विभिन्न स्तरों पर विविधताओं के कारण उत्पन्न समस्याएं
भारत में पायी जाने विविधता के कारण विभिन्न स्तरों पर कई समस्याएं देखी जा सकती हैं। भारत में अंग्रेजी शासन व्यवस्था की समाप्ति के पश्चात तेजी से परिवर्तन देखा जा सकता है। आधुनिक भारत में दार्शनिक, सामाजिक व वैचारिक सभी क्षेत्रों में परिवर्तन आया है। पाश्चात्य देशों के संपर्क में आने के पश्चात आधुनिकीकरण व पश्चिमीकरण दोनों का प्रभाव एक साथ देखा जा सकता है। इन परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार कारको का विवेचन इस प्रकार है-
1. जनसंख्या विस्फोट-
क्षेत्रफल के आधार पर भले ही हमारा देश विश्व में साँतवा स्थान रखता है परन्तु जनसंख्या की दृष्टि से यह दूसरे स्थान है और तेज़ी से पहले स्थान की ओर बढ़ रहा है। देश में जहाँ किसी शासन या ताकत का आधार बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक के आधार पर होता है; भिन्न-भिन्न धर्मों के लोग सत्ता और ताकत अपने हाथ में लेने के लिए तेज़ी से अपनी संख्या को बढ़ाते जा रहे हैं जिससे बड़ी जनसंख्या के दुष्प्रभावों से हमारा देश जूझ रहा है।
2. आदिम समूहों का अस्तित्व विलोपन-
कुछ जीव-जंतुओं की तरह कुछ आदिम जनजातियाँ और उनकी संस्कृति भी विलोप के कगार पर हैं। उनकी विविधता का सम्मान न करते हुए उनको या तो परिवर्तित किया जा रहा है या फिर नष्ट किया जा रहा है जो कि गलत है। सरकार द्वारा इसको रोकने के लिए नियम और नीतियां भी बनायीं गयी हैं परन्तु वह पूर्ण तौर पर सफल नहीं हैं।
3. क्षेत्रवाद और क्षेत्रीय विवाद-
भाषा के आधार पर प्रदेशों के बनने के कारण क्षेत्रीयता का प्रभाव बढ़ा है। किसी विशेष प्रदेश के निवासी भाषायी या अन्य आधारों पर अन्य प्रदेश के निवासियों से स्वयं को अलग मानते हैं और उनके प्रति विद्वेष रखते हैं और समय-समय पर हिंसा का प्रदर्शन एक-दूसरे के खिलाफ करते रहते हैं जो राष्ट्रीय प्रगति और राष्ट्र बंधुत्व के खिलाफ है।
4. देश में एक भाषा की समस्या-
देश में इतनी अधिक भाषाओँ और बोलियों के होने से कई बार लोगों को एक-दूसरे से मिलने-जुलने और संवाद स्थापित करने में कतिनाई होती है जिससे संवादहीनता की स्थिति उत्पन्न होती है । अलग-अलग भाषा होने के कारण हमारी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है और हिंदी को जो राजभाषा की संज्ञा दी गयी है वह मात्र कागजों पर ही रह गयी है। राष्ट्र भाषा के रूप में हिंदी को स्थापित न होने का कारण क्षेत्रीय भाषाएँ ही हैं। और स्थिति यह है कि विभिन्न राज्यों के व्यक्तियों को आपस में संवाद स्थापित करने हेतु विदेशी भाष अंग्रेजी का सहारा लेना पड़ता है। जिन लोगों को अंग्रेजी का ज्ञान नहीं है उन लोगों को नीची नज़रों से देखा जाता है जिससे वह उन सार्वजनिक जगहों पर कुछ बोलने से बचते हैं जहाँ अंग्रेजी का बोलबाला हो । कुछ राज्यों में प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा के स्थान पर अंग्रेजी में देने की योजना बनायीं गयी है। विदेशी भाषा का ज्ञान अच्छा है परन्तु यह ज्ञान मातृभाषा को तिलांजलि देकर नहीं लेना चाहिए ।
5. निर्धनता -
यह एक बहुत बड़ी परेशानी के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित है जिसकी वजह से लोग रोटी, कपड़ा मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हो जाते हैं। उनमें असुरक्षा भावना विकसित होती है, जिसकी वजह से चरित्र में भी गिरावट देखी जाती है।
6. वर्ण व्यवस्था-
भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था के आधार पर बंद समाज बन गया था। जिसमें गतिशीलता का अभाव हो गया था इसके अंतर्गत पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ व्यवहार किया जाने लगा था। उच्च वर्ग के लोग अधिक से अधिक सामाजिक संसाधनों पर अपना अधिकार कर के बैठे हुए थे और उसके अलावा निम्न वर्ग का शोषण बहुत अधिक होने लगा था।
7. भेदभाव की स्थिति-
अपने ही देश में विभिन अंतरों के कारण देश के निवासियों को भेदभाव की स्थिति का सामना करना पड़ता है। धार्मिक, प्रजाति, जाति, नस्ल, भाषा, लिंग आदि के आधार पर विभिन्न स्थानों पर भेदभाव किया जाता है । एक उदाहरण पूर्वोत्तर राज्यों के निवासियों रूप में लिया जा सकता है। पूर्वोत्तर को भारत का एक अभिन्न भाग होने के बावजूद यहाँ के नागरिक अन्य प्रदेशों में भेदभाव के शिकार होते हैं और भारत के निवासी होने के बावजूद शारीरिक बनावट के कारण देश में ही विदेशियों सा व्यवहार उनसे किया जाता है।
8. छुआछूत की समस्या-
धर्म और जाति के आधार पर छुआछूत की भावना हमारे देश में कोई नई नहीं है भारतीय संविधान और भारतीय कानून के अनुसार यह एक दंडनीय अपराध है और बदलते समय के साथ लोगों की मानसिकता में परिवर्तन आया है पर फिर भी यह समस्या पूरी तरह से हल नहीं हुई गई है । आज भी कम पढ़े-लिखे और गाँवों में छुआछूत की भावना देखी जा सकती है।
9. समाज में स्त्रियों के प्रति हीन भावना और अपराध -
भारत में पुरुष को समाज में स्त्रियों की तुलना में श्रेष्ठ माना जाता है और उन्हें तरजीह दी जाती है। आज भी परिवारों में पुत्रजन्म पर लोग उल्लास मनाते हैं और पुत्री होने पर दुखी होते हैं। इसके पीछे कारण स्त्रियों की समाज में ही है या दोनों कारण एक-दूसरे को परस्पर प्रभावित करते हैं। लोगों की मानसिकता बदलतो रही है पर लोग इस मानसिकता से पूरी तरह मुक्त नहीं हुए हैं। दूसरी ओर औद्योगीकरण वैश्वीकरण और नगरीकरण के कारण सांस्कृतिक अंतराल ( cultural lag) की स्थिति उत्पन्न हो गयी है और जिसके कारण स्त्रियों के दिन प्रतिदिन अपराध बढ़ रहे हैं।
10. राजनैतिक पतन-
किसी देश की राजनीति उस देश को प्रगति के पथ पर ले जाति है बशर्ते वह स्वस्थ राजनीति हो । कोई भी राजनीति दल विकास के लिए योजनायें बनाता है और जिसके आधार पर देश की जनता उस दल को चुनकर शासन उसके हाथ में देती है । परन्तु हमारे देश में राजनीति का आधार विकास योजनायें नहीं बल्कि जातिगत राजनीति है। एक विशेष जाति के लोग अपनी जाति के लोगों को चुनकर सत्ता में भेजना चाहते हैं जो राजनीति का पतन है । और राजनीतिक दल भी यह समझते हुए जातिगत समीकरण बनाते और भुनाते हैं ।
लोकतांत्रिक प्रक्रिया के बनाया जाने के पश्चात राजनीतिक शक्ति नेताओं के हाथ में है राजनीतिक कारणों से ही जातिवाद संप्रदाय वाद विवाद भाषावाद धार्मिक विघटन जैसी घटनाएं बढ़ी हैं चुनाव जीतने के लिए वह अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए राजनीति सभी तरह के प्रयास किए जाते हैं। जहा छोटे गांव से लेकर बड़े शहरों में आज ज्यादातर गतिविधियां राजनीतिक कारणों से कारकों से निर्धारित होती हैं।
विविधता की वजह से देश को अन्य जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है उनमें, आतंकवाद, आपसी हिंसा, अंधाधुंध नगरीकरण, अपराध, आरक्षण के लिए की गयी हिंसा इत्यादि हैं जिनका जल्दी से जल्दी किया जाना आवश्यक है।
प्राचीन व्यवस्था के अंतर्गत व्यवसाय को उत्पत्ति आधार बनाकर बहुत सी जातियां बनाई गई थी, परंतु वर्तमान में यह जाति व्यवस्था बहुत ही कठोर होती चली गई। इसके आधार पर ही लोगों के साथ भेदभाव का व्यवहार और अधिक बढ़ गया विभिन्न संस्कारों, सामाजिक कार्यों में भी इस जाति व्यवस्था को बहुत महत्व दिया जाता था। जाति के निर्माण का जो उद्देश्य प्राचीन भारत में था वह पूर्व निर्धारित संबंध अब इस समय नहीं रहा है।
सामाजिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए हमें पाते हैं कि स्त्रियों को चारदीवारी तक सीमित कर अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। वह एक उपभोग की वस्तु मात्र बनकर रह गई थी। इसलिए शिक्षा के प्रयासों के द्वारा पुनर्जागरण काल में सामाजिक पुनरुत्थान आंदोलनों के द्वारा नारी को उचित स्थान देने का प्रयास किया जाने लगा। उन्हें शिक्षा का अधिकार देने के लिए विभिन्न समाज सुधारको ने प्रयास जारी कर दिए व महिला सशक्तिकरण की तरफ आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया गया। विवाह नामक संस्था के स्वरूप में आमूल परिवर्तन आना शुरू हो गया जिसमें संबंधों की मधुरता वा प्रगाढ़ता कम होती चली गई है और इसके साथ ही तलाक के मामलों में वृद्धि हो रही है सुरक्षित स्वच्छंदता व संघर्ष दोनों ही आर्थिक कारणों से बड़ा है इसलिए पति पत्नी के संबंध प्रभावित हुए हैं इसके अलावा अंतरजातीय विवाह व पारिवारिक संबंधों में भी बदलाव आए हैं इसका एक प्रमुख असर रूप हम एकल परिवार के रुप में देख सकते हैं अब संयुक्त परिवार की व्यवस्था खत्म होती चली गई है जिससे जिससे परिवार में प्रेम सौहार्द व बच्चों की देखभाल संबंधी परेशानियों को स्पष्ट देखा जा सकता है।