महमूद गजनवी के भारत पर किया गए 17 आक्रमण (हमलों) की सम्पूर्ण जानकारी
महमूद गजनवी के भारत पर आक्रमण
971 ई. में जन्म लेकर महमूद ने लड़कपन से ही अपने अन्दर महान सैनिक के गुण ग्रहण कर लिए थे। 998 ई. में अपने पिता सुबुक्तगीन की मृत्यु के बाद और अपने भाई इस्माइल को हराने के बाद जिसे उत्तराधिकारी चुना गया था। महमूद गजनी का वास्तविक शासक बन बैठा। उसने खलीफा कादिर बिल्ब से अपनी प्रभुसत्ता को औपचारिक मान्यता प्राप्त करा ली। इस खलीफा ने महमूद को जमीन-उद-दौला की उपाधि प्रदान कर दी। इस शब्द का अर्थ है साम्राज्य का दाहिना हाथ और एक और उपाधि अमीन-उल-मिल्लत भी प्रदान की जिसका अर्थ है धर्मरक्षक। इस प्रकार महमूद गजनी का वास्तविक तथा वैधानिक राजा भी बन गया।
अपने आपको सिंहासन पर सुरक्षित रूप से बैठाकर और घर में अपनी स्थिति को दृढ़ बनाकर महमूद ने भारत पर चढ़ाई करने के महान काम को हाथ में लिया। कहते हैं कि खलीफा कादिर बिल्लत ने उसे भारतवर्ष पर हर वर्ष चढ़ाई करने के लिए उभारा था। अत: 1000 से 1026 ईसवी तक महमूद ने हमारे देश पर बहुत से आक्रमण किए। उसके द्वारा किये गए आक्रमणों की ठीक संख्या निश्चित करना सम्भव नहीं है, परन्तु आम तौर पर ऐसा माना जाता है कि कुल मिलाकर उसने सत्रह बार भारत पर चढ़ाई की। उसके आक्रमणों को संक्षेप में इस प्रकार दिया जा सकता है।
खलीफा कादिर बिल्व ने महमूद गजनवी को जमीन-उद-दौला की उपाधि दी थी।
महमूद गजनवी के भारत पर पहला आक्रमण
सीमावर्ती किलों पर अधिकार ( 1000 ई.) (Capture of frontier forts) : महमूद का पहला आक्रमण जो उसने 1000 ईसवी में किया, एक साधारण-सा आक्रमण था । इस आक्रमण के दौरान उसने केवल खैबर दर्रे के थोड़े से किले और नगर जीत लिये और इन पराजित प्रदेशों में अपने राज्यपाल नियुक्त करके वह गजनी को लौट गया।
महमूद गजनवी के भारत पर दूसरा आक्रमण
हिन्दूशाही राज्य के जयपाल की हार (1000-02 ई.) (Defeat of Jaipal of Hindushahi Kingdom): अगले वर्ष अर्थात् 1001 ई. में महमूद 10,000 सैनिकों को लेकर गजनी से भारत की ओर चल दिया। हिन्दूशाही राज्य के राजा जयपाल ने जो सुबुक्तगीन से पहले ही दो बार हार खा चुका था, अपनी सब सेनाएँ इकट्ठी कीं और आक्रमणकारी के विरुद्ध आगे बढ़ा। नवम्बर 1001 ई. में पेशावर पर एक घमासान युद्ध हुआ जिसमें मुसलमान विजयी हुए और हिन्दुओं की हार हुई। जयपाल अपने बेटों, पोतों और सगे-सम्बन्धियों समेत कैदी बना लिया गया। उनके भाग्य के बारे में इतिहासकार उत्तबी इस प्रकार लिखता है-
" रस्सियों से कसकर बांधे हुए वे सब सुलतान के आगे उठाकर पहुँचाये गये ठीक इस प्रकार जैसे कोई पापी हों जिनके चेहरों पर कुफर का धुआँ स्पष्ट दिखाई देता हो ..... और जो बँधे-बँधाये नरक पहुँचाये जाने वाले हों। " हीरों तथा जवाहरात से जड़े हार और लाखों दीनारों के मूल्य के अन्य आभूषण विजेताओं ने बलात् छीन लिये। खैर, जयपाल को बाद में इस वचन पर छोड़ दिया गया कि वह अढाई लाख दीनार चुकायेगा और पचास हाथी भेजेगा। जब जयपाल अपने राज्य में लौटा तो उसकी प्रजा ने उसे अपना शासक मानने से इंकार कर दिया क्योंकि हिन्दुओं में एक रिवाज फैला हुआ था कि जब कोई राजा विदेशियों के हाथ में दो बार कैद हो जाये तो वह शासन करने के अयोग्य बन जाता है। जयपाल इस अपमान को सहन न कर सका। उसने अपने बेटे आनंदपाल को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके अपने आपको जीवित जला दिया।
महमूद गजनवी के भारत पर तीसरा आक्रमण तीसरा
भाटिया राज्य के विजयराय की हार (1003 ई.) (Defeat of Bijai Rai of Bhatia Kingdom) :
सन् 1003 ई. में महमूद ने भारत पर अपनी तीसरी चढ़ाई की। इस बार उसने भाटिया राज्य पर आक्रमण किया जो मुलतान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित था। भाटिया राजा विजयराय ने डटकर मुकाबला किया परन्तु अन्त में शक्तिशाली शत्रुओं के मुकाबले में अपने आपको विवश पाकर वह युद्ध क्षेत्र से भाग खड़ा हुआ। महमूद के सिपाहियों ने उसका खूब पीछा किया। अन्त में जब उसने महसूस किया कि वह शत्रुओं के हाथ में पड़ने वाला है तो उसने अपने आप को छुरा मारकर आत्महत्या कर ली। महमूद ने इस मृत राजा की धन-सम्पत्ति खूब लूटी। अनगिनत लोगों को मौत के घाट उतारा और दूसरों को इस्लाम स्वीकार करने को बाध्य किया।
महमूद गजनवी के भारत पर चौथा आक्रमण चौथा
मुलतान की चढ़ाई (1006 ई.) (Invasion of Multan ) : महमूद ने अपनी चौथी चढ़ाई 1006 ई. में की। वह सुलतान के 'अव्वल फत्ते दाऊद के विरुद्ध आगे बढ़ा। दाऊद इस्लाम के शिया धर्मी करमिथियन वर्ग से सम्बन्ध रखता था जबकि महमूद सुन्नी धर्म का होने के नाते करमिथियन दाऊद को काफिर समझता था। भेरा के निकट महमूद का पहले-पहल हिन्दूशाही राज्य के आनंदपाल का सामना हुआ जो दाऊद से मिल चुका था। आनंदपाल की हार हुई और वह कश्मीर की पहाड़ियों की ओर भाग गया। तब महमूद ने मुलतान पर चढ़ाई की। वहाँ सात दिन के घेरे के बाद उसे जीत लिया। उसने मुलतान जयपाल के एक पोते सुखपाल नवासाशाह के हवाले कर दिया जिसे महमूद ने जयपाल की पराजय के बाद कैद कर रखा था और जिसने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और अपना नया नाम नवासाशाह रख लिया था।
महमूद गजनवी के भारत पर पाँचवाँ आक्रमण
नवासाशाह की हार (1007 ई.) (Defeat of Nawasa Shah) मुलतान को जीतने के बाद जब महमूद गजनी को लौटा तो नवासाशाह जिसे मुलतान तथा अन्य पराजित प्रदेशों का राज्यपाल नियुक्त किया गया था, स्वतंत्र बन बैठा और उसने इस्लाम धर्म का त्याग कर दिया। अतः महमूद ने उसके विरुद्ध 1007 ई. में चढ़ाई कर दी और उसे पराजित किया।
महमूद गजनवी के भारत पर छठा आक्रमण
आनंदपाल और उसके मित्रों की हार (1008-9 ई.) (Defeat of Anandpal and Allies) :
महमूद का छठा हमला आनंदपाल के विरुद्ध था जो उसके विरोध में मुलतान के फतह दाऊद से मिल गया था। आनंदपाल ने आक्रमणकर्ता के विरुद्ध युद्ध की बड़ी तैयारी की उसने दूसरे राजपूत सरदारों से सम्पर्क जोड़ा और अपने नेतृत्व में उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर, अजमेर इत्यादि राजाओं का एक राजसंघ संगठित किया। उसने लोगों से भी अपील की कि विदेशियों के विरुद्ध उसकी लड़ाई में सहायता दें। इस अपील का बहुत बड़ा असर हुआ। सभी लोगों में क्या बड़े और क्या छोटे, क्या धनी और क्या निर्धन सबमें बहादुरी दिखाने का जोश उठ खड़ा हुआ। उस समय के मुसलमान इतिहासकारों का कहना है कि "हिन्दू औरतों ने अपने जवाहरात बेच दिए और दूर-दूर से वह धन अपने राजा को भेजा कि इसे मुसलमानों के विरुद्ध प्रयोग में लाओ।" पंजाब की एक जाति खोखर भी विदेशियों के विरुद्ध इस लड़ाई में राजपूतों से मिल गई।
एक बहुत भारी सेना लेकर आनंदपाल महमूद से लोहा लेने आया। वहिन्द के सामने मैदान में लड़ाई की। नंगे पांव और नंगे सिर खोखर लोग बड़ी बहादुरी से लड़े। उन्होंने महमूद के तौर चलाने वालों के मुँह मोड़ दिए और कोई तीन चार हजार मुसलमान मार डाले। राजपूत भी बड़ी बहादुरी से लड़े। बात यहाँ तक पहुँची कि महमूद लड़ाई को रोकने ही वाला था जबकि एकदम उसके सौभाग्य से आनंदपाल का हाथी डर कर युद्ध भूमि से भाग निकला। इस कारण राजपूतों में गड़बड़ी और आतंक फैल गया। गजनवियों ने दो दिन और दो रात उसका पीछा किया और बहुत से राजपूतों को मार डाला। बहुत-सा लूट का माल महमूद के हाथ आया जो अब पंजाब और उत्तर-पश्चिमी भारत का स्वामी बन गया।
महमूद गजनवी के भारत पर सातवाँ आक्रमण
नगरकोट की जीत (1009 ई.) (Conquest of Nagarkot) :
महमूद ने अपना अगला आक्रमण कांगड़ा के विरुद्ध किया जिसे नगरकोट भी कहते थे। यह स्थान असंख्य खजाने का स्थान समझा जाता था। 1009 ई. के आरंभ में महमूद एक बहुत बड़ी सेना लेकर कांगड़ा पहुँचा और नगरकोट का किला घेर लिया। तीन दिन के घोर युद्ध के बाद किला शत्रु के हाथ आ ही गया। वहाँ महमूद ने खूब लूट का धन प्राप्त किया। उत्तबी लिखता है कि "महमूद ने इतना धन प्राप्त किया कि खजाने को लादकर ले जाने के लिए जितने भी ऊँट प्राप्त किए गए उतने ही थोड़े थे। सत्तर हजार दिरहम की तो मुद्रित धातु थी और कोई सात लाख के मूल्य के तथा चार सौ मन भार की सोने और चाँदी की ईंटे थीं। लूट के माल में सफेद चाँदी का एक मकान भी था जो अमीर लोगों के मकानों जैसा था अर्थात् जिसकी लम्बाई 30 गज और चौड़ाई 15 गज थी। सुलतान गजनी को लौटा परन्तु “ इतना धन-दौलत और हीरे-जवाहरात लेकर जितना कि संसार के किसी शक्तिशाली से शक्तिशाली राजा के पास भी न हो। "
महमूद गजनवी कका आठवाँ नौवाँ, दसवाँ और ग्यारहवाँ आक्रमण ( 1009-1018 ई.)
डा. ईश्वरी प्रसाद का कहना है कि "असीम धन की प्राप्ति ने महमूद के अनुयायियों की लालसा इतनी तीव्र कर दी कि उन्होंने अपने हमले धड़ाधड़ दोहराने आरंभ कर दिए। " 1009 से 1018 ई. तक महमूद ने मुलतान, कश्मीर, थानेश्वर इत्यादि स्थानों पर चढ़ाइयाँ की और उन्हें जीतने के बाद खूब लूटा, खूब चूसा।
महमूद गजनवी का बारहवाँ आक्रमण (Twelfth Invasion)
कन्नौज के राज्यपाल की हार ( 1018-19 ई.) (Submission of Rajyapal of Kannanj) : 1018 ई. में महमूद गजनी से फिर चला परन्तु इस बार कन्नौज पर चढ़ाई करने जो हर्षवर्धन के समय से उत्तरीय भारत की राजधानी चला आ रहा था। यमुना को पार करके उसने सबसे पहले वारण अथवा बुलन्दशहर पर हमला किया। बुलन्दशाही के राजा हरिदत्त ने हार मान ली और मुसलमान इतिहासकारों के कथनानुसार उसने दस हजार लोगों के साथ इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। अब सुलतान मथुरा की ओर बढ़ा जो कि उस समय एक बहुत ही धनी तथा घनी आबादी वाला नगर था। आक्रमणकारी सेना ने बहुत से मन्दिरों को तबाह कर दिया और बहुत सारी धनराशि लूट में प्राप्त की। मथुरा के बाद वृन्दावन की बारी आई। वहां भी वही कुछ हुआ मार-काट, लूटमार, अग्निकांड, तथा बलात्कार।
महमूद अब कन्नौज की ओर बढ़ा और जनवरी 1019 ई. में कन्नौज के फाटकों तक जा पहुंचा। कन्नौज के प्रतिहार शासक राज्यपाल ने शत्रुओं का कोई मुकाबला नहीं किया अपितु कायरता से ग्रीवा झुका दी। सुलतान ने सारे नगर को रौंद डाला और कोई 10,000 मन्दिरों को लूटा। इस प्रकार बहुत भारी लूट मचा कर और धन प्राप्त करके महमूद गजनी को लौट गया।
महमूद गजनवी का तेरहवाँ हमला (Thirteenth Invasion)
कालिंजर के चन्देल राजा की हार ( 1020 ई.) :
कालिंजर का चन्देल राजा गंडा महमूद के आगे कन्नौज के राज्यपाल की कायरतापूर्ण हार को सहन नहीं कर सका। इसलिए उसने राज्यपाल पर हमला करके उसको मार डाला। जब महमूद को इसका पता लगा तो उसे बड़ा क्रोध आया। उसने अपनी सेना जुटाई और चन्देल राजा के विरुद्ध कूच कर दिया। जो लड़ाई वहां हुई उसमें चन्देल राजा बड़ी वीरता से लड़ा। पहले-पहल महमूद को अपनी सफलता के बारे में सन्देह हुआ कि उसने अपनी विजय के लिए अल्लाह से प्रार्थना करनी आरम्भ कर दी। अन्त में चन्देल राजा युद्धभूमि से भाग खड़ा हुआ। इस प्रकार महमूद की जीत हुई और उसने कालिंजर की दौलत खूप लूटी।
महमूद गजनवी का चौदहवाँ तथा पंद्रहवां हमला (Fourteenth and Fifteenth Invasion) :
महमूद ने अपनी चौदहवीं तथा पन्द्रहवीं चढ़ाई (1021-1023 ई.) ग्वालियर तथा कालिंजर पर की। ये आक्रमण महत्त्वपूर्ण नहीं समझे जाते ।
महमूद गजनवी का सोलहवाँ हमला (Sixteenth Invasion)
सोमनाथ पर चढ़ाई (1025 ई.) (Attack on Somnath) :
महमूद का सबसे बड़ा हमला सोमनाथ की चढ़ाई का माना जाता है। यह हमला 1025 ई. में किया गया। अपनी पहली चढाइयों के बीच महमूद ने कठियावाड़ के अन्दर सोमनाथ के मन्दिर की धन-धौलत के बारे में बहुत कुछ सुन रखा था। इसके अतिरिक्त लोगों को सोमनाथ की मूर्ति में सबसे अधिक निष्ठा थी। सोमनाथ के ब्राह्मण शेखी बघार बघार कर कहते कि हमारे देव सोमनाथ जी दूसरे देवताओं से नाराज थे। इसी कारण तो मूर्ति तोड़कर महमूद द्वारा उन देवताओं की यह गत बनी। इसलिए महमूद ने इस मन्दिर पर अधिकार कर लेने का निश्चय कर लिया ताकि हिन्दुओं पर मूर्तिपूजन की व्यर्थता को सिद्ध कर सके और वहां से सोना, चांदी और जवाहरात लूट सके। वह 17 अक्तूबर को अस्सी हजार की एक भारी सेना लेकर गजनी से चला और 20 नवम्बर को मुलतान पहुंच गया। यहां पर महमूद ने अपनी सेना के खान-पान के लिए खूब लम्बे-चौड़े प्रबन्ध किये। प्रत्येक सैनिक टुकड़ी ने सात दिन का खान-पान और चारा उठाकर ले जाना था। खुराक का सामान 30,000 ऊँटों पर लादा गया। यह सब प्रबन्ध सावधान महमूद ने स्वयं किये क्योंकि वह जानता था कि उसके सैनिकों ने राजपूताना के सूखे रेगिस्तानों में यात्रा करनी है।
जनवरी 1025 ई. में मुसलमान सेनाएं अनहिलवाड़ा में पहुंचीं। उस स्थान का राजा भीमदेव पहले ही भाग चुका था । इसलिए महमूद को मार्ग में किसी कठिनाई का अनुभव नहीं होने वाला था। कुछ दिन आगे बढ़ने के बाद वह सोमनाथ के फाटकों पर जा गरजा। यहां उसने आम मार-काट की आज्ञा दे दी और 50,000 से अधिक लोग मार डाले गये।
महमूद मूर्ति को तोड़ने के लिए अब मन्दिर में घुसा जिसके अन्दर धर्म अनुयायियों को सबसे अधिक निष्ठा हो चुकी थी। वह मूर्ति सचमुच अद्भुत चीज थी। यह हवा में लटक रही थी मन्दिर के ठीक मध्य में जहां इसे सम्भाले रखने को ऊपर या नीचे कोई सहारा नहीं था। हर कोई जिसने भी इस मूर्ति को देखा, चकित रह गया। महमूद ने इसके टुकड़े टुकड़े कर डाले और उन टुकड़ों को गजनी, मक्का और बगदाद भेज दिया ताकि वहाँ नमाज पढ़ने वाले मुसलमान इन्हें भवन निर्माण में प्रयोग कर सकें। मन्दिर का खजाना लूट लिया गया। महमूद यहाँ से लूट में बहुत से हीरे, लाल और मोती लेकर गजनी को लौट गया। सोमनाथ के मन्दिर की चढ़ाई ने गजनी को इस्लामी संसार में बहुत ही प्रसिद्ध कर दिया। महमूद को इस्लाम का एक महान वीर माना गया और वह मुसलमानों में अमर हो गया। डा. नाजम का कहना है कि "यह चढ़ाई सैनिक साहस- कार्य की एक महानतम घटना है। "
महमूद गजनवी का सत्रहवाँ और अन्तिम हमला
जाटों के विरुद्ध चढ़ाई (सन् 1026-27 ई.) :
महमूद की अन्तिम चढ़ाई जाटों के विरुद्ध थी। जब वह सोमनाथ से गजनी को लौट रहा था। तो सिन्ध के जाटों ने उसे बहुत परेशान किया। 1026-27 ई. में उसने जाटों पर आक्रमण किया और उनमें से बहुतों को मौत के घाट उतार दिया। इस चढ़ाई के साथ महमूद का भारत में विजय काल समाप्त हो जाता है। 1030 ईसवी में महमूद की मृत्यु हो गई।