महमूद गजनवी का चरित्र तथा व्यक्तित्व (Character and Personality of Mahmud Ghaznavi)
गजनवी का चरित्र तथा व्यक्तित्व
महमूद के चरित्र के बारे में एक बड़ा विवाद खड़ा हुआ है और इसे बड़ा जटिल मामला समझा जाता है। कुछ लोग उसे एक तुन्द, भयानक तथा जुनूनी मुस्लिम राजा मानते हैं ऐसा राजा, जिसके हृदय में दया लेश मात्र को भी नहीं थी और जिसने तलवार के प्रयोग से भी भारत में इस्लाम की स्थापना का प्रयास किया। दूसरे लोग उसे एक आदर्श मुस्लिम शासन मानते हैं जिसके पद चिह्नों पर हर राजा को चलना चाहिए। वास्तव में महमूद न ही कोई ऋषि था और न ही कोई असभ्य मनुष्य । उसके अन्दर गुण और अवगुण दोनों ही थे। डा. ईश्वरी प्रसाद के शब्दों में महमूद एक इतिहास के विद्यार्थी के लिए "एक महान नेता, एक न्यायशील और सच्चा शासक, एक अनुभवी तथा गुणी सैनिक, एक न्यायदाता और विद्वानों का संरक्षक था और वह इतिहास के महान व्यक्तियों में गिने जाने का अधिकारी है। "
महमूद गजनवी मनुष्य के रूप में
(i) शारीरिक आकृति (Physical Appearance)
जहाँ तक उसकी शारीरिक आकृति का संबंध है महमूद मझोले कद का ; चौड़े कंधों वाला और अच्छे स्वास्थ्य वाला व्यक्ति था । उसके चेहरे पर चेचक के दाग थे इसलिए दूसरों पर कोई अच्छा प्रभाव नहीं डालता था। एक बार उसने स्वयं अपने वजीर को कहा, “राजा के दर्शन से तो किसी दर्शक की आँखें चमक उठनी चाहिए। परन्तु मेरे प्रति प्रकृति इतनी निर्दयी रही है कि मेरी शक्ल से सचमुच दूसरों को ग्लानि होती है। "
(ii) वीर और साहसी (Brave and Courageous) :
महमूद का शरीर बड़ा बलवान था और वह बड़ा वीर तथा साहसी था। वह अपने सुखों का ध्यान नहीं रखता था और उसने बड़े साहसी ढंग से तीस वर्ष तक अपने आपको अपने आंदोलनों में जुटाए रखा। राजपूताना के रेगिस्तानों में से होकर सोमनाथ के मंदिर तक उसकी प्रगति यह दर्शाती है कि वह बड़ा साहसी हृदय, ओजस्वी मन और निडर प्रकृति का व्यक्ति था ।
(iii) निर्दयी और कठोर नहीं (Not Cruel and Callous) :
महमूद को बड़ा निर्दयी और कठोर समझा जाता है परन्तु वास्तव में वह ऐसा नहीं था। उसे निर्दयता में कोई आनंद नहीं मिलता था और निःसंकोच हत्या में बहुत कम प्रीति था। भारत में यदि उसने कुछ बर्बरता के कार्य किये तो वह अपनी धन-लिप्सा को शान्त करने के लिए किये, वरन् जैसा कि श्रीराम शर्मा का कहना है कि “महमूद बर्बर व्यक्ति नहीं था, चाहे उसने भारतीय आक्रमणों में बहुत से बर्बरता के कार्य किये और वह बर्बरता का अपराधी बना। "
(iv) अत्यन्त ही धार्मिक (Deeply Religious) :
महमूद धर्म का बड़ा कट्टर था और इस्लाम की रीतियों में वह अडिग निष्ठा रखता था। कोई भी लड़ाई आरम्भ करने से पहले वह सदैव प्रार्थना करता था। एस.एम. जाफर का कहना है कि इस्लामी रीतियों को निभाने में वह इतना दृढ़ और नियम पालक था कि शस्त्रों की झंकार में भी वह घुटनों के बल झुक कर सर्वशक्तिमान भगवान को अपनी श्रद्धा चढ़ाता और अपनी सेना की सफलता के लिए प्रार्थना करता। वह जकात देने और गरीबों में दान-पुण्य करने का बड़ा ध्यान रखता। प्रो. हबीब, " महमूद को सच्चा मुसलमान नहीं माना जा सकता क्योंकि उसकी लूटमार और कला पर प्रहार के कार्य इस्लाम में स्वीकार नहीं किये जाते।"
(v) कट्टरपंथी नहीं (Not a Fanatic)
महमूद कोई कट्टरपंथी नहीं था। वह हिन्दुओं से निर्दयता का व्यवहार नहीं करता था। ऐलफिंस्टन की राय है कि उसने हिन्दुओं को धार्मिक स्वतंत्रता दे रखी थी और तिलक जैसे बहुत से हिन्दू उसके राज दरबार में फूलते-फलते थे। डा. नाजिम का कहना है कि यदि उसने भारत में हिन्दुओं को परेशान किया तो उसने ईरान में मुसलमानों को भी नहीं छोड़ा।
(vi) एक लालची व्यक्ति ( A Greedy Person):
गिब्बन के मतानुसार “महमूद के अन्दर एक ही त्रुटि थी कि वह लालची था और उसी ने उसके शानदार चरित्रों को कलंकित कर दिया।" भारत की दौलत ने ही उसे हमारे देश पर बार-बार आक्रमण के लिए आकर्षित किया और दौलत को ही पाने की खातिर उसने भोले-भाले भारतवासियों पर अत्याचार किये। हर बार वह भारत से अपने देश गजनी को लूटमार का बहुत-सा माल ले गया। हीबल का कहना है कि महमूद इतना लालची था कि वह बगदाद को इतनी ही निर्दयता से रौंद डालता जितनी निर्दयता से उसने सोमनाथ को लूटा था यदि यह काम उसे लाभदायक दिखाई देता । निजामुद्दीन और फरिश्ता यह फरमाते हैं कि जब महमूद मरने लगा तो उसने न केवल यह आज्ञा दी कि मेरी आँखों के सामने मेरी दौलत लाकर रख दो बल्कि उसे यह भी दुःख हुआ कि मैं अपनी दौलत से बिछड़ रहा हूं और उसने बड़ी आहें भी भरी परन्तु किसी को एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी।
महमूद गजनवी सैनिक तथा सैनानी के रूप में (As a Soldier and General)
महमूद की सबसे बड़ी प्रतिभा उसके सेनानीपन तथा दिल और दिमाग के सैनिक गुणों में ही मिलेगी जिनकी हर कोई प्रशंसा करेगा । लेनपूल के शब्दों में "महमूद एक महान सैनिक था जिसके अन्दर असीम साहस और अनथक मानसिक तथा शारीरिक शक्ति थी।" महमूद ने अपने आपको कई वर्ष तक दूर देशों पर चढ़ाई करने में जुटाये रखा। उसकी गर्मियां प्रायः केन्द्रीय एशिया की चढ़ाइयों में गुजरती और उसकी सर्दियां बहुत बार भारत में गुजरतीं। न ही नोट्स महमूद के अंदर एक ही त्रुटी थी कि वह लालची था और उसी ने उसके शानदार चरित्र को कलंकित कर दिया।
गर्मी, न ही सर्दी और न कोई और प्राकृतिक रोक उसके मार्ग में बाधा डाल सकी। उसकी तीव्र प्रकृति ने शत्रुओं को चकित कर रखा था। वह मुलतान के द्वार पर जा पहुंचा जबकि इसका शासक अभी सोया पड़ा था और उसने कन्नौज पर अधिकार कर लिया इससे पहले कि उसके शासक को महमूद के आने का अच्छी तरह पता भी लगे । भारत पर अपने सत्रह आक्रमणों के बीच ही नहीं सारे जीवन भर में एक भी ऐसा अवसर नहीं आया जबकि उसकी हार हुई थी। उसकी शानदार विजय सिकन्दर महान के साहसिक कार्यों से समानता रखती है। उसका कार्यक्षेत्र नेपोलियन की तरह विशाल अनेक रूपी तथा महान था । महमूद बहुत सावधान और निर्भीक सेनानी था। मि. जाफिर के मतानुसार उसके अन्दर युद्ध लड़ने की प्रतिभा स्वभाविक थी। वह एक वैज्ञानिक सेनापति था जो योजना बनाने में निपुण और कार्यान्वित करने में पक्का था। वह पूरी तैयारी करके और योजना बना कर चलता और तब कोई चढ़ाई करता। यही कारण है कि जो कोई काम उसने हाथ में लिया वह उसमें असफल नहीं हुआ।
कहते हैं कि जहाँ तक युद्ध नीति विधि तथा सामग्री का संबंध है उसने कोई नया आविष्कार नहीं किया। उसने तो सासानियों की पुरानी शाही सेनाओं की युद्ध नीति को ही अपना लिया। फिर भी उसकी महानता इस बात में है कि उसने पुरानी प्रणाली में एक नया जीवन डाल दिया। उसकी सेनाओं में भांति भांति के तत्व मिले हुए थे जैसे अरब, अफगान, तुर्क और हिन्दू जिन्हें कठोर नियन्त्रण में रखा जाता था और जोड़-जाड़ कर एक शक्तिशाली तथा अजेय टुकड़ी में बांधा जाता था ।
महमूद गजनवी एक शासक के रूप में (As a Ruler)
(i) महमूद एक न्यायशील तथा सच्चा शसक था। हम यह तो नहीं जानते कि उसकी प्रशासन प्रणाली ठीक किस प्रकार की थी फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं की सरकार सुचारु ढंग से संगठित तथा संचालित थी । उसका साम्राज्य प्रान्तों में बंटा हुआ था। हर प्रान्त एक राज्यपाल के अधीन था। वह उन सब पर कड़ी देख-रेख रखता था ताकि वे लोगों को सताने न पाएं। उत्बी हमें बताता है कि का राज्यपाल नासिर अपने अत्युत्तम प्रशासन के लिए कितना प्रसिद्ध था और वह इतना कृपालु था कि उसने कभी किसी को न कोई अपशब्द बोला. का अपमान किया और न किसी पर कोई हिंसा की । प्रत्येक प्रान्त में ऐसे रजिस्टर रखे जाते जिनमें सरकार की आय-व्यय का ब्यौरा होता था। इस लेख की जांच पड़ताल माल मंत्री करता था । न किसी (ii) उसकी महान न्यायप्रियता (His high sense of Justice) : परन्तु महमूद अपनी न्यायप्रियता के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। एक आदर्श मुस्लिम सम्राट की भांति उसकी यह धारणा थी कि राजा अवश्य न्याय प्रेमी तथा निष्पक्ष होना चाहिये। उसकी न्याय धारणा सबसे अधिक उस व्यवहार से प्रदर्शित होती है जो उसने अपने भतीजे से किया केवल इसलिए कि उसके भतीजे ने एक गरीब की पत्नी से नाजायज संबंध जोड़ रखा था। महमूद तो अपने बेटों को भी नहीं बख्शता था और न ही अपने अधिकारियों को छोड़ता था जब वे कानून को अपने हाथ में लेने का प्रयास करते। कानून भंग करने के अपराध में जो दण्ड महमूद ने अपने एक ऊंचे सैनिक अधिकारी नेमतअली को दिया वह इस बात का एक और उदाहरण है। उसकी महान न्यायशीलता के कारण उत्ची ने " उसे निर्धनों का शानदार स्वामी माना है। ऐसा स्वामी जिसने एक विधवा और एक धनी व्यक्ति को एक समान समझा जिसके परिणामस्वरूप अहंकार और अत्याचार का द्वार बन्द हो गया।"
(iii) विद्वानों का महान संरक्षक (A great patron of letters) :
शासक के रूप में महमूद के चरित्र में सबसे बड़ी बात यही थी कि वह कला और ज्ञान का बड़ा संरक्षक था। उसने अपने दरबार में दूर-दूर देशों के बड़े-बड़े कलाकार और विद्वान इकट्ठे कर रखे थे। जैसा कि लेनपूल का कहना है "उसने औकस्सस के नगरों से और कैस्पियन के किनारों से, उधर ईरान से और खुरासान से पूर्वीय विद्वता के दीपक अपनी सेवा जुटा रखे थे।" महमूद स्वयं भी कवियों की रचनाएं सुनने का बहुत शौकीन था। डा. ईश्वरी प्रसाद के मतानुसार “वह घोर लड़ाई के मध्य में भी किसी गीत को सुनने अथवा मुग्ध कर देने वाले सुर का आनन्द लेने के लिए थोड़ा-सा समय निकाल ही लेता था।" अपनी अबाध दानशीलता द्वारा उसने अपने चारों ओर बड़े-बड़े कवियों और विद्वानों की मण्डली आकर्षित कर रखी थी जिनमें निम्न प्रमुख थे,
(i) एलबरूनी (Alberuni) :
उसके दरबार के बड़े-बड़े प्रसिद्ध विद्वानों में एक था एलबरूनी जो बहुत ही प्रतिभाशाली व्यक्ति था। वह हरफनमौला था। वह एक ही दम गणित, दर्शनशास्त्र, खगोल विद्या तथा संस्कृति का विद्वान था। वह भारत भी आया था और उसने एक पुस्तक 'तहकीक-मलिलहिन्द' लिखी। इस पुस्तक में उसने उस समय के भारत की राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा का वर्णन किया है।
(ii) फिरदौसी (Firdausi):
फिरदौसी जिसे पूर्व का अमर होमर समझा जाता है महमूद के दरबार में प्रसिद्ध कवि था। उसने 'शहनशाह' नामक एक महाकाव्य लिखा जिसे फारसी साहित्य की एक सर्वोत्तम रचना माना जाता है। यह महाकाव्य महमूद के संरक्षण में लिखा गया था परन्तु सुलतान ने अपने वचन का पालन नहीं किया। उसने 60,000 सोने के मिश्कल देने का वचन दिया था परन्तु दिये केवल 60,000 चांदी के दिरहम |
(iii) उत्बी और अन्य विद्वान (Utbi and others)
महमूद के समय का एक और महान व्यक्ति अल उत्बी था जो उत्बी नाम से प्रसिद्ध था। उसने तारीख-ए- यामिनी नामक एक पुस्तक सुलतान महमूद के जीवन इतिहास पर लिखी। फराही एक मशहूर दार्शनिक था जिसे दूसरा अरस्तू भी कहते थे और बहकी जिसे पूर्व का पैज कहते थे, ये दो महमूद के दरबार के अन्य महान विद्वान थे।
(iv) कला का संरक्षक (Patron of Art) :
महमूद कलाकारों और भवन निर्माताओं का भी बड़ा आश्रयदाता था । उसने अनेक भवन बनवाए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध दिव्य दुल्हन नाम की एक बड़ी मस्जिद थी। जिसके इर्द-गिर्द विद्यार्थियों और अध्यापकों के 3,000 क्वार्टर बने हुए थे। यह इतनी सुन्दर थी कि उत्बी के शब्दों में "हर कोई जो इसे देख पाया अपने मुँह में उंगली दबाकर रह गया। " महमूद की दूसरी बड़ी यादगारें ये थीं- एक बन्दी-ए-सुलातन नामक अजायबघर और दूसरा पुस्तकालय । इस प्रकर महमूद के जमाने में गजनी कला का बड़ा केन्द्र बन गया।
शासक के रूप में महमूद का मूल्यांकन (Estimate of Mahmud as a Ruler):
परन्तु कुछ इतिहासकारों का कहना है कि मूहमद रचनात्मक बुद्धि का व्यक्ति नहीं था और न ही दूरदर्शी राजनीतिज्ञ । लेनपूल का कहना है कि हम किसी ऐसे कानून, संस्था अथवा शासन विधि के बारे में नहीं सुनते जो महमूद ने चलाई हो। अपने विज्ञान राज्य में उसने केवल बाह्य व्यवस्था तथा सुरक्षा बनाये रखने का यत्न किया। अपने राज्य को संगठित तथा दृढ़ बनाना उसकी योजना में नहीं था। डा. ईश्वरी प्रसाद इसी मत का समर्थन करता है, जब वह यह कहता है कि महमूद का साम्राज्य प्रजाओं का एक विशाल संग्रह था जिन्हें बहुचक्षु सुलतान ही वश में रख सकता था। यही कारण है कि उसकी मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।
सी.वी. वैद्य का कहना है कि यह मत गलत है। उसकी राय में महमूद का राज्य निस्संदेह एक सुसंगठित तथा सुसंचालित राज्य था। परन्तु इस कथन के पक्ष तथा विपक्ष में कोई उल्लेख नहीं मिलते। उसके साम्राज्य का पतन क्यों हुआ इसका कारण यह नहीं था कि महमूद अपने राज्य को संगठित तथा दृढ़ करने के अयोग्य था। यह तो महमूद के उन उत्तराधिकारियों की कमजोरी तथा अयोग्यता के कारण हुआ जिसके अन्दर सेनानीपन तथा राजनीतिज्ञपन के गुण नहीं थे।
महमूद गजनवी का चरित्र निष्कर्ष (Conclusion) :
संक्षेप में हम यह कहते हैं कि महमूद एक महान सेनानी और सफल शासक था। अपनी त्रुटियों के होते हुए भी वह जैसा कि सी.वी. वैद्य का कहना है, “उन महापुरुषों में से एक था जिन्हें प्रकृति कभी-कभी ही जन्म दिया करती है।" यह एक ऐसे निराले गुणों तथा अनुपम योग्यताओं वाले व्यक्तियों में से था जो अकबर तथा शिवाजी, नेपोलियन तथा पीटर महान की तरह संसार के इतिहास में नये गुणों का निर्माण करते हैं। और कौमों के भाग्य को पलट देते हैं।