महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत के राज्य
गजनवी का उत्थान एवं पतन एक परिचय
अरब लोग पहले
मुसलमान थे जिन्होंने भारत पर चढ़ाई की परन्तु वे केवल सिन्ध और मुलतान को ही जीत
सके। जो काम अरबों ने आरम्भ किया उसे पूर्ण करने का भार तुर्कों के कन्धे पर पड़ा।
तुर्क बड़े बहादुर, शक्तिशाली, तथा जोशीले थे और
वे अरबों से अधिक धर्म कट्टर थे। इस नाते वे सारे भारत पर चढ़ाई करने और इसे जीत
लेने के खूब योग्य थे। अलप्तगीन और सुबुक्तगीन जो गजनी के शासक थे वे पहले तुर्क
थे जिन्होंने भारत पर चढ़ाई की। परन्तु यह महमूद ही था जिसने लगभग सारे भारत को
रौंद डाला। उसने हमारे देश पर कोई सत्तरह बार चढ़ाई की। यद्यपि उसके आक्रमण बड़े
जोरदार सफल तथा चमत्कारपूर्ण थे, तो भी वह सारे भारत में अपना शासन स्थापित न कर सका। उसके
आक्रमणों का एक ही पक्का प्रभाव पड़ा कि पंजाब गजनवियों के अधीन हो गया।
तर्कों की भारत पर चढ़ाई
दसवीं शताब्दी के
मध्य में जाकर ही तुर्कों ने हमारे देश में चढ़ाई आरम्भ की। पहले तुर्क जिन्होंने
भारत के कुछ भागों को जीतने का प्रयत्न किया वे अलप्तगीन और सुबुक्तगीन थे।
अलप्तगीन (Alaptagin) (932-63):
अलप्तगीन जन्मजात
एक दास था और ईरान के समानीद राजा का आसामी था। उसने अपने स्वामी को इतना प्रभावित
किया कि उसे 956 ईसवी में
खुरासान का गवर्नर नियुक्त कर दिया गया। 1962 ईसवी में उसने अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया और
खुरासान तथा गजनी में अपना निजी शासन स्थापित कर लिया। उसने हिन्दूशाही राज्य के
इलाके पर भी चढ़ाई की और उसके कुछ भागों पर अधिकार कर लिया। 963 ईसवी में उसकी
मृत्यु हो गई और उसकी जगह अब्दुल इशाग, विलक्तगीन और पिरतगीन जैसे सरदारों ने ले ली। पिरतगीन ने भी
भारत की भूमि पर चढ़ाई की परन्तु उसे अधिक सफलता नहीं मिली ।
सुबुक्तगीन ( Subuktagin) (977-97)
पिरतगीन के बाद
गजनी का राज्य सुबुक्तगीन के हाथ आया। पहले-पहल वह अलप्तगीन का दास था और इस नाते
उसने अपने स्वामी पर गहरा प्रभाव डाला जिससे प्रसन्न होकर स्वामी ने उसे हम्मीरउल
ऊमरा की पदवी प्रदान की। ज्योंही वह राजा बना उसने अपने राज्य को फैलाने की सोची।
वह एक महान योद्धा तथा सेनापति था और इस नाते उसने अफगान लोगों को एक ठोस दल के
रूप में संगठित किया और शीघ्र ही लम्धारी तथा सीस्तान पर अधिकार कर लिया।
पहला आक्रमण (First Invasion ) :
मुसलमानों में
ख्याति प्राप्त करने और भारी धन सम्पत्ति हथियाने की खातिर सुबुक्तगीन ने अब भारत
की जो कि मूर्तिपूजकों तथा काफिरों का देश था धनी भूमि की ओर मुँह किया। उस समय
जयपाल हिन्दुशाही राज्य का राजा था। यह राज्य सरहिन्द से लम्धान तक और काश्मीर से
मुलतान तक फैला हुआ था। जब जयपाल को यह पता लगा कि तुर्कों ने लम्धान पर अधिकार कर
लिया है और सुबुक्तगीन तेजी से आगे बढ़ रहा है तो वह चौंक पड़ा। उसने सेना इकट्ठी
की और सुबुक्तगीन के विरुद्ध आ डटा । लम्धान पर हिन्दुओं और तुर्कों में घमासान
युद्ध हुआ जिसमें हिन्दुओं की हार हुई। राजा जयपाल ने सन्धि की प्रार्थना की।
सन्धि की शर्तों के अनुसार जयपाल ने यह वचन दिया कि वह दस लाख दिरहम 50 हाथी, भेंट में देगा।
कुछ नगर और कुछ किले
दूसरा आक्रमण (Second Invasion) :
जब जयपाल लौट कर
लाहौर पहुँचा तो उसने सन्धि की अपमानजनक शर्तों को मानने से इंकार कर दिया। उसने
यहाँ तक कि सुबुक्तगीन के दो अधिकारियों को जो अपने स्वामी की ओर से धन लेने आये
थे कैद कर लिया। इस बात पर एकदम क्रुद्ध होकर सुबुक्तगीन भारत की ओर चल पड़ा ताकि
जयपाल को सन्धि तोड़ने के अपराध के लिए दण्ड दे सके। जयपाल ने भी युद्ध की तैयारी
कर ली उसने अजमेर, दिल्ली, कालिंजर और
कन्नौज के राजाओं से सहायता माँगी। लगभग एक लाख सेना लेकर वह शत्रु के विरुद्ध जा
डटा । फिर लम्धान पर ही लड़ाई हुई। जयपाल और उसके साथियों की बुरी तरह हार हुई।
सुबुक्तगीन ने लम्धान और पेशावर पर अधिकार कर लिया, भारी धन राशि भेंट में मिली और खूब लूट मचाई।
उसने अपने तुर्क को पेशावर का राज्यपाल नियुक्त कर दिया। 997 ईसवी में
सुबुक्तगीन की मृत्यु हो गई और वह महमूद के लिए एक बड़ा राज्य छोड़ दिया।
सुबुक्तगीन ने सारे भारत पर चढ़ाई नहीं की तो सारे भारत को जीतने का प्रश्न ही नहीं उठता। फिर भी उसी ने यह महान काम आरंभ किया और भारत में तुर्क राज्य की स्थापना का मार्ग तैयार किया। डा. ईश्वरी प्रसाद का कहना है कि “ भारत जीता नहीं गया परन्तु मुसलमानों ने यह मार्ग खोज डाला जिस पर चलकर वे भारत के उपजाऊ मैदानों तक पहुँच गये।"
महमूद गजनवी के आक्रमण के समय भारत की राजनैतिक दशा
महमूद गजनवी के
आक्रमण के समय भारत कई राज्यों तथा राज्य प्रदेशों में बँटा हुआ था जो न किसी एकता
नियम से बंधे हुए थे और न ही कोई केन्द्रीय अथवा विशिष्ट सत्ता उन राज्यों पर जो स्वतंत्र
हो चुके थे, कोई अच्छी रोक
लगाती। तो उस समय अर्थात् ग्यारहवीं शताब्दी के आरंभ में भारत की दशा लगभग वैसी ही
थी जैसी अरब आक्रमण के समय । अन्तर केवल इतना ही था कि अब देशीय राज्यों के
अतिरिक्त मुसलमान और सिन्ध के दो मुस्लिम राज्य भी थे। उत्तरीय भारत के
महत्त्वपूर्ण राज्य में यह राज्य गिने जा सकते हैं-हिन्दूशाही राज्य, कश्मीर, कन्नौज, बंगाल, गुजरात और मालवा।
दक्षिण में कल्याणी का चालुक्य राज्य और तंजौर का चोल राज्य प्रधान गिने जाते थे।
महमूद गजनवी के आक्रमण के समय उत्तरीय भारत के राज्य
(i) हिन्दूशाही राज्य (Hindushahi Kingdoms ) :
भारत के
उत्तर-पश्चिम में स्थित पहला महान राज्य हिन्दूशाही राज्य था जो सरहिन्द से लम्धान
और कश्मीर से मुलतान तक फैला हुआ था। किसी समय काबुल भी इस राज्य का भाग था किन्तु
300 वर्ष तक
विदेशियों के कब्जे में रहने के कारण इसका क्षेत्र बहुत संकुचित हो गया। इस राज्य
की राजधानी बहिन्द थी। जब महमूद गजनवी ने भारत पर चढ़ाई की उस समय जयपाल इस राज्य
का राजा था। वह गजनी के सुबुक्तगीन से पहले ही दो बार हार खा चुका था और वह पहला
भारतीय था जो महमूद के हमले का शिकर हुआ।
(ii) मुलतान और सिन्ध के अरब राज्य (Multan and Sindh the Arab Kingdoms ) :
पिछली तीन शताब्दियों से सिन्ध और मुलतान पर अरबों का शासन रहा था। इसी काम में कई वंशगत परिवर्तन हो चुके थे। ग्यारहवीं शताब्दी के आरंभ में जब महमूद ने भारत पर चढ़ाई की तब कमिथियाँ वंश का फतह दाऊद मुलतान का स्वतंत्र शासक था। सिन्ध भी व्यावहारिक रूप से स्वतंत्र था और इस पर अरबों का शासन था।
(iii) भाटिया राज्य (Bhatia Kingdom)
मुलतान के दक्षिण-पश्चिम में भाटिया राज्य स्थित था। इस पर एक बहादुर राजा विजयराय शासन करता था।
(iv) कश्मीर (Kashmir ) :
कश्मीर पर उत्पल
वंश का राज्य था और इस वंश के राजा कन्नौज और हिन्दूशाही राज्य से प्राय:
लड़ते-झगड़ते रहते थे। कश्मीर का सबसे प्रसिद्ध राजा शंकरवर्मन हुआ है जो एक महान
योद्धा तथा एक बहुत ही सफल शासक था। उसकी मृत्यु पर कश्मीर में बड़ी गड़बड़, अव्यवस्था तथा
उपद्रव मच गए। परिणाम यह हुआ कि दीदा नाम की एक महिला शासक बन बैठी। जब महमूद ने
भारत पर चढ़ाई आरंभ की तो कश्मीर में वही दीदा राज्य कर रही थी।
(v) कन्नौज (Kannauj) :
हर्षवर्धन के समय
से ही कन्नौज उत्तरी भारत का महत्त्वपूर्ण राज्य था। इस पर प्रतिहार वंश शासन करता
था। अपने राजाओं की कमजोरी के कारण कन्नौज क्षेत्र और शक्ति में काफी घट गया था।
बुन्देलखण्ड मालवा और गुजरात ने जो कभी कन्नौज का प्रभुत्व मान चुके थे अपने आपको
स्वतंत्र घोषित कर दिया ।। महमूद के आक्रमणों के समय इस राज्य का शासक राज्यपाल
था। वह एक कमजोर तथा डाँवाडोल शासक था.. जिसने 1018 ई. में महमूद के आगे फिर सिर झुका दिया।
(vi) कालिंजर (Kalinjar) :
उत्तरीय भारत का
एक और राज्य था कालिंजर जिस पर चंदेल वंश राज्य करता था। जब महमूद ने भारत पर
आक्रमण किया तो गंडा कालिंजर का शक्तिशाली शासक था। वह पड़ोसी राज्यों से प्रायः
लड़ता रहता था। उसी ने तो कन्नौज के राज्यपाल को मार डाला था इस कारण कि उसने
महमूद के आगे सिर झुकाया । वह महमूद के विरुद्ध बड़ी वीरता से लड़ा परन्तु हार
खाई।
(vii) बंगाल (Bengal) :
बंगाल पाल वंश के
शासनाधीन था। ग्यारहवीं शताब्दी के आरंभ में महीपाल प्रथम बंगाल का राजा था जब
महमूद गजनवी उत्तर-पश्चिमी भारत को रौंद रहा था, बंगाल पर दक्षिण का शक्तिशाली राजेन्द्र चोल
लड़ाई कर रहा था। पूर्व में बहुत दूर होने के कारण महमूद बंगाल तक नहीं पहुँचा और
चढ़ाई नहीं की । (viii) गुजरात, बुन्देलखण्ड
मालवा इत्यादि (Gujrat,
Bundelkhand, Malwa, etc.) : यह राज्य जो कभी कन्नौज के प्रभुत्व के नीचे थे, स्वतंत्र हो चुके
थे। चालुक्यों ने गुजरात में, चन्देलों ने बुन्देलखण्ड में और परमारों ने मालवा में अपना
शासन स्थापित कर लिया था।
(ix) अन्य छोटे-छोटे राज्य (Other small kingdoms ) :
ऊपर गिनाये गये राज्यों के अतिरिक्त भारत के भिन्न-भिन्न
भागों में अनेक छोटे-छोटे राज्य थे जैसे- थानेश्वर, कांगड़ा, ग्वालियर इत्यादि जो महमूद के रास्तों के शिकर बन गए।
महमूद गजनवी के आक्रमण के समय दक्षिणी भारत के राज्य
दक्षिणी भारत में
बहुत पहले से ही असंतोष और विद्रोह की आग सुलग रही थी। वहाँ के शासक परिवारों में
लगातार युद्ध की दशा बनी हुई थी और बहुत से राजवंशों ने उदय और पतन के दिन देखे
थे। 11वीं शताब्दी के
आरंभ में दक्षिण में दो शक्तिशाली राज्य थे-
(i) कल्याणी का चालुक्य राज्य (Chalukya Kingdom of Kalyani):
चालुक्य राज्य, जिसकी नींव तैलू द्वितीय ने रखी थी और जिसकी राजधानी कल्याणी थी, दक्षिण का एक शक्तिशाली राज्य था । इस राज्य के शासक चोलों के विरुद्ध प्राय : लड़ते-झगड़ते रहते थे।
(ii) तंजौर का चोल राज्य (Chola Kingdom of Tanjor ) :
चोल राज्य एक बहुत ही पुराना राज्य था जो राजाराज के राज्यशाही के नीचे 10वीं शताब्दी के अन्तिम चौथाई में प्रमुख हुआ । उसने बैंगी के चालुक्यों को मदुरा के पाण्डयों को और मैसूर के गंगों को हराया। उसने पूर्व में कलिंग को और दक्षिण में लंका को जीता। उसने एक बहुत ही मजबूत समुद्री बेड़ा बनाया। राजाराज के बाद राजेन्द्र चोल तंजौर राज्य का शासक बना और उसने 1016 से 1045 ई. तक राज्य किया। उसने केन्द्रीय भारत और बंगाल के शासकों के विरुद्ध लड़ाइयाँ लड़ीं। उसने मलावा, अण्डमान और निकोबार के द्वीपों को भी जीत लिया। उसने एक बहुत अच्छा शासन प्रबंध रचाया। एक वाक्य में कहा जाए तो कह सकते हैं कि राजेन्द्र चोल दक्षिण का सबसे महान तथा प्रभुत्वशाली शासक था।
परिणाम :
महमूद के आक्रमण के समय सारा भारत कई राज्यों में बंटा हुआ था जो सदैव आपस में लड़ते-झगड़ते थे। सी.वी. वैद्य का कहना था कि उस समय के भारत की दशा 18वीं शताब्दी के अन्तःकाल के जर्मनी की दशा से मिलती थी जब नेपोलियन ने उस देश पर चढ़ाई की थी।