बच्चों में प्राकृतिक जिज्ञासा और अधिगम
बच्चों में प्राकृतिक जिज्ञासा और अधिगम प्रस्तावना
शिक्षक अपने
बच्चों के बारे में क्या मान्यतायें और विश्वास धारण करता है, यह सिखाने के
तरीकों तथा अपने छात्रों से अपेक्षाओं को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं। बच्चों
में जिज्ञासा पैदा कर हम उनका सीखना आसान कर सकते हैं। यदि उनके अनुभव के आधार पर, रुचियों का ध्यान
रखते हुए नवीन जानकारियों एवं अनुभवों को सहज रूप से जोड़ा जाए, तो उनमें सीखने
की क्रिया ज्यादा प्रभावी होती है। उन्हें अभिव्यक्ति का पर्याप्त अवसर देकर उनकी
कल्पनाशीलता एवं सृजनशीलता को सकारात्मक दिशा दी जा सकती है।
शिक्षक के संबंध अपने बच्चों के साथ दोस्ताना का हो तो वे गतिविधियों को करने तथा अपनी जिज्ञासा को प्रकट करने में हिचकते नहीं हैं। शिक्षकों को चाहिए कि वे जिज्ञासा को पनपने दें तथा उन जिज्ञासाओं को तृप्त करने हेतु गतिविधियों द्वारा उपयुक्त समझ के निर्माण को प्रोत्साहित करें। अक्सर कई शिक्षक पाठों को पूरा कराने में लग जाते हैं और गतिविधियों को निरर्थक एवं समय की बर्बादी मान बैठतेहैं। जबकि सच्चाई यह है कि गतिविधियों से विभिन्न दक्षताओं का विकास होता है। साथ ही, यह भी जरूरी है कि करायी गयी गतिविधि उपयुक्त, संदर्भित व संतुलित हो।
प्रस्तुत आर्टिकल बच्चों के जिज्ञासा तथा इसके समझ विकास से सम्बन्ध के ऊपर आधारित है। इस इकाई में
हम बच्चों के अन्दर के प्राकृतिक जिज्ञासा को विभिन्न पर्यावरणीय, सामाजिक तथा
आर्थिक घटनाओं से जोड़ कर देखने का प्रयास करेंगे।
बच्चे की प्राकृतिक जिज्ञासा
जिज्ञासा को एक
उत्सुकता के रूप में समझा जा सकता है। व्यक्ति की यह उत्सुकता मुख्यतः जानने की
इच्छा से संबंधित होता है। जिज्ञासा व्यक्ति या बच्चे के व्यवहार को प्रभावित करता
है। हम यह भी कह सकते हैं कि जिज्ञासा बच्चे या व्यक्ति के सीखने के व्यवहार में
समावेशित होता है। यह व्यक्ति में प्राकृतिक या जन्मजात क्षमताओं से जुड़ा होता
है। साथ ही, किसी बच्चे या व्यक्ति में जिज्ञासा को प्रोत्साहित या
हतोत्साहित किया जा सकता है। मनुष्यों द्वारा वैज्ञानिक खोज, शोध और अन्य
अकादमिक कुशलताओं के पीछे जिज्ञासा या उत्सुकता एक प्रमुख कारण है।
जिज्ञासा क्यों महत्वपूर्ण है?
• जिज्ञासा बच्चों को अपने मानसिक क्षमताओं सहित अपने पूरे जीवन को विकसित करने में मदद करता है।
• यह दैनिक जीवन के कई रहस्यों (जब मैं ऐसा करता हूं तो क्या होता है?) के जवाब को प्रदान करता है।
• नई चीजें को सीखने के लिए बच्चों की क्षमता को बढ़ाता है। साथ ही, सीखने और विकास की क्षमता में आत्मविश्वास पैदा करता है।
• चुनौतियों से निपटने के लिए अलग-अलग तरीकों के खुले विचारों और सहनशील होने की प्रवृति को बच्चों में बढ़ता है।
• यह उनके दुनिया
के बारे में जागरूकता और मनोरंजन में भी योगदान देता है।
जिज्ञासा कैसे क्षीण होती हैं?
• डर - जब कोई बच्चा डरता है, तो वह वस्तु या स्थिति से परिचित नहीं होगा और पूर्व ज्ञान के साथ ही जुड़ा रहेगा।
• अस्वीकृति - जब कोई बच्चा हर समय "ऐसे नहीं करो" सुनता है, तो उसकी प्रयोग की इच्छा कम हो जाती है।
अनुपस्थिति - जब
एक बच्चे को अपने नए अनुभवों को साझा करने या सुरक्षा की पेशकश या देखभाल करने के
लिए कोई वयस्क नहीं है, तो भी वह कोशिश करना बंद कर सकता है।
बच्चों के प्राकृतिक जिज्ञासा को कैसे प्रोत्साहित किया जाए?
• अपनी दुनिया में क्या हो रहा है, उसमें अपनी रुचि दिखाएं।
• बच्चों को अपने अभिरुचियों (संगीत, खेल, किताबें ) में दक्षता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें।
• सवाल स्पष्ट रूप से, तथ्यात्मक रूप से, और बच्चे के विकास अवस्था को ध्यान में रखते करें।
• खुले / ओपन-एंड (open ended) प्रश्न पूछें; जैसे- आप रेल यात्रा में कैसा महसूस करते हैं? या हरा रंग का आपका पसंदीदा रंग क्यों है? आदि)
• किसी बच्चे के अभिरुचियों को पुनर्निर्देशित करें, लेकिन इन्हें हतोत्साहित न करें (जैसे, यदि वह अपने कप के पानी को फर्श पर डालना पसंद करता है, तो बाथटब या पिछवाड़े में पानी के साथ प्रयोग करने के अवसर प्रदान करें)
• ऐसे खिलौने प्रदान करें जो एक बच्चे की कल्पना शक्ति को प्रोत्साहित करती हों और उनके प्रयोग सीमित न हों।
• नई चीजों की खोज और नए कौशल में कुशलताओं के प्रयासों की प्रशंसा करें।
• बच्चों को अपने
प्राकृतिक परिवेश का पता लगाने और अपने स्वयं के प्रश्नों के जवाब ढूंढने के लिए
प्रोत्साहित करें।
जिज्ञासा और प्राकृतिक घटनाएं
बच्चा प्राकृतिक
रूप से उत्सुक होता है। वह चीजों से समझना चाहता है, पता करना चाहता
है कि चीजें कैसे काम करती हैं, वह अपने और अपने पर्यावरण पर संबंधी दक्षता और
नियंत्रण प्राप्त करता है, और साथ ही वह अपने को आकलित करता है कि अन्य
लोगों के अनुकरण से वह क्या क्या कर सकता है।
बच्चा व्यापक, पर्वेक्षक और
प्रायोगिक दृष्टिकोण वाला होता है। वह केवल अपने चारों ओर की जटिल दुनिया से खुद
को बंद नहीं करता है, बल्कि वह दुनिया का निरीक्षण करता है। वह अपने
चारों ओर की वस्तुओं को जानने के लिए उसे छूता है, स्वाद लेता है, वह जानना चाहता
है कि वह कैसे काम करती है। वह साहसिक होता है, वह गलतियां करने
से डरता नहीं है।
एक शिक्षक के रूप
में बच्चे की इस तरह की स्थितियों में क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए? यह प्रश्न आपके
दिमाग में उभरने चाहिए। क्या शिक्षक शिक्षिका को बच्चे को खोजबीन करने से रोकना
चाहिए?
उत्तर है नहीं ।
उसे उसके प्राकृतिक जिज्ञासा को विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं से जोड़ने की आवश्यकता
है। आइए अब हम विभिन्न प्राकृतिक घटना या सथियों के सन्दर्भ में जिज्ञासा को
जोड़ने संबंधी क्रियाओं को समझने का प्रयास करते हैं:
1 मौसम
• टेलीविजन या अखबार में मौसम की रिपोर्ट देखने को कहें;
• एक जगह चुनें और इंटरनेट पर वहां के मौसम संबंधी जानकारी को ढूंढने के लिए कहें;
• मानचित्र को दिखाएँ और वहां के जलवायु या मौसम क्षेत्र के बारे में जानकारी इकठ्ठा करने को कहें;
• दिन या रात के दौरान अलग-अलग समय पर आकाश का निरीक्षण करने को कहें;
• अपने घर के अंदर और बाहर थर्मामीटर रखने को कहें;
• पतंग उड़ाने को कहें और हवा में दाब संबंधी जानकारी इकठ्ठा करने को कहें;
• दूर के रिश्तेदारों से वहां के मौसम के बारे में पूछने को कहें;
• मौसम की स्थिति के ग्राफ या डायरी रखने को कहें;
• विभिन्न जलवायु क्षेत्रों से आने वाले लोगों के साथ मौसम के बारे में बात करने को कहें;
• उन लोगों के जीवन की पड़ताल करने को कहें, जो आप से अलग मौसम क्षेत्र में रहते हैं;
• एक कंटेनर में बारिश जमा करें और बारिश की विशिष्टता को जानने को कहें;
• इंद्रधनुष को देखने को कहें;
• गर्मी के दिनों तापमान के वजह से धातु से बनी चीजों के आकर में परिवर्तन को जानने को कहें;
• बिजली की चमक और
गड़गड़ाहट के बाद होने वाली समय की गणना करने को कहें; आदि ।
2 वनस्पति
अंकुरण की क्रिया
को अवलोकन करने को कहें; फल और सब्जियों (जो आप खाते हैं) के बीज को
संरक्षित करने को कहें;
• पौधों के बीज के
रोपण हेतु प्रोत्साहित करें;
• पौधों के पैक्ड बीज को दिखाएँ और उनका पालन करने को कहें;
• विभिन्न प्रकार के पेड़ों और फूलों के नाम जाननें को कहें;
• खाद के रूप में कचरे के भोजन को बचाने के लिए कहें; (जैसे- चाय बनने के बाद बचे चायपत्ती से खाद बनाने को प्रेरित कर सकते हैं)
• फूल की कली को फुल बनते हुए या खिलना की क्रिया का अंतराल पर अवलोकन करने को निर्देशित करें;
• अपने पर्यावरण में पेड़ों और फूलों की देखभाल करने में सहायता करने को कहें;
• एक पेड़ या पौधे
के वृद्धि संबंधी प्रगति को रिकॉर्ड करने को कहें।
3 पशुवर्ग
• मकड़ी तथा उसके द्वारा निर्मित वेब को दिखाएँ;
• अपने आसपास के जानवरों की गतिविधियों का निरीक्षण करने को कहें;
कुत्तों, बिल्लियों, गिलहरी, खरगोश, पक्षियों आदि के
व्यवहार को अवलोकन करने हेतु प्रोत्साहित करें;
• अपने घर के
आस-पास पक्षियों का पालन करने को कहें तथा घोंसले बनने को देखने को कहें;
• एक कैटरपिलर को
तितली में बदलने को देखने हेतु प्रेरित करें;
• पशुओं तथा
पक्षियों के समूह का संयोजन देखने को कहें;
• जिस तरह से कोई
बड़ा पशु या पक्षी अपने छोटों की देखभाल करते हैं, उसे देखने को
प्रोत्साहित करें;
• अपने घर के पालतू
जानवर के साथ पशु चिकित्सक के पास जाने को कहें;
पशुओं तथा पक्षियों में परिवर्तन का निरीक्षण करने को कहें;
सीखना और स्थानिक-सामयिक, सामाजिक व आर्थिक संदर्भ
पियाजे मानते हैं
कि बच्चे खुद अपना ज्ञान बनाते हैं और सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका
निभाते हैं।
वे उनको दी जाने
वाली जानकारी को निष्क्रिय होकर नहीं सीखते, बल्कि खुद को
हासिल होने वाले ज्ञान से ही आगे की सीढ़ियाँ बनाते जाते हैं। वय्गोत्सकी ने भी
बताया है कि किस तरह सामाजिक मेलजोल और संवाद बच्चे को उसकी समझ और ज्ञान विकसित
करने में मदद करते हैं। सामाजिक रचनावाद का उनका सिद्धान्त कहता है कि सीखना बच्चे
के सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक परिवेश के माध्यम से होता है। उन्होंने सहायक ढाँचा
खड़ा करने (स्कैफोल्डिंग) की एक प्रक्रिया का जिक्र किया है जिसमें कोई बड़ा
व्यक्ति या बड़ा साथी बच्चे के साथ संवाद करके उसे अपना ज्ञान निर्मित करने में
मदद करता है। उपरोक्त दोनों ही सिद्धांतों में बच्चे द्वारा खोजबीन करने और अनुभव
करने की अपनी जिज्ञासा को तरजीह दी गयी है।
बाल मन और जिज्ञासा एक-दूसरे के पूरक शब्द हैं। जिज्ञासा का सीधा संबंध कौतुहल से है। उम्र बढ़ने के साथ ही अपने परिवेश की हर गुत्थी को सुलझाने की जुगत लगाना बाल्यावस्था की मूल प्रवृत्ति है। जिज्ञासा के बिना खोज करने की कोई प्रेरणा नहीं होती । जिज्ञासा के बिना, बच्चे के मन में उदासीनता और अरुचि पैदा हो जाती है और बिना जाँच-पड़ताल और खोजबीन की जिन्दगी के संवेगिक, सामाजिक तथा आर्थिक सन्दर्भ में विकास नहीं हो सकता है। शिक्षकों को बच्चों में जिज्ञासा को बनाए रखने के लिए उन्हें अनुभव करने तथा खोज करने के मौके देने होंगे। यह तभी सम्भव होता है जब बच्चा छूने, स्वाद लेने, देखने, सूँघने और सुनने की अपने पाँचों इन्द्रियों का उपयोग करके बाहर से प्राप्त होने वाली उत्प्रेरक जानकारियों को व्यवस्थित रूप से आत्मसात करे और उनसे समझ विकसित करे।
सीखना तथा स्थानिक-सामयिक सन्दर्भ
स्थानिक-सामयिक (spatio -
temporal) तर्क एक स्थानिक पैटर्न को चित्रित करने की संज्ञानात्मक
क्षमता होती है। इसके द्वारा बच्चा या व्यक्ति यह समझता है कि वस्तुओं या टुकड़ों
को उस किस स्थान में कैसे फिट किया जा सकता है। इस तरह के तर्क के लिए बच्चे अक्सर
कल्पना कर सकते हैं कि कैसे चीजें एक साथ फिट होती हैं कैसे चरणों या स्टेप द्वारा
किसी कार्यो को पूरा किया जा सकता है। किसी पहेली को सुलझाने की कुशलता इस तर्क के
साथ जुड़ी होती हैं। लगभग हर बच्चे के पास इस प्रकार के तर्क करने की क्षमता होती
है। किन्तु ये क्षमता अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्न हो सकती है। स्थानिक सामयिक
सन्दर्भ में सीखना, स्थान और समय अनुक्रम के आलोक में विचारों को
सीखने की घटना को दर्शाता है।
जो बच्चे ब्लॉकों के साथ निर्माण, पहेली को एकत्र करने, पेंटिंग, और संगीत वाद्ययंत्र बजाने का आनंद लेते हैं, वे विभिन्न प्रकार के स्थानिक-सामयिक तर्क शक्ति संबंधित उच्च क्षमता दिखा सकते हैं। अक्सर यह तर्क- शक्ति आर्किटेक्ट, अन्तरिक्ष विज्ञान इंजिनियर और मूर्तिकारों द्वारा ज्यादा इस्तेमाल की जाती है। बच्चे विभिन्न संप्रत्ययों को तस्वीरों, चित्रों, कलाकृतियों, रंगों, ज्यामितीय आकारों के रूप में समझना पसंद करते हैं। बालकों को कल्पना करने की स्वतंत्रता दे कर, हम उनकी अधिगम क्षमता में वृद्धि कर सकते हैं। उन्हें शब्दों के स्थान पर चित्रों के माध्यम से उत्तर देने के लिए प्रोत्साहित कर के हम विभिन्न विषयों से उनका संबंध जोड़ सकते हैं।
सीखना तथा सामाजिक-आर्थिक सन्दर्भ
शिक्षा प्रणाली
समाज का एक हिस्सा है और यह इससे अलगाव में काम नहीं करती है। भारतीय समाज की
विशेषताएं जैसे- जाति, आर्थिक स्थिति, लिंग संबंध, सांस्कृतिक
विविधताएं और असमान आर्थिक स्थिति विद्यालय में बच्चों की शिक्षा और भागीदारी को
गंभीरता से प्रभावित करता है।
बच्चों में जिज्ञासा की प्रवृत्ति प्राकृतिक रूप में व्याप्त होती है। वह जानना चाहता है कि यह सब क्या है और क्यों है। युवा प्रवृत्ति होती है कुछ नया करने की । जिज्ञासाओं का होना समाज के रूपांतरण की पहली शर्त होती है। इसलिए विद्यालय में लक्ष्यों को तय करना और उन्हें हासिल करना सिखाना बेहतर हो सकता है। उन तमाम बातों को बच्चों के विद्यालयी क्रियाओं से जोड़ने की जरुरत है, जो हमारे जीवन से सीधा रिश्ता रखतीं हैं। शिक्षा में इनका जुडाव विभिन्न सामाजिक और आर्थिक समूहों के बीच तेज असमानताओं को दूर करने में मदद करता है। इस प्रकार, यह ग्रामीण और शहरी; गरीबों और अमीरों; अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति और अन्य जातीय समुदायों; बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों के मध्य सामाजिक तथा आर्थिक अंतर को पाटने में बच्चों की समझ को विकसित करता है।