संस्कृति की प्रमुख प्रकृति या विशेषताएँ
संस्कृति के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचारों को जानने के बाद उसकी कुछ विशेषताएँ स्पष्ट होती है, जो उसकी प्रकृति को जानने और समझने में भी सहायक होती है। यहाँ कुछ प्रमुख विशेषताओं का विवेचन किया जा रहा है.
संस्कृति की प्रमुख प्रकृति या विशेषताएँ
संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है (Culture is learned behaviour )
- संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है। इसे व्यक्ति अपने पूर्वजों के वंशानुक्रम के माध्यम से नहीं प्राप्त करता, बल्कि समाज में समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा सीखता है। यह सीखना जीवन पर्यन्त अर्थात् जन्म से मृत्यु तक अनवरत चलता रहता है। आपको जानना आवश्यक है कि संस्कृति सीख हुआ व्यवहार है, किन्तु सभी सीखे हुए व्यवहार को संस्कृति नहीं कहा जा सकता है। पशुओं द्वारा सीखे गये व्यवहार को संस्कृति नहीं कहा जा सकता, क्योंकि पशु जो कुछ भी सीखते हैं उसे किसी अन्य पशु को नहीं सीखा सकते। संस्कृति के अंतर्गत वे आदतें और व्यवहार के तरीके आते है, जिन्हें सामान्य रूप से समाज के सभी सदस्यों द्वारा सीखा जाता है। इस सन्दर्भ में लुन्डबर्ग (Lundbarg) ने कहा है कि "संस्कृति व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्तियों अथवा प्राणीशास्त्रीय विरासत से सम्बन्धित नहीं होती, वरन् यह सामाजिक सीख एवं अनुभवों पर आधरित रहती है।"
संस्कृति सामाजिक होती है (Culture is Social )
- संस्कृति में सामाजिकता का गुण पाया जाता है। संस्कृति के अन्तर्गत पूरे समाज एवं सामाजिक सम्बन्धों का प्रतिनिधित्व होता है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि किसी एक या दो चार व्यक्तियों द्वारा सीखे गये व्यवहार को संस्कृति नहीं कहा जा सकता। कोई भी व्यवहार जब तक समाज के अधिकतर व्यक्तियों द्वारा नहीं सीखा जाता है तब तक वह संस्कृति नहीं कहलाया जा सकता।
- संस्कृति एक समाज की संपूर्ण जीवन विधि ( Way of Life) का प्रतिनिधित्व करती है। यही कारण है कि समाज का प्रत्येक सदस्य संस्कृति को अपनाता है। संस्कृति सामाजिक इस अर्थ में भी है कि यह किसी व्यक्ति विशेष या दो या चार व्यक्तियों की सम्पत्ति नहीं है। यह समाज के प्रत्येक सदस्य के लिए होता है। अतः इसका विस्तार व्यापक और सामाजिक होता है ।
संस्कृति हस्तान्तरित होती है (Culture is Transmissive )
- संस्कृति के इसी गुण के कारण ही संस्कृति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाती है तो उसमें पीढ़ी-दर-पीढ़ी के अनुभव एवं सूझ जुड़ते जाते हैं। इससे संस्कृति में थोड़ा-बहुत परिवर्तन एवं परिमार्जन होता रहता है। संस्कृति के इसी गुण के कारण मानव अपने पिछले ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर आगे नई-नई चीजों का अविष्कार करता है।
- आपको यह समझना होगा कि पशुओं में भी कुछ-कुछ सीखने की क्षमता होती है। लेकिन वे अपने सीखे हुए को अपने बच्चों और दूसरे पशुओं को नहीं सिखा पाते। यही कारण है कि बहुत कुछ सीखने की क्षमता रहने के बाद भी उनमें संस्कृति का विकास नहीं हुआ है।
- मानव भाषा एवं प्रतीकों के माध्यम से बहुत ही आसानी से अपनी संस्कृति का विकास एवं विस्तार करता है तथा एक पीढ़ी से दूसरे पीढ़ी में हस्तान्तरित भी करता है। इससे संस्कृति की निरन्तरता भी बनी रहती है।
संस्कृति मनुष्य द्वारा निर्मित है (Culture is Man Made )
- संस्कृति का तात्पर्य उन सभी तत्वों से होता है, जिनका निर्माण स्वंय मनुष्य ने किया है। उदाहरण के तौर पर हमारा धर्म, विश्वास, ज्ञान, आचार, व्यवहार के तरीके एवं तरह-तरह के आवश्यकताओं के साधन अर्थात् कुर्सी, टेबल आदि का निर्माण मनुष्य द्वारा किया गया है। इस तरह यह सभी संस्कृति हर्षकाविट्स का कहना है कि "संस्कृति पर्यावरण का मानव निर्मित भाग है।"
संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती है (Culture Satisfies Human Needs )
- संस्कृति में मानव आवश्यकता पूर्ति करने का गुण होता है। संस्कृति की छोटी-से-छोटी इकाई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य की आवश्यकता पूर्ति करती है या पूर्ति करने में मदद करती है।
- कभी-कभी संस्कृति की कोई इकाई बाहरी तौर पर निरर्थक या अप्रकार्य प्रतीत होती है, लेकिन सम्पूर्ण ढाँचे से उसका महत्वपूर्ण स्थान होता है।
मैलिनोस्की के संस्कृति पर विचार -
- प्रसिद्ध मानवशास्त्री मैलिनोस्की का कथन है कि संस्कृति के छोटे-से-छोटे तत्व का अस्तित्व उसके आवश्यकता पूर्ति करने के गुण पर निर्भर करता है। जब संस्कृति के किसी भी तत्व में आवश्यकतापूर्ति करने का गुण नहीं रह जाता तो उसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है। उदाहरण के तौर पर प्राचीनकाल में जो संस्कृति के तत्व थे वे समाप्त हो गए क्योंकि वे आवश्यकता पूति में असमर्थ रहे, इसमें सतीप्रथा को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। इसी प्रकार, व्यवस्था में कोई इकाई कभी-कभी बहुत छोटी प्रतीत होती है मगर व्यवस्था के लिए वह इकाई भी काफी महत्वपूर्ण होती है। इस प्रकार, संस्कृति का कोई भी तत्व अप्रकार्यात्मक नहीं होता है बल्कि किसी भी रूप में मानव की आवश्यकता की पूर्ति करती है ।
प्रत्येक समाज की अपनी विशिष्ट संस्कृति होती है (Culture is Distinctive in every Society )-
- प्रत्येक समाज की एक विशिष्ट संस्कृति होती है। हम जानते हैं कि कोई भी समाज एक विशिष्ट भौगोलिक एवं प्राकृतिक वातावरण लिये होता है। इसी के अनुरूप सामाजिक वातावरण एवं संस्कृति का निर्माण होता है। उदाहरण के तौर पर पहाड़ों पर जीवन यापन करने वाले लोगों का भौगोलिक पर्यावरण, मैदानी लोगों के भौगोलिक पर्यावरण से अलग होता है। इसी प्रकार इन दोनों स्थानों में रहने वाले लोगों की आवश्यकताएं अलग-अलग होती है। जैसे- खाना, रहने सहने का तरीका, नृत्य, गायन, धर्म आदि । अतः दोनों की संस्कृति भौगोलिक पर्यावरण के सापेक्ष में आवश्यकता के अनुरूप विकसित होती है ।
संस्कृति में अनुकूलन का गुण होता है (Culture has Adoptive Quality )
- संस्कृति की एक महत्वपूर्ण विशेषता होती है कि यह समय के साथ साथ आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलित हो ती है। संस्कृति समाज वातावरण एवं परिस्थिति के अनुसार होती है। जब वातावरण एवं परिस्थिति में परिवर्तन होता है तो संस्कृति भी उसके अनुसार अपने का ढ़ालती है। यदि यह विशेषता एवं गुण न रहे तो संस्कृति का अस्तित्व ही नहीं रह जायेगा। संस्कृति समय एवं परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन होने से उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं हो पाती ।
संस्कृति अधि-सावयवी है (Culture is Super organic)
- मानव ने अपनी मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं के प्रयोग द्वारा संस्कृति का निर्माण किया, जो सावयव से ऊपर है। संस्कृति में रहकर व्यक्ति का विकास होता है और फिर मानव संस्कृति का निर्माण करता है जो मानव से ऊपर हो जाता है। मानव की समस्त क्षमताओं का आधार सावयवी होता है, किन्तु इस संस्कृति को अधि-सावयवी से ऊपर हो जाती है। इसी अर्थ में संस्कृति को अधि - सावयवी (Super Organic) कहा गया है।
संस्कृति अधि-वैयक्तिक है (Culture is Super individual )
- संस्कृति की रचना और निरन्तरता दोनों ही किसी व्यक्ति विशेष निर्भर नहीं है। इसलिए यह पर अधि-वैयक्तिक (Super-individual) है। संस्कृति का निर्माण किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं किया गया है बल्कि संस्कृति का निर्माण सम्पूर्ण समूह द्वारा होता है।
- प्रत्येक सांस्कृतिक इकाई का अपना एक इतिहास होता है, जो किसी एक व्यक्ति से परे होता है। संस्कृति सामाजिक अविष्कार का फल है, किन्तु यह अविष्कार किसी एक व्यक्ति के मस्तिष्क की उपज नहीं है।
संस्कृति में संतुलन तथा संगठन होता है (Culture has The Integrative )
- संस्कृति के अन्तर्गत अनेक तत्व एवं खण्ड होते हैं किन्तु ये आपस में पृथक नहीं होते, बल्कि इनमें अन्तः सम्बन्ध तथा अन्तः निर्भरता पायी जाती है। संस्कृति की प्रत्येक इकाई एक दूसरे से अनग हटकर कार्य नहीं करती, बल्कि सब सम्मिलित रूप से कार्य करती है। इस प्रकार के संतुलन एवं संगठन से सांस्कृतिक ढ़ाँचे का निर्माण होता है।
संस्कृति समूह का आदर्श होती है (Culture is Ideal for The Group)
- प्रत्येक समूह की संस्कृति उस समूह के लिए आदर्श होती है। इस तरह की धारण सभी समाज में पायी जाती है। सभी लोग अपनी ही संस्कृति को आदर्श समझते हैं तथा अन्य संस्कृति की तुलना में अपनी संस्कृति को उच्च मानते हैं। संस्कृति इसलिए भी आदर्श होती है कि इसका व्यवहार प्रतिमान किसी व्यक्ति विशेष का न होकर सारे समूह का व्यवहार होता है ।