सामाजिक विज्ञान के शिक्षण और अधिगम की आवश्यकता
सामाजिक विज्ञान के शिक्षण और अधिगम की आवश्यकता
विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी के नवाचारों ने आज के मानव समाज में कई क्रांतिकारी परिवर्तन लाए हैं जिसके परिणाम स्वरुप मनुष्य की जीवन शैली परिवर्तित हुई है। इन नवाचारों ने संप्रेषण संवादों एवं मानवीय संबंधों को गतिशील रखने में सहायक उपकरणों को भी नवीन एवं उन्नत कर दिया है जिसके कारण मानवीय संबंधों में सुगम्यता के साथ जटिलता भी आ गई है। जिस युग में हम रह रहे हैं उसमें व्यक्तित्व सूचनाओं की पहुंच आसानी से और बहुतायत में हो रही है। इन सूचनाओं को संभालना एवं उसमें से सार्थक तथा निर्विवाद सूचनाओं से लाभ लेना चुनौतीपूर्ण हो गया है। सूचनाओं में अफवाहों की अधिकता एवं सूचनाओं के मूल स्वरुप में छेड़छाड़ एवं परिचालन की वजह से व्यक्तियों तथा समुदायों के बीच तनाव या संघर्ष की स्थिति भी पैदा हो जा रही है। ऐसे परिदृश्य में समाज के परिवर्तित स्वरूप तथा मानवीय संबंधों की जटिलता को समझने तथा व्यक्तियों को इस परिवर्तित समाज में समायोजित होकर सुचारु रुप से अपना जीवन जीने के लिए सामाजिक विषयों का अद्यतन ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। सामाजिक विषय व्यक्तियों को अपने इतिहास से न केवल परिचित कराता है बल्कि उसके ज्ञान एवं समझ के आधार पर भविष्य को भी सवारने में मददगार है। नागरिक शास्त्र व्यक्तियों को समाज में अधिकारों एवं कर्तव्यों के ज्ञान के साथ साथ लोकतांत्रिक नागरिक जीवन जीने का प्रशिक्षण देता है। वही अर्थशास्त्र आर्थिक संस्थाओं एवं क्रियाओं का ज्ञान देता है जिससे व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बना पाता है। सामाजिक विषय भूगोल के अंतर्गत भौगोलिक परिस्थितियों पर्यावरण जनसंख्या इत्यादि मानव जीवन से संबंधित महत्वपूर्ण विषयों के ज्ञान से सुसज्जित करता है।
सामाजिक विज्ञान के शिक्षण एवं अधिगम की आवश्यकता को अपने देश भारत के विशेष संदर्भ में निन्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से और अधिक स्पष्ट रुप से समझा जा सकता है-
i. लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था
कई वर्षों की गुलामी के बाद 15 अगस्त 1947 को देश को - आजादी मिली आजादी मिलने के साथ साथ समस्याएं एवं में उत्तरदायित्व भी जुड़े। हमने अपने संविधान की रचना कर राष्ट्र को प्रजातंत्रात्मक गणराज्य घोषित किया इस कारण लोगों को अधिकार मिले और लोगों ने स्वतंत्रता समानता तथा भाईचारे का अनुभव करना प्रारंभ किया। लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को लागू करने के बाद प्रमुख चुनौतियाँ यह थी कि कैसे लोकतंत्र एक शासन पद्धति से जीवन पद्धति तक पहुंचे ? किस प्रकार हमारे नागरिक लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के समझेंगे स्वीकार करेंगे एवं अपने जीवन में लोकतांत्रिक सिद्धांतों एवं मूल्यों का समावेश करेंगे? ऐसे कौन से प्रयास करने होंगे जिनसे लोकतंत्र अपने देश में सफल हो सके ? किस प्रकार राष्ट्र को विघटन कारी तत्वों एवं शक्तियों से बचाया जाए? इन्हीं प्रश्नों के आधार पर विद्वानों एवं शासकों ने स्वीकार किया कि लोकतंत्र की सफलता पूरी तरह से नागरिकों की जागरुकता, विवेक, सक्रियता एवं सहभागिता पर निर्भर है इसलिए नागरिकों को न केवल उनके अधिकारों से परिचित कराना होगा बल्कि उन्हें कर्तव्यों का भी ज्ञान देना होगा ताकि में लोकतांत्रिक व्यवस्था में न केवल अपना समायोजन बना सकें बल्कि जिम्मेदारी पूर्ण जीवन जीते हुए सकारात्मक योगदान दे सकें। इन्हीं चिंताओं के आलोक में सामाजिक विषयों के आधुनिक आधारों का सूत्रपात हुआ तथा सामाजिक विषयों के अध्ययन एवं शिक्षण को महत्वपूर्ण रूप से आवश्यक बना दिया। इसके फलस्वरूप एक ऐसी राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का उदय हुआ जिसमे सामाजिक विषयों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ तथा यह शिक्षा व्यवस्था आज भी संविधान द्वारा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु तत्पर है।
ii. समाजवादी राज्य (Socialist State) -
भारतीय समाज में आजादी के पश्चात दूसरा महत्वपूर्ण परिवर्तन यह हुआ कि समाजवादी समाज की स्थापना की ओर शांतिपूर्ण कदम बढ़ाया। उन्होंने इसको सर्वोदय तथा भूदान आदि अहिंसात्मक आंदोलनों द्वारा ग्रहण करने का निर्णय लिया था। समाजवादी समाज की स्थापना के लिए भी महत्वपूर्ण प्रावधान किए हैं। संविधान की धारा 38 में यह उपबंधित किया गया है कि राज्य एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था करें जिसमें सामाजिक आर्थिक तथा राजनीतिक न्याय राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं को अनुप्राणित करें। भारतीय संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का वर्णन है। अनुच्छेद 39 उस मार्ग का वर्णन करता है जिस पर चलकर समाजवादी तथा कल्याणकारी राज्य की स्थापना की जा सकती है। राज्य ने निर्देशक तत्वों के अनुसार कार्य करने के लिए व्यवहारिक कदम उठाए पंचवर्षीय योजनाओं का कार्यन्वयन उत्पादन के विभिन्न साधनों का राष्ट्रीयकरण निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था आदि। इससे नागरिकों के ऊपर उनके संचालन एवं संगठन का भार आया फलस्वरूप नागरिकों के उत्तरदायित्व, संस्थाओं, समितियों, संगठनों आदि में वृद्धि इस प्रकार उनका जीवन जटिल बना मानवीय संबंधों को सरल एवं स्पष्ट करने नागरिकों को इन दायित्वों का पूर्ण रुप से निर्वाह करने तथा जीवन को समझने के लिए व्यवस्थित रूप से सामाजिक विषयों की शिक्षा देने की आवश्यकता हुई क्योंकि परिवार में इस तरह की शिक्षा न मिल सकी इसलिए विद्यालयों में सामाजिक विषयों की व्यवस्थित रूप से शिक्षा देने का प्रबंध किया गया।
iii.पंचायती राज व्यवस्था -
महात्मा गांधी ने कहा कि राष्ट्र की उन्नति एवं प्रगति के लिए ग्रामों की प्रगति का होना आवश्यक है क्योंकि हमारे देश की 70% जनसंख्या ग्रामों में ही निवास करती है। उन्होंने कहा कि गांव स्वशासित तथा आत्मनिर्भर हो, ग्रामवासियों के रहन सहन के स्तर को उच्च बनाया जाए उनकी उन्नति के लिए कुटीर उद्योगों का विकास कृषि की उन्नति तथा ग्राम पंचायतों के निर्माण पर बल दिया। इस प्रकार उन्होंने भारत में ग्राम समाजवाद की स्थापना पर बल दिया पंचायती राज व्यवस्था लागू की गई। इससे घर परिवार तथा ग्राम के वातावरण में परिवर्तन हुए इन परिवर्तनों के कारण यह आवश्यकता अनुभवी के नागरिकों को इस प्रकार की शिक्षा प्रदान की शिक्षा प्रदान की जाए जिससे वह अपने वातावरण में स्वयं को समायोजित कर सकें तथा सामाजिक व्यवस्थाओं की जटिलता को स्पष्ट रुप से समझ सकें आवश्यकता की पूर्ति हेतु सामाजिक अध्ययन के शिक्षण को महत्वपूर्ण समझा गया।
iv. वैज्ञानिक आविष्कारों का प्रभाव
विज्ञान ने समाज के ढांचे में आमूलचूल परिवर्तन किया हमारे समाज का जो पहले स्वरुप था घटना आ गई। वैज्ञानिक आविष्कारों ने ग्रामीण जनजीवन को भी अंतरराष्ट्रीय वातावरण के संपर्क में ला दिया इन आविष्कारों के कारण आज का विश्व बहुत छोटा हो गया है। आज गांव में बिजली ट्यूबवेल नवीन फलों नवीन औजारों, संचार के माध्यमों एवं यातायात के साधनों तथा अन्य वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग हो रहा है। वैज्ञानिक उपकरणों के प्रयोग ने व्यक्ति को व्यक्तिगत एवं सामूहिक रुप से प्रभावित किया है जिससे व्यक्तियों का रहन सहन उनके बीच आपसी संबंध भी प्रभावित हुआ है। इस परिवर्तित परिप्रेक्ष को समझने तथा उसके दुष्परिणामों से बचने एवं उसमें सफलतापूर्वक व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन यापन करने हेतु नागरिकों को सामाजिक शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है केवल तभी आज का मनुष्य वैज्ञानिक उपकरणों के दुरुपयोग से उत्पन्न दुष्परिणामों से बच सकता है तथा उस दुरुपयोग से जनित हिंसा एवं द्वेष को दूर किया जा सकता है। सामाजिक शिक्षा मानवीय संबंधों के महत्व, पारस्परिक भाईचारा एवं एकता की भावना के महत्व को स्थापित करती है। हमारा देश प्राचीन काल से ही वसुधैव कुटुंबकम की मूल भावना के साथ संपूर्ण सृष्टि को अपना परिवार मानता है। इस वैज्ञानिक दौर में भी हमारा देश विविधता में एकता सांस्कृतिक बहुलता को समेटे हुए आज भी वसुधैव कुटुंबकम का संदेश पूरे विश्व को दे रहा है। इस कारण भी युवा पीढ़ी को सामाजिक विषयों का ज्ञान प्रदान करना आवश्यक है ताकि वह न केवल अपनी गौरवशाली परंपरा एवं संस्कृति को समझ सकें बल्कि उसके वर्तमान संदर्भों में प्रासंगिक विचारों को पूरे विश्व में प्रचारित एवं प्रसारित करते रहें।
V. अंतर्राष्ट्रीयता सद्भाव की भावना का विकास -
सूचना क्रांति के फलस्वरुप पूरा विश्व एक गांव के सदृश्य कार्य कर रहा है। सूचना एवं संचार के माध्यमों में हुए नवाचारों ने मानव जाति के विभिन्न समुदायों को काफी नजदीक ला दिया है। विभिन्न संस्कृतियों के लोग एक ही कॉलोनी में या एक ही शहर में अर्थात आसपास बस रहे हैं एवं अपनी वर्तमान जरूरतों के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रुप से पड़ोसियों पर कुछ मात्रा में निर्भर भी हैं। ऐसे में विभिन्न संस्कृतियों को जानने एवं समझने की महती आवश्यकता है। अंतर सांस्कृतिक समझ आपसी सहयोग समन्वय एवं शांति के लिए अनिवार्य तत्व है। कुछ वैश्विक समस्याएं जैसे पर्यावरण असंतुलन आतंकवाद ने संपूर्ण मानव जाति को सोचने पर मजबूर कर दिया है एवं विश्व समुदाय के नागरिक होने के नाते जिम्मेदारियों को भी रेखांकित किया गया है। उनकी समझ और उसके अनुरूप योगदान की अपेक्षा विश्व के हर नागरिक से की जा रही है। इन्हीं अपेक्षाओं के कारण बालक को एवं युवाओं में राष्ट्रप्रेम की भावना के साथ साथ अंतर्राष्ट्रीयता की भावना भी विकसित किया जाना महत्वपूर्ण है। सफल नागरिक के लिए विश्व की अनेक विकसित सभ्यताओं एवं संस्कृतियों को समझकर उनसे अपने लिए महत्वपूर्ण ज्ञान एवं कौशल प्राप्त करना आवश्यक है।
vi. नेतृत्व कौशल का विकास -
हम सभी इस बात से अवगत हैं कि वर्तमान छात्र ही देश के भावी कर्णधार होंगे अतः प्रारंभ से ही छात्रों को इस दृष्टि से सक्षम बनाया जाना आवश्यक है कि वह आने वाले समय में देश का सफल नेतृत्व कर सके माध्यमिक शिक्षा आयोग के शब्दों में "लोकतंत्र तब तक सफलतापूर्वक कार्य नहीं कर सकता है जब तक कि उस के सभी सदस्य जनता के अधिकांश भाग को अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने हेतु सक्षम नहीं बनाते जनता अपने दायित्वों का निर्वाह तभी कर सकती है। जब उसे अनुशासन एवं नेतृत्व करने की कला का प्रशिक्षण दिया जाए।" सक्षम नेतृत्व कौशल के विकास हेतु सामाजिक विज्ञान का शिक्षण एवं अध्ययन आवश्यक हो जाता है।
vii. सामाजिक कुशलता का विकास
शासकों की यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है कि वह आने वाली पीढ़ी को अर्थात नई पीढ़ी को सामाजिक मान्यताओं परंपराओं संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं से भली भांति अवगत कराएं तथा ऐसी समझ विकसित करे कि वह सामाजिक दायित्वों का निर्वहन भली प्रकार कर सके। उसके अंदर सामाजिकता की भावना का संचार हो सके। सामाजिकता समाज में शांति भाईचारा सौहार्द इत्यादि मूल्यों की स्थापना के लिए अनिवार्य है। समाज में रहकर सामाजिक मूल्यों को अपने जीवन में समाहित करके ही सफल जीवन जिया जा सकता है। नागरिकों में सामाजिक कुशलता का विकास सामाजिक विज्ञान विषय के माध्यम से किया जा सकता है। व्यक्ति का सामाजिक विकास करने हेतु ही सामाजिक विषयों का शिक्षण एवं अध्ययन आवश्यक है.