भारत के राष्ट्रपति से संबन्धित अनुच्छेद एवं महत्वपूर्ण जानकारी
- संविधान के अनुच्छेद-53(1) में उपबंध है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इस शक्ति का प्रयोग स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
- अनुच्छेद-53(2) में उपबंध है कि संघ के रक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश (Command) राष्ट्रपति में निहित होगा और उसका प्रयोग विधि द्वारा करेगा।
- राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल/निर्वाचकगण में राज्य विधान परिषद के सदस्य भाग नहीं लेते हैं।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद-54 में राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल के सदस्यों के संबंध में उपबंध किया गया है।
- दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र और पुडुचेरी संघ राज्यक्षेत्र की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों को 70वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा निर्वाचकगण का सदस्य बनाया गया है।
- संविधान के अनुच्छेद-58 में राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिये अर्हताएँ उल्लिखित हैं।
- उसे किसी भी रूप में भारत का नागरिक होना चाहिये, न कि जन्मजात नागरिक।
- निर्वाचन के लिये न्यूनतम आयु 35 वर्ष है न कि 30 वर्ष।
- उसे केवल लोकसभा सदस्य निर्वाचित होने के लिये योग्य होना चाहिये।
- अनुच्छेद-57 में राष्ट्रपति के पुनर्निर्वाचित होने के लिये उपबंध किया गया है।
- राष्ट्रपति के चुनाव के नामंकन के लिये कम से कम 50 प्रस्तावक और 50 अनुसमर्थक/अनुमोदक होने चाहिये।
- अनुच्छेद-55 (3) में उपबंध है कि राष्ट्रपति का निर्वाचन अनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा।
- राष्ट्रपति का निर्वाचन गुप्त मतदान के द्वारा होता है।
- संविधान के अनुच्छेद-59(1) में उपबंध है कि कोई संसद अथवा विधान सभा सदस्य राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने की तारीख से संसद या राज्य विधानसभा का सदस्य नहीं रहेगा।
- संविधान के अनुच्छेद-62(2) में उपबंध है कि राष्ट्रपति के मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारणों से हुई रिक्ति को रिक्ति की तारीख के पश्चात् यथाशीघ्र अथवा प्रत्येक दशा में छः माह से पूर्व राष्ट्रपति का निर्वाचन करा लेना चाहिये।
- भारत के उप-राष्ट्रपति छः माह तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगें। उप-राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में भारत के मुख्य न्यायमूर्ति एवं मुख्य न्यायमूर्ति के अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायधिक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेंगे तथा उसके कर्त्तव्यों का निर्वाह करेंगे। ऐसी स्थिति में उसे राष्ट्रपति की सभी शक्तियाँ व उन्मुक्तियाँ प्राप्त होंगी।
- अब तक भारत में दो राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन व फखरूद्दीन अली अहमद ऐसे हुए हैं, जिनका निधन उनके कार्यकाल के दौरान हुआ था।
- डॉ. जाकिर हुसैन की मृत्यु के पश्चात् उप-राष्ट्रपति वी.वी.गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने और उनके त्यागपत्र के पश्चात् भारत के मुख्य न्यायमूर्ति एम. हिदायतुल्लाह कार्यवाहक राष्ट्रपति बने।
- अनुच्छेद-62(2) के तहत निर्वाचित राष्ट्रपति अनुच्छेद-56 के उपबंध के अधीन रहते हुए अपने पद ग्रहण करने की तारीख से पाँच वर्ष तक पद धारण करेगा न कि शेष अवधि के लिये।
- भारत का राष्ट्रपति संसद का एक भाग है।
- भारत के सभी शासन संबंधी कार्य राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं। राष्ट्रपति कार्यपालिका का अध्यक्ष होता है और समस्त कार्यपालिका शक्ति उसमें निहित होती है।
- नीति आयोग के उपाध्यक्ष की नियुक्ति भारत के प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है।
- संविधान के अनुच्छेद-239कक (5) में उपबंध है कि संघ राज्यक्षेत्र (दिल्ली) के मुख्यमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति करेगा।
- संविधान के अनुच्छेद-280(1) में उपबंध है कि संघीय वित्त आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा।
- अनुच्छेद-338 क(3) में उपबंध है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति करेंगे।
- संविधान के अनुच्छेद-75(2) में उपबंध है कि मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेंगे।
- अनुच्छेद-76(4) में उपबंध है कि भारत का महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा।
- अनुच्छेद-156(1) में उपबंध है कि राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा।
- संविधान के अनुच्छेद-74(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति को सलाह व सहायता देने के लिये एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करेगा।
- 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 के द्वारा उपबंध किया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह को पुनर्विचार के लिये लौटा सकता है और राष्ट्रपति पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा।
- अनुच्छेद-74(2) में उपबंध है कि मंत्रिपरिषद द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह की किसी न्यायालय में जाँच नहीं की जा सकती है।
- संविधान के अनुच्छेद 75(1) में उपबंध है कि प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के सलाह पर करेंगे।
- अनुच्छेद 75(2) में उपबंध है कि मंत्री, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेंगे, न कि प्रधानमंत्री के।
- अनुच्छेद 75(4) में उपबंध है कि राष्ट्रपति संविधान की तीसरी अनुसूची के तहत मंत्री को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे।
- संविधान के अनुच्छेद-55 में राष्ट्रपति के निर्वाचन का तरीका दिया गया है।
- 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के तहत राष्ट्रपति के निर्वाचन में जनसंख्या से आशय 1971 की जनगणना द्वारा निश्चित जनसंख्या से है। इसे वर्ष 2000 तक के लिये निर्धारित किया गया था, किंतु 84वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 के द्वारा इसे वर्ष 2026 तक के लिए बढ़ा दिया गया है।
- संविधान के अनुच्छेद-54 में राष्ट्रपति के निर्वाचन के लिये निर्वाचक मंडल का उपबंध किया गया है, जिसमें राज्य के विधानमंडल के उच्च सदन (विधान परिषद) के सदस्य निर्वाचक मंडल में भाग नहीं ले सकते हैं। यदि मुख्यमंत्री उच्च सदन का सदस्य है, तो वह राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान नहीं कर सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद-71(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित शंकाओं और विवादों की जाँच सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जाएगी और उसका निर्णय अंतिम होगा
- सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रपति की नियुक्ति को अवैध घोषित कर देता है तो पूर्व में राष्ट्रपति द्वारा किये गए कार्य अवैध नहीं होंगे। वे प्रभावी बने रहेंगे [अनुच्छेद-71(2)]
- इस संविधान के अधीन रहते हुए संसद राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित किसी विषय का विनियमन विधि द्वारा कर सकेगी [अनुच्छेद-71(3)] ।
- राष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि निर्वाचक मंडल अपूर्ण है [अनुच्छेद-71 (4)] ।
- राष्ट्रपति के चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार को एक निश्चित राशि (वर्तमान में 15000 रूपये) भारतीय रिज़र्व बैंक में ज़मानत राशि के रूप में जमा करनी पड़ती है।
- कोई उम्मीदवार कुल डाले गए मतों का 1/6 भाग प्राप्त करने में असमर्थ रहता है तो उसकी ज़मानत राशि ज़ब्त हो जाएगी, जिसे ज़मानत ज़ब्त होना भी कहते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद-59(3) में राष्ट्रपति की उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का उपबंध है। वर्तमान में राष्ट्रपति का वेतन प्रतिमाह 1.50 रूपये लाख है। उन्हें वेतन, भत्ते एवं उपब्धियाँ संविधान की दूसरी अनुसूची के तहत दिए जाते हैं।
- संविधान की तीसरी अनुसूची में शपथ/प्रतिज्ञा के संबंध में उपबंध है।
- संविधान के अनुच्छेद-60 में उपबंध है कि राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष शपथ लेगा। मुख्य न्यायाधीश की अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध वरिष्ठ न्यायाधीश के समक्ष शपथ लेगा।
- संविधान के अनुच्छेद-60 में राष्ट्रपति के शपथ के संबंध में उपबंध है।
- संविधान के अनुच्छेद-56(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा।
- अनुच्छेद-56(1)(क) में उपबंध है कि राष्ट्रपति अपना त्याग पत्र उप-राष्ट्रपति को सौंपेगा।
- अनुच्छेद-56(1)(ग) में उपबंध है कि राष्ट्रपति अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी पद धारण करता रहेगा, जब तक कि उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले।
- अनुच्छेद-56(2) में उपबंध है कि उप-राष्ट्रपति त्याग पत्र की सूचना तुरंत लोकसभा अध्यक्ष को देगा।
- संविधान के अनुच्छेद-56(1)(ख) में उपबंध है कि संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद-61 में उपबंधित रीति से महाभियोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा।
- संविधान के अनुच्छेद-61 में राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया के संबंध में उपबंध है।
- राष्ट्रपति पर महाभियोग का आरोप संसद के किसी भी सदन द्वारा लगाया जा सकता है न कि केवल लोकसभा द्वारा।
- महाभियोग का प्रयोग अभी तक एक बार भी नहीं हुआ है।
- भारत के राष्ट्रपति को उसके पद से केवल महाभियोग (अुनच्छेद-61) के आधार पर हटा सकते हैं। राष्ट्रपति पर महाभियोग केवल संविधान के उल्लंघन या अतिक्रमण के आधार पर चलाया जा सकता है।
- संसद का कोई भी सदन भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग का आरोप लगा सकता है। एक सदन महाभियोग का आरोप लगाता है तो दूसरा सदन उन आरोपों की जाँच करता है। जिस सदन के द्वारा महाभियोग का आरोप लगाया जाता है, उस आरोप पर उस सदन के एक-चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिये और राष्ट्रपति को 14 दिनों का नोटिस देना चाहिये।
- राष्ट्रपति पर महाभियोग का आरोप संबंधी प्रस्ताव सदन की कुल सदस्य संख्या के दो-तिहाई बहुमत द्वारा (न कि उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत द्वारा) पारित होना चाहिये।
- दूसरा सदन इन आरोपों की जाँच करेगा। यदि जाँच साबित हो जाती है और महाभियोग का प्रस्ताव सदन की कुल सदस्य संख्या के दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित हो जाता है तो प्रस्ताव पारित किये जाने की तारीख से राष्ट्रपति को पद से हटना होगा। जिस सदन में महाभियोग के आरोप की जाँच चल रही होती है, उस सदन में राष्ट्रपति को उपस्थित होने और अपना प्रतिनिधित्त्व करने का अधिकार होगा।
- संविधान के अनुच्छेद-56(1)(ग) में उपबंध है कि वर्तमान राष्ट्रपति अपने पद पर तब तक बने रहेंगे, जब तक उनका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर ले। संविधान के अनुच्छेद-62(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति की पदावधि पूर्ण होने से पहले नया चुनाव करा लें।
- संविधान के अनुच्छेद-78 में राष्ट्रपति के प्रति प्रधानमंत्री के तीन कर्त्तव्य बतलाए गए हैं.
- संविधान के अनुच्छेद-110(4) में उपबंध है कि अनुच्छेद 111 के अधीन धन विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जिस पर लोकसभा के अध्यक्ष का हस्ताक्षर होगा कि वह धन विधेयक है।
- संविधान का अनुच्छेद-72 राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति प्रदान करता है। यह राष्ट्रपति की न्यायिक शक्ति है।
- संविधान के अनुच्छेद-61 में राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाया जाता है। यह संसद की एक अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया है।
- भारत का संविधान राष्ट्रपति को संवैधानिक और नाममात्र तथा औपचारिक और विधिक अधिकार प्रदान करता है।
- संविधान के अनुच्छेद-53(1) में उपबंध है कि संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा करेगा।
- संविधान के अनुच्छेद-77(1) में उपबंध है कि भारत सरकार कार्यपालिका के समस्त कार्य राष्ट्रपति के नाम से किये जाएंगे, किंतु कार्यपालिका शक्ति का वास्तविक प्रयोग मंत्रिपरिषद द्वारा किया जाता है। संविधान के अनुच्छेद 74(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करेगा।
- संविधान के अनुच्छेद-79 में उपबंध है कि भारत की संसद, लोक सभा, राज्य सभा और राष्ट्रपति से मिलकर बनेगी।
- लोक लेखा समिति के प्रतिवेदन को राष्ट्रपति सदन के पटल पर नहीं रखवाते हैं। लोक लेखा समिति अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंपती है।
- संविधान के अनुच्छेद-281 में उपबंध है कि राष्ट्रपति संघ वित्त आयोग की सिफारिशों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएंगे।
- अनुच्छेद-151(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति नियंत्रक एवं महालेखा-परीक्षक के प्रतिवेदनों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएंगे।
- अनुच्छेद-338(6) में उपबंध है कि राष्ट्रपति राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के प्रतिवेदनों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएंगे।
- अनुच्छेद-111 में उपबंध है कि संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् कानून का रूप लेगा
- संविधान के अनुच्छेद-80(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति 12 सदस्यों को अनुच्छेद-80(3) के तहत राज्य सभा के लिये मनोनीत करेंगे। इसमें शामिल क्षेत्र हैं- साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा।
- सहकारी आंदोलन के क्षेत्र से राष्ट्रपति नहीं, अपितु राज्य के राज्यपाल विधान परिषद के लिये मनोनीत करेंगे।
- वर्तमान में राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत करने के संबंध में बदलाव किया गया है। इसी आधार पर क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेन्दुलकर को राज्य सभा के लिये मनोनीत किया गया।
- संविधान के अनुच्छेद-85(2)(ख) में उपबंध है कि राष्ट्रपति केवल लोकसभा का विघटन कर सकता है, राज्य सभा का नहीं। क्योंकि राज्य सभा एक स्थायी सदन है जबकि लोकसभा की कार्यवधि केवल पाँच वर्ष की होती है।
- अनुच्छेद-85(2)(क) में उपबंध है कि राष्ट्रपति दोनों सदनों या किसी एक सदन का सत्रावसान कर सकेगा।n
- संसद को स्थगित करने की शक्ति राष्ट्रपति को नहीं है, अपितु लोकसभा के मामले में लोक सभा अध्यक्ष व राज्य सभा के मामले में सभापति (राज्यसभा के अध्यक्ष) सदन की बैठक स्थगित कर सकते हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 108 में उपबंध है कि राष्ट्रपति कुछ दशाओं में दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुला सकता है, किंतु इसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है, न कि राष्ट्रपति द्वारा।
- अनुच्छेद-85(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति समय-समय पर संसद के प्रत्येक सदन की बैठक बुला सकता है किंतु संसद के प्रत्येक सदन की एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के बीच छः माह का अंतर नहीं होना चाहिये।
- संविधान के अनुच्छेद-73 में संघ की कार्यपालिका शक्ति के विस्तार के संबंध में उपबंध है।
- अनुच्छेद-86(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति संसद के किसी एक सदन में या एक साथ दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकेगा और सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।
- अनुच्छेद 86(2) में उपबंध है कि राष्ट्रपति संसद के किसी सदन को विधेयक के संबंध में संदेश भेज सकेगा।
- अनुच्छेद-87(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति एक साथ संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और संसद को उसके आह्वान का कारण बताएगा। लोक सभा के संदर्भ में प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के प्रारंभ में और प्रत्येक वर्ष प्रथम सत्र के आरंभ में अभिभाषण करेगा।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद-72 में राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति का प्रावधान है। यह राष्ट्रपति की न्यायिक शक्ति है।
- क्षमाः दोषी को सभी दण्डों, दण्डादेशों और निरर्हताओं से पूर्णतः मुक्ति मिल जाती है।
- लघुकरणः दण्ड के स्वरूप को बदलकर कम कर दिया जाता है। जैसेः मृत्युदण्ड का लघुकरण कर कठोर कारावास में परिवर्तित करना।
- परिहारः दण्ड की प्रकृति में कमी किये बिना उसकी अवधि कम करना, जैसे- दो वर्ष के कठोर कारावास को एक वर्ष के कठोर कारावास में बदल दिया जाता है।
- विरामः दोषी को मूल रूप में दी गई सज़ा को किसी विशेष परिस्थिति में कम करना, जैसे- महिला अपराधी का गर्भवती होना।
- प्रतिलंबनः किसी दण्ड (विशेषकर मृत्यु दण्ड) पर अस्थाई रोक लगाना।
- सविधान के अनुच्छेद-72 में राष्ट्रपति को क्षमादान की शक्ति दी गई है जबकि राज्यपाल को अनुच्छेद-161 में क्षमादान की शक्ति दी गई है।
- मृत्युदण्ड को क्षमा करने की शक्ति केवल राष्ट्रपति को है, राज्यपाल को यह शक्ति नहीं प्राप्त है। मृत्युदण्ड के निलंबन, परिहार या लघुकरण करने की शक्ति राज्यपाल और राष्ट्रपति को समान है।
- राष्ट्रपति के क्षमादान की शक्ति की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती, बशर्ते राष्ट्रपति का निर्णय स्वेच्छाचारी, विवेकरहित, दुर्भावना अथवा भेदभावपूर्ण न हो।
- राष्ट्रपति क्षमादान शक्ति का प्रयोग मंत्रिमंडल के परामर्श से करेगा।
- यदि क्षमादान की पूर्व याचिका राष्ट्रपति द्वारा रद्द कर दी गई है तो दूसरी याचिका दायर नहीं की जा सकती है।
- संविधान के अनुच्छेद-123 के तहत भारत के राष्ट्रपति अध्यादेश का प्रयोग करते हैं, जबकि राज्यों के राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद-213 के अंतर्गत इसका प्रयोग करते हैं।
- अध्यादेश का प्रयोग राष्ट्रपति स्वविवेकानुसार नहीं करते अपितु मंत्रिमंडल की सलाह पर इसे जारी करते हैं और वापस लेते हैं।
- अनुच्छेद-123(1) में उपबंध है कि राष्ट्रपति, उस समय को छोड़कर जब संसद के दोनों सदन सत्र में हैं, अध्यादेश जारी कर सकता है।
- भारत के राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति अनोखी है जबकि अमेरिका व ब्रिटेन में इसका प्रयोग नहीं किया जाता है।
- राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश का जीवनकाल सीमित है। संविधान के अनुच्छेद-123(2)(क) में उपबंध है कि अध्यादेश संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा और संसद के पुनः समवेत होने की तारीख से छः सप्ताह (न कि छः माह) की समाप्ति पर प्रवृत्त नहीं रहेगा।
- संविधान में संशोधन हेतु अध्यादेश जारी नहीं किया जा सकता।
- संविधान के अनुच्छेद-13 में ‘विधि’ की जो परिभाषा दी गई है उसमें इसे शामिल किया गया है। अतः अध्यादेश मूल अधिकारों को न तो छीन सकता है, न न्यून कर सकता है और न उल्लंघन कर सकता है।
- अध्यादेश भूतलक्षी हो सकता है, अर्थात पिछले तारीख से इसे प्रभावी किया जा सकता है।
- राष्ट्रपति को समाधान हो जाए कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिसके कारण तुरंत कार्यवाही करना आवश्यक है तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है, परंतु संसद का कोई एक सदन या दोनों सदन सत्र में नहीं होने चाहिये।
- राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति और राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद-352) से कोई संबंध नहीं है। अध्यादेश युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह न हो तो भी जारी किया जा सकता है।
- अध्यादेश के प्रयोग को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
- भारत शासन अधिनियम, 1935 में गवर्नर जनरल को अध्यादेश निकालने की शक्ति दी गई थी।
- राष्ट्रपति के समक्ष आए किसी विधेयक पर निर्णय देने के लिये संविधान में कोई समय सीमा निर्धारित नहीं है, जबकि अमेरिका में 10 दिनों के अन्दर विधेयक को पुनर्विचार के लिये लौटाना पड़ता है।
- भारतीय डाक (संशोधन) अधिनियम, 1986 में राष्ट्रपति जैल सिंह (न कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद) द्वारा इस वीटो का प्रयोग किया गया था।
- इसे पॉकेट वीटो इसलिये कहते हैं कि राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनिश्चित काल के लिये टेबल पर पड़ा रहने देता है, न तो स्वीकृति देता है और न ही लौटाता है।
- संविधान संशोधन से संबंधित अधिनियमों में राष्ट्रपति के पास कोई वीटो नहीं है। 24वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1971 के द्वारा राष्ट्रपति को स्वीकृति देने के लिये बाध्यकारी बना दिया गया।
- राष्ट्रपति द्वारा इस वीटो का प्रयोग तब किया जाता है, जब किसी विधेयक (धन विधेयक को छोड़कर) को पुनर्विचार के लिये भेजा जाता है, किंतु संसद उस विधेयक को संशोधन या बिना संशोधन के साथ साधारण बहुमत से पारित कर राष्ट्रपति के पास भेजता है तो राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिये बाध्य है।
- धन विधेयक के संबंध में इस वीटो का प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
- वर्ष, 1954 में राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने पेप्सु विनियोग विधेयक पर इस वीटो का प्रयोग किया था।
- वर्ष, 1991 में राष्ट्रपति डॉ. आर. वेंकटरमण द्वारा संसद सदस्यों के वेतन, भत्तों और पेंशन (संशोधन) विधेयक पर इस वीटो का प्रयोग किया था।
- इस वीटो के द्वारा राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित विधेयक को अनुमति देने से इनकार कर सकता है।
- विशेषित वीटोः भारत के राष्ट्रपति के संदर्भ में यह वीटो महत्त्वहीन है। अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा इस वीटो का प्रयोग किया जाता है।
- संविधान के अनुच्छेद-111 में उपबंध है कि संसद द्वारा पारित विधेयक के संबंध में राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं-
- विधेयक पर अपनी स्वीकृति दे सकता है; अथवा
- विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है; अथवा
- विधेयक को पुनर्विचार के लिये (धन विधेयक से भिन्न) लौटा सकता है, किंतु यदि संसद द्वारा पुनः बिना संशोधन या संशोधन के साथ राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, तो राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिये बाध्य है।
- संविधान के अनुच्छेद-200 में उपबंध है कि राज्यपाल राष्ट्रपति के विचार के लिये विधेयक को आरक्षित रख सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद-201 के तहत राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प रहते हैं-
- विधेयक पर स्वीकृति दे सकता है।
- विधेयक पर स्वीकृति सुरक्षित रख सकता है।
- राज्यपाल को निर्देश दे सकता है कि विधेयक को (धन विधेयक से भिन्न) पुनर्विचार के लिये लौटा दे, किंतु राज्य विधानसभा द्वारा पुनः बिना संशोधन या संशोधन के साथ राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, तो राष्ट्रपति उस पर स्वीकृति देने के लिये बाध्य नहीं है।
- संविधान के अनुच्छेद-143 में उपबंध है कि राष्ट्रपति को प्रतीत हो कि विधि या तथ्य का कोई ऐसा प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है जिस पर उच्चतम न्यायालय की राय आवश्यक है, तो राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय से परामर्श ले सकता है। राज्यों के उच्च न्यायालय इसके अंतर्गत नहीं आते हैं।
- राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय का परामर्श मानने के लिये बाध्य नहीं है।
- उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति के द्वारा मांगा गया परामर्श देने के लिये बाध्य नहीं है।
भारत के राष्ट्रपति निम्नलिखित की नियुक्ति करते हैं
- प्रधानमंत्री- अनुच्छेद-75(1)
- नियंत्रक एवं महालेखा-परीक्षक- अनुच्छेद-148(1)
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त- अनुच्छेद-324(2)
- महान्यायवादी- अनुच्छेद-76(1)
- राज्यपाल- अनुच्छेद-155
- संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष-अनुच्छेद-316(1)
- राष्ट्रपति को निम्न मामलों में स्वविवेक की शक्ति प्राप्त हैः
- विधेयक को आपत्तियों सहित वापस भेजना।
- विधेयक को रोक कर रखना।
- संसद को संदेश भेजना।
- लोकसभा में किसी दल को बहुमत न मिलने पर प्रधानमंत्री की नियुक्ति करना।
- लोकसभा को विघटित करना यदि मंत्रिमडल ने अपना बहुमत खो दिया है।
- मंत्रिमंडल को विघटित कर सकता है यदि वह सदन में विश्वासमत सिद्ध नहीं कर पाया है।
भारत पूर्व राष्ट्रपति
श्री प्रणब मुखर्जी
श्री प्रणब मुखर्जी (जन्म-1935)
कार्यकाल: 25 जुलाई, 2012 से 25 जुलाई, 2017
श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील
श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटील (जन्म-1934)
कार्यकाल: 25 जुलाई, 2007 से 25 जुलाई, 2012
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (1931-2015)
कार्यकाल: 25 जुलाई, 2002 से 25 जुलाई, 2007
श्री के.आर. नारायणन
श्री के.आर. नारायणन (1920-2005)
कार्यकाल: 25 जुलाई, 1997 से 25 जुलाई, 2002
डॉ. शंकर दयाल शर्मा
डॉ. शंकर दयाल शर्मा (1918-1999)
कार्यकाल: 25 जुलाई, 1992 से 25 जुलाई, 1997
श्री आर. वेंकटरमण
श्री आर. वेंकटरमण (1910-2009)
कार्यकाल: 25 जुलाई, 1987 से 25 जुलाई, 1992
ज्ञानी जैल सिंह
ज्ञानी जैल सिंह (1916-1994)
कार्यकाल: 25 जुलाई, 1982 से 25 जुलाई, 1987
श्री नीलम संजीव रेड्डी
श्री नीलम संजीव रेड्डी (1913-1996)
कार्यकाल: 25 जुलाई, 1977 से 25 जुलाई, 1982
डॉ. फखरुद्दीन अली अहमद
डॉ. फखरुद्दीन अली अहमद (1905-1977)
कार्यकाल: 24 अगस्त, 1974 से 11 फरवरी, 1977
श्री वराहगिरि वैंकट गिरि
श्री वराहगिरि वैंकट गिरि (1894-1980)
कार्यकाल: 3 मई, 1969 से 20 जुलाई, 1969 तथा 24 अगस्त, 1969 से 24 अगस्त, 1974
डॉ. ज़ाकिर हुसैन
डॉ. ज़ाकिर हुसैन (1897-1969)
कार्यकाल: 13 मई, 1967 से 3 मई, 1969
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1888-1975)
कार्यकाल: 13 मई, 1962 से 13 मई, 1967
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद (1884-1963)
कार्यकाल: 26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962