अनुशासन के उद्भव और वर्तमान समय में कुल ज्ञान परिदृश्य में उनका स्थान
ज्ञान परिदृश्य प्रस्तावना
अध्ययन क्षेत्रों
/अनुशासनों के उद्भवन को औपचारिक शिक्षा के उद्भवन के समय से ही माना जाता है।
शैक्षिक जगत के कुल संचित ज्ञान को विशिष्ट शाखाओं में वर्गीकरण के कारण कालांतर
में विषयों की जटिलता विषय की प्रकृति आदि के आधार पर विभिन्न अनुशासनों का उद्भवन
हुआ। जिसका उदेश्य यह था की एक विषय के अनुभवों को उसी विषय उप विषय को तार्किक
क्रम में व्यवस्थित करने से है। ज्यों- ज्यों विषयों का ज्ञान राशि बढ़ती जाती है
त्यों-त्यों विषय तथा अनुशासनों की संख्या भी बढती जाती है। अनुशासनों के वर्गीकरण
के करण अधिगम, शिक्षण तथा अनुसन्धान में सहजता होती है।
वर्तमान इकाई में
हम विभिन्न अध्ययनक्षेत्रों / अनुशासनों के उद्भव और वर्तमान समय में कुल ज्ञान
परिदृश्य में उनका स्थान तथा विद्यालयी पाठ्यचर्या में काम से संबंधित विषयों जैसे
बागवानी और आतिथ्य के समावेशन की सार्थकता का विस्तार पूर्वक अध्ययन करेंगे।
विभिन्न अध्ययन क्षेत्रों / अनुशासन के उद्भव और वर्तमान समय में कुल ज्ञान परिदृश्य में उनका स्थान
अनुशासन शब्द की
उत्पत्ति लैटिन भाषा के discipulus शब्द से हुई है
जिसका आशय शिष्य होता है, और disciplina जिसका अर्थ शिक्षण होता है। शैक्षिक अनुशासन
सीखने का एक क्षेत्र अथवा एक शाखा है जिसका सम्बन्ध विश्वविद्यालय के एक शैक्षिक
विभाग से होता है। जिसे अनुसन्धान तथा अावृति की उन्नति के लिए स्थापित किया जाता
है । शैक्षिक अनुशासन की स्थापना व्यवसायिकों के प्रशिक्षण, शोधकर्ताओं, विद्वानों तथा
विशेषज्ञों के लिए बनाया गया है।
एक शैक्षिक
अनुशासन अथवा क्षेत्र ज्ञान की एक शाखा के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमे
विशेषज्ञता, जनमानस, प्रोजेक्ट, समुदाय चुनौतियाँ अध्ययन, परिक्षण और शोध का क्षेत्र होता है जो घनिष्ठ
रूप से किसी विश्वविद्यालय के विभाग से जुड़ा होता है जैसे नामतः वैज्ञानिक
अनुशासन में भौतिक विज्ञान, गणित, और रसायन विज्ञान आदि। शैक्षिक संस्थानों ने
मूल रूप से विद्वानों द्वारा सृजित ज्ञान को तथा ज्ञान के विस्तारीकरण को संग्रह /
सूचीबद्ध करने के लिए अनुशासन शब्द का प्रयोग किया। उन्नीसवी सताब्दी के दौरान
जर्मन विश्वविद्यालयों में अनुशासनात्मक पद का उद्भव हुआ।
अधिकांश शैक्षणिक विषयों की उत्पत्ति की जड़ें उन्नीसवी शताब्दी कके विश्वविद्यालयों से जुडी हैं जब परंपरागत पाठ्यक्रम अशास्त्रीय भाषा और साहित्य के साथ पूरक थे जिसमें अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, लोक प्रशासन, जैसे सामाजिक विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान तथा तकनीकी विषयों इंजीनियरिंग आदि।
20 शताब्दी में
शिक्षाशास्त्र तथा मनोविज्ञान जैसे नए शैक्षणिक विषयों का प्रादुर्भाव हुआ । 1970
और 1980 के दशक में नये शैक्षिक विषयों का विष्फोट हुआ जैसे जनसंचार, महिला अध्ययन, जनसँख्या अध्ययन, पर्यावरण अध्ययन आदि विषयों की उत्त्पत्ति हुई।
कई विषयों की उत्पत्ति व्यवसायिक दृष्टिकोण से हुई जिसमें प्रमुखतः नर्सिंग, होटल मैनेजमेंट, हार्टिकल्चर आदि
हुई । कई अन्तः विषयों की उत्त्पत्ति हुई जिसमे भूविज्ञान, जैव रसायन, कम्पूटर साइंस, बायोटेक्नोलोजी आदि विषयों को व्यापक
मान्यताप्राप्त हुई।
बीसवीं शताब्दी
तक पहुँचने के पश्चात् इन पदनामों को धीरे धीरे अन्य देशों में अपनाया गया और सर्व
स्वीकृत विषय के रूप में स्थापित हो गए। हालांकि भिन्न भिन्न देशों में इन्हें एक
ही नाम से जाना जाए ये जरूरी नहीं होता है। बीसवी शताब्दी में शामिल विषयों में
विज्ञान में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, भूविज्ञान, खगोल विज्ञान तथा सामाजिक विज्ञानों में
अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, और मनोविज्ञान थे। बीसवीं शताब्दी से पूर्व
बिभिन्न अनुशासन प्रायः व्यापक और सामान्य थी जो उस समय विज्ञान में कम रूचि के
करण थी। शैक्षणिक व्यवस्था के बाहर एक व्यवसाय के रूप में विज्ञान के लिए कुछ अवसर
मौजूद थे। उच्च शिक्षा ने वैज्ञानिक जांच के लिए संस्थागत संरचना प्रदान की साथ ही
साथ आर्थिक सहायता भी प्रदान की जिसके फलस्वरूप वैज्ञानिक ज्ञान की मात्र में बहुत
तीव्र वृद्धि हुई और अध्ययनकर्ताओं द्वारा वैज्ञानिक गतिविधियों के सूक्ष्म भागों
पर ध्यान केन्द्रित किया जाने लगा अतः इस करण वैज्ञानिक विशेषज्ञता का दौर चला।
जिस प्रकार इन विशेषज्ञताओं का विकास हुआ, विश्वविद्यालयों
में आधुनिक वैज्ञानिक विषयों में भी सुधार हुआ। अंततः शिक्षा की पहचान किये गए
विषयों विशेष विषयों तथा विशिष्ट रुचिओं के केंद्र बन गए।
एंथोनी बिलन के
अनुसार “एक शैक्षिक अनुशासन अथवा अध्ययन का क्षेत्र
ज्ञान की शाखा के रूप में है। जिसके विचार और शोध उच्च शिक्षा का भाग होता
है।"
डेंज़, जेड० के अनुसार शैक्षिक अनुशासन सीखने का एक
क्षेत्र है जो विश्वविद्यालय के किसी शैक्षिक विभाग से सम्बंधित होता है। इसकी
स्थापना शोध तथा अध्ययन की उन्नति की जाती हैं यह शोधकर्ताओं, शिक्षकों तथा विशेषज्ञों के व्यावसायिक
प्रशिक्षण के लिए बनाया जाता है।
अतः एक शैक्षिक
अनुशासन ज्ञान सीखने की शाखा के रूप में अथवा एक शैक्षिक अन्वेषण के रूप में जाना
जाता है जो विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से स्नातक तथा परास्नातक स्तर पर
अध्ययन की संरचना अथवा कार्यक्रम को तय करता है अध्ययन क्षेत्र से तात्पर्य किसी
विषय के अध्ययन क्षेत्र से है और इसके दो पक्ष होते हैं सैद्धान्तिक पक्ष और
व्यावहारिक पक्षा सैद्धान्तिक पक्ष में विषय के तथ्यों, सिद्धांतों एवं नियमों का अध्ययन और विश्लेषण
किया जाता है जबकि व्यावहारिक पक्ष मूलतः विषय की शिक्षण विधियों का प्रयोग, अनुसन्धान क्षेत्र आदि का अध्ययन म्वाव व्यवहार
को केंद्र में रखकर किया जाता है। विषयों के अनुशासन को आक्सफोर्ड इंग्लिश
डिक्शनरी के अनुसार शैक्षिक अनुदेशनों के अधिगम अनुभवों की एक शाखा के रूप जाना
जाता है, जिसमें एक शैक्षिक अनुशासन की विशिष्ट जटिल
प्रशिक्षण का रूप दर्शाता है।
आर्थर डर्क्स ने
अनुशासन को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में बताते हुए यह कहते हैं कि यह एक विशिष्ट वर्ग
के को अपना अध्ययन के अभ्यास से सम्बंधित है, इसकी शोध
प्राविधि, विषयों के बारे में सत्य की खोज करता है, इसके मौलिक सिद्धांत, तथ्य एवं शब्दावली होती है तथा यह बताता है की
जिस विषय वस्तु रहें है उसका अभ्यास करना है।
मोती निस्संनी (1997) के अनुसार एक अनुशासन को अध्ययन की सुविधा के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो तुलनात्मक रूप से अपने ही तरह के विषय विशेषज्ञों के समुदाय के पास उपलब्ध ज्ञानके रूप में जाना जाता है।
अकादमिक अनुशासन की विशेषताएं
i. ज्ञान का विशेषीकृत क्षेत्र
ii. स्वयं की विशिष्ट अवधारणायें एवं सिद्धांत
iii. विशिष्ट शब्दावली
iv. शोध के विशिष्ट उदेश्य
V. निश्चित शोध-प्रविधि
vi. निश्चित विषय-वस्तु पर व्यावसायिक संगठनों से
चर्चा
सामाजिक विज्ञान विषय के बारे में एक आमधारणा बन चुकी है कि इसमें नदी, जंगल, पहाड़, राजा- रानियों की कहानियाँ, सत्ता और उसमें लोगों की भागीदारी और रोजी-रोटी यानी अर्थव्यवस्था की बातें बताई जाती हैं और इन बातों को पढ़ने से उन्हें कुछ नहीं मिलने वाला। दैनिक जीवन जीने के लिए तकनीकी कुशलता होनी चाहिए और इसके लिए विज्ञान और गणित विषयों की पढ़ाई अधिक जरूरी है। भौतिकवादी जीवन जीना एकमात्र लक्ष्य हो गया है तो सामाजिक संस्कारों की बात, अच्छे नागरिक की अवधारणा, नैतिकता आदि चीजें गौण लगने लगी हैं। विकास की अंधी दौड़ में शामिल होकर सामाजिक और नैतिक मूल्यों को तुच्छ समझा जाने लगा है। परन्तु सच्चाई यह है कि मानव में नैतिक मूल्यों का विकास करके ही एक अच्छे नागरिक का निर्माण किया जा सकता हैं:-
शिक्षा के विभिन्न अध्ययन क्षेत्रों की उत्पत्ति के कई कारक होते हैं जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख कारक
i. तकनीकी उन्नति
ii. इतिहास ज्ञान
iii स्वास्थ्य संबंधी ज्ञान
iv.गणितीय क्षमताओं का ज्ञान
V. सभ्यता और संस्कृति के ज्ञान से अवगत कराना
vi. संस्कृति के द्वारा नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा को बढ़ावा
vii. संस्कृति का संरक्षण
viii. नारी सशक्तिकरण
ix. राष्ट्रीय आर्थिक वृद्धि
X.. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार
xi. भाषायी विभिन्नता को समझना
xii. मिडिया की उत्त्पत्ति
xiii. औद्योगीकरण में रोजगार के अवसर
xiv. फैशन
XV. तुलनात्मक शिक्षा का ज्ञान
xvi. समाज के उत्थान के लिए सरकारी नीतियों के किर्यान्वयन का ज्ञान
सभी विषयों का
अपना एक स्वतंत्र क्षेत्र, स्वतंत्र
पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि तथा अनुसन्धान क्षेत्र होता है। किसी भी विषय को
अनुशासित बनाने के लिए उसमें निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए
i. प्रसंग
ii. विषय वस्तु
iii. पाठ्यक्रम
iv. प्रकरण
V. मुद्दे
vi. मूल प्रश्न
vii. संकाय
viii. अनुसन्धान केंद्र
ix. शोध पुस्तिका
X. उत्प्रेरणात्मक उद्देश्य