विधता के कारण कक्षा में उत्पन्न होने वाली समस्याएं
विधता के कारण कक्षा में उत्पन्न होने वाली समस्याएं
विविधता सम्बन्धी समस्याएँ सिर्फ बाहर समाज ही प्रभावित नहीं करती हैं बल्कि कक्षा में शिक्षण अधिगम में भी बाधक हो सकती हैं। आज जब समावेशी शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है तब एक ही कक्षा में विभिन्न प्रकार की भिन्नता लिए हुए विद्यार्थी एक साथ अध्ययन करते हैं। ऐसे में उनकी समस्याओं को जानना आवश्यक है।
• कक्षा में कुछ विद्यार्थी यह अनुभव कर सकते हैं कि वे कक्षा के वातावरण से सम्बंधित नहीं हैं। और छात्रों की यह भावना शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में उनकी भागीदारी को कम कर सकती है इसके साथ ही छात्रों में अपर्याप्तता की भावना और अन्य विकर्षण उत्पन्न हो सकते हैं।
• विद्यालयों में भी विद्यार्थी की पृष्ठभूमि के कारण या किसी अन्य आधार पर उससे भेदभाव किया जाता है । एक अध्यापक के रूप में किसी भी आधार पर नकारात्मक भेदभाव से बचना चाहिए क्योंकि यह विद्यार्थी को मानसिक रूप से प्रभावित करता है और वह शैक्षणिक या सामाजिक रूप से समायोजन नहीं कर पाते हैं। यदि कक्षा का कोई विद्यार्थी या कोई शिक्षक या फिर कोई कर्मचारी किसी भी विद्यार्थी से किसी भिन्नता के कारण कोई भेदभाव करता है तो उस भेदभाव के लिए कार्यवाही करना चाहिए।
• अध्यापक के रूप में आप जिस भाषा का प्रयोग विद्यालय में करते हैं या जो विद्यालयी भाषा हैं उससे अलग भाषा का प्रयोग यदि करते हैं यदि उस भाषा सकारात्मक भाषा और प्रशंसा का उपयोग करें, और छात्रों का तिरस्कार न करें।
6. राजनैतिक पतन दुष्परिणाम हुए हैं?
7. यदि विद्यालय का कोई स्टाफ किसी विद्यार्थी से भेदभाव कर रहा है तो ऐसे में आप क्या करेंगे?
समुदायों और व्यक्तिक भिन्नता पर आधारित विविधतापूर्ण ज्ञान और अनुभव से प्राप्त लाभ
विविधता पूर्ण वातावरण सभी के लिए एक सुरक्षित और सहयोगात्मक वातावरण तैयार करने में मदद करता है। हम समाज के लोगों के अलग-अलग अनुभवों, विश्वासों और बातों के माध्यम से सीखते हैं।
"विविधता व्यक्तिगत विकास और एक स्वस्थ समाज को बढ़ावा देता है" विभिन्न सांस्कृतिक परिदृश्य से जुड़े होने के बावजूद जब लोग एक दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं, तो प्रगाढ़ संबंधों का निर्माण करते हैं, साथ ही उनके देखने का का नजरिया काफी विस्तृत हो जाता है। इस के अंतर्गत हम लोगों यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि संस्कृती व समाज तेजी से बदल रहे हैं। इस बदलते परिदृश्य में लोगों की जीवनशैली विचारधाराएं, सांस्कृतिक समस्याएं बहुत अन्य आवश्यक चीजों हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं। विचार धाराओं मूल्यों अवधारणाओं आशाओं सभी से अवगत होने का प्रयास करते हैं। विभिन्न सांस्कृतिक से होते हुए भी लोगों का जीवन जीने, सीखने व अनुभवों का आदान प्रदान होता रहता है। आज पूरा विश्व तेजी से बदल रहा है जिसमें विभिन्न धर्मों के लोग, जाति, भाषाएं बोलने वाले व्यक्ति, आर्थिक सामाजिक व सांस्कृतिक समूहों से जुड़े लोगों आपसी आदान-प्रदान की भावना बढ़ी है। इन परिस्थितियों को आज के संदर्भ में समझना व सराहना मिलना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इस तरह विभिन्न संस्कृतियों के बीच में हम बहुत से सामाजिक व सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझा सकते हैं। अलग-अलग समूह व समाजों से लोगों के मिलकर काम करने से आपसी समझ का विस्तार हुआ है। जहां जाती अथवा वंशवाद से जुड़े हुए भावनाओं को कम से कम करने की कोशिश की जाती है, इनसे हिंसा को रोकने में भी मदद मिलती है। प्रत्येक समूह, जाति अपनी अलग विशेषता होती है उनके धार्मिक विचार, परंपराएं, भौतिक विज्ञान उनके जीवन को समृद्ध बनाने का प्रयास करता है। जब हम सभी तरह के सांस्कृतिक व सामाजिक समूह को एक साथ मुख्यधारा में लाने का प्रयास करते हैं तो इस तरह से सभी के मिले जुले गुणों के द्वारा नए दृष्टिकोण का विकास होता है जिससे समाज बड़े मुद्दों पर अथवा मानव विकास के लिए नए आयामों की खोज कर सकता है। इसके माध्यम से समाज से जुड़े हुए मुद्दों के प्रति सजग व सफल कार्यक्रमों का निर्माण किया जा सकता है। क्योंकि इस तरह के कार्यक्रमों में सभी समूहों की भागीदारी अथवा सहभागिता होती है तो लोकतांत्रिक तरीकों न्याय पर आधारित समाज के निर्माण में सभी की साझेदारी होती है, क्योंकि इस तरह के परिदृश्य में शिक्षक छात्र अभिभावक सभी अलग-अलग समूह से होते हुए भी समाज के मुख्यधारा से जुड़े होते हैं। वे सभी इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, उनका सफल निदान ढूंढने का प्रयास करते हैं। आपसी मेलजोल से समूह जाति धर्म से इस तरह के घूमने का प्रयास मिलजुल कर काम करने की भावना का विकास होत
है हमें इस से धार्मिक सहिष्णुता की भावना एक दूसरे के धर्म के प्रति आदर भाव का विकास करने की क्षमता भी बढ़ती है।
गीता का एक श्लोक है " जीव जीवनस्य भोजनम" प्रकृति के अंतर्गत चलने वाले चक्र को अगर हम सुचारु रुप से चलने दें और इसमें प्रकृति और उसके अंतर्गत चलने वाले चक्र को अविरल रूप से चलने दिया जाए प्रकृति स्वयं सतत सामंजस्य के साथ जीवन की उत्पत्ति, पोषण व उसके विकास का कार्य करती है विभिन्न जीव-जंतुओं जल मिट्टी हवा सभी का संबंध जितना जटिल होगा जैव विविधता उतनी ही अधिक विविधतापूर्ण की जलवायु परिवर्तन औद्योगिक विकास, मानवीय गतिविधियों से हो रहे नुकसान की भरपाई जीव-जंतु पेड़ पौधों के विनाश से हो रहा है सन 2000 में लंदन में अंतर्राष्ट्रीय बीज बैंक की स्थापना की गई है जिसमें 10 फ़ीसदी जंगली पौधों के बीजों को संग्रहित कर के रखा जा चुका है इसके अलावा नॉर्वे में सीड वाल्ट में 11 लाख बीजों का संरक्षण किया जा चुका है वैश्विक स्तर पर पर्यावरण एवं वन्य जीवन से संबंधित नियमों और कानूनों का निर्माण किया जा रहा है और साथ ही संरक्षित व विलुप्त होने के कगार पर पहुंचे हुए जीव जंतु व पादप के जीवन को बचाने का प्रयास जारी है भारतीय परिपेक्ष्य में “वसुधैव कुटुंबकम” के अंतर्गत जियो और जीने दो जैसी विचारधाराओं को अ हम बल देंगे तभी प्रकृति के सामंजस्य के साथ जीवन को सुचारु रुप से चलाया जा सकता है।
कक्षा में व्याप्त विविधता का शैक्षिक उपयोग
भारत की विविधता को वंश, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म, जाति, संप्रदाय, समुदाय, सामाजिक समूह, आर्थिक स्थिति, योग्यता के स्तर, स्वास्थ्य, पेशों, भौगोलिक क्षेत्र, जलवायु और राजनीतिक झुकाव के स्तर पर देखा जा सकता है। देश में पायी जाने वाली विविधता को हम सांस्कृतिक समृद्धि के रूप में न लेकर अंतर के रूप में और इससे उत्पन्न 'समस्या' - को सीखने हेतु संसाधन न मानकर बल्कि बाधा, के रूप में मानते हैं। विद्यालय या कक्षा में विद्यमान विविधता को एक सकारात्मक के रूप में लेना विद्यालय के शैक्षिक वातावरण को समृद्ध बनाने और वर्तमान शैक्षणिक वातावरण में सुधार करने के लिए महत्वपूर्ण है।
एक शिक्षक के लिए कक्षा में विविधता का प्रबंधन और अपनी कक्षा में प्रत्येक विद्यार्थी को उचित अवसर और सार्थक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना सबसे बड़ी चुनौती होती है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 और शिक्षा का अधिकार-2009 के लागू होने के साथ, अनेकता को स्पष्ट रूप से अपनाया गया है। विद्यालयों से यह अपेक्षा की जाती है कि विविधता को विद्यालय और हर कक्षा के भीतर सीखने के एक संसाधन के रूप में सुनिश्चित करे ।
वर्तमान समय में सम्पूर्ण विश्व में समावेशी शिक्षा को महत्व दिया जा रहा है। कई बार समावेशी शिक्षा के अर्थ को बहुत संकीर्ण रूप से लेते हुए समाज के एक विशेष वर्ग को शिक्षा में शामिल करने से जोड़ कर देखा जाता है जबकि ऐसा नहीं हैं। समावेशी शिक्षा सभी के समावेशन से सम्बंधित है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रुपरेखा (2005) में समावेशी शिक्षा के विषय में यह उल्लिखित है कि समावेशी शिक्षा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और निष्पक्षता से उसके संबंध की आवश्यकता के लिए औचित्य का दृष्टांत देती है।
शिक्षण प्रणाली उस समाज से अलग होकर काम नहीं करती है जिसका वह हिस्सा है। भारतीय समाज में मौजूद जाति के अनुक्रम, आर्थिक स्थिति और लैंगिक संबंध, सांस्कृतिक विविधता तथा असमान आर्थिक विकास शिक्षा की सुलभता और विद्यालय में बच्चों की भागीदारी पर भी गहरा प्रभाव डालते हैं। यह अलग अलग सामाजिक और आर्थिक समूहों के बीच तीव्र असमानताओं में प्रतिबिंबित होता है, और विद्यालय में दाखिले और पूरा करने की दर में दिखता है। इस प्रकार, ग्रामीण और शहरी गरीबों के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों की लड़कियाँ तथा धार्मिक और अन्य अल्पसंख्यकों के असुविधाग्रस्त भाग शैक्षणिक रूप से सबसे अधिक खतरे में होते हैं। शहरी स्थलों और कई गाँवों में, विद्यालय प्रणाली कई स्तरों में विभाजित है। और छात्रों को असाधारण रूप अलग अलग अनुभव प्रदान करती है। लैंगिक संबन्धों में असमानता, शासन करने की प्रवृति को बढ़ावा देने के साथ, चिन्ताजनक भी होने है। और लड़कों और लड़कियों दोनों की मानवीय क्षमताओं को पूरी तरह से विकसित नही होने देते है। लिंग की मौजूदा असमानताओं से व्यक्ति को आजाद करना सभी के हित में है । भारत में भी सरकार ने विविधता का महत्व समझने वाले समावेशी समाज के निर्माण में शिक्षा की अहम भूमिका को पहचाना है। एक शिक्षक को इन विविधताओं को, जो उनके विद्यालय में उपस्थित है, उनकी पहचान करनी होगी और किस प्रकार से इस विविधता का उपयोग शैक्षिक संसाधन के रूप में किया जा सकता है यह सीखना होगा। इसके साथ ही एक शिक्षक को इस बात की भी पहचान होनी चाहिए कि शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में यह विविधता कब बाधक के रूप में उपस्थित हो सकती है तथा किस प्रकार से इन बाधाओं का निवारण किया जा सकता है।
- भारत एक ऐसा देश है जहाँ पर इसके अधिकतर प्रदेशों या क्षेत्रों के विद्यालयों में 'मातृभाषा और विद्यालय की भाषा समान नहीं है। ऐसी परिस्थितियों को अक्सर चुनौतीपूर्ण माना जाता है। भारत सहित अधिकांश विश्व में बहुभाषी विद्यार्थी अपवाद नहीं बल्कि आदर्श हैं। एक से अधिक भाषा ज्ञान के संज्ञानात्मक और व्यावहारिक लाभ के कई शोध और प्रमाण हैं । कक्षा में बहुभाषावाद की शक्तियों प्रयोग से मात्र विद्यार्थियों की पहचान ही नहीं मिलती बल्कि वह अपनी बातों को दृढ़ता से कह पाते हैं । इसके माध्यम से शैक्षिक उपलब्धि, भिन्न सोच, संज्ञानात्मक लचीलेपन और सामाजिक सहिष्णुता के साथ सकारात्मक रूप से प्रभावित होती है ।
- एक विद्यालय में जहाँ दो या दो से अधिक भाषाओं और बोलियों से सम्बंधित विद्यार्थी या शिक्षक हों वहाँ शिक्षकों और विद्यार्थियों के सहयोग से एक शब्दकोष का निर्माण किया जा सकता है जहाँ अलग-अलग भाषाओँ या बोलियों में किसी वस्तु विशेष के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले शब्द लिखे हों। इससे विद्यार्थी को अलग अलग भाषाओं और बोलियों की जानकारी होगी और वह धीरे-धीरे उन भाषाओं में संवाद करने में सफल होंगे। शोधों के द्वारा यह स्पष्ट है कि कई भाषाओं का प्रयोग विद्यार्थियों के स्नाग्यनात्मक विकास को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है । इसके साथ ही विद्यार्थी अन्य भाषाओँ और बोलियों की समृद्धता से परिचित होते हैं।
- जिन संस्थाओं में महिला शिक्षिकाएं होती हैं वे संस्था की अन्य महिला विद्यार्थियों को सकारात्मक रूप से उनके शिक्षा में प्रभावित करती हैं तथा उनकी सफलता में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं ।
- यदि किसी समूह में विजातीय सदस्य हों तो समूह की उत्पादकता और रचनात्मकता बढ़ती है। छात्र हमेशा कुछ सीखते हैं और जब वह भिन्नतापूर्ण वातावरण में सीखते हैं तो यह सीखना और भी समग्र रूप में होता है जैसा कि उपरोक्त में उल्लिखित है । समस्या समाधान के साथ बच्चों की सृजनात्मकता बढ़ती है । संज्ञानात्मक और और सृजनात्मक स्कूल से सम्बंधित मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि विद्यार्थी समाज और संस्कृति के माध्यम से सीखते । नई समस्यायें जो उन्हें विविधतापूर्ण कक्षा छात्रों को रचनात्मक होने के लिए प्रेरित करती है।
- शोधों के द्वारा भी यह प्रमाणित होता है कि सजातीय समूहों की तुलना में विजातीय समूहों की उत्पादकता रचनात्मकता और नवाचारिता अधिक होती है (Herring, 2009) । अधिकतर नवाचारी कम्पनियां बेहतर परिणामों के लिए विषम प्रकार समूहों के गठन पर बल देती है (Kanter, 1986)। तो कक्षा में विजातीय समूह होने से विद्यार्थियों की उत्पादकता रचनात्मकता और नवाचारिता बढ़ती है।
- विद्यार्थियों के परिणाम में सकारात्मक परिवर्तन लाने हेतु कक्षा में पायी जाने वाली विविधता सहयोग करती है। शोध यह दर्शाते है कि वे छात्र जो अन्य प्रजाति या नस्ल के लोगों के साथ कक्षा में या अनौपचारिक वातावरण पारस्परिक क्रिया करते है उनमें सक्रिय चिंतन, बौद्धिक संलग्नता, अभिप्रेरणा का उच्च स्तर एवं बौद्धिक तथा अकादमिक निपुणता में वृद्धि तुलनात्मक रूप से अधिक होती है (Gurin e al 1999, Gurin e al 2002)। एक और अध्ययन (Espenshade and Radford, 2009) में पाया गया कि विविध प्रकार के प्रजाति से सम्बंधित सहयोगियों के मध्य अनौपचारिक और सतही बातचीत के बजाय सार्थक बातचीत और सम्बन्ध अधिक लाभप्रद है ।
- कक्षाओं में विविधता का होना विद्यार्थियों के विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है। यदि देखा जाए तो भिन्न प्रकार के समूहों से सम्बंधित विद्यार्थी जब कक्षा में इकठ्ठे होते हैं यह मात्र उनके भावात्मक पक्ष के विकास में ही मात्र सहयोगी नहीं होता बल्कि संज्ञानात्मक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान करता है | Astin (1993) ने अपने शोध में पाया कि उन संस्थाओं में जो संस्थाएं अपनी नीतियों में विविधता को पोषण देती है, इसका सकारात्मक प्रभाव विद्यार्थियों के संज्ञानात्मक विकास, संस्था से सम्बंधित अनुभवों और नेतृत्व सम्बन्धी योग्यताओं पर पड़ता है। ये नीतियां शिक्षकों को भी अपने शिक्षण एवं शोधों के अंतर्गत विविधता को शामिल करने को प्रोत्साहित करती हैं। इसके साथ ही छात्रों को कक्षा में तथा कक्षेत्तर गतिविधियों में नस्लीय और बहुसांस्कृतिक मुद्दों का सामना करने का अवसर प्रदान करता है।
- विविधता के सम्बन्ध में यदि आंकड़ो को देखा जाए तो आंकड़े यह इंगित करते हैं कि कक्षा में तथा कक्षा से बाहर ऐसा समूह जो विविधता लिए हुए हो, उनका आपस में अनुक्रिया और भागीदारी सूक्ष्म तथा समीक्षात्मक चिंतन को बढ़ावा देता है। आंकड़े यह भी इंगित करते हैं कि कोई संस्था जिस हद तक एक अपने पर्यावरण को नस्लीय रूप से गैर-भेदभावपूर्ण पूर्ण बनाती है उस संस्था से सम्बंधित छात्र भी विविधता और बौद्धिक चुनौतियों दोनों को स्वीकार करने की इच्छा रखते हैं (Pascarella et al, 1996)। इस प्रकार भिन्नतापूर्ण वातावरण विद्यार्थियों के बौद्धिक, मानसिक, सामाजिक, सांवेगिक और नैतिक विकास में अत्यंत सहायक है।
- यदि भिन्नता लिए हुए समूह में कार्य करना विद्यार्थियों को सोचने, संवाद कायम करने, समझने और विचारों का आदान-प्रदान करने और निर्णय लेने के लिए प्रेरित करने का प्रभावी तरीका है। छात्र दूसरों को सीखा भी सकते हैं और उनसे सीख भी सकते हैं। यह सीखने का एक सशक्त और सक्रिय तरीका है। कक्षा में विभिन्न प्रकार के बच्चे जब होते हैं तो वह अपनी पारिवारिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, वैयक्तिक, प्रादेशिक पृष्ठभूमि के आधार पर अलग-अलग तथ्यों पर पर बल देते हैं और अलग-अलग ढंग से सीखते हैं। समूह कार्य में यदि अलग-अलग पृष्ठभूमि वाले विद्यार्थी हों तो सीखना और भी समग्र होगा क्योंकि वह किसी तथ्य के अलग-अलग पहलूओं पर ध्यान केन्द्रित करेंगे।
- विभिन्न वर्गों और समूहों से जुड़े व्यक्तियों को सेमिनार इत्यादि में विचारों को रखने हेतु आमंत्रित किया जा सकता है। इससे विद्यार्थी विविधता से परिचित होते हैं।
- यह विद्यार्थियों को राष्ट्रीय एकता के साथ अंतर्राष्ट्रीय समझ की भावना जगाता है।
पाआलो फ्रेरे अपनी पुस्तक 'आलोचनात्मक चेतना के लिए शिक्षा में कहते हैं कि “मानव होने का मतलब अन्यों और दुनिया के साथ रिश्ता रखना है। इससे व्यक्ति यह अनुभव करता है कि दुनिया व्यक्ति अलग, , समझे जाने योग्य वस्तुपरक वास्तविकता है। वास्तविकता के भीतर डूबे जानवर इससे रिश्ते नहीं रख सकते; वे केवल संपर्क रखने वाले प्राणी हैं। लेकिन मनुष्य की दुनिया से विलगता और खुलापन उसे रिश्ते रखने वाले प्राणी के रूप में अलगाती है”। अतः एक मानव के रूप में उसे स्वयं से आगे की भी जानकारी रखनी चाहिए। मानव को सम्पूर्ण दुनिया से सम्बन्ध रखने की इस आवश्यकता का आरम्भ उसके विद्यालयी जीवन से करा देना चाहिए और ऐसा हो भी जाता है। एक विद्यार्थी मात्र स्वयं से ही सम्बन्ध नहीं रखता बल्कि शिक्षकों और कक्षा के अन्य छात्रों से भी वह संपर्क रखता है। इस कारण से छात्र को विभिन्न छात्रों की पृष्ठभूमि और उससे जुड़े अन्य तथ्यों से परिचित होना आवश्यक है विद्यालयों में पायी जाने वाली विविधता उसे एक आधार प्रदान करती है कि वह किस प्रकार से एक मनुष्य के रूप में उन विविधताओं से परिचित हो सके ।