प्राकृतिक विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान में अंतर
प्राकृतिक विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान में निम्न अंतर हैं-
- प्राकृतिक विज्ञान का उद्गम कोपर्निकस एवं गैलिलियो की वैज्ञानिक क्रांति से माना जाता है । कोपर्निकस ने ग्रहों की परिक्रमा आदि से विश्व जगत को अवगत कराया तथा गैलिलियो ने टेलीस्कोप से संबंधित खोजें की, जबकि सामाजिक विज्ञान का उद्गम अगस्त काम्टे एवं इमायल दुख आदि के सामाजिक विचारों से हुआ है।
- प्राकृतिक विज्ञान अनुशासन के रूप में प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित है जैसे सूर्य का उगना एवं अस्त होना, भूकंप एवं आकाशीय तारे आदि प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाविक उदाहरण हैं। वहीं पर सामाजिक विज्ञान मनुष्य, मानव समाज, सामाजिक समूह एवं मनुष्य का सामाजिक संस्थाओं के साथ संबंध आदि से जुड़ा है।
- प्राकृतिक विज्ञान एकविमीय है, जबकि सामाजिक विज्ञान बहुविमीय है।
- प्राकृतिक विज्ञान के सिद्धांतों में सामान्यीकरण अधिक होता है, जैसे न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम में समय के बदलने से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, जबकि सामाजिक विज्ञान में इस सामान्यीकरण की कमी रहती है, यथा दुर्खिम के सामाजीकरण के सिद्धांत के द्वारा प्रत्येक व्यक्ति का एक जैसा सामाजीकरण नहीं किया जा सकता, लेकिन किसी वस्तु को छत से नीचे फेकेंगे, तो वह निश्चित रूप से नीचे ही गिरेगी, ऊपर नहीं जाएगी।
- प्राकृतिक विज्ञान में प्रयोगशालात्मक परिस्थियां होती हैं, जहां पर नियंत्रित एवं व्यवस्थित परिस्थियों में अन्वेषण किये जाते हैं, जैसे- हाइड्रोजन व ऑक्सीजन को मिलाकर पानी बनाना । जबकि सामाजिक विज्ञान में अन्वेषण वास्तविक परिस्थियों में किये जाते हैं। परिस्थितियां उस सीमा तक ही नियंत्रित एवं क्रमबद्ध होती हैं, जिस सीमा तक परिस्थितियां अनुमति प्रदान करती हैं। सामाजिक विज्ञान में पूर्ण नियंत्रण संभव नहीं होता है, यथा -युवाओं की शिक्षा के स्तर आधार पर उनकी दहेज प्रथा के प्रति मनोवृत्ति का अध्ययन। उपरोक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि प्राकृतिक विज्ञान की तरह सामाजिक विज्ञान पर पूर्ण नियंत्रण संभव नहीं हैं। क्योंकि दहेज प्रथा के प्रति मनोवृत्ति को सामाजिक संस्कृति, संस्कार एवं प्रथाएं भी प्रभावित करेंगी, जिनका भी पूर्ण नियंत्रण असंभव है।
- प्राकृतिक विज्ञान में भौतिक आविष्कार किए जाते हैं। आविष्कार अच्छे भी हो सकते हैं, बुरे भी। इसलिए आविष्कारों की वांछनीयता एवं लागू करने की सीमा का निर्धारण सामाजिक विज्ञान करता है।
- प्राकृतिक विज्ञान में वस्तुनिष्ठता होती है। शोधार्थी की व्यक्तिगत पसंद या नापसंद का प्रयोग पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इसके विपरीत सामाजिक विज्ञान में आत्मनिष्ठता होती है, क्योंकि शोध परिणाम शोधार्थी की व्यक्तिगत पसंद या नापसंद से प्रभावित होते हैं। आइए, इसे एक उदाहरण से समझें जैसा कि आप जानते हैं, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को मिलाकर पानी बनता है, शोधार्थी चाहकर भी इसे आग नहीं बता सकता। लेकिन कोई शोधार्थी मजदूरों के सामाजिक जीवन पर वास्तविक परिस्थियों में अवलोकन प्रविधि का प्रयोग करके शोध कार्य कर रहा है तो वहां पर शोधार्थी द्वारा मजदूरों के सामाजिक जीवन को अनावश्यक रूप से उन्नति अवनति बताने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
- प्राकृतिक विज्ञान में विश्वनीयता होती है, यथा-किसी प्रयोग को बार-बार दोहराए जाने पर एक जैसे परिणाम प्राप्त होते हैं, जबकि सामाजिक विज्ञान में विश्वसनीयता की कमी होती है, क्योंकि किसी प्रयोग को बार-बार दोहराए जाने पर एक जैसे परिणाम प्राप्त नहीं होते, जैसे- आज के युवावर्ग में दहेज प्रथा के प्रति जो मनोवृत्ति है, जरूरी नहीं है कि एक या दो वर्ष के बाद वैसी ही रहे। अतः सामाजिक विज्ञान की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न रहता है।
- प्राकृतिक विज्ञान में शोध के परिणामों की व्याख्या के लिए मानकों की आवश्यकता नहीं होती, जबकि सामाजिक विज्ञान में किसी प्रकार के व्यवहार की व्याख्या के लिए मानकों की आवश्यकता होती है। जैसा कि आप जानते हैं, हम समाज में किसी व्यक्ति के व्यवहार की वांछनीयता या अवांछनीयता मानक के आधार पर ही उसे 'अच्छा', 'बहुत अच्छा' या 'बुरा या 'बहुत बुरा कहते हैं।
- प्राकृतिक विज्ञान में वैधता अधिक पाई जाती है क्योंकि त्रुटि की संभावना कम होती है, वहीं पर सामाजिक विज्ञान में वैधता की कमी पाई जाती है क्योंकि सामाजिक विज्ञान मनुष्य के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसके व्यवहार में स्थिरता नहीं है, जिसके कारण त्रुटि होने की संभवना बनी रहती है। परिणामत: वैधता प्रभावित होती है।
- प्राकृतिक विज्ञान में ‘प्रत्यक्षता' का गुण होता है, जैसे - एसिड को त्वचा पर डालकर उसके प्रभाव को प्रत्यक्ष तौर पर सीधा देखा जा सकता है, जबकि सामाजिक विज्ञान में 'अप्रत्यक्षता' का गुण होता है। यदि हम युवाओं की राजनीतिक पार्टी के प्रति मनोवृत्ति जानना चाहते हैं तो सर्वप्रथम हमें युवाओं का साक्षात्कार लेना होगा, तत्पश्चात किसी प्रकार का अनुमान या परिणा जानना संभव हो सकेगा।
- प्राकृतिक विज्ञान में 'निरपेक्षता' पायी जाती है, जबकि सामाजिक विज्ञान में 'सापेक्षता' पायी जाती है। जैसा कि आप जानते हैं कि भार एवं लंबाई के लिए पूर्ण अस्तित्वहीनता (निरपेक्षता ) की संकल्पना की जा सकती है, लेकिन यह संकल्पना नहीं की जा सकती कि कोई व्यक्ति पूर्णरूप से, सामाजिक या असामाजिक है। व्यक्ति में सामाजिकता कम या अधिक (सापेक्षता) तो हो सकती है, लेकिन उसे पूर्णरूप से सामाजिक या असामाजिक नहीं कहा जा सकता है।
सामाजिक विज्ञान: विशेषीकृत ज्ञान बनाम अंतरानुशासनिक ज्ञान
सामाजिक विज्ञान में जब हम विशेषीकृत ज्ञान के बारे में चर्चा करते हैं तो यह सूक्ष्मता (माइक्रो) की ओर संकेत करता है । विशेषीकृत ज्ञान को विषय की सीमा में बांधकर नहीं देखा जा सकता है, बल्कि यह विषय की गहनता एवं गहराई को बताता है । विशेषीकृत ज्ञान, ज्ञान के क्षेत्र की प्रकृति की लम्बरूपता (वर्टिकल) को स्पष्ट करता है। विशेषीकृत ज्ञान का मूल्यांकन दूसरे विषयों से प्रायः असहसंबंधता के संदर्भ में होता है जिसकी स्वयं की एक पारिभाषिक शब्दावली होती है, जो कि विशेषज्ञ ज्ञान की दूसरे सामान्य विषयों से अलग पहचान बनाने में योगदान देती है।
आइए, अब विशेषीकृत ज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान के संदर्भ में समझें- जैसा कि आप जानते हैं, हृदयरोग से पीड़ित व्यक्ति का उपचार केवल हृदयरोग विशेषज्ञ ही कर सकता है क्योंकि उसके पास उसका विशेषीकृत ज्ञान है। यह सामान्य चिकित्सक (फिजिशियन) के क्षेत्र से बाहर का विषय है। यहां पर विशेषीकृत ज्ञान की सूक्ष्मता एवं गहनता को भी समझना आवश्यक है, जाहिर है, सामान्य हृदय रोग का उपचार, सामान्य लक्षणों के आधार पर प्राकृतिक औषधियों से हृदयरोग विशेषज्ञ (कार्डियोलॉजिस्ट) कर सकता है। लेकिन हृदय की शल्यक्रिया केवल कार्डियोलॉजिस्ट सर्जन ही कर सकता है। यही ज्ञान की सूक्ष्मता विशेषीकृत ज्ञान की श्रेणी में आएगी। यद्यपि आप विशेषीकृत ज्ञान के बारे में समझ विकसित कर चुके हैं, लेकिन इसे सामाजिक विज्ञान के संदर्भ में समझना अति आवश्यक है। जैसा कि आप जानते हैं, धन प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण होता है, रुपये की कीमत शेयर बाजार की मंदी एवं तेजी पर निर्भर करती है, अब वे कौन-कौन से कारक हैं, जो शेयर बाजार में तेजी या मंदी लाते हैं अथवा रुपये को अन्य विदेशी मुद्राओं के मुकाबले कैसे मजबूत किया जा सकता है आदि। उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर अर्थशास्त्र में विशेषीकृत ज्ञान रखने वाला व्यक्ति ही कुशलता से दे सकता है। लेकिन इसकी और अधिक गहराई में जाएं तो अर्थशास्त्र में 'धन एवं वित्त' (मनी एंड फाइनेंस) का विशेषज्ञ व्यक्ति और अधिक विशेषीकृत ज्ञान
प्रदान कर सकता है। उपरोक्त सभी प्रश्न किसी मनोवैज्ञानिक के लिए असंभव नहीं तो बहुत कठिन जरूर हैं, क्योंकि यह उसके विशेषीकृत ज्ञान से बाहर का विषय है।
स्पष्ट है, विशेषीकृत ज्ञान किसी विशेष ज्ञान की विशेषज्ञता, सूक्ष्मता एवं गहनता को बताता है लेकिन इसके विपरीत अंतर्विषयक ज्ञान में ज्ञान की बहुमुखता समाहित है। यह ज्ञान की परंपरागत सीमाओं में विश्वास नहीं रखता, बल्कि ज्ञान की विभिन्न शाखाओं का विश्लेषण एवं संश्लेषण करके उसके क्षेत्र को सूक्ष्म से व्यापक बनाता है, दूसरे शब्दों में कहें, तो अंतर्विषयक ज्ञान दो या दो से अधिक शैक्षणिक अनुशासनों को एकीकृत करता है। यह विशेषीकृत ज्ञान की तरह विषयों के अलगाव में विश्वास नहीं रखता है, बल्कि संबंधित विभिन्न विषयों के ज्ञान की सामान्यता के संदर्भ में अंतर्विषयक ज्ञान का मुख्य केन्द्र बिन्दु है। अंतर्विषयक ज्ञान शैक्षणिक अनुशासनों के विभिन्न उपागमों को अपने अंदर समेटे रहता है और अंतर्विषयकता का उक्त नारा विशेषीकृत ज्ञान की तरह अलगाव का नहीं बल्कि सह- संबंधिता एवं एकीकृतता का है।
आइए, अंतर्विषयक ज्ञान को एक उदाहरण से समझें आपके शिक्षक-प्रशिक्षक आपको उत्तराखंड क - किसी जनजाति के सामाजिक जीवन पर केस स्टडी करने के लिए कार्य दें, तो आप सामाजिक जीवन का मूल्यांकन केवल उनके रहन-सहन तक सीमित नहीं कर सकते हैं, बल्कि अन्य महत्वपूर्ण पक्षों जैसे - - जनजातियों की प्रजातंत्र में भागीदारी, सामाजिक स्थिति, आर्थिक स्थिति, आसपास का परिवेश, समूह गत्यात्मकता आदि को भी व्यापक केस स्टडी के दृष्टिकोण से समाहित करना होगा, इसके लिए आपको नागरिकशास्त्र, अर्थशास्त्र, भूगोल, इतिहास एवं मनोविज्ञान का ज्ञान होना अतिआवश्यक है। विभिन्न विषयों की आपसी एकीकृतता एवं बहुउपागमता ही अंतर्विषयक ज्ञान है।