तुगलक वंश (The Tughluq Dynasty)
- गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325) (Ghiyas-ud-Din Tughluq)
- मुहम्मद तुगलक (Mohammad Tughluq)
- फिरोज तुगलक (Firoz Tughluq)
- उत्तरकालीन तुगलक शासक (The Later Tughluqs)
- तैमूर का भारत पर आक्रमण (1398) (Taimur Invasion of India)
- आक्रमण के
प्रभाव (Effects of
Invasion)
तुगलक वंश सामान्य परिचय
- तुगलक वंश का संस्थापक गयासुद्दीन तुगलक था वह गाजी तुगलक के नाम से भी जाना जाता है। गाजी तुगलक एक साधारण परिवार का पुरुष था। उसकी माता पंजाब की एक जाट महिला थी और पिता बलबन का तुर्की दास था। वह 8 सितंबर, 1320 ई. को गद्दी पर बैठा। दिल्ली का पद प्रथम सुल्तान था जिसने 'गाजी या काफिरों का घातक' की उपाधि ग्रहण की।
- राजकुमार जूना खाँ गयासुद्दीन तुगलक का ज्येष्ठ पुत्र था। उसका पालन-पोषण एक सैनिक की भाँति हुआ था और उसने उसी में अपने को प्रसिद्ध कर लिया।
- एडवर्ड टामस ने मुहम्मद तुगलक को धनवानों का राजकुमार बताया है। वे बताते हैं कि उसके शासनकाल का प्रथम कार्य यह था कि मुद्रा ढलाई को नया रूप दिया गया।
- मुहम्मद तुगलक एक योग्य व्यक्ति था और उसने सब विषयों में उलेमाओं के आदेश स्वीकार करने से इंकार कर दिया।
- मुहम्मद तुगलक के उपरांत फिरोज तुगलक गद्दी पर बैठा। उसका जन्म 1309 ई. में हुआ व उसकी मृत्यु 1388 ई. में हुई। वह गयासुद्दीन तुगलक के छोटे भाई रजब का पुत्र था। उसकी माता भक्ती राजपूत कन्या थी।
गयासुद्दीन तुगलक (1320-1325) (Ghiyas-Ud-Din Tughluq)
- गयासुद्दीन तुगलक (Ghiyas-Ud-Din Tughluq) या गाजी मलिक (Ghazi Malik) तुगलक वंश का संस्थापक था। यह वंश करौना तुर्क के वंश के नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि गयासुद्दीन तुगलक का पिता करौना तुर्क था। इब्नबतूता हमें बताता है कि उसने शेख रुक्नुद्दीन मुल्तानी (Sheikh Rukn-Ud-Din Multani) से यह सुना था कि सुल्तान तुगलक उन करौना तुर्की की नस्ल में से था जो सिंध व तुर्किस्तान के बीच पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करते थे। करौना तुर्कों के विषय में बताते हुए माकों पोलो (Marco Polo) हमें यह सूचित करता है कि उन्हें यह नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि वे भारतीय माताओं व तारतार पिताओं के पुत्र थे। इलियाज (Nay Elias), मिर्जा हैदर की तारीख-ए-रशीदी के अनुवादक ने करौना, लोगों की उत्पत्ति के विषय में जाँच की और यह निष्कर्ष निकाला कि करौना मध्य एशिया के मंगोलों में से थे और उन्होंने आदि काल में फारस के मंगोल आक्रमणों में मुख्यतः भाग लिया। भारत के मुस्लिम इतिहासकार करौना लोगों के विषय में कुछ नहीं लिखते।
गयासुद्दीन का उत्कर्ष (His Rise):
- गाजी तुगलक एक साधारण परिवार का पुरुष था। उसकी माता पंजाब की एक जाट महिला थी और उसका पिता बलबन का तुर्की दास था। अपने ऐसे जन्म के कारण "गाजी मलिक के चरित्र में इन दो जातियों के मुख्य गुणों हिन्दुओं की विनम्रता व कोमलता तथा तुर्कों का पुरुषार्थ व उत्साह का मिश्रण हुआ।" यद्यपि उसने अपना जीवन एक साधारण सैनिक की भाँति शुरू किया, तथापि वह अपनी योग्यता व कठिन परिश्रम के कारण प्रसिद्ध हो गया। अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल में वह अभियानों का अध्यक्ष (Warden of Marches) तथा दीपालपुर का राज्यपाल नियुक्त किया गया। 29 अवसरों पर उसने मंगोलों के विरुद्ध संग्राम किया, उन्हें भारत से बाहर खदेड़ दिया और इसलिए मलिक-उल-गाजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अलाउद्दीन की मृत्यु के समय गाजी मलिक राज्य के अधिक शाक्तिशाली कुलीन व्यक्तियों में से एक था। मुबारक शाह के शासन काल में भी उसकी शक्ति पहले जैसी रही। यद्यपि खुसरो शाह ने उसे अनुरजित करने का प्रयत्न किया, परन्तु गाजी मलिक पर उसका कोई प्रभाव न पड़ा। अपने पुत्र जूना खाँ की सहायता से उसने खुसरो शाह पर आक्रमण करके उसे पराजित किया और उसका वध कर दिया। यह कहा जाता है कि दिल्ली में विजेता के रूप में प्रवेश करने के बाद गाजी मलिक ने यह पूछताछ करवाई कि अलाउद्दीन खिलजी का ऐसा कोई उत्तराधिकारी है जिसे वह दिल्ली की गद्दी पर बिठा सके। यह कहना कठिन है कि यह पूछताछ कहाँ तक सत्य थी और कहाँ तक यह आडम्बर था। फिर भी, गयासुद्दीन तुगलक 8 सितम्बर, 1320 ई. को गद्दी पर बैठा। दिल्ली का वह प्रथम सुल्तान था जिसने 'गाजी या काफिरों का घातक' की उपाधि ग्रहण की।
गृह नीति (Domestic Policies):
- गयासुद्दीन तुगलक का शासन काल दो भागों में बाँटा जा सकता है-गृह-नीति व विदेश नीति। जहाँ तक गृह नीति का सम्बन्ध है, उसका प्रथम कार्य कुलीन जनों व अधिकारियों का विश्वास प्राप्त करना तथा साम्राज्य में व्यवस्था स्थापित करना था। यह सच है कि उसने खुसरो शाह के सहायकों का निर्दयता के साथ निष्कासन करा दिया परन्तु अन्य कुलीन जनों व अधिकारियों के साथ कुछ दयापूर्ण व्यवहार किया। उसने उन सबको उनकी भूमियाँ वापस कर दीं जिन्हें अलाउद्दीन खिलजी ने छीन लिया था। उसने अभियाचनाओं व जागीरों के विषय में एक गोपनीय जाँच की आज्ञा दी और राज्य के अधीन सब गैर-कानूनी अनुदानों को जब्त कर लिया। उसने उस कोष की क्षतिपूर्ति करने की चेष्टा भी की जिसे खुसरो शाह ने अपव्यय के साथ बिगाड़ा था या जो उसके पतन के बाद अशान्ति के समय लूट लिया गया था। इस कार्य में वह बहुत अधिक सफल भी हुआ। बहुत से शेखों ने वह धन उसे लौटा दिया जो उन्होंने खुसरो शाह से बहुत बड़ी मात्रा में प्राप्त किया था। परन्तु शेख निजामुद्दीन औलिया ने, जिसने पाँच लाख टंके प्राप्त किए थे, इस आधार पर धन लौटाने से इंकार कर दिया कि उसने वह सब धन दान कर दिया है। गाजी मलिक को यह बात रुचिकर प्रतीत न हुई, परन्तु वह शेख को उसकी लोकप्रियता के कारण कोई दण्ड न दे सका। उसने शेख की इस आधार पर निन्दा करने का प्रयत्न किया कि वह "प्रफुल्लतापूर्ण रागों व दरवेशों के नृत्यों में तल्लीन रहता है और इस ढंग की भक्ति को संस्थापित धर्म के कट्टर सुन्नी लोग गैर-कानूनी समझते थे।" परन्तु उसे अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त न हो सकी क्योंकि 53 धर्म-विद्वान जिनसे उसने परामर्श किया, शेख के कार्य में कोई दोष नहीं पा सके।
- भ्रष्टाचार एवं गबन रोकने के लिए गाजी मलिक ने अपने अधिकारियों को अच्छा वेतन दिया और केवल उनकी पदोन्नति स्वीकार की जिन्होंने अपनी निष्ठा और योग्यता का प्रमाण दिया। पुरस्कारों का वितरण करते समय उसने श्रेणी, योग्यता व सेवा के काल पर विचार किया। उसने समस्त ईर्ष्यास्पद ख्यातियों को हटा दिया। गाजी मलिक एक दृढ़ निर्णय का शासक था। वह एक साधु एवं बुद्धिमान शासक था जो राज्य के महत्त्वपूर्ण विषयों पर अपने परामर्शदाताओं की सदा सलाह लेता था।
- जहाँ तक उसकी आर्थिक नीति का सम्बन्ध है, उसने भूमिकर एकत्र करने के लिए बोली दिलवानी (System of farming of taxes) बन्द कर दी। मालगुजारी की बोली देने वालों को दीवान-ए-विजारत तक सिफारिश पहुँचाने तक की अनुमति नहीं दी गई। मालगुजारी इकट्ठा करने वालों के अत्याचारों को रोका गया। अमीर और मलिक अपने प्रांतों की मालगुजारी का 1/15 से अधिक भाग नहीं ले सकते थे। कारकुनों व मुतसर्रिफों को 5 से 10 प्रति हजार से अधिक लेने की अनुमति नहीं दी गई। यह आज्ञा दी गई कि दीवान-ए-विजारत किसी इकता (Iqta) की मालगुजारी एक वर्ष में 1/10 या 1/11 से अधिक न बढ़ाये। यदि कोई वृद्धि आवश्यक हो तो वह कई वर्षों में की जाए। बरनी (Barani) हमें यह बताता है कि "खिराज एकदम नहीं वरन् बहुत से वर्षों में बढ़ना चाहिए था, क्योंकि ऐसा न करने से देश को हानि होती है व उन्नति का मार्ग रुक जाता है।" एक अन्य आज्ञा इस प्रकार थी "जागीरदारों व हाकिमों को इस विषय में सावधान रहने के आदेश थे कि वे खिराजों को इस प्रकार एकत्रित करें, जिससे खुत (Khuts) व मुकद्दम लोग राजकीय ऋणों के अतिरिक्त जनता पर अधिक भार न डाल सकें। अकाल के समय करों में भारी रकमों की छूट दी जाती थी और भूमिकर न देने वालों के साथ बड़ी उदारता से व्यवहार किया जाता था। धन के लिए किसी मनुष्य को कैद में नहीं रखा जाता था और राज्य द्वारा प्रत्येक ऐसी सुविधा प्रदान की जाती थी जो लोगों को बिना किसी असुविधा या आपत्ति के अपने उत्तरदायित्वों का पालन करने के योग्य बना सके।"
- भूमि को नापने की प्रथा बंद कर दी गई क्योंकि इसका पालन संतोषजनक नहीं था और यह आदेश दिया गया कि भूमिकर उगाहने वाले स्वयं कर निर्धारित करें। गाजी मलिक ने कृषि के अधीन अधिक भूमि को लाने के भी उपाय किए। उसका विचार यह था कि भूमिकर बढ़ाने का सबसे अच्छा मार्ग "कृषि का प्रसार है, माँग की वृद्धि नहीं।" उसकी नीति का फल यह हुआ कि बहुत-सी बेकार भूमि में भी कृषि होने लगी। खेतों की सिंचाई के लिए नहरें भी खोदी गई। उद्यान भी लगाए गए। कृषकों को लुटेरों से बचाने के लिए दुर्गों का निर्माण भी किया गया। बारानी के विवरण से पता चलता है कि समस्त वर्गों के साथ एक सा व्यवहार नहीं किया जाता था। यह भी पता लगता है कि कुछ श्रेणी के लोगों पर "इसलिए कर लगाया जाता था कि वे अधिक धन के कारण अभिमान से अंधे न बन जायें और असन्तुष्ट या उपद्रवी न हो जायें; और दूसरी ओर कहीं इतने निर्धन भी न हो जायें कि निर्धनता के कारण अपना व्यवसाय तक न चला सकें।"
- गाजी मलिक ने राज्य के सारे विभागों की ओर ध्यान दिया। "न्यायिक व पुलिस विभाग इतने कुशल थे कि भेड़िया बकरी के बच्चे को पकड़ने का साहस नहीं कर सकता था और शेर व हिरन एक ही घाट पर पानी पीते थे।" अलाउद्दीन द्वारा चलाई गई चेहरा व दाग व्यवस्था जारी रखी गई। एक बहुत कुशल डाक व्यवस्था का प्रतिपादन भी किया गया। डाक हरकारों व घुड़सवारों द्वारा ले जाई जाती थी जिन्हें मील के 2/3 भागों तथा 6 या 8 मील की दूरी पर सारे राज्य में यथाक्रम रखा जाता था। समाचार एक दिन में सौ मील की गति से चलते थे। गाजी मलिक ने निर्धनों की सहायता व्यवस्था भी की। उसने धार्मिक संस्थाओं तथा साहित्यकारों को संरक्षण दिया। अमीर खुसरो उसका राजकवि था और उसे राज्य से 1000 टंके प्रतिमास पेंशन मिलती थी।
- गाजी मलिक ने "अपने दरबार को ऐसा कठोर व शानदार बना दिया जितना कि वह शायद बलबन के सिवा अन्य किसी समय में नहीं रहा।" उसने उदारता व बुद्धिमता दिखाई। कोई आश्चर्य नहीं कि अमीर खुसरो ने उसकी प्रशंसा इन शब्दों में की है-"उसने कभी कोई ऐसा काम नहीं किया जो बुद्धिमता से युक्त नहीं हो। उसके विषय में यह कहा जा सकता है कि वह राजमुकुट के नीचे शतशः आचार्यों की योग्यता के समान मस्तिष्क रखता था।"
गयासुद्दीन तुगलक विदेश नीति (Foreign policy):
- विदेश नीति में गाजी मलिक महान विजेता (annexationist) था। वह उन सब राज्यों को अपने आधिपत्य में रखने पर दृढ़ था, जिन्होंने दिल्ली सल्तनत की शक्ति की अवहेलना की थी। 1. अपनी इस नीति का अनुसरण करने में उसने 1321 ई. में अपने पुत्र जूना खाँ (बाद में मुहम्मद तुगलक) को वारंगल के प्रताप रुद्रदेव द्वितीय को दबाने के लिए भेजा, जिसने अलाउद्दीन खिजली की मृत्यु के बाद अराजकता में अपनी शक्ति बढ़ा ली थी और दिल्ली की सरकार को निश्चित कर देने से इंकार कर दिया था। उसने वारंगल के कच्चे दुर्ग को घेर लिया, परन्तु हिन्दुओं ने साहस व दृढ़ विश्वास से उसकी रक्षा की। महामारी और षड्यंत्र के कारण जूना खाँ को बिना सफलता प्राप्त किए वापस आना पड़ा। बारानी तथा याहिया-बिन अहमद के अनुसार जिनका निजामुद्दीन अहमद, बदायूनी व फरिश्ता ने अनुसरण किया है, वे षड्यंत्र सेना में कुछ गद्दारों के कारण हुए थे। परन्तु इब्नबतूता (Ibnbatuta) हमें यह बताता है कि उन षड्यंत्रों का उत्तरदायित्व स्वयं राजकुमार जूना खाँ पर होना चाहिए जो सिंहासन छीनने का इरादा रखता था। सर वुल्जले हेग (Sir Wolseley Haig), कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया, अंक 3, के योग्य सम्पादक, इब्नबतूता के विचार को स्वीकार करते हैं। परन्तु डा. ईश्वरी प्रसाद अपने 'करौना तुर्कों का इतिहास' में इस विचार को स्वीकार नहीं करते।
- जूना खाँ को दिल्ली लौट आने के चार महीने के बाद एक अन्य अभियान के नेतृत्व में एक बार फिर वारंगल भेजा गया। यह घटना 1323 ई. की है। जूना खाँ ने बीदर पर अधिकार कर लिया और वह वारंगल की ओर बढ़ा। हिन्दुओं ने बड़ी दृढ़ता से युद्ध लड़ा परन्तु वे आक्रमणकारियों के विरुद्ध असफल रहे। अन्ततः प्रताप रुद्रदेव द्वितीय, उसका परिवार व अधिकारी आदि आक्रमणकारियों ने बन्दी बना लिये। राजा को दिल्ली भेज दिया गया। वारंगल का काकतीय साम्राज्य जिसे गाजी मलिक ने अपने साम्राज्य में नहीं मिलाया था, बहुत से जिलों में बाँट दिया गया और विभिन्न तुर्की सरदारों व अधिकारियों को सौंप दिया गया। वारंगल नगर का नाम बदलकर सुल्तानपुर कर दिया गया।
- जब राजकुमार जूना खाँ दिल्ली लौट रहा था, उसने दिल्ली में उत्कल राज्य पर आक्रमण किया और 50 हाथी एवं बहुत-सी बहुमूल्य वस्तुओं पर अधिकार कर लिया।
- गाजी मलिक को बंगाल में भी हस्तक्षेप करना पड़ा। शम्मसुद्दीन फिरोजशाह (Shams-Ud-Din Firoz Shah) के तीनों पुत्रों-गयासुद्दीन, शहाबुद्दीन व नासिरुद्दीन के बीच गृह-युद्ध चल रहा था। गयासुद्दीन जो पूर्वी बंगाल का सूबेदार था ने शहाबुद्दीन को हटा दिया और 1319 ई. में लखनौती की गद्दी पर अधिकार जमा लिया। नासिरुद्दीन को गद्दी लेने की चाह थी, इसलिए उसने दिल्ली के सुल्तान से सहायता की प्रार्थना की। उसने प्रार्थना को स्वीकार किया और स्वयं बंगाल की ओर बढ़ा। गयासुद्दीन पराजित हुआ और उसे बन्दी बना लिया गया। नासिरुद्दीन को पश्चिमी बंगाल के सिंहासन पर दिल्ली की अधीनता में बैठा दिया गया और पूर्वी बंगाल को दिल्ली राज्य में मिला लिया गया। दिल्ली लौटते हुए गाजी मलिक ने तिरहुत (मिथिला) के राजा हरसिंह देव को आधिपत्य मानने के लिए बाध्य किया। इस प्रकार तिरहुत भी दिल्ली सल्तनत का एक भाग (Fief) बन गया।
- 1324 ई. में मंगोलों ने उत्तरी भारत पर आक्रमण किया, परन्तु उन्हें पराजित करके व उनके नेताओं को पकड़कर दिल्ली लाया गया।
गयासुद्दीन की मृत्यु (Death of Ghias-Ud-Din):
- जब गाजी मलिक बंगाल में था, उसे अपने पुत्र जूना खाँ के कृत्यों के विषय में समाचार मिला। अपने लिए एक शक्तिशाली दल बनाने के विचार से जूना खाँ अपने अनुचरों की संख्या बढ़ा रहा था। वह शेख निजामुद्दीन औलिया, जिसके साथ उसके पिता के सम्बन्ध अच्छे न थे, का चेला बन गया। कहा जाता है कि शेख ने एक भविष्यवाणी की थी कि राजकुमार जूना खाँ बहुत शीघ्र दिल्ली का सुल्तान होगा। अन्य ज्योतिषियों ने भी बताया था कि गाजी मलिक दिल्ली नहीं पहुँचेगा। गाजी मलिक शीघ्रता के साथ बंगाल से दिल्ली लौटने के लिए चला। राजकुमार जूना खाँ ने अफगानपुर, दिल्ली से लगभग 6 मील की दूरी पर एक गाँव में एक लकड़ी का भवन अपने पिता का स्वागत करने के लिए बनवाया। भवन इस ढंग का बनाया गया कि वह एक विशेष स्थान पर हाथियों के स्पर्श के साथ गिर पड़े। गाजी मलिक का पंडाल के नीचे स्वागत किया गया। भोजन के बाद जूना खाँ ने अपने पिता गाजी मलिक से बंगाल से लाए गए हाथी देखने की प्रार्थना की। गाजी मलिक के स्वीकार करने पर उसके सामने हाथियों का प्रदर्शन किया गया। ज्योंही हाथी भवन के उस भाग के सम्पर्क में आए, जो गिर जाने के उद्देश्य से बनाया गया था, सारा पंडाल गिर पड़ा। गाजी मलिक अपने दूसरे पुत्र राजकुमार महमूद खाँ के साथ कुचला गया। गाजी मलिक महमूद खाँ के शरीर की ओर झुका हुआ देखा गया। ऐसा प्रतीत होता था कि वह उसकी रक्षा करना चाहता था। यह कहा जाता है कि जूना खाँ ने जानबूझकर गिरे हुए भाग को हटाने में देरी करवाई।
- गाजी मलिक की मृत्यु की घटना के सम्बन्ध में विभिन्न मत है। बरनी केवल यह बताता है कि आकाश से एक मुसीबत की बिजली सुल्तान पर गिरी और वह पाँच या छः साथियों के साथ ढेर के नीचे कुचला गया। इलियट (Elliot) के अनुवाद से यह ज्ञात होता है कि बिजली छत पर गिरी और सारा भवन झटके के साथ भूमि पर गिर पड़ा। इब्नबतूता जो 1333 ई. में भारतवर्ष आया निश्चय ही हमें बताता है कि राजकुमार जूना खाँ अपने पिता की मृत्यु का कारण था। उसके ज्ञान का स्रोत शेख रुक्नुद्दीन मुल्तानी था जो उस समय सम्राट् के साथ उपस्थित था। वह हमें यह भी बताता है कि राजकुमार जूना खाँ ने जान बूझकर उन कारीगरों को बुलाने में देरी की जिन्होंने औजारों की मदद से सुल्तान का शरीर बाहर निकाला। इब्नबतूता हमें यह भी बताता है कि भवन का निर्माण अहमद अयाज ने करवाया जिसे सुल्तान बनने पर जूना खाँ ने मुख्यमंत्री बनाया था। परिस्थितियों के प्रमाण भी इब्नबतूता के पक्ष में हैं। उसका अपना कोई स्वार्थ प्रतीत नहीं होता। निजामुद्दीन अहमद हमें यह बताता है कि शीघ्रता से भवन का निर्माण यह संशय उत्पन्न करता है कि राजकुमार जूना खाँ ही अपने पिता की मृत्यु के लिए उत्तरदायी है। गाजी मलिक की मृत्यु उस षड्यंत्र के कारण हुई जिसके रचयिता निजामुद्दीन औलिया तथा राजकुमार जूना खाँ थे। इसामी (Isami), एक समकालीन लेखक, निजामुद्दीन अहमद का समर्थन करता है। अबुल फजल व बदायूनी भी जूना खाँ के षड्यंत्र पर संशय करते हैं। डा. ईश्वरी प्रसाद का यह विचार है कि यह सोचने के प्रबल कारण हैं कि सुल्तान की मृत्यु उस षड्यंत्र के कारण हुई जिसमें जूना खाँ ने भाग लिया और यह किसी आकस्मिक घटना का फल नहीं था। सर वुल्जले हेग का भी यही विचार है कि सुल्तान की मृत्यु एक षड्यंत्र का परिणाम थी जिसे जूना खाँ ने चतुराई के साथ रचा था। परन्तु डा. मेहंदी हुसेन का यह मत है कि भवन स्वयं ही गिर पड़ा। इसमें राजकुमार जूना खाँ का कदापि कोई हाथ नहीं था। परन्तु सर्वमान्य मत यही है कि राजकुमार जूना खाँ ही अपने पिता की मृत्यु के लिए उत्तरदायी था।
टास्क गयासुद्दीन
तुगलक की मृत्यु किस प्रकार हुई?
गयासुद्दीन तुगलक का मूल्यांकन
- गाजी मलिक एक अनुभवी सैनिक व योग्य सेनापति था। वह अपने योग्यता व कठोर परिश्रम के ही कारण इतने ऊँचे स्थान पर पहुँच सका। उसने अपने राज्य में सुव्यवस्था स्थापित की और ऐसे विभिन्न कार्य किए जिनका उद्देश्य जनता के सुख और समृद्धि को बढ़ाना था। उसके शासनकाल में लोगों को आर्थिक समृद्धि प्राप्त हुई। न्याय देने के लिए वह दिन में दो बार दरबार करता था। अपने दरबारियों, मित्रों व सहयोगियों के प्रति वह उदार था। परन्तु हिन्दुओं के प्रति वह कठोर था। अपने आक्रमणों के समय वह मन्दिरों का विध्वंस करने तथा मूर्तियों को तोड़ने में लग जाता था। वह एक कठोर सुन्नी मुसलमान था। वह ज्ञान का प्रेमी भी था और उसके दरबार में विद्वान व कवि थे। उसने अपनी राजधानी तुगलकाबाद में किले के रूप में एक रोचक स्मारक छोड़ा जिसे उसने अपने लिए उस स्थान से लगभग 10 मील दूर दक्षिण की ओर बनवाया, जो शाहजहाँ ने अपनी राजधानी के लिए चुना था। उसने अपने सिंहासन पर आरूढ़ होने के तुरन्त पश्चात् इस नगर की नींव डाली और तेलिंगाना पर अपनी विजय का समाचार पाने से पहले ही उसने इसे पूरा भी करा दिया। इब्नबतूता हमें बताता है कि "यहाँ पर तुगलकों के कोष व महल थे और वह विशाल महल जिसे उसने चमकती हुई ईंटों से बनवाया, जब सूरज निकलता था तो ऐसे चमकता था कि कोई भी उसकी ओर आँखें खोलकर नहीं देख सकता था। वहाँ उसने महान कोष एकत्र किया और यह बताया गया था कि वहाँ पर उसने एक जलाशय भी बनवाया जिसमें उसने पिघला हुआ सोना डाला जिससे वह एक ठोस ढेर-सा बन गया। उसका पुत्र मुहम्मद शाह जब सुल्तान बना तब उसे यह सब प्राप्त हुआ। लाल पत्थर व सफेद संगमरमर का बना हुआ उसका मकबरा, जो पुल से जुड़ा हुआ है और दुर्ग की विशाल दीवारें अब भी शेष हैं।
- गाजी मलिक ने ऐसी कठोर नीति का अनुसरण किया जो तुलनात्मक रूप में बहुत कुछ बलबन के समान है। उसने अपने आपको विलास से वंचित रखा। उसने अपने को "सुन्दर बिना दाढ़ी वाले किशोरों" के उस व्यभिचार से बचाया जो उस समय अधिक प्रचलित था। उसने सार्वजनिक जीवन तथा राजकीय कार्यों में बलबन व औरंगजेब जैसे अत्याचार, आडम्बर व वैभव को अलग रखा। "अपने छोटे से शासनकाल में उसने उस अपमान के धब्बे को मिटाने की बहुत चेष्टा की जो दिल्ली के साम्राज्य पर पड़ा हुआ था, उसने बिगड़े हुए शासन-प्रबंध को पुनर्गठित करने का बहुत प्रयास किया। उसने राजस्व की उस शक्ति और मर्यादा को पुनः स्थापित करने का बहुत परिश्रम किया जो खुसरो शाह के शासनकाल में लगभग समाप्त हो चुकी थी।"
- कभी-कभी गाजी मलिक की तुलना जलालुद्दीन फिरोज खिलजी से भी की जाती है। सर वुल्जले हेग के अनुसार, "दोनों वृद्ध योद्ध थे जिन्हें इस्लाम का राज्य प्रतिष्ठापित करने का काम सौंपा गया था। इस्लाम को उन वंशों के अन्त होने से स्वयं मिटने का भय था। इस धर्म ने उनकी लम्बे समय से सेवा की थी। परन्तु यहाँ उन सुल्तानों की सारी समानता का अन्त हो जाता है। फिरोज जब गद्दी पर बैठा तब उसकी सब शक्तियाँ क्षीण हो रही थीं। उसके शासन काल के बाद उसके वंश के इतिहास का अन्त हो जाता, यदि उसके अत्याचारी परन्तु उत्साही भतीजे ने उसका राज्य बलपूर्वक न छीन लिया होता। इसके विपरीत, तुगलक सुल्तान वृद्ध होते हुए भी अपने मस्तिष्क के पूर्ण विकास में था और उसके लघु शासन काल में फिरोज की भाँति कोई भी घृणास्पद बुराई दृष्टिगोचर नहीं होती। वह इस योग्य था कि अलाउद्दीन के बहुत से कल्याणकारी नियमों को लागू कर सके और ऐसे भी नियम बना सके जो ऐसे राज्य में व्यवस्था स्थापित कर दें जो इस्लाम के प्रभाव से लगभग निकल चुका हो। वह तारीखे-फिरोजशाही (Tarikh-i-Firoz Shahi), फिरोज शाह तुगलक का एक जीवन विवरण फतूहात-ए-फिरोजशाही (Fatuhat-i-Firoz Shahi), ऐन उल-मुल्क मुल्तानी (Ain-ul-Mulk Multani) का मुन्शते मैहरू (Munshat-i-Mahru), अमीर खुसरो का तुगलक नामा (Tughluq Nama) और याहिया-बिन-अहमद सरहिन्दी (Yahia-bin-Ahmad Sarhindi) का तारीखे मुबारक शाही (Tarikh-i-Mubarak Shahi)।