विभिन्न भाषाओं की लिपियाँ
विभिन्न भाषाओं की लिपियाँ
विभिन्न भाषाओं की लिपियों के अध्ययनके लिए हम वर्तमान से भूतकाल की ओर बढ़ेंगे अर्थात जिन लिपियों का हम प्रयोग करते हैं उनकी उत्पत्ति व प्रकृति के अध्ययन करते हुए प्राचीन लिपियों के बारे में संक्षिप्त चर्चा करेंगे।
क. देवनागरी लिपि:
हिंदी और संस्कृत भाषाएं वर्तमान समय में देवनागरी लिपि में ही लिखी जाती है। हिंदी और देवनागरी लिपि तो एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं। परिणाम स्वरूप देवनागरी को हिंदी लिपि भी कहते हैं इसका एक नाम नागरी लिपि भी है। इसके नामकरण के कारण को भी स्पष्ट रूप से पहचाना नहीं जा सका है। अलग-अलग विद्वान अपनी अपनी कल्पना के आधार पर (क्योंकि साक्ष्य का अभाव है) इसकी व्याख्या करते हैं।
i. प्रथम मत के अनुसार यह लिपि नगरीय (शहरों की) सभ्यता में जन्मी और प्रचलित रही।
ii. द्वितीय मतानुसार गुजरात के नागर ब्राह्मणों द्वारा प्रयोग की जाती रही।
iii. तृतीय मतानुसार यह लिपि देवनगर स्थान में उत्पन्न हुई।
iv. एकमत के अनुसार यह लिपि काशी और आसपास के क्षेत्र में विकसित हुई। काशी देवनगर भी कहते हैं। इसलिए इसका नाम देवनागरी हो गया। दक्षिण भारत में इसका नाम 'नंदी - नागरी लिपि भी है, जो इसका संबंध काशी शिव और प्राचीनतम नगर वाराणसी से जोड़ता है।
इस लिपि का विकास 1000 से 1200 ई0 के लगभग प्राचीन नागरी लिपि से माना जाता है। प्राचीन नागरी लिपि के अभिलेख आठवीं शदी से 16 शदी तक दक्षिण भारत में मिलते हैं। देवनागरी लिपि में सामान्यरूप से 52 अक्षर बताये जाते है। जिनमें से 49 अक्षर वर्त्मान समय में अधिक प्रचलन में है, और 3 का हिंदी में प्रयोग नगण्य हो गया है। संस्कृत भाषा में ज़रुर सभी 52 अक्षरों का प्रयोग किया जाता है। संस्कृत में प्रयुक्त अक्षरों के आधार पर देवनागरी लिपि में अक्षरों की संख्या 56 / 57 तक पहुँच जाती है। प्राचीन समय में संस्कृत भाषा ब्राम्ही लिपि में लिखी जाती रही है। अतः उन अक्षरों को ब्राम्ही लिपि का हिस्सा मानकर छोड़ दिया जाता है। लेकिन हमें याद रखना चाहिए की देवनागरी लिपि का जन्म भी ब्राम्ही लिपि से ही हुआ है।
ख. ब्राह्मी लिपि:
ब्राह्मी लिपि को कई लिपियों की लंबी श्रंखला की जननी कहा जा सकता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार 198 लिपियाँ इस लिपि से निकली है। लगभग सभी भारतीय भाषाओं (उर्दू जैसी एकाध को छोड़कर) की लिपियों के अलावा नेपाल, बांग्लादेश आदि कई ऐशियायी देशों की भाषाओं की लिपियाँ इसी से जन्मी है। यह एक प्राचीन भारतीय लिपि है जो 350 ई० पू० से 300 ई० तक भारत के अधिकतम भाग पर प्रचलन में रही। प्रो0 ब्यूलर के अनुसार इस लिपि में 41 अक्षर थे जिनमें 9 स्वर और 32 व्यंजन थे (Buhler, 1898)। इस लिपि के नामकरण के पीछे कई मत हैं जो आपस में संबंधित भी है। आइये हम इन मतो को जानें।
i. प्रथम मत के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने इस लिपि को बनाया था इसलिए इसे ब्राम्ही कहते है ।
ii. द्वितीय मत के अनुसार ब्रह्मज्ञान यानी वेद ज्ञान के संरक्षण (स्थायित्व ) हेतु इस लिपि की रचना हुई थी।
iii. तृतीय मत के अनुसार ब्राह्मणों ने इसको बनाया और इसका प्रयोग किया इसलिए इसका नाम ब्राह्मी लिपि हो गया।
कई पाश्चात्य विद्वान भ्रम, अहम आदि विकारों के कारण इसकी उत्पत्ति चीनी य सामी लिपि से मानते हैं। ऐसी कल्पना करना भी अकल्पनीय बात है। सामी से एकाधिक समानता ब्राह्मी लिपि में तो है, परंतु दोनों में एक से अधिक मूलभूत अंतर है। जैसे कि यह लिपि बाएं से दाएं लिखी जाती है जबकि सामी लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती है। सामी में केवल 22 अक्षर हैं जबकि ब्राह्मी में 41 अक्षर होते हैं। सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि ब्राह्मी में वर्णों की आकृति वृत्तात्मक भी हैजबकि अन्य विदेशी लिपियों में इस तरह की अक्षर रचना नहीं देखी जाती है। अत: यह एक भारतीय भूभाग पर उत्पन्न लिपि ही है। इस लिपि की दो उत्तरी और दक्षिणी शैलियां मानी जाती हैं। उत्तरी शैली से निम्नलिखित लिपियों का विकास हुआ है;
i. गुप्त लिप: यह लिपि गुप्त वंश के राजाओं के अभिलेखों, जैसे कि प्रयाग प्रशस्ति आदि अभिलेख, में मिलती है।
ii. कुटिल लिपि: यह गुप्त लिपि से ही जन्मी एक लिपि है। इसमें स्वरों की मात्राएं कुटिल या टेढ़ी हो जाती हैं। इसलिए इसको कुटिल लिपि कहते हैं। इससे नागरी और शारदा लिपियों का विकास हुआ है।
iii. प्राचीन नागरी लिपि: इस लिपि की पूर्वी शाखा से बंगला लिपि और पश्चिमी शाखा से राजस्थानी, गुजराती, महाराष्ट्री आदि लिपियां विकसित हुई है।
iv. शारदा लिपि: इस लिपि का विकास प्राचीन समय में कश्मीर और पंजाब में हुआ। 10वी शताब्दी के लगभग इस लिपि का प्रयोग होता था। कश्मीरी, गुरूमुखी, डोगरी आदि लिपियां इसी से निकली है।
यह लिपि बंगला उड़िया आदि भाषाओं में प्रयोग की जाती है। इस लिपि से असम, मणिपुरी भाषाओं की लिपियों का जन्म हुआ है।
ब्राह्मी की दक्षिणी शैली से निम्नलिखित लिपियां उत्पन्न हुई-
i. पश्चिमी लिपि: यह लिपि पांचवी सदी के लगभग प्रयोग में थी। गुजरात, नासिक, कोंकण आदि क्षेत्रों से मिले लेखों में इस लिपि के प्रयोग मिलते हैं।
ii. मध्य प्रदेशी लिपि: यह लिपि चौथी से आठवीं शदी के लगभग प्रयोग में रही। मध्य प्रदेश, बुंदेलखंड, हैदराबाद आदि के लेखों में इस लिपि का प्रयोग होता था।
iii. तेलुगु-कन्नड़ : यह लिपि तेलुगु और कन्नड़ भाषाओं की लिपि है।
iv. कलिंग लिपि: यह लिपि सातवीं से ग्यारहवीं शदी के मध्य कलिंग के क्षेत्र में यह लिपि प्रचलन में थी।
v.ग्रंथ लिपि: मलयालम और तेलुगु लिपियां ब्राह्मी की इसी शाखा से निकली मानी जाती हैं। इसमें संस्कृत ग्रंथों की रचना हुई इसलिए इसका नाम ग्रंथ लिपि हो गया।
viतमिल लिपि: सातवीं शताब्दी से आज तक यह तमिल भाषा की लिपि है।
उपरोक्त विवेचन से हम कह सकते हैं कि ब्राह्मी लिपि सभी भारतीय भाषाओं की लिपियों की जननी है। ब्राह्मी लिपि को खरोष्ठी लिपि से भी सम्बंधित माना जाता है।
ग. खरोष्ठी लिपि:
प्राचीन भारतीय लिपियों में से एक खरोष्ठी लिपि भी है यह लिपि 350 ई० पू० से 200 ई० तक प्रचलन में मानी जाती है। इस लिपि का प्रयोग प्रचीन गांधार (वर्तमान अफगानिस्तान) के क्षेत्र में किया जाता था। उस क्षेत्र में इस लिपि ने गांधारी-प्राकृत और संस्कृत भाषाओं की सेवा की। सम्राट अशोक के शाहबाजगढ़ी और मानसेरा (दोनो ही स्थान पंजाब में है) के अभिलेखो में इस लिपि का प्रयोग मिलता हैं। अशोक के अलावा शक और कुषाणों के अभिलेख भी खरोष्ठी में ही है। कुछ विद्वान इसे एक भारतीय लिपि मानते हैं और कुछ इसे आर्मेइक लिपि मानते हैं। इसमें 37 वर्ण हैं जिनमें 5 स्वर और 32 व्यंजन होते हैं। अक्सर यह लिपि दाए से बाए लिखी जाती है।
सभी वर्तमान भारतीय लिपियों में एक समानता देखी जा सकती है। वह इस प्रकार है:-
• लगभग सभी लिपियाँ ब्राह्मी लिपि से जन्मी हैं।
• सभी ध्वन्यात्मक हैं, एवं कवर्ग, चवर्ग आदि में बंटे हैं।
• सभी के लिखने में मात्रा का प्रयोग होता है।
• सबमें संयुक्ताक्षरों का प्रयोग होता है।
• सबके वर्ण रूप में काफी मिलते हैं।
• स्वर, व्यंजन, मात्रा तीनों का अलग प्रावधान है।
विदेशी भाषाओं की लिपियाँ
भारतीय लिपियों के विवरण के बाद हम कुछ विदेशी लिपियों से एक संक्षिप्त परिचय करते हैं।
i. लैटिन या रोमन लिपि:
इस लिपि का जन्म विदेशी धरती पर जरूर हुआ पर आज हम इसे विदेशी लिपि नही कह सकते है। आज यह लिपि हमारी द्वितीय प्रशासनिक भाषा की लिपि है और भारत के संविधान द्वारा अधिनियमित भी है । अंग्रेजी भाषा में प्रयुक्त faft (ABCD) को रोमन लिपि कहते हैं। वर्तमान में यह सर्वाधिक प्रयुक्त लिपि है इसमें 26 वर्ण होते हैं, जिनमें 5 स्वर और 21 व्यंजन है। इन 26 वर्णों की 45 ध्वनियां होती है। यह विश्व की अनेक भाषाओं की लिपि है। क्या आप जानते है कि लैटिन, फ्रांसीसी, अंग्रेजी जैसी मुख्य भाषाओं के साथ साथ एक भारतीय भाषा भी इस लिपि का प्रयोग करती है। यह भाषा भारत के पूर्वोत्तरी राज्य मिजोरम की मुख्य भाषा है, जिसे मिजो या लुसाई (Mizo/ Lusahai भाषा कहते हैं। जैसा कि यूरोप की अधिकांश लिपियां यूनानी लिपि से ही उत्पन्न हुई है अतः यह लिपि भी यूनानी लिपि से ही जन्मी मानी जाती है।
ii.यूनानी लिपि:
यह विश्व की प्राचीनतम लिपि में से एक है। इसमें 24 अक्षर होते हैं। इसके ही प्रथम दो अक्षर अल्फा (ɑ) और बीटा (𝞫) के आधार पर ही अंग्रेजी में वर्णमाला को अल्फाबेट कहते हैं। इसे हम यूरोपी लिपियों की जननी कह सकते हैं इसकी उत्पत्ति उत्तरी सामी लिपि से मानी जाती है।
iii. सामी लिपिः
सामी लिपि भी प्राचीनतम लिपि में प्राचीनतम कही जा सकती है। इसमें 22 वर्ण होते हैं। इस लिपि का प्रयोग 1000 से 800 ईसापूर्व के आसपास किया जाता रहा। इसकी उत्तरी शाखा से अर्मेइक और फोनेशी लिपियों का जन्म होता है। इसकी दक्षिणी शाखा से अरबी लिपि का विकास हुआ है।
iv. अरबी लिपिः
वर्तमान में प्रचलित लिपियों में से यह एक प्रमुख लिपि है। मूलतः इसमें 28 अक्षर होते है। यह दाएं से बाएं लिखी जाती है। यह अरब, अफगानिस्तान, फारस आदि स्थानों पर प्रचलित है। फारसी भाषा में चार अक्षर और अधिक जोड़कर 32 अक्षरों के साथ इस लिपि का प्रयोग किया जाता है। भारतीय भाषा उर्दू में फारसी में प्रयुक्त अक्षरों के अलावा पांच अक्षर और अधिक जोड़कर 37 अक्षरों का प्रयोग किया जाता है।
V. चीनी लिपि:
यूरोपीय और भारतीय लिपियों से अलग चीनी लिपि भी एक प्राचीनतम लिपि है। इसका विकास 3200 से 2700 ईसा पूर्व के लगभग हुआ था। यह चीन की भाषाओं की प्रमुख लिपि है वैसे मंडारिन ही चीन कि मुख्य लिखित भाषा है। यह विचित्र चित्रात्मक लिपि है जिसे विश्व की एक मात्र सनातन लिपि की संज्ञा दी जा सकती है । क्योकि यह लिपि प्रचीन काल से आज तक प्रचलन में है। इसमें हिंदी य अंग्रेजी की तरह अक्षर ध्वनियां नही होती है। इसमें हजारों स्वरांश (logograms) प्रयोग किए जाते है। चीनी भाषा में साक्षर होने के लिए तीन से चार हजार स्वरांशो / अक्षरों / चित्रों आदि को सीखने की आवश्यकता होती है।