विद्यालयों के प्रमुख सामाजिक विज्ञान विषय (भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, इतिहास)
विद्यालयों के प्रमुख सामाजिक विज्ञान विषय प्रस्तावना
जनसंख्या विस्फोट, नगरीकरण, प्रौद्योगिकी उन्नति, यातायात, उद्योग, सूचना आदि क्षेत्रों में हुए परिवर्तनों ने मानव समायोजन की विभिन्न समस्याओं को जन्म दिया तथा सामाजिक कारकों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मानव को बाध्य किया। आज इलेक्ट्रॉनिक विचार करने वाली मशीनों के संचालन के लिए मानव मस्तिष्क की आवश्यकता है क्योंकि इसके द्वारा उनके प्रोग्रामों को बनाया जाता है अतः सामाजिक अंतः चेतना (Social Consciousness) के अभाव में प्रौद्योगिकी एवं वैज्ञानिक उन्नति मानव हित के लिए कार्य नहीं कर सकती। वर्तमान सामाजिक संस्थाएं और मूल्य इन परिवर्तनों के साथ सामंजस्य स्थापित करने में असमर्थ साबित हो रहे हैं। मानव ऐसी सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने में अभी तक असफल है जिसमें बढ़ी हुई शक्तियों और भौतिक समृद्धि के साथ तालमेल हो सके। इस तालमेल की स्थापना के लिए आज चारों ओर सामाजिक विज्ञानों की शिक्षा की मांग बढ़ती जा रही है। मानव समाज में हुए सामाजिक परिवर्तनों को समझने तथा उनके साथ तालमेल स्थापित करने के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है। इसी संदर्भ में इस इकाई में विभिन्न सामाजिक विज्ञान संबंधी विषयों के अर्थ उनका अध्ययन एवं शिक्षण की आवश्यकता तथा सामाजिक विज्ञान विषयों के बीच सहसंबंध को स्पष्ट किया गया है।
विद्यालयों के प्रमुख सामाजिक विज्ञान विषय
सामाजिक विज्ञान
तथा सामाजिक अध्ययन दोनों मानवीय संबंधों की विवेचना करते हैं परंतु सामाजिक
विज्ञान प्रौढ़ावस्था पर तथा सामाजिक अध्ययन बालकों के स्तर पर। अतः यह स्पष्ट है
कि सामाजिक अध्ययन मूलतः सामाजिक विज्ञानों से ही अपनी विषय वस्तु ग्रहण करता है।
सामाजिक अध्ययन सामाजिक विज्ञान है जिसको निर्देशात्मक अभिप्रायों के लिए सरलीकृत
एवम पुनः संगठित किया गया है अतः सामाजिक विज्ञानों तथा सामाजिक अध्ययन में
दार्शनिक या सिद्धांतिकअंतर नहीं है वरन केवल व्यवहारिक एवं सुविधा की दृष्टिकोण
से अंतर है ।
सामाजिक अध्ययन
नामक पद उन विद्यालय विषयों की ओर संकेत देता है जो मानवीय संबंधों का विवेचन करते
हैं। यह अध्ययन क्षेत्र विषयों के एक संघ तथा पाठ्यक्रम के एक खंड का निर्माण करता
है। यह खंड वह है जो प्रत्यक्ष रूप से मानवीय संबंधों से संबंधित है।
1 भूगोल का अर्थ
भूगोल दो शब्दों
भू यानी पृथ्वी और गोल से मिलकर बना है। भूगोल पृथ्वी का अध्ययन करता है अर्था
विश्व की प्राकृतिक दशाओं का विवेचन करता है । क्लाडियस टालमी के अनुसार भूगोल
पृथ्वी की झलक को स्वर्ग में देखने वाला आभामय में विज्ञान है।
स्ट्रैबो के
अनुसार भूगोल एक ऐसा स्वतंत्र विषय है जिसका उद्देश्य लोगों को इस विश्व का आकाशीय
पिंडों का स्थल महासागर जीव-जंतुओं वनस्पतियों फलो तथा भू धरातल के क्षेत्रों में
देखी जाने वाली प्रत्येक अन्य वस्तु का ज्ञान प्राप्त कराना है।
भूगोल एक
प्राचीनतम विज्ञान है और इसकी नींव प्रारंभिक यूनानी विद्वानों के कार्यों में
दिखाई पड़ती है। भूगोल शब्द का प्रथम प्रयोग यूनानी विद्वान इरैटोस्थनीज ने तीसरी
शताब्दी ईसा पूर्व में किया था। भूगोल विस्तृत पैमाने पर सभी भौतिक व मानवीय
तथ्यों की अंतर क्रियाओं और इन अंतर क्रियाओं से उत्पन्न रूपों का अध्ययन करता है।
यह बताता है कि कैसे क्यों और कहां मानवीय व प्राकृतिक क्रियाकलापों का शुद्ध होता
है? और कैसे यह क्रियाकलाप एक-दूसरे से अंतर संबंधित हैं?
भूगोल स्थान का
विज्ञान है। भूगोल प्राकृतिक व सामाजिक दोनों ही विज्ञान है जो कि मानव व पर्यावरण
दोनों का ही अध्ययन करता है। यह भौतिक व सांस्कृतिक विश्व को जोड़ता है। भौतिक
भूगोल पृथ्वी की व्यवस्था से उत्पन्न प्राकृतिक पर्यावरण का अध्ययन करता है। मानव
भूगोल राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और
जनांकिकीय प्रक्रियाओं से संबंधित है और यह संसाधनों के विभिन्न प्रयोगों से भी
संबंधित है।
भूगोल मानवीय ज्ञान की वृद्धि में तीन प्रकार से सहायक होता है-
i. विज्ञानों से प्राप्त तथ्यों का विवेचन करके मानवीय वास स्थान के रूप में पृथ्वी का अध्ययन करता है
ii. अन्य विज्ञानों के द्वारा विकसित धारणाओं में अंतर्निहित तथ्य की परीक्षा का अवसर देता है क्योंकि भूगोल अवधारणाओं का स्थान विशेष पर प्रयोग कर सकता है।
iii. यह सार्वजनिक अथवा निजी नीतियों के निर्धारण में अपनी विशिष्ट पृष्ठभूमि प्रदान करता है जिसके आधार पर समस्याओं का स्पष्टीकरण सुविधाजनक हो जाता है।
भूगोल के अध्ययन
विधि परिवर्तित होती रही है। प्रारंभिक विद्वान वर्णनात्मक भूगोलवेत्ता थे बाद में
भूगोल विश्लेषणात्मक भूगोल के रूप में विकसित हुआ और आज यह विषय न केवल वर्णन करता
है बल्कि विश्लेषण के साथ-साथ भविष्यवाणी भी करता है।
2 अर्थशास्त्र का अर्थ
अर्थशास्त्र
सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, वितरण, विनिमय और उपभोग
का अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र शब्द संस्कृत शब्दों अर्थ और शास्त्र की संधि
से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है धन का अध्ययन प्रसिद्ध
अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने 1776 में प्रकाशित अपनी पुस्तक एन इंक्वारी इनटू द नेचर
एंड द कॉसेस ऑफ द वेल्थ ऑफ नेशंस' मैं अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान माना है।
डॉ अल्फ्रेड
मार्शल ने 1890 में प्रकाशित अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र के सिद्धांत में अर्थशास्त्र
कल्याण संबंधी परिभाषा देकर इस को लोकप्रिय बना दिया। आधुनिक अर्थशास्त्री
सैम्यूलसन ने अर्थशास्त्र को 'विकास का शास्त्र' कहा है।
लियोनेल रोबिंसन
के अनुसार आधुनिक अर्थशास्त्र की परिभाषा इस प्रकार है वह विज्ञान जो मानव स्वभाव
का वैकल्पिक उपयोगों वाले सीमित साधनों और उनके प्रयोग के मध्य अंतरसंबंधों का
अध्ययन करता है । अर्थशास्त्र मैं अर्थ संबंधी बातों की प्रधानता होना स्वभाविक है
परंतु हमको यह न भूल जाना चाहिए कि ज्ञान का उद्देश्य अर्थ प्राप्त करना ही नहीं
है अपितु सत्य की खोज द्वारा विश्व के लिए कल्याण सुख और शांति प्राप्त करना भी
है। अर्थशास्त्र यह बतलाता है कि मनुष्यों के आर्थिक प्रयत्नों द्वारा विश्व में
सुख और शांति कैसे प्राप्त हो सकती है। अर्थशास्त्र का दृष्टिकोण अंतरराष्ट्रीय है
यद्यपि उसमें व्यक्तिगत और राष्ट्रीय हितों का भी विवेचन रहता है। अर्थशास्त्र में
आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन करता है। यह शास्त्र समाज के उस अंग का वर्णन करता है
जिसमें धन की उत्पत्ति, वितरण, उपभोग तथा विनिमय
संबंधी क्रियाएं निहित रहती हैं। अर्थात अर्थशास्त्र भी मानव जीवन का अध्ययन करता
है। यह मानव जीवन की अर्थ क्रियाओं का अर्थ आवश्यक्ताओं का अध्ययन करता है । मूल्य, मांग और आपूर्ति
की अवधारणा अर्थशास्त्र में केंद्रीय है।
3 राजनीति शास्त्र का अर्थ
राजनीति शास्त्र
शब्द की उत्पत्ति यूनानी शब्द ' पोलिस' शब्द से मानी
जाती है जिसका अर्थ है ' नगर राज्य' राजनीति शास्त्र
एक ऐसा विषय माना जाता था। इसके अंतर्गत नगर राज्य की समस्त गतिविधियां एवं
क्रियाओं का अध्ययन किया जाता था। प्राचीन ग्रीक दार्शनिक राज्य और सरकार के बीच
कोई अंतर नहीं मानते थे। वह कभी भी वैयक्तिक जीवन एवं सामाजिक जीवन में कोई विभेद
नहीं करते थे। उनके अनुसार राजनीति मनुष्य समाज राज्य एवं नैतिकता का समग्र अध्ययन
है।
परंपरागत
राजनीतिक चिंतकों के अनुसार राजनीति विज्ञान, राज्य का अध्ययन
है।
J.W. Ganner States के अनुसार-
राजनीति विज्ञान राज्य के साथ ही शुरू होता है और राज्य के साथ ही समाप्त होता है। कुछ विद्वान इसे राज्य एवं सरकार का अध्ययन मानते हैं।
George Catlin States के अनुसार-
राजनीति से तात्यपर्य या तो राजनीतिक जीवन की क्रियाओं या उन क्रियाओं के अध्ययन से है और यह समस्त क्रियाएं सामान्यतया सरकार के विभिन्न अंगों से संबंधित होती हैं। राजनीति विज्ञान एक ऐसा विवेचनात्मक अध्ययन है, जो राष्ट्रीय राजनीतिक संस्थानों के विवरण उनके इतिहास उनके सिद्धांतों उनकी कार्य विधि दिशा निर्देशक बलों, अंतर्निहित प्रभावों परिणामों जो उन प्रभावों से जनित है और उनका देश के जीवन पर प्रभाव तथा पड़ोसी राज्यों के साथ संबंधों को जोड़ता है।
राज्य सरकार और
राष्ट्रीय संस्थान के अध्ययन के रुप में राजनीति विज्ञान का संप्रत्यय वर्तमान में
पर्याप्त नहीं माना जाता है उपरोक्त परिभाषाएं केवल विधिक स्वरूप को परिलक्षित
करती है। उनसे यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि राज्य के अंदर क्या घटित हो रहा है।
इसलिए राजनीतिक चिंतको द्वारा इसे अलग तरीके से परिभाषित किया गया है।
Harold Lasswell के अनुसार-
राजनीति राजनैतिक शक्तियों को आकार देना केवल उनको साझा करना है।
आधुनिक चिंतकों के अनुसार समस्त राजनैतिक क्रियाएं शक्ति को हासिल करने एवं उसे बरकरार रखने की ओर अग्रसर हैं। शक्ति राजनीति में केंद्रीय विचार है, शक्ति कौन प्राप्त करेगा? कैसे प्राप्त करेगा? कब प्राप्त करेगा? और क्या प्राप्त करेगा? इन प्रश्नों से संबंधित है।
कुछ विद्वानों ने राजनीति विज्ञान को द्वंद समाधान का अध्ययन माना है। राजनीतिक प्रक्रिया का उद्देश्य या तो परिवर्तन लाना है या परिवर्तन का विरोध करना है। लोग अपनी आवश्यक्ताओं की पूर्ति हेतु प्रतिस्पर्धा करते हैं। जब संसाधन सीमित हैं और लोग उन्हें इस्तेमाल करना चाहते हैं तभी द्वंद उत्पन्न होते हैं। राजनीति इन्हीं द्वंद का समाधान करती है।
कुछ विद्वान राजनीति विज्ञान को अनेक बलों के सहसंबंध का अध्ययन मानते हैं। उनके अनुसार राजनीति संस्थान एवं राजनीति निर्वात में संचालित नहीं हो सकती है। सामाजिक एवं आर्थिक बल राजनीतिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं इसलिए इन बलों का सहसंबंध राजनीति में महत्वपूर्ण है।
उपरोक्त
परिभाषाओं को संकलित कर निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है, कि राजनीति
विज्ञान राज्य सरकार, राजनीतिक संस्थाओं, शक्ति सत्ता
प्रभाव राजनैतिक प्रक्रियाओं एवं राजनीतिक बलों का क्रमबद्ध अध्ययन है।
4 इतिहास का अर्थ
इतिहास शब्द का
प्रयोग विशेषता दो अर्थों में किया जाता है। एक है प्राचीन अथवा विगत काल की
घटनाएं और दूसरा उन घटनाओं के विषय में धारणा । इतिहास शब्द ( इति + ह + आस, अस् धातु, लिट् लकार अन्य
पुरुष तथा एकवचन) का तात्पर्य है "यह निश्चय था" । ग्रीस के लोग इतिहास
के लिए हिस्तरी (History) शब्द का प्रयोग करते थे।
हिस्तरी का शाब्दिक अर्थ "बुनना" था। अनुमान होता है कि ज्ञात घटनाओं को
व्यवस्थित ढंग से बुनकर ऐसा चित्र उपस्थित करने की कोशिश की जाती थी जो सार्थक और
सुसंबद्ध हो।
इस प्रकार इतिहास शब्द का अर्थ है- परंपरा से प्राप्त उपाख्यान समूह (जैसे की लोक कथाएं), वीरगाथा यह ऐतिहासिक साक्ष्य। इतिहास के अंतर्गत हम जिस विषय का अध्ययन करते हैं उस में अब तक घटित घटनाओं या उससे संबंध रखने वाली घटनाओं का कालक्रमानुसार वर्णन होता है। प्राचीनता से नवीनता की ओर आने वाली मानव जाति से संबंधित घटनाओं का वर्णन ही इतिहास है। इन घटनाओं व ऐतिहासिक साक्ष्यों को तथ्य के आधार पर प्रमाणित किया जाता है।
इतिहास को मानव
सभ्यता का कोष कहा जाता है। इतिहास अतीत की कहानी है जिसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक तथा
सांस्कृतिक उन्नति का विश्लेषण प्राप्त होता है। इतिहास भूतकाल का विश्लेषण करके
वर्तमान को स्पष्ट करता है तथा इसके साथ ही भविष्य के लिए मार्ग प्रदर्शित करता
है।
इतिहास के मुख्य
आधार युग 'विशेष और घटनास्थल के वे अवश्य से हैं जो किसी न किसी रूप
में प्राप्त होते हैं। जीवन की बहुमुखी व्यापकता के कारण स्वर्ग सामग्री के सहारे
विगत युग अथवा का चित्र निर्माण करना दुःसाध्य है। सामग्री जितनी ही अधिक होती
जाती है उसी अनुपात से बीते युग तथा समाज की रूपरेखा प्रस्तुत करना साध्य होता
जाता है। पर्याप्त साधनों के होते हुए भी यह नहीं कहा जा सकता कि कल्पना मिश्रित
चित्र निश्चित रूप से शब्द या सत्य ही होगा। इसलिए उपयुक्त कमी का ध्यान रखकर कुछ
विद्वान कहते हैं कि इतिहास की संपूर्णता असाध्य सी है, फिर भी यदि हमारा
अनुभव और ज्ञान प्रचुर हो ऐतिहासिक सामग्री की जांच पड़ताल को हमारी कला तर्क
प्रतिष्ठित हो तथा कल्पन संयत और विकसित हों तो अतीत का हमारा चित्र अधिक मानवीय
और प्रामाणिक हो सकता है सारांश यह है कि इतिहास की रचना में पर्याप्त सामग्री, वैज्ञानिक ढंग से
उसकी जांच, उससे प्राप्त ज्ञान का महत्व समझने के विवेक के साथ ही
ऐतिहासिक कल्पना की शक्ति तथा सजीव चित्रण की क्षमता की आवश्यकता है। स्मरण रखना
चाहिए इतिहास न तो साधारण परिभाषा के अनुसार विज्ञान है और न केवल काल्पनिक दर्शन
अथवा साहित्य रचना है इन सब के इतिहास का स्वरूप जाता है।
लिखित इतिहास का आरंभ पद्य अथवा गद्य में वीरगाथा के रूप हुआ फिर वीरों अथवा विशिष्ट घटनाओं के संबंध में अनुश्रुति अथवा लेखक की पुस्तक से गद्य में रचना प्रारंभ हुई। इस प्रकार के लिए कपड़ों, पत्थरों, छालों और कपड़ों पर मिलते हैं। कागज का आविष्कार होने से लेखन और पठन पाठन का मार्ग प्रशस्त हो गया लिखित सामग्री को अन्य प्रकार की सामग्री जैसे खंडहर बर्तन धातु के खिलौने तथा यातायात के साधनो आज के सहयोग द्वारा ऐतिहासिक ज्ञान का क्षेत्र और कोश बढ़ता चला गया। उस सब सामग्री की जांच पड़ताल की वैज्ञानिक कला का विकास होता गया। प्राप्त ज्ञान को सजीव भाषा में गुंफित करने की कला ने आश्चर्यजनक उन्नति कर ली है फिर भी दर्शन के लिए कल्पना अभ्यास, किंतु अधिकतर व्यक्ति की नैसर्गिक क्षमता एवं सूक्ष्म तथा क्रांत दृष्टि पर आश्रित है । यद्यपि इतिहास का आरंभ एशिया में हुआ तथापि उसका विकास यूरोप में विशेष रूप से हुआ।