विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण घटनायें
विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण घटनायें
धर्मयुद्ध ( 1095 1272 ई.):
यह 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच पवित्र स्थल येरूशलम को प्राप्त करने के लिए पश्चिमी यूरोप के ईसाइयों तथा अरब के मुसलमानों के बीच लड़ा गया। ईसाइयों ने 1095 ई. से 1272 ई के बीच येरूशलम को प्राप्त करने के लिए आठ बार आक्रमण किए, किंतु सफल नहीं हो सके। अंत में जनरल एलेनबी ने 1917 में येरूशलम को तुर्की के अधिकार से मुक्त करा लिया।
मैग्नाकार्टा ( 1215 ई.):
इंग्लैण्ड के राजा जॉन द्वितीय के अत्याचारी शासन के विरोध में सामंतों तथा पादरियों ने जनता के साथ मिलकर शासन में सुधार के लिए एक अधिकार पत्र तैयार किया, जिस पर विवश होकर राजा जॉन द्वितीय को 15 जून, 1215 को हस्ताक्षर करना पड़ा। इस अधिकार पत्र को 'मैग्नाकार्टा' कहते हैं। 63 धाराओं वाला यह अधिकार पत्र अंग्रेजी जनता की स्वतंत्रता की आधारशिला - माना जाता है।
धर्म सुधार (14वीं और 15वीं शताब्दी ):
यह एक आंदोलन था, जो चर्च की बुराइयों को दूर करने के लिये चलाया गया था प्रोटेस्टेंट सम्प्रदाय का जन्म इसी आंदोलन के समय हुआ । इसी समय वाइक्लिफ की प्रेरणा से पहली बार बाइबिल का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ। धर्मसुधार आंदोलन के दो रूप थे - 1. प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार, तथा 2. कैथोलिक धर्म सुधार। प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार की शुरुआत 1517 ई. में जर्मनी के मार्टिन लूथर ने की। उसने क्षमापत्रों की बिक्री के विरुद्ध '95 Thesises' प्रस्तुत की। कैथोलिक धर्म सुधार की शुरुआत 16वीं सदी के मध्य में हुई। कैथोलिक धर्मसुधार में ट्रेंट की सभा' (1543-1563 ई.) की महत्वपूर्ण भूमिक थी।
ओटोमन साम्राज्य (1400 ई. 1600 ई.)
ओटोमन साम्राज्य की स्थापना 'ओथमैन' नामक एक कट्टर गार्ज मुसलमान ने की थी। ओटोमन साम्राज्य का विस्तार तीन पोंगशिया यरोप और अफ्रीका तक था।
वाणिज्यिक क्रांति ( 1500 ई.):
नये देशों की खोजों से व्यापारिक देशों को नये बाजार मिल गये तथा इससे व्यापारिक गतिविधिया तेज हो गयीं। इससे वाणिज्यिक क्रांति प्रारंभ हुई। इसके अंतर्गत नये-नये बैंकों की स्थापना की गयी, स्टॉक एक्सचेंज प्रणाली का विकास हुआ तथा व्यापारिक क्षेत्र में कई नये शहर उभर कर सामने आये।
पुनर्जागरण ( 15वीं और 16वीं शताब्दी ):
पुनर्जागरण का शाब्दिक अर्थ है पुनर्जन्म'। यह इटली से प्रारंभ हुआ और पूरे यूरोप और बाद में परे संसार में फैल गया। पुनर्जागरण के अंतर्गत सामाजिक बुराइयों को दूर किया गया तथा कई नयी बातों को अपनाया गया। मानवतावाद इसका सबसे प्रमुख क्षेत्र था। साहित्य कला दर्शन तथा विज्ञान आदि सभी क्षेत्रों पर इसका प्रभाव पड़ा।
औद्योगिक क्रांति ( 16वीं शताब्दी ):
वैज्ञानिक विचारों के उदय से इंग्लैंड एवं बाद में यूरोप में कृषि वाणिज्य, संचार और यातायात के क्षेत्र में तेजी से विकास हुआ, जिसे 'औद्योगिक क्रांति' कहा गया। इस क्रांति ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया। औद्योगिक क्रांति ने न केवल इंग्लैंड अपितु पूरे विश्व पर गहरा प्रभाव डाला। इस क्रांति के समय कई महत्वपूर्ण आविष्कार किये गये।
गौरवमयी क्रांति (1688-89 ई.):
यह क्रांति इंग्लैंड में हुई। इस क्रांति में किसी प्रकार का खून-खराबा नहीं हुआ, इसलिये इसे ' रक्तहीन क्रांति' भी कहते हैं। इस समय इंग्लैंड का राजा जेम्स द्वितीय था। वह जनता में अलोकप्रिय -था। क्रांति के बाद वह फ्रांस भाग गया। इस क्रांति से इंग्लैंड में निरंकुश राजतंत्र समाप्त हो गया तथा संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई।
अमेरिका की क्रांति (1776 ई.):
अमेरिका, पहले इंग्लैंड का उपनिवेश या गुलाम था। इंग्लैंड यहां के लोगों पर अत्याचार करता था। इससे कुछ समय बाद यहां के स्थानीय लोगों एवं उपनिवेशी लोगों के बीच टकराव प्रारंभ हो गया। इस टकराव के कारण आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक तीनों थे। 16 दिसंबर, 1773 की बोस्टन चाय पार्टी की घटना से इस क्रांति की शुरुआत हो गयी अमेरिका की इस क्रांति का नेतृत्व जॉर्ज वाशिंगटन ने किया। बंकर्स हिल की लड़ाई तथा बकलिन के युद्ध में अमेरीकियों को विजय मिली। 1777 के साराटोगा के युद्ध में जॉर्ज वाशिंगटन ने अंग्रेज जनरल बुंगाइन को आत्म-समर्पण के लिये मजबूर कर दिया। इसके बाद कई अन्य स्थानों में इंग्लैंड को अमेरिका ने हराया। 19 अक्टूबर, 1781 को अंग्रेज सेनाध्यक्ष लार्ड कार्नवालिस ने यार्कटाउन में आत्म समर्पण कर दिया। 1783 में पेरिस की संधि से - युद्ध समाप्त हो गया तथा अमेरिका स्वतंत्र देश बन गया । स्वतंत्रता के बाद जॉर्ज वाशिंगटन अमेरिका के प्रथम राष्ट्रपति बने। टॉमस जैफरसन ने अमेरिका की स्वतंत्रता का घोषणा-पत्र तैयार किया।
फ्रांस की क्रांति (1789-93 ई.):
14 जुलाई, 1789 को जनता ने क्रुद्ध होकर राजा के अत्याचार के प्रतीक बास्तील जेल को तोड़कर कैदियों को मुक्त कर दिया। इस घटना के कारण फ्रांस में व्यापक क्रांति हुई, जिसे 'फ्रांस की राज्य क्रांति' कहते हैं। इस क्रांति के दौरान 'स्वतंत्रता समानता और बधुत्व' का नारा दिया गया, जो यूरोप एवं विश्व की अनेक क्रांतियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना। इस क्रांति का नायक नेपोलियन था। इस क्रांति का सबसे मुख्य कारण फ्रांस के राजा लुई सोलहवे का अत्याचारी शासन एवं उसकी पत्नी मेरी का विलासितापूर्ण एवं घमंडी व्यवहार था
स्वेज नहर का निर्माण ( 1859-1874 ई.):
स्वेज नहर का निर्माण विश्व इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है। इस नहर का निर्माण मिस्र के शासक सईद पासा (1854 ई. - 1863 ई.) के समय किया गया था। यह नहर भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है। इस नहर के निर्माण से यूरोप और एशिया के बीच की दूरी कम हो गई। फर्डिनेन्ड-डि-लैसप्स नामक फ्रांसीसी इंजीनियर इस नहर के वास्तुकार थे। इस नहर का निर्माण 1859 ई. में आरंभ हुआ तथा यह 10 वर्षों में बनकर तैयार हुई। 1956 में मिस्र के शासक कर्नल नासिर ने स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया, जिसके कारण फ्रांस, ब्रिटेन तथा इजरायल ने मिस्र पर आक्रमण कर दिया, जिसे 'स्वेज नहर का युद्ध' कहते हैं। स्वेज नहर को 1975 में फिर से खोल दिया गया।
चीन की क्रांति ( 1911 ई.):
मंचू सरकार से चीन के लोग प्रसन्न नहीं थे। इसके कारण चीन में 1911 में एक क्रांति हुई, जिसमें मंचू सरकार को सत्ता से हटा दिया गया तथा वहा नया साम्यवादी शासन स्थापित हुआ। चीन में गणतंत्र की स्थापना की गयी। इस क्रांति के नायक डॉ. सनयात सेन थे। उन्होंने एक क्रांतिकारी संगठन ' तुंग-मंग हुई' की स्थापना की।
प्रथम विश्व युद्ध (1914-18 ई.)
प्रथम विश्व युद्ध 1914 से 1918 तक लड़ा गया। ऑस्ट्रिया-हंगरी के राजकुमार आर्क ड्यूक फ्रांसिस फर्डिनेंड की हत्या इस महायुद्ध का तात्कालिक कारण था । इस हत्या से ऑस्ट्रिया - सर्बिया और फ्रांस- जर्मनी के संघर्ष की शुरुआत हो गयी। पूरा विश्व दो गुटों में बंट गया। ऑस्ट्रिया, तुर्की, जर्मनी, हंगरी तथा बुल्गारिया एक ओर एवं मित्र राष्ट्र- जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, सर्बिया, बेल्जियम तथा रूस शामिल थे, दूसरी ओर थे। बाद में इटली और अमेरिका भी मित्र राष्ट्रों का साथ दिया। मोर्न का युद्ध, बर्डन का युद्ध एवं जटलैंड का युद्ध इस महायुद्ध के तीन प्रमुख भाग थे। इस युद्ध में मित्र देशों की विजय हुई। इस युद्ध में जर्मनी बुरी तरह पराजित हुआ तथा उसे 1919 में वर्साय की संधि की अपमानजनक शर्तों को स्वीकार करना पड़ा। इस युद्ध का पूरा दोष जर्मनी पर लगाया गया। उससे उसके कई प्रदेश छीन लिये गये तथा युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में भारी जुर्माना लगाया गया। इस संधि की शर्तें ही द्वितीय विश्व युद्ध का कारण बनीं।
रूस की बोल्शेविक क्रांति ( 1917 ई.):
रूस की क्रांति का मुख्य कारण रूस के शासक जार निकोलस द्वितीय का निरंकुश शासन एवं उसका मनमानापन था । उसके शासन से जनता तंग आ चुकी थी। इसी वजह से उसे हटाने के लिये यह क्रांति हुई। इस क्रांति का नेतृत्व लेनिन ने किया। इसके बाद ही रूस में समाजवाद का जन्म हुआ और मार्क्सवादी विचारधारा की स्थापना हुई। इस क्रांति से पहली बार विश्व में समाजवाद की विचारधारा सामने आयी । विश्व में प्रथम साम्यवादी सरकार की स्थापना लेनिन ने ही की थी।
राष्ट्र संघ का उदय ( 1920 ई.):
प्रथम विश्व युद्ध के बाद यह महसूस किया जाने लगा कि विश्व की राजनीतिक समस्याओं को हल करने के लिये एक ऐसी संस्था का गठन किया जाना चाहिये, जो इस कार्य को पूरा कर सके। वर्साय की संधि के बाद 10 जनवरी, 1920 को राष्ट्र संघ की स्थापना की गई। राष्ट्र संघ की स्थापना का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की स्थापना करना, विश्व के विभिन्न देशों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाकर सभी के लिये सुखमय जीवन सुनिश्चित करना एवं पेरिस शांति सम्मेलन की संधियों को अमल में लाना था। इसका मुख्यालय स्विट्जरलैण्ड के जेनेवा नगर में स्थापित किया गया था। प्रारंभ में इसमें 52 सदस्य थे, किंतु बाद में बढ़कर 57 हो गए थे। लेकिन राष्ट्र संघ अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ तथा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इसकी जगह संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गयी।
इटली का एकीकरण ( 19वीं शताब्दी ):
19वीं शताब्दी के प्रारंभ तक इटली छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित था तथा 1870 से पहले तक इटली नाम का कोई देश नहीं था। लेकिन जब नेपोलियन फ्रांस का सम्राट बना तो उसने इन गणराज्यों तथा पोप के राज्य को अपने साम्राज्य में मिलाकर इटली में एक नवीन राज्य की स्थापना की। इस प्रकार इटली के एकीकरण की शुरुआत हुई। इसमें सबसे प्रमुख भूमिका इटली के शासक विक्टर एमानुएल तथा तीन अन्य लोगों कावूर, मैजिनी एवं गैरीबाल्डी की रही। इसके लिये इटली के लोगों को कई युद्ध भी करने पड़े। जब 20 सितम्बर, 1870 को इटली का रोम पर अधिकार हो गया तो इटली के एकीकरण का कार्य पूरा हो गया।
जर्मनी का एकीकरण ( 19वीं शताब्दी ):
सन् 1789 से पहले तक जर्मनी लगभग 300 छोटे-बड़े राज्यों में बंटा हुआ था। ये सभी राज्य पवित्र रोमन साम्राज्य के अधीन थे। लेकिन नेपोलियन ने जब जर्मनी में 39 राज्यों का एक संघ बनाया तो वहां एकीकरण का मार्ग खुल गया। इसके बाद जर्मनी के लोगों देश की एकता के प्रयास प्रारंभ कर दिये। जर्मनी के एकीकरण में सबसे प्रमुख भूमिका बिस्मार्क की थी। उसने अपनी 'रक्त एवं लौह की नीति' द्वारा इस महान कार्य को पूरा कर दिया। 10 मई, 1871 को फ्रांस एवं प्रशा के बीच फ्रैंकफर्ट की संधि होते ही जर्मनी का एकीकरण पूर्ण हो गया।
अमेरिका का गृहयुद्ध (1861-1865 ई.):
4 जुलाई, 1776 को अमेरिका के सभी 13 उपनिवेशों को स्वतंत्रता मिल गयी। इसके बाद उत्तर एवं दक्षिण के राज्यों में आपस इतिहास में मनमुटाव बढ़ने लगा। उत्तर के राज्य जहां साधन संपत्र थे, वहीं दक्षिण के राज्य पिछड़े हुये एवं अविकसित अवस्था में थे। दासता की समस्या सबसे प्रमुख थी। इस प्रकार उत्तरी एवं दक्षिणी राज्यों में आपसी मतभेद बढ़ता गया और 12 अप्रैल, 1861 को अमेरिका में गृहयुद्ध प्रारंभ हो गया। यह युद्ध चार वर्षो तक चला। इसमें प्रारंभ से ही उत्तरी राज्यों की स्थिति मजबूत थी। अंत में उत्तरी राज्यों की ही हुई विजय तथा दक्षिणी राज्य हार गये। 14 अप्रैल, 1865 को जॉन विस्कस बूस द्वारा राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की हत्या कर देने से इस गृह युद्ध पर एक काला धब्बा लग गया। इस गृहयुद्ध से अमेरिका में जन-धन का काफी नुकसान हुआ लेकिन इसके बाद वहां एक नये युग का आरंभ हुआ।
नाजीवाद (20वीं शताब्दी)
नाजीवाद का उदय जर्मनी में हुआ नाजीवाद के उदय के कई कारण थे। इनमें युद्ध के बाद की आर्थिक परेशानियां बेरोजगारी, पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध, जर्मनी के लोगों में क्रांतिकारी भावना का उदय, वर्साय की संधि की अपमानजनक शर्ते आदि प्रमुख थे। नाजीवाद की स्थापना राजनीतिक षडयंत्र के द्वारा की गयी। हिटलर नाजीवाद का सबसे प्रमुख नेता था। उसने नात्सी दल का गठन किया तथा नया झंडा अपनाया।
फासीवाद 20वीं शताब्दी)
फासीवाद का उदय इटली में हुआ । फासिस्ट शब्द लैटिन भाषा के शब्द 'फेसियो' से बना है, जिसका अर्थ है-फरसे के साथ डंडों का गठर । सर्वप्रथम फासीदल की स्थापना मार्च, 1919 में बोल्शेविकवाद के विरोध में हुई थी। फासीवादी दल में सभी लोग शामिल थे। इस दल के सदस्य काली कमीज पहनते थे। इस दल का नेता मुसोलिनी था। पेरिस शांति सम्मेलन की अपमानजनक शर्तें आर्थिक परेशानियां, बेराजगारी, पूंजीवादी व्यवस्था का विरोध, इटली के लोगों में क्रांतिकारी भावना का उदय आदि फासीवाद के उदय के कारण थे।
रोम-बर्लिन - टोकियो धुरी (1936-37 ई.):
हिटलर की आक्रामक नीतियों से यूरोप के विभिन्न देश भयभीत हो गये। इसकी वजह से ये देश जर्मनी के विरुद्ध गुटबंदी करने लगे। इससे हिटलर अंतरराष्ट्रीय राजनीति में अकेला महसूस करने लगा। उसने इटली तथा जापान के साथ मिलकर एक गुट बना लिया। इटली और जर्मनी के मध्य अक्टूबर, 1936 ई. में एक समझौता हुआ, जिसे रोम-बर्लिन धुरी कहा गया। बाद में जापान भी इसमें शामिल हो गया। जर्मनी तथा जापान ने नवंबर, 1936 में एक समझौता किया, जिसे 'कामिंटर्न विरोधी समझौता' कहा जाता है।
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45 ई.):
द्वितीय विश्व युद्ध 1939 से 1945 तक लड़ा गया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुई वर्साय की संधि से जर्मनी और इटली में क्रमश: नाजीवाद एवं फासीवाद का उदय हुआ। इसके अलावा जापान की विस्तारवादी नीतियां तथा ब्रिटेन और फ्रांस की बढ़ती साम्राज्यवादी शक्ति में संघर्ष भी इस युद्ध के कारण बने। इसमें धुरी राष्ट्रों ने (जर्मनी, इटली और जापान ) ने मित्र राष्ट्रों (प्रांस, ब्रिटेन, रूस, अमेरिका और पोलैंड) के विरुद्ध युद्ध किया। इसमें धुरी राष्ट्रों की हार हुई।
एल अलनीन की लड़ाई,
स्टेलिनग्राद की लड़ाई. कोरल की लड़ाई. अलामेन का युद्ध तथा नारमंडी की लड़ाई - इस महायुद्ध की प्रमुख लड़ाइया थी। इस युद्ध में जापान ने 7 दिसंबर, 1941 ई. को अमेरिका के पर्ल हार्बर पर आक्रमण किया, जिसके कारण अमरीका ने जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी और 1945 ई. में जापान के दो शहरो हिरोशिमा और नागासाकी पर क्रमश: 6 और अगस्त को परमाणु बम गिराये द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति 14 अगस्त, 1945 ई. को हुई।
याल्टा सम्मेलन (1945 ई.)
यह सम्मेलन रूम ( क्रीमिया) के याल्टा नगर में फरवरी, 1945 में हुआ। इस सम्मेलन में अमेरिका के राष्ट्रपति रूजवेल्ट, रूस के राष्ट्रपति स्टालिन तथा ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चर्चिल ने भाग लिया। इस सम्मेलन में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में शांति स्थापना के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन के गठन के बारे में विचार किया गया। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की दिशा में याल्टा सम्मेलन का महत्वपूर्ण स्थान है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना (1945 ई.):
बीसवीं सदी में दो विश्व युद्ध हुये। इन युद्धों में सम्पूर्ण जन-धन की अपार क्षति हुई। इससे विश्व में व्यापक शांति तथा सुरक्षा के लिये एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस की गयी, जो इन उद्देश्यों की पूर्ति कर सके। इसी वजह से संयुक्त राष्ट्र अस्तित्व में आया। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में हुई थी। 10 जनवरी, 1946 को लंदन में महासभा का प्रथम सत्र वेस्टमिंस्टर भवन में आयोजित किया गया था। इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है। शीतयुद्ध का आरंभ (1946 ई.): द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूरा विश्व दो गुटों में बंट गया तथा दोनों गुटों के बीच आपसी टकराव प्रारंभ हो गया। हालांकि यह टकराव सीधे न होकर छुपे रूप में था इसे ही 'शीतयुद्ध' कहते हैं। इसमें एक गुट का नेतृत्व अमेरिका एवं दूसरे का नेतृत्व रूस ने किया। अमेरिका, पूंजीवाद का समर्थक था, जबकि रूस, साम्यवाद का।
नाटो की स्थापना (1949 ई.):
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व में साम्यवाद का प्रसार रोकने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति टूमैन के प्रयासों से 4 अप्रैल, 1949 ई. को अमरीका की राजधानी वाशिंगटन में 'उत्तर अटलांटिक संधि संगठन' (नाटो) का गठन किया गया। इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स में है। प्रारंभ में इसमें 12 देश-फ्रांस, लक्जमबर्ग, आइसलैण्ड, बेल्जियम, इटली, हॉलैण्ड, नॉर्वे, डेनमार्क, पुर्तगाल, ब्रिटेन, कनाडा और अमरीका शामिल थे लेकिन बाद में अक्टूबर, 1951 में यूनान और तुर्की तथा 1954 में पश्चिम जर्मनी इसमें शामिल हो गये। 30 मई, 1982 को स्पेन तथा मार्च, 1999 को पोलैण्ड, हंगरी और चेक गणराज्य भी इसमें शामिल हो गये। इस संगठन के किसी देश पर जब कोई आक्रमण करता है, तो सभी देश मिलकर इसका मुकाबला करते हैं।
चीन की लाल क्रांति (1949 ई.)
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जब पूरे विश्व में साम्यवाद तेजी से फैला तो इसका चीन पर अत्यधिक प्रभाव हुआ। 1924 ई. में सन यात सेन के निधन के बाद च्यांग काई शेक चीन के शासक बने। च्यांग काई शेक साम्यवाद के घोर विरोधी थे. जबकि दूसरी ओर वहां साम्यवाद काफी गहराई तक अपनी जड़ें जमा चुका था। इससे चीन में टकराव एवं गृह युद्ध की स्थिति बन गयी। इसी बीच माओ-त्से-तुंग के नेतृत्व में 1949 ई. में चीन में एक साम्यवादी क्रांति हुई, जिसे ' चीन की लाल 'क्रांति' के नाम से जाना जाता है। इस क्रांति के कारण च्यांग काई- शेक के शासन का अंत हो गया तथा साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई।
वारसा संधि (1955 ई.):
यह वास्तव में एक संगठन है। इसका गठन शीत युद्ध के समय मई, 1955 ई. में पोलैण्ड की राजधानी वारसा में किया गया था। इस संगठन में पूर्वी यूरोप के 8 देश- सोवियत संघ, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, अल्बानिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैण्ड और रोमानिया शामिल थे। इस संधि को 'वारसा संधि' के नाम से जाना जाता है। इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य नाटो का मुकाबला करना था। इस संधि के अनुसार, अगर संगठन के किसी भी सदस्य पर बाहरी हमला होता है, तो वह हमला संगठन के सभी सदस्यों पर माना जाता है एवं सभी सदस्य उसका मिलकर मुकाबला करते हैं। इसका मुख्यालय मास्को में था। 1991 में वारसा संधि को भंग करके इस संगठन को समाप्त कर दिया गया।
वारसा संधि (1955 ई.):
यह वास्तव में एक संगठन है। इसका गठन शीत युद्ध के समय मई, 1955 ई. में पोलैण्ड की राजधानी वारसा में किया गया था। इस संगठन में पूर्वी यूरोप के 8 देश- सोवियत संघ, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, अल्बानिया, पूर्वी जर्मनी, हंगरी, पोलैण्ड और रोमानिया शामिल थे। इस संधि को 'वारसा संधि' के नाम से जाना जाता है। इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य नाटो का मुकाबला करना था। इस संधि के अनुसार, अगर संगठन के किसी भी सदस्य पर बाहरी हमला होता है, तो वह हमला संगठन के सभी सदस्यों पर माना जाता है एवं सभी सदस्य उसका मिलकर मुकाबला करते हैं। इसका मुख्यालय मास्को में था। 1991 में वारसा संधि को भंग करके इस संगठन को समाप्त कर दिया गया।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन (1961 ई.):
शीत युद्ध के तनावपूर्ण वातावरण में गुटबाजी से अलग रहने तथा अपनी स्वतंत्रता को बनाये रखने के उद्देश्य से 25 विकासशील देशों द्वारा 1961 में बेलग्रेड सम्मेलन में इसकी स्थापना की गयी। इसका सम्मेलन प्रत्येक तीन वर्ष बाद आयोजित किया जाता है तथा आयोजनकर्ता देश को ही अगले सम्मेलन तथा संगठन का अध्यक्ष बनाया जाता है। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य पूंजीवादी तथा साम्यवादी राजनीति से स्वयं को तटस्थ रखना है। भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, मिस्र के राष्ट्रपति नासिर तथा यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने तीसरी शक्ति' की इस अवधारणा को काफी मजबूत बनाया। अब इस संगठन की सदस्य संख्या लगभग 115 हो चुकी है। जार्ज लिस्का ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने इस नीति को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दी।
चीन की सांस्कृतिक क्रांति (1966-67 ई.):
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के उग्रपंथियों और नरमपंथियों के बीच हुए टकराव ने सांस्कृतिक क्रांति को जन्म दिया, जिसके प्रणेता कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख माओ जिडांग थे।
ईरान की इस्लामिक क्रांति (1979 ई.):
ईरान की इस्लामिक क्रांति सन 1979 में हुई थी, जिसने ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी को अपदस्थ कर अयातुल्लाह रुहोल्लाह खोमैनी के अधीन एक लोकप्रिय धार्मिक गणतंत्र की स्थापना की।
जर्मनी का द्वितीय एकीकरण ( 1990 ई.):
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी को दो भागों-पूर्वी जर्मनी और पश्चिमी जर्मनी में बांट दिया गया था। जर्मनी के लोग इस विभाजन के विरुद्ध थे । वे इसे अपनी नियति मानने को तैयार नहीं थे। 1961 में रूस ने बर्लिन शहर के मध्य 8 फीट ऊंची कंक्रीट की दीवार खड़ी कर दी थी, जिसे गिराकर 3 अक्टूबर, 1990 को पूर्वी व पश्चिमी जर्मनी का पुन: एकीकरण कर दिया गया । बर्लिन को संयुक्त जर्मनी की राजधानी बनाया गया तथा एकीकृत जर्मनी का नया नाम 'संयुक्त जर्मन गणराज्य' रखा गया। जर्मनी के पुनर्एकीकरण में विली ब्रांट, हेलमुट कौल तथा रूस के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचोव की महत्वपूर्ण भूमिका थी।