8वीं शताब्दी के आरंभ में भारत की राजनैतिक दशा (Political Condition of India in the Beginning of the 8th Century)
8वीं शताब्दी के आरंभ में भारत की राजनैतिक दशा
आठवीं शताब्दी के आरंभ में भारत एक ऐसे परिवार का दुखदायी दृश्य प्रस्तुत करता था जो अपने आपमें बँटा हुआ हो। 647 ई. में अन्तिम महान हिन्दू सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के परिणामस्वरूप भारत के टुकड़े-टुकड़े हो चुके थे और प्रभुत्व प्राप्ति के लिए छोटे-छोटे राजाओं के बीच मारधाड़ छिड़ी हुई थी। लगभग 50 वर्ष तक दुष्टतम राजनैतिक गड़बड़ी छाई रही थी। परिणाम यह हुआ कि आठवीं शताब्दी के आरंभ तक यह देश अनेक स्वतंत्र राजाओं के बीच बँट गया था जिनके पास भिन्न-भिन्न दर्जे तक शक्ति तथा प्रतिष्ठा थी और जिनका मुख्य धंधा सैनिक शान तथा आक्रमणकारी युद्ध था। सारे देश में केन्द्रीय सरकार नाम की कोई चीज नहीं थी और देश अनेक स्वतंत्र राज्यों में बँटा हुआ था। इनमें से बड़े-बड़े राज्यों को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है।
(क) उत्तरी भारत के राज्य (States in Northern India)
(ख) दक्षिणी भारत के राज्य अथवा दक्षिण (States in Southern India)
उत्तरी भारत के राज्य (States in Northern India)
(i) कन्नौज का राज्य :
आठवीं शताब्दी ईस्वी के आरंभ में भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण राज्य निश्चय ही कन्नौज का राज्य था। इस पर एक प्रसिद्ध राजा यशोवर्मन शासन करता था। वर्धन साम्राज्य के पतन तथा छिन्न-भिन्न हो जाने के बाद यह यशोवर्मन ही था जिसने एक बार फिर कन्नौज को इसकी पहली शान तथा चमक-दमक पर पहुँचा दिया। वह एक शूरवीर सेनापति योद्धा था जिसने भारत के बहुत बड़े भाग को जीता और जिसके अधीन कन्नौज का राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्मदा तक जा पहुँचा और पूर्व में बंगाल से लेकर उत्तर-पश्चिम में थानेश्वर तक फैल गया। वह एक सफल शासन प्रबंधक तथा एक महान ज्ञान संरक्षक भी था; जिसके काल में प्रसिद्ध नाटककार भवभूति फूला फला। वह निश्चय ही एक बहुत बड़ा शासक था जिसको बाद में कश्मीर के ललितादित्य ने हरा कर मार डाला।
(ii) मालवा का राज्य
वर्धन साम्राज्य के टूट जाने पर जो अनेक स्वतंत्र राज्य खड़े हो गये उनमें मालवा राज्य एक था जो कम महत्त्व नहीं रखता था। उज्जैन को इसकी राजधानी बनाकर राजपूतों के प्रतिहार वंश ने मालवा पर शासन किया। प्रतिहारों का शासन मारवाड़, बड़ौच तथा आसपास के अन्य प्रदेशों तक भी फैल गया। जूनैद के नेतृत्व में अरब आक्रमणकारियों ने प्रतिहार राज्य के पश्चिमी भाग पर चढ़ाई कर दी और उस पर छा गये। परन्तु बाणभट्ट प्रथम जो शक्तिशाली प्रतिहार राजा था और जिसने 725 से 740 ईसवी तक शासन किया अरबों के विरुद्ध बहुत वीरता से लड़ा और विजित प्रदेशों को पुनः प्राप्त करने में सफल हुआ। उसके अपने तथा अपने उत्तराधिकारियों के अधीन मालवा एक बहुत ही समृद्धिशाली तथा शक्तिशाली राज्य बन गया।
(iii) कश्मीर राज्य :
सातवीं शताब्दी में करकोटा वंश के दुर्लभवर्धन के अधीन कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य बन चुका था। सिन्ध पर अरबों के आक्रमण के समय दुर्लभवर्धन का पोता चन्द्रपीड़ इस राज्य का शासक था। परन्तु इस राज्य का सबसे शक्तिशाली तथा सबसे प्रसिद्ध राजा चन्द्रपीड़ का भाई ललितादित्य था जिसने 725 से 755 ई. तक शासन किया। वह एक महान विजेता तथा सेनापति था। उसने कन्नौज के यशोवर्मन को पराजित करके मार डाला। वह हिन्दू धर्म तथा भवन कला का एक महान संरक्षक भी था जिसने मारतण्ड (आधुनिक मट्टन) के स्थान पर प्रसिद्ध सूर्य मंदिर बनवाया।
(iv) अफगानिस्तान अथवा हिन्दूशाही राज्य :
चन्द्रगुप्त मौर्य के समय से अफगानिस्तान भारत का खण्ड रहा था और नवीं शताब्दी तक ऐसा ही चलता रहा। अरब आक्रमण के समय इस तथाकथित हिन्दूशाही राज्य का शासक कौन था और इसकी सीमाएँ कहाँ तक थीं। ये बातें निश्चय से नहीं बताई जा सकतीं। परन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि यह राज्य उस समय एक महत्त्वपूर्ण स्वाधीन हिन्दू राज्य था ।
(v) सिन्ध का राज्य
भारत के दक्षिण-पश्चिम में सिन्ध का शूद्र राज्य था जो कभी तो हर्ष के साम्राज्य का एक खण्ड रहा परन्तु फिर स्वाधीन बन गया। सिन्ध के एक ब्राह्मण मंत्री चाचा ने शूद्र राज्य को ठुकराकर वहाँ अपना ही ब्राह्मण राज्य स्थापित कर दिया। चाचा के बाद उसका भाई चन्द्र सिंहासन पर बैठा। सिन्ध पर अरबों के आक्रमण के समय चाचा का पुत्र दाहिर सिन्ध पर शासन कर रहा था। उसके राज्य में केवल निरून, सेहवान ब्राह्मणवाद और सिन्ध की राजधानी अलोल शामिल थे। स्वयं एक ब्राह्मण शासक होते हुए अपनी बुद्धधर्मी प्रजा के विरुद्ध कई कानून पास कर दिये थे। लोगों को रेशमी कपड़े पहनने की मनाही थी। न ही वे हथियार उठा सकते थे और न ही सुसज्जित घोड़े की सवारी कर सकते थे। उन्हें नंगे पाँव और नंगे सिर चलना पड़ता था। इन सब बातों ने राजा को अपनी बुद्धपूजक प्रजा के अंदर अप्रिय बना दिया। लोगों ने अपने राजा के विरुद्ध मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरबों का स्वागत किया। राजा दाहिर अरबों के विरुद्ध लड़ता रहा, अन्त में पराजित हुआ और मारा गया। उसका राज्य विदेशियों के हाथ में चला गया।
(vi) बंगाल का राज्य
हर्ष की मृत्यु के बाद बंगाल जिसने कन्नौज की श्रेष्ठता को पूरी तरह नहीं माना था, एक अत्यन्त ही स्वाधीन राज्य बन गया और तब तक बना रहा जब तक कन्नौज के राजा यशोवर्मन ने इसे फिर से नहीं जीत लिया। आठवीं शताब्दी के पहले आधे में किसी समय गोपाल ने बंगाल में पाल वंश के शासन की नींव डाली और इन्हीं पालों के अधीन ही बंगाल ने आश्चर्यजनक शान्ति तथा सुख-समृद्धि प्राप्त की।
(vii) नेपाल और आसाम
हर्षवर्धन की मौत के बाद उत्तर-पूर्व में नेपाल और आसाम भी स्वतंत्र राज्य बन गये थे। परन्तु दूरवर्ती होने के कारण वे आठवीं शताब्दी के आरंभ में हमारे देश की राजनीति में बढ़-चढ़कर भाग न ले सके।
दक्षिणी भारत के राज्य (States in Southern India)
(i) पल्लवों का काँची राज्य :
दक्षिण में सबसे महान राज्य पल्लवों का राज्य था जिसकी राजधानी काँच थी। छठी शताब्दी में सिंहविष्णु पल्लवों का शक्तिशाली राजा था जिसने अपने सभी दक्षिणी पड़ोसियों को पराजित कर दिया था और चोल देश को हथिया लिया था। आठवीं शताब्दी के आरंभ में पल्लवों और चालुक्यों के बीच एक घोर युद्ध चल रहा था जिसमें आखिरकार चालुक्य लोग विजयी हुए और काँची में उन्होंने अपना शासन स्थापित कर लिया। इस प्रकार जब अरब लोग सिन्ध को जीत रहे थे तो चालुक्य लोग पल्लवों को काँची राज्य से बाहर निकालने में लगे हुए थे।
(ii) पाण्डय, चोल तथा चेर राज्य :
दूर दक्षिण में बहुत प्राचीन काल से ही तीन महान राज्य बने हुए थे- पाण्डय राज्य जिसमें आज का मदुरा तथा त्रिचनापली शामिल थे, चोल राज्य जिसमें आज का मैसूर तथा मद्रास शामिल थे, और चेर राज्य जिसमें आज का कोचीन और ट्रावनकोर सम्मिलित थे। ये राज्य प्रायः एक-दूसरे से लड़ते रहते और इनके प्रदेशों में उथल-पुथल मची रहती थी।
निष्कर्ष (Conclusion) :
सिन्ध पर अरबों की विजय के समय उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में फूट और झगड़े की दशा बनी हुई थी। बाद में आने वाले तुर्कों से भिन्न रूप में अरब लोग ऐसी अवस्था का पूरा लाभ न उठा सके और अपनी विजय को सिन्ध तथा मुलतान के पार न फैला सके।