महमूद गजनवी के उत्तराधिकारी (Successors of Mahmud Ghaznavi)
महमूद गजनवी के उत्तराधिकारी
मसूद (Masud) (1031-40 ई.)
1030 ईसवी में महमूद की मृत्यु के बाद उसके दो बेटों मसूद और मुहम्मद के बीच उत्तराधिकार के लिए झगड़ा छिड़ गया। इस झगड़े में मुहम्मद की हार हुई। उसकी आँखें निकाल दी और उसे बंदी बना लिया गया। इस प्रकार मसूद ने 1031 ईसवी में अपने आपको राजा घोषित कर दिया। डा. ईश्वरी प्रसाद का कहना है कि "वह अपने पिता का सच्चा सपूत था और उसमें महत्त्वाकांक्षा, साहस तथा युद्ध-उत्साह कूट-कूट कर भरा हुआ था। परन्तु वह बड़ा शराबी तथा व्यभिचारी था। उसके राज्य में काम-काज उसका योग्य मंत्री ख्वाजा अहमद मैमान्दी किया करता था। "
मसूद के जमाने में पंजाब के गजनवी राज्यपाल ऐरीआरिक ने अपने आपको स्वतंत्र बना लिया। मसूद ने उसे आड़े हाथों लिया। उसे गजनी लाया गया जहाँ उसे कैद किया गया और फिर विष देकर मार डाला गया। उसके स्थान पर अहमद नियाल्तगीन को पंजाब का राज्यपाल बनाया गया।
अहमद नियाल्तगीन एक वीर पुरुष था। उसने बनारस पर एक सफल चढ़ाई की और वहाँ से बहुत सा धन लूटकर लाया। परन्तु उसका एक साथी काजी शिराज उससे ईर्ष्या करने लगा। उसने नियाल्तगीन के विरुद्ध सुलतान के कान भर दिये। इस पर उसे दण्ड देने के लिए सुलतान ने तिलक के नेतृत्व में एक सेना भेजी। नियाल्तगीन की हार हुई और उसे मौत के घाट उतार दिया गया।
अक्तूबर 1037 ई. में मसूद ने भारत चढ़ाई की। एक बड़ी सेना लेकर वह हाँसी की ओर बढ़ा। हाँसी पर अधिकार करके उसने वहाँ से खूब धन लूटा। इसके बाद सोनीपत को भी जीत लिया। ऐसी-ऐसी विजयें प्राप्त करके मसूद बहुत-सा लूट का माल लेकर गजनी को लौट गया।
गजनी से मसूद की अनुपस्थिति बड़ी घातक तथा दोषपूर्ण सिद्ध हुई क्योंकि पीछे से सैल्जूक तुर्कों ने उसकी राजधानी पर धावा बोल दिया और इसके राज्य के कुछ भाग रौंद डाले। मसूद अब तुर्कों के विरुद्ध बढ़ा परन्तु 24 मार्च 1040 ई. को दण्डनकन के स्थान पर उसने हार खाई। अब विवश होकर मसूद को भारत की ओर हटना पड़ा। इसका लाभ उठाकर मुहम्मद ने अपने आपको राजा घोषित कर दिया। मसूद को बन्दी बना लिया गया और 1041 ई. में उसे मौत के घाट उतार दिया गया। मुहम्मद ने कुछ देर राज्य किया। उसके बाद मसूद के बेटे मन्दूद ने उसे उलट फेंका। अपने चाचा को हराकर मन्दूद 1041 ई. में सिंहासन पर बैठा और उसने 1049 ई. तक शासन किया। 1049 से 1186 ई. तक गजनवी वंश के 12 राजाओं ने पंजाब तथा गजनी पर शासन किया। सैल्जूक तुर्कों ने गजनवियों को करारी हार दी और उनके शासक अरस्लान को 1117 में भारत की ओर मार भगाया। अगला गजनवी शासक बहराम सैल्जूक के हाथ की कठपुतली बन कर चला। इसी काल में गजनवी राजा और गौर के मालिकों के बीच झगड़ा आरंभ हो गया। यह गौर गजनी और हिरात के बीच एक छोटा-सा पहाड़ी राज्य था। इन झगड़ों से बढ़ते-बढ़ते बाकायदा युद्ध छिड़ गया और गजनवी राजा ने पंजाब में शरण ली। गजनवी वंश के अन्तिम शासक खुसरो मलिक को मुईजुद्दीन मुहम्मद बिन साम ने जो शाहबुद्दीन मुहम्मद गौरी के नाम से प्रसिद्ध था, मार डाला। इस प्रकार बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चौथाई में गजनवी वंश समाप्त हो गया।
गजनवी साम्राज्य के पतन के कारण
(Causes of the downfall of Ghazanavi Empire)
महमूद की मृत्यु के बाद गजनवी साम्राज्य की शक्ति और स्थिरता क्षीण हो गई और धीरे-धीरे यह टूटने लगा। इस साम्राज्य के पतन के कारण भिन्न-भिन्न और अनेक थे, जिन्हें यूँ गिनाया जा सकता है-
(i) महमूद की सैनिक तानाशाही (Military dictatorship of Mahmud) :
महमूद ने एक मजबूत सैनिक तानाशाही स्थापित कर रखी थी। अपने सैनिक शक्ति तथा निजी सैनिक गुणों के द्वारा ही वह अपना साम्राज्य बना पाया और उसे बनाये रख सका। ऐसे साम्राज्य की शक्ति एक ही मनुष्य की शक्ति पर निर्भर थी और जब यह कमजोर हाथों में आया तो उसका पतन स्वाभाविक ही था।
(ii) महमूद कोई महान प्रशासक तथा रचनात्मक दिमाग का नहीं था (Mahmud was not a great administrator and constructive genius):
लेनपूल के कथनानुसार, "महमूद कोई रचनात्मक दिमाग का व्यक्ति नहीं था । हम किसी ऐसे कानून अथवा संस्था अथवा शासन विधि के विषय में नहीं सुनते जो महमूद के दिमाग से निकली हो। उसने अपने विशाल राज्य में केवल बाह्य व्यवस्था तथा सुरक्षा बनाये रखने का प्रयास किया और उसकी योजना में अपने राज्य को संगठित तथा दृढ़ बनाने का कोई स्थान नहीं था।" उसने एक अच्छा प्रशासनिक ढाँचा स्थापित करने के लिए कुछ भी तो नहीं किया और इस कारण वह ठोस और स्थायी साम्राज्य स्थापित करने में असफल हुआ।
(iii) उत्तराधिकार के कानून का न होना (Absence of law of succession) :
इस बात ने भी गजनवियों के साम्राज्य को बहुत कमजोर कर दिया कि उसके अन्दर उत्तराधिकार का कोई कानून नहीं था। महमूद को भी अपने भाई इस्माइल के विरुद्ध लड़ना पड़ा था ताकि सिंहासन को प्राप्त कर सके। महमूद की मौत के बाद उत्तराधिकार के लिए लगातार झगड़े हुए। जिसने साम्राज्य की स्थिरता को बहुत धक्का पहुँचाया।
(iv) महमूद के उत्तराधिकारी कमजोर और विलासी थे
महमूद के उत्तराधिकारी मसूद, मुहम्मद, मन्दूद, बहराम इत्यादि सभी दुर्बल राजा थे। एक या दो राजाओं को छोड़कर बाकी सब में महमूद के गुणों का अभाव था। वास्तव में वह भारी दौलत, जो महमूद भारत से लाया था, उसने महमूद के लोगों को विलासी बना दिया। वे अपना सारा समय आलस्य और कामुकता में व्यतीत करते। वे व्यभिचारी और शराबी थे और अपने राजकीय कर्तव्यों को भूल गए। ये उनकी कमजोरी और कर्तव्यों के प्रति लापरवाही थी जिसके कारण गजनवी साम्राज्य को अपने पतन के दिन देखने पड़े।
(v) सैल्जूक तुर्कों की शक्ति का बढ़ना (Growing Power of the Suljuks) :
गजनवी साम्राज्य को उलटा फेंकने में सैल्जूक तुर्कों ने कोई कम भाग नहीं लिया। उन्होंने ही तो गजनवी शासकों को हराया और भारत की ओर मार भगाया और उस देश में अपना प्रभुत्व आ जमाया।
(iv) गौर वंश का उदय (Rise of the Ghors) :
परन्तु जिस बात ने लड़खड़ाते गजनवी साम्राज्य को सचमुच जा उलटा, वह थी सुआजुद्दीन मुहम्मद बिन साम के नेतृत्व में गौर शक्ति का उदय । इसी व्यक्ति ने तो अन्तिम गजनवी राजा खुसरो मलिक को हराकर मार डाला और गजनी तथा भारत के प्रदेशों में अपना ही शासन स्थापित किया।
मुहम्मद गौरी के आक्रमण के समय भारत की राजनैतिक दशा
सुल्तान महमूद के आक्रमण यद्यपि बड़े शानदार तथा सफल थे परन्तु वे पंजाब की विजय के अतिरिक्त और कोई पक्का परिणाम नहीं निकाल सके। अतः मुहम्मद गौरी के आक्रमण के समय भारत की राजनैतिक दशा उस दशा से अच्छी नहीं थी जिस दशा में महमूद ने अपने आक्रमणों के समय भारत को देखा। सारा देश बंटा और बिखरा हुआ था। ऐसे बहुत से राज्य थे जिनके बीच परस्पर ईर्ष्या-द्वेष, युद्ध तथा लड़ाई-झगड़े होते रहते थे। उन पर नियंत्रण रखने वाली कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं थी और इसी बात ने बिगड़ी को और बिगाड़ दिया। पंजाब, सिन्ध और मुल्तान के मुस्लिम राज्यों के अतिरिक्त भारत के दूसरे भागों में राजपूत राज्य भी थे।
(क) मुस्लिम राज्य (Muslim States)
(i) पंजाब :
जब से महमूद ने इसे हथियाया था तभी से पंजाब गजनवी राज्य का एक अंग बना चला आ रहा था। यह उत्तर-पश्चिम में पेशावर तक और उत्तर-पूर्व में जम्मू तक फैला हुआ था। इसकी दक्षिणी सीमा प्रायः बदलती रहती। हाँसी और भटिण्डा जो कभी पंजाब के अंग थे, देहली के चौहानों ने जीतकर अपने अधिकार में ले लिए थे। गौरी के आक्रमण के समय खुसरो मलिक पंजाब का शासक था। वह एक दुर्बल और विलासी राजा था और उसके अधीन ही यह गजनवी राज्य क्षेत्र और शक्ति में होकर रह गया।
(ii) मुलतान और सिन्ध
मुलतान और सिन्ध जिन्हें महमूद ने जीत लिया था वे वे मुहम्मद गौरी के समय तक स्वतंत्र हो चुके थे। मुलतान करमिथियन वंश के अधीन था और सिन्ध एक स्थानीय कबीले सुम्रो के अधीन ।
(ख) राजपूत राज्य (Rajput Kingdoms)
(i) देहली और अजमेर का चौहान राज्य
अत्यन्त ही शक्तिशाली और महत्त्वपूर्ण राज्यों में से एक राज्य था देहली और अजमेर का चौहान राज्य । यह पृथ्वीराज चौहान के अधीन था जो लोगों में राय पिथौरा के नाम से प्रसिद्ध था। वह एक लड़ाका एवं शूरवीर था और उसने शूरवीरता के कामों में बड़ी ख्याति प्राप्त कर रखी थी। वह पड़ोसी राज्यों के लिए आतंक बन गया था और उसका शासन देहली, अजमेर, आधुनिक रुहेलखण्ड, कालिंजर, कालपी, महोबा इत्यादि नगरों पर फैला हुआ था। उसने कई बार पंजाब के गजनवी शासक पर आक्रमण किया और भटिण्डा पर अधिकार कर चुका था। परन्तु दुर्भाग्यवश उसके सम्बन्ध पड़ोसी राज्य विशेषकर कन्नौज से अच्छे नहीं थे।
(ii) कन्नौज के गहदवार अथवा राठौर :
कन्नौज का राज्य चिरकाल से भारत का एक महान राज्य चला आ रहा था। मुहम्मद गौरी के आक्रमणों के समय गहदवार अथवा राठौर लोग कन्नौज पर शासन करते थे। इस राज्य में काशी, बनारस, इलाहाबाद, कन्नौज और आधुनिक अवध शामिल थे, जयचन्द्र इसका शासक था। उसकी देहली और अजमेर के पृथ्वीराज चौहान से प्रायः लड़ाई होती रहती थी। पृथ्वीराज जयचन्द की बेटी संयुक्ता को ले उड़ा था। राठौरों और चौहानों की शत्रुता तो एक कहावत बन गई थी।
(iii) गुजरात और अनिहलवाड़ का चालुक्य राज्य :
भारत के पश्चिमी भागों में सबसे प्रसिद्ध राज्य चालुक्य राज्य था जो चौहान राज्य से प्रायः टकराता रहता कभी यह एक बड़ा शक्तिशाली राज्य था परन्तु अब घट कर काफी छोटा रह गया था। मालवा व चित्तौड़ आदि इससे अलग हो गए थे। चालुक्यों के पास केवल गुजरात और कठियावाड़ के प्रदेश रह गए थे। मुहम्मद गौरी के आक्रमण के समय भीमदेव इसका एक शक्तिशाली राजा था। जब मुहम्मद गौरी ने उसके राज्य पर आक्रमण किया तो उसने उसे करारी हार दी ।
(iv) बुन्देलखण्ड का चंदेला राज्य :
बुन्देलखण्ड कभी कन्नौज का एक भाग था परन्तु अब चन्देलों के अधीन एक स्वतंत्र राज्य बन गया था। बारहवीं शताब्दी के अन्तिम चौथाई में परमन्दीदेव इसका शासक था । पृथ्वीराज चौहान ने इसे हरा कर अपना कुछ प्रदेश हवाले कर देने पर बाध्य कर दिया था। चन्देल राज्य में मालवा, कालिंजर, अजयगढ़ और झाँसी शामिल थे।
(D) बिहार का पाल राज्य :
चिरकाल से बिहार और बंगाल पर पाल वंश का राज्य रहा था। परन्तु कुमारपाल (1126-1130 ई.) और मदनपाल (1130-1150 ई.) जैसे दुर्बल शासकों के कारण यह राज्य घटकर बहुत छोटा रह गया था। सारा बंगाल और बिहार के बहुत से भाग स्वतंत्र हो गए थे। यहाँ तक कि पाल वंश का शासन बिहार के कुछ ही भागों तक सीमित होकर रह गया था।
(vi) बंगाल का सेन राज्य :
पालवंशी शासकों की कमजोरी के कारण दक्षिण से सेन वंश ने बंगाल में अपना अलग शासन स्थापित कर लिया। विजयसेन इस वंश का एक बहुत ही शक्तिशाली शासक था जो कालिंजर, कलिंग और दक्षिणी बंगाल के शासकों से प्रायः लड़ता रहता। मुहम्मद गौरी के आक्रमण के समय लक्ष्मणसेन यहाँ का शासक था।
इस प्रकार मुहम्मद गौरी के आक्रमण के समय भारत बंटा हुआ और फूट का शिकार था। यहाँ कई राजपूत राजा थे जो एक-दूसरे के शत्रु थे और एक-दूसरे से बहुत ईर्ष्या करते थे। वे परस्पर लड़ते रहते और पंजाब, सिन्ध तथा मुलतान के मुस्लिम प्रदेशों की ओर कोई ध्यान नहीं देते। ऐसी अवस्था में भारत को जीत लेना और यहाँ एक मुस्लिम साम्राज्य खड़ा कर लेना मुहम्मद गौरी को बहुत सुगम दिखाई दिया।