन की आंतरिक दुर्बलता के कारण खिलजी वंश आसानी से उखड़ गया। इसमें कोई शक नहीं कि अलाउद्दीन की प्रशासन प्रणाली में कुछ अपने दोष थे। उसकी सरकार केवल एक व्यक्ति का शासन था और वह शासन सैन्य बल पर आधारित था। अपने सैनिकों को लाभ पहुँचाने के लिए ही उसने कुछ आर्थिक सुधार किये जिसके द्वारा उसने व्यापार और कृषि की ओर सब प्रेरणा समाप्त कर दी। उसके शासन के अधीन व्यापारी और किसान बड़े दुःखी थी। गुप्तचर प्रणाली और भयानक दण्ड ने लोगों के जीवन को दूभर बना दिया। डा. वी. स्मिथ का कहना है-" वह विशेषतः एक लूटमार करने वाला और अत्याचारी शासक था जिसके दिल में न्याय के प्रति कोई सम्मान न था। यद्यपि उसके शासनकाल में गुजरात की विजय, बहुत से लूटमार के आक्रमण और दो बड़े दुर्गों पर भीषण आक्रमण की घटनाएँ उल्लेखनीय हैं तथापि उसका शासन कई हालातों में अत्यन्त लज्जापूर्ण था।"
- परन्तु जब अलाउद्दीन की ठोस उपलब्धियों का एक सावधानीपूर्ण और आलोचनापूर्ण विश्लेषण किया जाए तो यह सब बातें नहीं टिकतीं। उसने एक छोटे-से राज्य को एक महान साम्राज्य बना डाला और दिल्ली की सुल्तानशाही के इतिहास में पहली बार दक्षिणी भारत को पराजित किया। उसने मंगोलों की शक्ति पर भी एक घातक प्रहार किया जिसने दिल्ली की सुल्तानशाही के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया था। उसने एक बहुत प्रबल प्रशासन स्थापित किया और सुल्तानशाही को आंतरिक विद्रोहों से सुरक्षित रखा। उसके प्रशासनीय उपायों में से बहुत से उपाय बाद के सम्राटों के लिए आदर्श बन गये।
- संक्षेप में यों कहिये कि अलाउद्दीन एक महान राजा था जो दिल्ली के सुल्तानों में सबसे महान था। ईश्वरी प्रसाद कहता है-"अलाउद्दीन कोई उद्घान्त (Faddist) न था। वह किसी योजना का पालन करता और लगातार उसका अनुसरण करता था और लोकमत से मिलने वाले समर्थन ने उसको जीवन पर्यन्त निर्विरोध बना दिया था। ए.एम. हुसैन के कथनानुसार उसे शेरशाह सूरी और अकबर जैसे भारत के महान शासकों के साथ गिना जा सकता है। हैवल कहता है-"अलाउद्दीन अपनी उम्र से कहीं अधिक आगे बढ़ा हुआ था। 20 वर्ष के उसके शासन में स्वयं हमारे युग की घटनाओं की समानता मिलती है।" इब्नबतूता कहता है, वह सर्वोत्तम सुल्तानों में से एक था।"