आकलन का समाजिक - संस्कृतिवादी दृष्टिकोण (Socio- Culturist Approach)
आकलन का समाजिक - संस्कृतिवादी दृष्टिकोण (Socio- Culturist Approach)
संरचनावादी विचारधारा के समाज-संस्कृतिवादी दृष्टिकोण (Socio-Culturist Approach) के महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिकों में लेव वाइगोत्सकी हैं जिन्होंने संज्ञानात्मक विकास को भाषा और सामाजिक एवं सांस्कृतिक अन्तः क्रिया का प्रतिफल माना है। संज्ञानात्मक विकास के सन्दर्भ में रूसी मनोवैज्ञानिक लेव वाइगोत्सकी (Lev Vygotsky) ने जीन प्याजे से अलग एक अन्य दृष्टिकोण सामने रखा जो महत्वपूर्ण है। वाइगोत्सकी का मानना था कि बालक के संज्ञानात्मक विकास में उसके समाज एवं संस्कृति की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है और इसी वजह से वाइगोत्सकी के सिद्धांत को समाज - सांस्कृतिक सिद्धांत (Socio-Cultural Theory) के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि लेव वाइगोत्सकी का यह सिद्धांत जीन प्याजे के सिद्धांत की तरह लोकप्रियता नहीं प्राप्त कर सका परन्तु शिक्षा पर बढ़ते रचनावादी प्रभाव ने वर्तमान शिक्षाविदों को लेव वाइगोत्सकी के सिद्धांत की ओर आकर्षित किया है। लेव वाइगोत्सकी के सिद्धांत के ज्यादा लोकप्रिय न हो पाने के कारणों में से एक है उनका मात्र 37 वर्ष की अवस्था में असामयिक निधन | वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चे के पास अन्य जीवों के सामान ही मौलिक ध्यान, प्रत्यक्षण एवं स्मरण क्षमता होती है जिसका विकास प्रारंभिक दो वर्षों में वातावरण के साथ उनके सीधे संपर्क के कारण होता है। इसके बाद भाषा का तीव्र गति से विकास उनकी चिंतन प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव डालता है। वाईगोत्सकी ने संज्ञानात्मक विकास में बच्चों की भाषा एवं चिन्तन को भी महत्वपूर्ण साधन बतलाया है। इनका मत है कि छोटे बच्चों द्वारा भाषा का उपयोग सिर्फ सामाजिक संचार के लिये ही नहीं किया जाता है बल्कि इसका उपयोग वे अपने व्यवहार को नियोजित एवं निर्देशित करने के लिए भी करते हैं। बच्चे प्रायः आत्म नियमन के लिये भी भाषा का उपयोग करते हैं जिसे तो इसे आंतरिक सम्भाषण या निजी सम्भाषण का नाम दिया जा सकता है। यदि हम जीन प्याजे के सिद्धांत पर नजर डालें तो इस बिन्दु पर वाइगोत्सकी का मत पियाजे से भिन्न है। पियाजे के अनुसार यह निजी सम्भाषण आत्मकेन्द्रित व्यवहार (Egocentrism) है जबकि वाइगोत्सकी अनुसार यह आरम्भिक वाल्यावस्था में चिन्तन का एक महत्वपूर्ण साधन है।
समाज-संस्कृतिवादी दृष्टिकोण की मान्यताएं
समाज-संस्कृतिवादी दृष्टिकोण की मान्यताएं निम्नांकित हैं:
- बिना किसी सन्दर्भ के अधिगम संभव नहीं हो सकता अर्थात सन्दर्भगत अधिगम ही मौलिक अधिगम है।
- अधिगम में परासंज्ञान (Meta Cognition) की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
- अधिगम उत्पाद से ज्यादा महत्वपूर्ण अधिगम प्रक्रिया होती है अर्थात अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर बनाकर इसे प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
- मानव विकास के लिए सामाजिक सन्दर्भ बहुत ही आवश्यक है, इसलिए बायगोत्सकी को सामाजिक सृजनवाद का जनक भी माना जाता है।
- बच्चों द्वारा ज्ञान का सृजन किया जाता है न कि उनके द्वारा प्राप्त किया जाता है।
- किसी भी बच्चे का विकास सामाजिक परिस्थिति में ही संभव है।
- बच्चों का संज्ञानात्मक विकास सामूहिक प्रक्रिया द्वारा संभव हो पाता है।
- बच्चे सामाजिक अंतः क्रिया द्वारा ही सीखते हैं।
- विकास एक आजीवन प्रक्रिया है जो सामाजिक अंतःक्रिया पर निर्भर करता है तथा इस सामाजिक अधिगम के फलस्वरूप संज्ञानात्मक विकास संभव होता है।
रचनावादी सामाजिक संस्कृतिवाद एवं अधिगम
भाषा बच्चों को विभिन्न मानसिक क्रियाओं एवं व्यवहार एवं तदनुसार उपयुक्त कार्य विधि को सोचने में में मदद करता है, अतः वाइगोत्सकी ने भाषा को समस्त उच्च स्तरीय संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं यथा नियंत्रित अवधान, ऐच्छिक स्मरण, योजना बनाना, समस्या समाधान एवं अमूर्त चिंतन एवं तर्क का आधार माना है। वाइगोत्सकी का मत था कि बच्चों में उत्तम परन्तु अक्रमबद्ध, असंगठित तथा स्वत: प्रवर्तित, सम्प्रत्यय होते हैं और जब ऐसे बच्चों का संवाद या वार्तालाप अधिक निपुण एवं प्रवीण सम्प्रत्यय वाले व्यक्ति से होता है तब उनके बीच के संवाद के फलस्वरूप उनका सम्प्रत्यय एक क्रमबद्ध, तार्किक एवं तर्कसंगत सम्प्रत्यय में बदल जाता है।
लेव वाइगोत्सकी के सिद्धांत का केंद्र है: संस्कृतिः मूल्य, विश्वास, रीतिरिवाज एवं किसी सामाजिक समूह के कौशल कैसे उसकी अगली पीढ़ियों में स्थानांतरित होते हैं। लेव वाईगोत्सकी के अनुसार सामजिक अंतःक्रिया विशेषकर बच्चों एवं उनसे अपेक्षाकृत ज्यादा ज्ञान रखनेवाले समाज के सदस्यों के मध्य का सहयोगात्मक संवाद बच्चों के चिंतन एवं उनके संस्कृति विशेष में व्यवहार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। वाइगोत्सकी का मानना था कि चूँकि वयस्क एवं अपेक्षाकृत अधिक ज्ञान
रखनेवाले सहपाठी बच्चों को सांस्कृतिक रूप से सार्थक क्रियाकलापों पर दक्षता हासिल करने में मदद करते हैं, अतः उनका आपसी संवाद बच्चों के चिंतन का एक भाग बन जाता है। बच्चे इन संवादों की विशेषताओं को आत्मसात कर लेते हैं अतः वे भाषा का प्रयोग अपने विचारों एवं कार्यों के निर्देशन और नए कौशल सीखने में करते हैं। जीन प्याजे की तरह ही वाइगोत्सकी का यह मानना है कि बच्चे सक्रिय एवं रचनात्मक जीव हैं परन्तु पियाजे का मानना कि 'बच्चे स्वतंत्र रूप से अपने प्रयासों से संसार का अनुभव करते हैं? के विपरीत वाइगोत्सकी मानते हैं कि 'संज्ञानात्मक विकास एक समाज संपोषित प्रक्रिया है जिसमे बच्चे नए ज्ञान की प्राप्ति के लिए वयस्कों एवं अपेक्षाकृत अधिक ज्ञान वाले सहपाठियों / मित्रों की सहायता पर निर्भर रहते हैं। वाईगोत्सकी का यह भी मानना है कि विशेषज्ञों के साथ संवाद के कारण बच्चों के संज्ञान में सतत परिवर्तन होते रहते हैं जिसमे काफी सांस्कृतिक विभिन्नताएं पाई जाती हैं।
समीपस्थ विकास का क्षेत्र (Zone of Proximal Development or ZPD) वाइगोत्सकी के अनुसार बच्चों का अधिगम उनके समीपस्थ विकास के क्षेत्र में होता है। समीपस्थ विकास का क्षेत्र वह क्षेत्र है जिसमे कोई बच्चा विभिन्न कार्यों को स्वतंत्र रूप से नहीं कर पाता परन्तु वयस्कों एवं अपेक्षाकृत अधि कुशल सहपाठियों के सहयोग से कर सकता है। वाइगोत्सकी अनुसार संज्ञानात्मक विकास को प्रोत्साहि करने के लिए सामाजिक अंतःक्रिया में अंतर्वैयक्तिकता (Inter-subjectivity) (अर्थात दो व्यक्ति दो भिन्न समझ से कोई कार्य आरम्भ करें और आखिर में एक सहभागी समझ तक पहुंचें) का होना आवश्यक है। साथ ही सामाजिक अंतः क्रिया में ढांचा / मंच निर्माण (Scaffolding) भी होना चाहिए। ढांचा / मंच निर्माण (Scaffolding) से तात्पर्य शिक्षण के दौरान शिक्षक के द्वारा दिए जा रहे सहयोग के उपयुक्त समायोजन से है ताकि नया ज्ञान बच्चे की वर्तमान दक्षता मे समाहित हो सके। जब बच्चे को इसकी कम जानकारी होती है कि आगे क्या करना है तब उसे प्रत्यक्ष निर्देश देना, कार्य को छोटे छोटे भागों में बांटकर समझाना, कार्य करने के विभिन्न तरीके एवं उनके पीछे का तर्क बताना और बच्चा जैसे जैसे उस कार्य में दक्षता हासिल करले वैसे वैसे सहयोग को कम करते जाना और अंततः बच्चे को स्वतंत्र रूप से उस कार्य मे दक्ष बना देना ढांचा निर्माण (Scaffolding) है। आजकल ढांचा निर्माण / मंच निर्माण की बजाय वृहत अर्थों में इस प्रक्रिया के लिए निर्देशित सहभागिता (Guided Participation) शब्द ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है। मान लिया जाए कि एक ही आयु के दो बालक A और B पियाजे द्वारा दिये गये संरक्षण समस्याओं का समाधान स्वतंत्र रूप से नहीं कर पाते हैं, परन्तु माता पिता, शिक्षक या अन्य अपने से बड़े उम्र के बच्चों से निर्देश पाकर A तो इन समस्याओं का समाधान कर लेता है परन्तु B उसका समाधान इस प्रकार की सहायता दिए जाने पर भी नहीं कर पाता है। ऐसे में क्या A और B दोनों एक ही संज्ञानात्मक स्तर पर हैं? पियाजे का उत्तर होगा हाँ जबकि वाइगोत्सकी का उत्तर होगा नहीं क्योंकि दोनों के 'समीपस्थ विकास का क्षेत्र' अर्थात बच्चे स्वतंत्र रूप से क्या कर सकते हैं तथा व्यस्कों से सहायता प्राप्त करके वे क्या और कर सकते है. में अंतर है।
संज्ञानात्मक रचनावाद (पियाजे) एवं सामाजिक संस्कृतिवाद (वायगोत्सकी) की तुलना
पियाजे ने यह स्पष्ट किया था कि बच्चों के संज्ञानात्मक विकास में संस्कृति तथा शिक्षा की भूमिका महत्वपूर्ण नहीं है। वायगोत्सकी ने इसे अस्वीकृत करते हुए कहा कि बच्चे किसी भी उम्र में भी संज्ञानात्मक कौशल को सीखते हैं, उन पर इस बात का अधिक प्रभाव पड़ता है कि संस्कृति से उन्हें संगत सूचना तथा निर्देश प्राप्त हो रहे हैं या नहीं। अब प्रश्न उठता है कि वायगोत्सकी के सिद्धान्त में समीपस्थ विकास का क्षेत्र इतना क्यों महत्वपूर्ण है? इसके दो कारण बतलाये गए हैं :
- इससे यह पहचान करने में मदद मिलती है कि बच्चे क्या जल्द ही अपने स्तर से कुछ कर सकते हैं।
- इससे यह भी पता चलता है कि हमलोग बच्चों के जैविक परिपक्वता के आलोक में एक सीमा या क्षेत्र के भीतर बच्चों को संज्ञानात्मक विकास को आगे बढ़ा सकते हैं।
वस्तुतः वाइगोत्सकी का सिद्धांत, प्याजे से भिन्न शिक्षण एवं अधिगम के प्रति एक नयी दृष्टि प्रदान करता है जो शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया मे सामजिक सन्दर्भ एवं सहयोग को महत्वपूर्ण मानता है। जीन प्याजे की रचनावादी कक्षा के सामान ही वाइगोत्सकी की कक्षा व्यक्तिगत भिन्नताओं को तो स्वीकार करता है एवं बच्चों की सक्रिय भागीदारी का समर्थन करता है परन्तु वाइगोत्सकी की रचनावादी कक्षा पियाजे के स्वतंत्र खोज से आगे बढ़ कर सहयोगात्मक अन्वेषण को बढ़ावा देता है जिसमे शिक्षक का निर्देशित सहयोग एवं सहपाठी सहयोग दोनों शामिल हैं।
सामाजिक संस्कृतिवाद और आकलन
सामाजिक संस्कृतिवाद समस्त अधिगम को सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में देखता है। अतः आकलन को भी विद्यार्थी के सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए आकलन के रिपोर्ट को भी सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। आकलन छोटे समूह बनाकर दिए गए कार्य के द्वारा किया जा सकता है।
सामाजिक संस्कृतिवाद आकलन की प्रक्रिया में योगात्मक आकलन (Summative Assessment) की बजाय सतत रचनात्मक आकलन (Formative Assessment) को ज्यादा महत्वपूर्ण माना।
सामाजिक संस्कृतिवाद व्यक्तिगत संज्ञानात्मक भिन्नताओं के अनुसार आकलन में लचीलापन रखने की बात करता है।