सामाजिक विज्ञान विषयों के बीच संबंध
सामाजिक विज्ञान विषयों के बीच संबंध
प्रसिद्ध शिक्षाविद हरबर्ट ने सह-संबंध के सिद्धांत के कल्पना की। उनका विचार था संपूर्ण शिक्षा उद्देश्य छात्रों का चारित्रिक विकास है इस हेतु पाठ्यक्रम के विषयों को इस प्रकार व्यवस्थित करना चाहिए जिससे एक विषय के शिक्षण में दूसरे विषय का ज्ञान सहायक हो सके। इसी को हर्बर्ट ने सहसंबंध का सिद्धांत कहा। उनका विचार था कि कोई भी नवीन ज्ञान हम सफलतापूर्वक ग्रहण कर सकते हैं यदि उसका संबंध हमारे पूर्व ज्ञान से होता है। हर्बट के शिष्य जिलर ने सह संबंध के सिद्धांत का विस्तृत रुप प्रस्तुत किया और केंद्रीयकरण के सिद्धांत का निरूपण किया। सिद्धांत के अनुसार किसी एक विषय को शिक्षा का केंद्र बिंदु मानकर अन्य विषयों का उसी के आधार पर शिक्षण किया जाए। उसने समस्त विषयों शिक्षा देने के लिए 'इतिहास' को केंद्रीय विषय माना परंतु कर्नल पार्कर ने 'प्राकृतिक अध्ययन' को केंद्रीय विषय बनाया गाने शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यवहार कुशलता बतलाया इस को प्राप्त करने के लिए उन्होंने 'भूगोल' तथा 'अर्थशास्त्र' को केंद्रीय विषय माना। जॉन डीवी ने शिक्षा का उद्देश्य सामाजिक कुशलता प्राप्त करना माना और इस हेतु 'शिक्षालय व समाज' के जीवन को केंद्रीय विषय माना। गांधीजी की बेसिक शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास तथा आत्मनिर्भरता उत्पन्न करना था। उद्देश्य प्राप्ति के लिए उन्होंने 'हस्तकला (क्राफ्ट)' को केंद्रीय विषय माना था।
प्रसिद्ध शिक्षाविद Jackpot का विचार है कि 'ज्ञान परस्पर संबंधित है वह एक है विभाजन केवल सुविधा मात्र है । समन्वय या सह संबंध का अर्थ है दो या अधिक वस्तुओं विचारों या घटनाओं में संबंध स्थापित करना । शिक्षा में सहसंबंध का आशय है कि विभिन्न विषयों को इस प्रकार पढ़ाना कि उनसे प्राप्त ज्ञान में पारस्परिक संबंध हो। एक विषय को पढ़ाते समय कभी कभी ऐसे संदर्भ आ जाते हैं जो दूसरे विषयों से संबंधित होते हैं और शिक्षा में संबंध का तात्पर्य ही है कि हम इन संदर्भों को परस्पर सह- संबंधित कर दें। नागरिक शास्त्र मानव की सामाजिक जीवन से संबंध रखता है इसीलिए इसमें जीवन के प्रत्येक अंग पर विचार किया जाता है प्रत्येक शास्त्र का अध्ययन नागरिक के जीवन पर एक विशेष प्रभाव डालता है अतः सामाजिक जीवन में एक संगठित तथा दृढता है और इसी एकीकरण को जानने के लिए हम विभिन्न सामाजिक शास्त्रों का अध्ययन करते हैं। नागरिक शास्त्र का मुख्य उद्देश्य आदर्श नागरिकता उत्पन्न करना है। इसकी प्राप्ति हम तभी कर सकते हैं जब नागरिक शास्त्र के शिक्षण का दूसरे विषयों से संबंध स्थापित किया जाए क्योंकि सामाजिक जीवन के अनेक पहलू हैं जैसे- आर्थिक, भौगोलिक, राजनीतिक, सामाजिक आदि।
राजनीति विज्ञान और भूगोल के बीच संबंध
भूगोल जगत की प्राकृतिक दशाओं का अध्ययन करता है। किसी भी राष्ट्र की भौगोलिक स्थिति का नागरिकों के जीवन पर प्रभाव पड़ता है जैसे इंग्लैंड की भौगोलिक स्थितियों ने एक व्यापारिक राष्ट्र बनाया इसके अतिरिक्त प्राकृतिक वातावरण मनुष्य के रहन-सहन, भाषा, शारीरिक गठन आदि को प्रभावित करता है। इतिहास इस बात का गवाह है कि शिवाजी की जीत का मुख्य कारण भौगोलिक स्थितियां थी। प्रसिद्ध विद्वान रूसो का विचार है 'जलवायु का प्रभाव शासन पर पड़ता है। जलवायु व सरकार का गहरा संबंध है। साथ ही भौगोलिक स्थिति का प्रभाव सैनिक शक्ति पर भी पड़ता है।' इन दोनों विषयों के संबंधों को दर्शाने हेतु विद्वानों ने भौगोलिक राजनीति ( जियो पॉलिटिक्स) नाम के विषय का प्रादुर्भाव किया है। भूगोल से संबंध इसी बात में है कि मानव प्राकृतिक वातावरण के सहयोग से किस प्रकार सीखा है? और यह प्राप्त किया हुआ अनुभव मानव समाज के कल्याण में कहां तक सहायक है? यदि किसी राष्ट्र की भौगोलिक स्थिति अर्थात भूमि, जलवायु, खनिज पदार्थ आदि साधन अच्छे हैं तो उस राष्ट्र की आर्थिक दशा अच्छी होगी जब आर्थिक दशा अच्छी होगी तो नागरिक शास्त्र की सहायता से मनुष्य को कर्तव्यपरायण नागरिक बनाया जा सकता है तथा आदर्श सामाजिक जीवन की स्थापना की जा सकती है। भौगोलिक स्थितिया मानव समाज के कल्याण में भी सहायक होती है।
राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के बीच संबंध
अर्थशास्त्र मनुष्य के अर्थ संबंधित क्रियाकलापों तथा नागरिक शास्त्र नागरिकता से संबंधित विषयों की व्याख्या करता है। विभिन्नता के होते हुए भी दोनों शास्त्र एक दूसरे के सहयोगी हैं। जब अर्थशास्त्र धन की उत्पत्ति तथा वितरण की विवेचना करता है तो उसे नागरिक शास्त्र की आवश्यकता पड़ती है। नागरिक शास्त्र इस बात के लिए कानून बनाता है कि नागरिक पर कौन कौन से कर लगाए जाएं तथा उनको किस विधि से वसूल किया जाए? नागरिक शास्त्र यह भी बतलाता है कि करों को देना नागरिकों का मुख्य कर्तव्य है। कर प्रणाली जनता के हित में कार्य करती है। नागरिक शास्त्र जनहित का सिद्धांत अर्थशास्त्र को प्रदान करता है। जिस समाज में मानव की मूलभूत आवश्यकताएं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान की पूर्ति नहीं जग वहाँ सफल नागरिकता संभव नहीं है। इतिहास गवाह है कि जब आर्थिक विषमता होगी तब समाज दो वर्गो में बंट जाएगा और असमान वितरण के कारण गृहयुद्ध होने की संभावना बनी रहेगी। 1789 की फ्रांसीसी तथा 1917 की रूसी क्रांति के मुख्य कारण आर्थिक थे। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि नागरिकता की सफलता के लिए समाज में उत्पादन के साधनों पर अधिकार समान होना चाहिए। उनका उपयोग समस्त जनता के हित के लिए जनता द्वारा होना चाहिए। गरीबी मानव को कर्तव्य विमुख कर सकती है। नागरिक शास्त्र का आदर्श तभी सफल हो सकता है जब समाज की आर्थिक स्थिति अच्छी होगी । नागरिक शास्त्र का मुख्य लक्ष्य - आदर्श समाज की स्थापना की प्राप्ति केवल तभी संभव है जब मनुष्यों की अपनी मौलिक आवष्यकताओं को पूर्ण करने के लिए पर्याप्त धन एवं उत्पत्ति के साधनों का उपयोग करने के समान अवसर प्राप्त हो।
प्राचीन काल में कौटिल्य, बृहस्पति ने राजनीति पर जो ग्रंथ लिखे उनका नाम 'राजनैतिक अर्थव्यवस्था' रखा है। वास्तव में देखा जाए तो हम कह सकते हैं कि आर्थिक जीवन राजनीतिक संस्थाओं एवं विचारों द्वारा संचालित होता है और राजनीतिक आंदोलन आर्थिक कारणों से प्रभावित होता है। प्रसिद्ध अर्थवादी विचारक कार्ल मार्क्स के अनुसार 'आर्थिक तत्व ही समाज की प्रत्येक व्यवस्था का निर्धारण करते हैं।' चार्ल्स बियर्ड के अनुसार' अर्थशास्त्र के बिना नागरिक शास्त्र का वास्तविक एवं सारहीन ढांचा मात्र है और नागरिक शास्त्र के बिना अर्थशास्त्र प्रेरणा हीन'।
राजनीति विज्ञान और इतिहास के बीच संबंध
राजनीति विज्ञान का इतिहास से बहुत गहरा संबंध है। इन दोनों विषयों के संबंध में विभिन्न विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। सीले (Sheeley) का कथन है " इतिहास के बिना नागरिक शास्त्र निष्फल है और नागरिक शास्त्र के बिना इतिहास निर्मूल है।" इस संबंध में फ्रीमैन का कथन है "इतिहास अतीति की राजनीति है और राजनीति वर्तमान का इतिहास है" बर्गेस ने भी इतिहास का राजनीति शास्त्र से संबंध बताया है और उनका विचार है 'यदि राजनीति विज्ञान व इतिहास का संबंध विच्छेद कर दिया जाए तो उसमें से एक मृत नहीं तो पंगु अवश्य हो जाएगा और दूसरा केवल आकाश कुसुम बनकर रह जाएगा।'
इतिहास नागरिक के कर्तव्यों की सूची है तथा मानव सभ्यता का लेखा-जोखा है इसलिए इतिहास वस्तुतः राजनीति विज्ञान का मार्गदर्शक है तथा इसे दिशा प्रदान करने में सहयोग देता है और नागरिक शास्त्र केवल वर्तमान की सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं का विवेचन करता है और इतिहास के लिए लिए घटनाएं प्रस्तुत करता है। राजनीति विज्ञान शिक्षण का एक मुख्य उद्देश्य सामाजिक संघर्ष तथा कला को दूर करके आदर्श समाज की स्थापना करना है यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो आदर्श सामाजिक जीवन की स्थापना तभी की जा सकती है जब हमें प्राचीन समाज तथा उसके आदर्शों का ज्ञान हो। इनका ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें इतिहास का सहारा लेना पड़ेगा। पूर्वजों के आदर्शों, उदाहरणों, सफलता और असफलताओं तथा त्रुटियों से हमें आदर्श समाज की स्थापना करने में बहु सहायता मिलेगी क्योंकि मानव को उन्हीं गलतियों को नहीं दोहराना पड़ेगा । पुनरावृति से बचने तथा उदाहरणों से लाभ उठाने के लिए मानव को इतिहास का सहारा लेना पड़ेगा। राजनीति विज्ञान का शिक्षक इतिहास का सहारा लेकर अपने छात्रों में आदर्श नागरिकता के गुणों को विकसित कर सकता है। शिवाजी, राणा प्रताप आदि की कहानियां सुनाकर विद्यार्थीयों में स्वदेश प्रेम तथा देश भक्ति की भावना विकसित की जा सकती है। विद्यार्थियों को इतिहास के माध्यम से प्राचीन भारतीय सामाजिक जीवन, समाज के सदस्यों के अधिकार एवं प्राचीन शासन पद्धति से तुलना कर वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था का अध्यापन किया जा सकता है।