मंत्रिपरिषद और प्रधानमंत्री से संबन्धित संविधान के प्रावधान
मंत्रिपरिषद
- संविधान के अनुच्छेद 74(1) में उपबंध है कि मंत्रिपरिषद का प्रधान, प्रधानमंत्री होगा।
- वर्ष 1997 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि एक व्यक्ति जो संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है, छः माह के लिये प्रधानमंत्री नियुक्त हो सकता है। इस अवधि में उसे संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनना पड़ेगा, अन्यथा छः माह पश्चात वह प्रधानमंत्री नहीं रहेगा।
- प्रधानमंत्री का कार्यकाल निश्चित नहीं है और वह राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद पर बना रहता है किंतु प्रधानमंत्री को जब तक लोकसभा में बहुमत हासिल है राष्ट्रपति उसे बर्खास्त नहीं कर सकता है।
- राष्ट्रपति प्रधानमंत्री को पद और गोपनीयता की शपथ दिलवाता है जो कि संविधान के तीसरी अनुसूची में उपबंध है। प्रधानमंत्री वैसे ही शपथ लेते हैं, जैसे कोई अन्य मंत्री।
- प्रधानमंत्री के वेतन व भत्ते संसद द्वारा समय-समय पर निर्धारित होते रहते हैं, जिसका संविधान की दूसरी अनुसूची में उपबंध है।
निम्नलिखित प्रधानमंत्री राज्यसभा के सदस्य थेः-
- इन्दिरा गाँधी - 1966
- एच.डी. देवेगौड़ा - 1996
- डॉ. मनमोहन सिंह - 2004 एवं 2009
- संविधान के अनुच्छेद 77(1) में उपबंध है कि भारत सरकार की कार्यपालिका संबंधी समस्त कार्यवाहियाँ राष्ट्रपति के नाम से की हुई कही जाएंगी, न कि प्रधानमंत्री के नाम से।
- भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिये न्यूनतम आयु 25 वर्ष होनी चाहिये।
- संविधान में उप-प्रधानमंत्री के संबंध में कोई उपबंध नहीं है। भारत में इस पद का सृजन राजनीतिक बाध्यताओं के कारण संविधान के प्रावधानों से हटकर हुआ है। यह गैर- संवैधानिक पद है।
- यदि प्रधानमंत्री संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है तो उसे छः माह के अन्दर निम्न सदन या उच्च सदन का सदस्य बनना पड़ेगा, अर्थात राज्यसभा का सदस्य भी प्रधानमंत्री बन सकता है।
- यदि प्रधानमंत्री उच्च सदन का सदस्य है, तो निम्न सदन (लोक सभा) में बोल सकता है, किंतु मतदान नहीं कर सकता। वह जिस सदन का सदस्य है, केवल उसी सदन में मतदान कर सकता है।
- प्रधानमंत्री की नियुक्ति के समय आवश्यक नहीं है कि वह लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य हो, किंतु छः माह के अंदर उसे लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य हो जाना चाहिये अन्यथा छः माह की समाप्ति के पश्चात वह प्रधानमंत्री के पद पर नहीं रहेगा।
- प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष होता है। उसे अपने सहयोगी के रूप में ऐसे व्यक्तियों को चुनने का पूर्ण अधिकार है जो उसके साथ मिलकर कार्य कर सकें। वह मंत्रियों के चयन में स्वविवेक का प्रयोग करता है। वह संसद के बाहर के व्यक्तियों को भी मंत्री बना सकता है किंतु छः माह के अंदर उसे लोकसभा या राज्यसभा का सदस्य बनना अनिवार्य है, अन्यथा छः माह पश्चात वह मंत्री नहीं रहेगा।
- 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा अनुच्छेद-75(1)(क) जोड़ा गया और उपबंध किया गया कि मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा (न कि संसद) के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान में अनुच्छेद 164(1)(क) जोड़ा गया और उपबंध किया गया कि किसी राज्य की मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या उस राज्य के विधानसभा (न कि विधान मंडल) के सदस्यों की कुल संख्या के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये और मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या 12 से कम नहीं होनी चाहिये।
- 69वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1991 के द्वारा अनुच्छेद-239(क)(क) में दिल्ली के संबंध में विशेष उपबंध है। 239(क)(क) के (4) में उपबंध है कि मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- संविधान में यह उपबंध कही नहीं है कि निम्न सदन (लोक सभा) में बहुमत खो देने पर प्रधानमंत्री त्यागपत्र दे देता है किंतु संविधान के अनुच्छेद-75(3) में उपबंध है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
- मंत्री, संसद के किसी सदन का सदस्य हो सकता है और यदि किसी सदन का सदस्य नहीं है तो छः माह के अन्दर किसी सदन का सदस्य बनना अनिवार्य है।
- मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की नियुक्ति प्रधानमंत्री के स्वविवेक पर निर्भर करता है कि वह किसे मंत्री बनाएंगे और किसे नहीं।
- राष्ट्रपति व उप-राष्ट्रपति दोनों पदावधि की समाप्ति के पूर्व त्याग पत्र दे दें, तो भारत का मुख्य न्यायमूर्ति राष्ट्रपति का कार्यभार संभालेगा।
- किसी मंत्री की मृत्यु या त्यागपत्र देने पर मंत्रिपरिषद पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात मंत्रिपरिषद विघटित नहीं होगी। केवल रिक्तता उत्पन्न होगी जिसे भरने के लिये प्रधानमंत्री स्वतंत्र हैं।
- प्रधानमंत्री की मृत्यु या त्यागपत्र देने पर मंत्रिपरिषद स्वयं विघटित हो जाएगी,क्योंकि प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का प्रधान होता है।
- नई आर्थिक नीति की घोषणा सन् 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव द्वारा की गई, जिससे भारत में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण का प्रसार तेज़ी से हुआ।
- चौधरी चरण सिंह 28 जुलाई, 1779 से 14 जनवरी 1980 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे, परंतु इस दौरान लोकसभा की कोई बैठक नहीं हुई, क्योंकि लोकसभा की निर्धारित बैठक से एक दिन पूर्व कांग्रेस द्वारा समर्थन वापस ले लिया गया और सरकार गिर गई।
- प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु 11 जनवरी 1966 को ताशकंद (उज्बेकिस्तान) में हुई। वे भारत-पाकिस्तान समझौते के तहत वहाँ गए हुए थे।
- संविधान के अनुच्छेद-352(3) में केवल एक बार ‘मंत्रिमंडल’ शब्द का प्रयोग किया गया है।
भारत के प्रधानमंत्री निम्नलिखित के अध्यक्ष होते हैं;
- नीति आयोग
- राष्ट्रीय विकास परिषद (NDC)
- राष्ट्रीय एकता परिषद
- अंतर्राज्यीय परिषद
- राष्ट्रीय जल संसाधन परिषद
- वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद
- राष्ट्रीय सुरक्षा समिति
भारत के प्रधानमंत्री बनने से पूर्व राज्यों के मुख्यमंत्री भी रहे। विवरण निम्नानुसार हैः-
- मोरारजी देसाई - तत्कालीन बम्बई राज्य
- चौधरी चरण सिंह - उत्तर प्रदेश
- वी.पी.सिंह- उत्तर प्रदेश
- पी.वी. नरसिम्हा राव - आंध्र प्रदेश
- एच.डी. देवगौड़ा- कर्नाटक
- नरेन्द्र मोदी - गुजरात
- संविधान के अनुच्छेद-53(1) में उपबंध है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और इसका प्रयोग वह स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
- सिविल सेवा बोर्ड का पदेन अध्यक्ष कैबिनेट सचिव होता है, न कि प्रधानमंत्री।
- संविधान प्रधानमंत्री या मंत्री बनने के लिये राज्यसभा के सदस्यों पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाता है। अतः संसद के किसी भी सदन का सदस्य मंत्री बन सकता है। संविधान में उपबंध है कि यदि काई मंत्री संसद के किसी भी सदन का सदस्य नहीं है, तो छः माह के अंदर उसे किसी सदन का सदस्य बनना पड़ता है, अन्यथा छः माह बाद वह मंत्री नहीं रहेगा।
- केन्द्रीय कैबिनेट सचिवालय सीधे प्रधानमंत्री के अधीन होता है। इसका प्रशासनिक प्रमुख कैबिनेट सचिव होता है और कैबिनेट सचिव सिविल सेवा बोर्ड का पदेन अध्यक्ष होता है।
मंत्रिमंडल सचिवालय के निम्नलिखित कार्य हैः
- प्रधानमंत्री के आदेश पर मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित करना।
- मंत्रिमंडलीय बैठकों के लिये कार्यसूची तैयार करना और वितरित करना।
- कार्यसूची से संबंधित दस्तावेज़ों का वितरण करना।
- किये गए विचार-विमर्श का रिकार्ड तैयार करना।
- मंत्रिमंडल द्वारा लिये गए निर्णयों के क्रियान्वयन की निगरानी करना।
- संविधान उप-प्रधानमंत्री के लिये कोई उत्तरदायित्व या अधिकार का प्रावधान नहीं करता है। उप-प्रधानमंत्री के उत्तरदायित्वों का निर्धारण प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है।
- संविधान के अनुच्छेद-88 में उपबंध है कि प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी संसद की किसी समिति का सदस्य बन सकते हैं और जिस समिति के वे सदस्य होते हैं उन्हें उसमें बोलने और कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होता है, किंतु मत देने का अधिकार नहीं होता।
- प्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी किसी भी सदन में या सदनों की संयुक्त बैठक में बोल सकते हैं और किसी कार्यवाही में भाग ले सकते हैं किंतु मत नहीं दे सकते हैं।
- अविश्वास प्रस्ताव’ लाने के लिये लोकसभा के कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन आवश्यक है।
- भारत के संविधान में किसी अविश्वास प्रस्ताव का उल्लेख नहीं है। अनुच्छेद-118 में उपबंध है कि संसद का प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया और कार्य संचालन के विनियमन के लिये नियम बना सकेगा। अतः लोकसभा ने नियम 198 में मंत्रिपरिषद के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया के लिये नियम बनाया है।
- संविधान के अनुच्छेद-75(3) में उपबंध है कि मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। अतः अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में ही लाया जा सकता है।
- लोकसभा के सदस्यों के बहुमत द्वारा अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर मंत्रिपरिषद त्यागपत्र दे देगी।
- विश्वास प्रस्ताव लोकसभा में सरकार द्वारा रखा जाता है। यह प्रस्ताव प्रधानमंत्री या उसकी मंत्रिपरिषद या उनमें से कोई एक सदस्य रख सकता है।
- राष्ट्रपति लोकसभा में विश्वासमत खोए हुए मंत्रिपरिषद की सलाह मानने के लिये बाध्य नहीं है।
- मंत्रिपरिषद का सामूहिक उत्तरदायित्व एक संवैधानिक प्रावधान है, जिसका अनुच्छेद-75(3) में उपबंध किया गया है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
- मंत्रिपरिषद के त्यागपत्र देने के पश्चात राष्ट्रपति वैकल्पिक व्यवस्था बनने तक उसे पद पर बने रहने के लिये कहेंगे। वैकल्पिक व्यवस्था से अभिप्राय हैः यथा संभव शीघ्र नई सरकार के गठन हेतु आम चुनाव कराए जाएँ।
- वैकल्पिक व्यवस्था (नई सरकार के गठन) होने तक अपदस्थ मंत्रिपरिषद कार्य करती रहेगी।
मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की श्रेणियाँ
मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की तीन श्रेणियाँ शामिल होती हैं और प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष होता है:
- कैबिनेट मंत्रीः ये मंत्री कैबिनेट के सदस्य होते हैं और इसकी बैठकों में भाग लेते हैं। इनके उत्तरदायित्वों की परिधि संपूर्ण केन्द्र सरकार पर होती है।
- राज्य मंत्रीः राज्य मंत्रियों को मंत्रालय/विभागों का स्वतंत्र प्रभार दिया जा सकता है अथवा कैबिनेट मंत्री के साथ सहयोगी बनाया जा सकता है। वे कैबिनेट के सदस्य नहीं होते हैं और न ही कैबिनेट की बैठक में भाग लेते हैं, किंतु मंत्रालय से संबंधित किसी कार्य हेतु विशेष आमंत्रण पर भाग ले सकते हैं।
- उपमंत्रीः कैबिनेट अथवा राज्य मंत्रियों के प्रशासनिक, राजनैतिक और संसदीय कार्यों में सहायता के लिये इन्हें नियुक्त किया जाता है। ये कैबिनेट सदस्य नहीं होते और न ही कैबिनेट की बैठक में भाग लेते हैं।
- संसदीय सचिवः ये मंत्रिपरिषद की अन्तिम श्रेणी में आते हैं जिसे मंत्रालय भी कहा जाता है। इनके पास कोई विभाग नहीं होता। ये वरिष्ठ मंत्रियों के साथ उनके संसदीय कार्यों में सहायता के लिये नियुक्त होते हैं। 1967 से राजीव गाँधी के प्रथम विस्तार को छोड़कर कोई भी संसदीय सचिव नियुक्त नहीं किया गया है।
- संविधान के अनुच्छेद-74 और 75 में मंत्रिपरिषद की विस्तृत चर्चा है। अतः इस शब्द का उपबंध मूल संविधान में किया गया है।
- मंत्रिमंडल शब्द को 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 के द्वारा शामिल किया गया। संविधान के मूल स्वरूप में इसकी चर्चा नहीं थी।
- मंत्रिमंडल शब्द का उल्लेख संविधान में केवल एक बार अनुच्छेद-352(3) में किया गया है।
- मंत्रिपरिषद में उप-प्रधानमंत्री को भी शामिल किया जा सकता है। उप-प्रधानमंत्री मुख्यतः राजनीतिक कारणों से नियुक्त किया जाता है।