अधिगम का आकलन (Assessment of Learning)
अधिगम का आकलन (Assessment of Learning)
वस्तुतः आकलन पर बीसवीं सदी के अंत तक मुख्यतः व्यवहार वादियों का प्रभाव रहा व्यवहार वादियों ने अधिगम से सबंधित विभिन्न अध्ययनों को बढ़ावा दिया साथ ही उनकी रूचि यह जानने में भी थी कि विद्यार्थी की संप्राप्ति का वस्तुनिष्ठ मापन कैसे किया जाय? व्यवहारवाद मनोविज्ञान का एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण है जो मानव के सभी प्रत्यक्ष व्यवहारों का अध्ययन करता है। व्यवहारवाद का जनक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जे. बी. वाटसन को माना जाता है। व्यवहारवाद पर आधारित अधिगम सिद्धान्तों में सबसे प्रमुख योगदान बी. एफ. स्किनर का है। व्यवहारवाद, अधिगम को अधिगम हेतु प्रेरित उद्दीपक एवं अनुक्रिया के मध्य एक संबंधन के रूप में देखता है जो पुरस्कार एवं दण्ड के द्वारा संचालित होता है। मनोविज्ञान पर व्यवहारवादी दृष्टिकोण ने गहरा प्रभाव डाला है। शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया पर भी अधिकांश अनुसन्धान एवं सिद्धांतों का विकास व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों द्वारा किये गए। शिक्षण एवं अधिगम की सम्पूर्ण प्रक्रिया पर 1990 के दशक तक सर्वाधिक प्रभाव व्यवहारवाद का रहा और तदनुसार शैक्षिक आकलन एवं मूल्याङ्कन की रूप रेखा पर भी इनका गहन प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । व्यवहार वादी मनोवैज्ञानिक अतिवातावरण वादी (Extreme Environmentalist) थे।
व्यवहार वादियों की मान्यता थी कि-
i. मानव का सम्पूर्ण अधिगम मानव एवं वातावरण के पारस्परिक अनुक्रिया के कारण विभिन्न उद्दीपक एवं उनके प्रति अनुक्रिया के संबंधन का परिणाम है।
ii. बालक जब पैदा होता है तब टेबुला रसा (tabula rasa) अर्थात एक खाली स्लेट के समान होता है व्यव्हारवादियों ने चिंतन, समस्या समाधान, स्मृति जैसी मानसिक प्रक्रियाओं की जन्मजात उपस्थिति की उपेक्षा की।
iii. मानव व्यवहार मापनीय एवं निरिक्षणीय होते हैं।
iv. व्यवहारवाद के अनुसार अधिगम उद्दीपक एवं अनुक्रिया के बीच विभिन्न पुनर्बलनों की सहायता से किये गए अनुबंधन का परिणाम है।
V. दिए गए उद्दीपक पर सीखी गयी अनुक्रिया बार बार प्रदान करना अधिगम का सूचक है।
vi. शिक्षक का प्रयास शिक्षण के दौरान उद्दीपक एवं अनुक्रिया के मध्य के संबंधन जिसे शिक्षक उपयुक्त समझता है, पुनर्बलन के द्वारा मजबूत करना है।
अपने आरंभिक दौर में थोर्नडाइक, वाटसन, स्किनर आदि सभी ने मानव अधिगम पर वृहत अध्ययन किये परन्तु बाद में अधिगम के वस्तुनिष्ठ अध्ययन के क्रम में उनकी रूचि वस्तुनिष्ठ मापन में भी बढ़ी और परिणामस्वरूप उन्होंने आकलन के लिए विभिन्न प्रविधियों को विकसित किया आकलन को वस्तुनिष्ठ बनाने के क्रम में व्यव्हारवादियों ने मानव चिंतन की उपेक्षा की और स्मृति पर आधारित प्रश्नों एवं आकलन प्रविधियों को बढ़ावा दिया। साथ ही उनका सारा जोर विद्यार्थियों की आपसी तुलना करके उत्तम विद्यार्थी एवं निम्न मानसिक स्तर वाले विद्यार्थियों में विभेदन करने जैसे मशीनी प्रक्रियाओं पर केंदित हो गए। उनका आकलन का मुख्य केन्द्र विद्यार्थी के अधिगम में वृद्धि की बजाय वर्ष के अंत में विद्यार्थी की संप्राप्ति को आंकिक रूप में व्यक्त करने तक सीमित रह गया। बाद में व्यवहारवाद के प्रति लोगों का मोहभंग एवं शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया पर रचनावाद के बढ़ते प्रभाव ने शिक्षा जगत का ध्यान आकलन के रचनात्मक उदेश्यों की ओर गया और धीरे धीरे रचनात्मक आकलन का प्रभाव बढ़ता गया । व्यवहारवादी मान्यता आर आधारित आकलन को ही अधिगम का आकलन की संज्ञा दी जाती है।
आकलन के पारंपरिक व्यवहारवादी दृष्टिकोण जिसे अधिगम का आकलन की संज्ञा भी दी जाती है का मुख्य उद्देश्य 'योगात्मक' है जो सामान्यतः किसी कार्य या कार्य की, इकाई की समाप्ति पर किया जाता है। वस्तुत: 'अधिगम का आकलन' विद्यार्थी की संप्राप्ति के प्रमाण उसके माता पिता, शिक्षक, विद्यार्थी स्वयं अथवा अन्य व्यक्तियों के लिए प्रस्तुत करता है। इस प्रकार व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों ने शिक्षण अधिगम की सम्पूर्ण प्रक्रिया में मानव संज्ञान यथा सोचने की क्षमता, तर्क करने की क्षमता, समस्या समाधान की क्षमता, व्यक्ति का सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य आदि सभी की उपेक्षा करते हुए विद्यार्थी को एक निष्क्रिय ग्रहण कर्ता के रूप में देखते हुए शिक्षण अधिगम हेतु विभिन्न विधियों एवं तदनुसार आकलन के मानक तय कर दिए। व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों ने अपनी विभिन्न मान्यताओं के आधार पर आकलन के जो मानक तय किये उनके अनुसार आकलन का उद्देश्य दिए गए उद्दीपक पर विद्यार्थी से अपेक्षित अनुक्रिया प्राप्त करना है (जो उसे अनुबंधन के दौरान सिखाई गयी है) एवं आकलन मुख्यतः सीखी गयी अनुक्रिया के प्रत्यास्मरण पर आधारित होना चाहिए।
अपनी विभिन्न मान्यताओं के आधार पर व्यवहारवादियों ने जो आकलन के उपकरण सुझाये वे प्रत्यास्मरण पर आधारित थे जिनमे लिखित परीक्षा अथवा पेपर पेंसिल टेस्ट प्रमुख थे। साथ ही व्यवहारवादियों ने आकलन के आधार पर विद्यार्थियों की रैंकिंग एवं उनके संप्राप्ति के मात्रात्मक आकलन को बढ़ावा दिया। परिणामतः धीरे धीरे योगात्मक आकलन की महत्ता बढती चली गयी। आकलन का उद्देश्य विद्यार्थियों के कथित अधिगम स्तर में विभेद करना एवं तदनुसार उन्हें विभीन्न श्रेणियों में रखना मात्र हो गया। इस कारण विद्यार्थियों पर विभिन्न प्रकार के प्रत्यास्मरण पर आधारित परीक्षणों का बोझ बढ़ता चला गया और उनकी रचनात्मकता की उपेक्षा होती गयी। वयवहार वादियों द्वारा सुझाये गए आकलन एवं आकलन के उपकरण मुख्यतः विद्यार्थी केन्द्रित न होकर पाठ्यवस्तु केन्द्रित थे। साथ ही व्यवहार वादियों ने अधिगम के संज्ञानात्मक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पक्षों की भी उपेक्षा की और संस्कृति मुक्त (Culture Free or Culture Fair) परीक्षणों के विकास पर ध्यान केंद्रित रखा फलतः अधिगम का उद्देश्य पाठ्यक्रम की समाप्ति पर लिखित परीक्षाओं में उच्च अंक प्राप्त करना मात्र रह गया।
अधिगम के लिए आकलन (Assessment for Learning)
रचनात्मक आकलन अथवा अधिगम के लिए आकलन
(Assessment for Learning/Constructive Assessment)
अधिगम के लिए आकलन वस्तुतः आकलन का नवीन उपागम है जो शिक्षण एवं अधिगम प्रक्रिया के साथ समेकित है जो विद्यार्थियों के अधिगम उन्नति के लिए प्रतिपुष्टि प्रदान करता है। वस्तुत: अधिगम के लिए आकलन 1990 के दशक से धीरे धीरे लोकप्रिय होने लगा जब यह देखा गया कि आकलन के नाम पर विद्यार्थी धीरे धीरे अति आकलन एवं बहुत सारे परीक्षण की समस्या से घिर गए है ताकि उन्हें क्रमवार रैंक में रखा जा सके और विद्यार्थियों की आपस में तुलना की जा सके। प्राप्ताकों के निर्माण एवं सूचित करने की प्रक्रिया जो विद्यार्थियों के अधिगम का निर्णय करती थी उसे अधिगम का आकलन की संज्ञा दी गयी है। रचनावादी विचार धारा के प्रवर्तक के रूप में सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे (Jean Piaget) को माना जाता है। पियाजे ने माना कि बालक के अधिगम में वातावरण के साथ साथ उसकी संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का योगदान भी है और वातावरण एवं मानसिक संरचनाओं की पारस्परिक अन्तः क्रिया बालक के अधिगम में महवपूर्ण भूमिका निभाती है बाद में रचनावादी दृष्टिकोण दो अलग विचारधाराओं में बंट गया: पहला ज्ञान रचनावाद (Cognitive Constructivism) जिसके प्रसिद्ध विद्वान जीन पियाजे (Jean Piajet), ब्रूनर (Jerome Bruner), गैने (Gagne) आदि रहे और सामाजिक संस्कृतिवाद (Socio- Culturist Perspective) जिसके प्रवर्तक एवं प्रबल समर्थक दूसरा वाइगोत्सकी (Lev Vygotsky) रहे। रचनावादियों के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य बालक का सर्वांगीण विकास (बौद्धिक, शारीरिक, सामाजिक भावनात्मक आदि) है, अतः आकलन का भी उद्देश्य सर्वांगीण विकास को आकलन करने वाला होना चाहिए। संज्ञानात्मक रचनावाद के अनुसार आकलन का उद्देश्य वर्ष के अंत में विद्यार्थी ने अन्य विद्यार्थी की तुलना में कितना सीखा की बजाये विद्यार्थी की अधि समस्याओं को जानना एवं तदनुसार नैदानिक शिक्षण प्रदान करना है। सामाजिक संस्कृतिवाद समस्त अधिगम को सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में देखता है अतः आकलन को भी विद्यार्थी के सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। अधिगम के लिए आकलन का आधार अधिगम की रचनावादी दृष्टिकोण है जिसकी मान्यता है कि किसी भी विषय के अधिगम के लिए जो मासिक प्रतिमान का प्रयोग करते हैं वह अत्यंत जटिल पूर्व अनुभवों एवं सामाजिक व्यक्तिक से अंत: क्रियाओं पर आधारित होती है। इन जटिल प्रक्रियाओं को विद्यार्थी एवं शिक्षक दोनों के लिए समझने की अवस्था उन अधिगम सामग्रियों की प्रकृति समझने में मददगार है। इसकी यह भी मान्यता है कि शिक्षक एवं अधिगम को उसकी गहराई के मध्य के संवाद एवं प्रतिपुष्टि की गुणवत्ता शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। रचनावादियों के अनुसार शिक्षा का तात्पर्य बालक का सर्वांगीण विक (बौद्धिक, शारीरिक, सामाजिक भावनात्मक आदि) है, अतः आकलन का भी उद्देश्य सर्वांगीण विकास को आकलन करने वाला होना चाहिए। रचनावाद के अनुसार आकलन के मुख्य उद्देश्य है विद्यार्थी के अधिगम को प्रेरित करना एवं उनकी शैक्षिक संप्राप्ति को उन्नत करना।
अतः अधिगम से पूर्व विद्यार्थियों के लिए यह जानना आवश्यक है कि-
• अधिगम का लक्ष्य क्या है?
• उन्हें यह क्यों सीखना चाहिए?
• अधिगम लक्ष्यों की प्राप्ति में वे कहां है?
• अधिगम लक्ष्यों की प्राप्ति कैसे की जा सकती है?
वस्तुतः अधिगम के लिए आकलन विद्यार्थियों के अधिगम से संबंधित सूचना प्राप्त करके एवं उनका विस्तृत विश्लेषण करने की प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रत्येक विद्यार्थी एवं शिक्षक दोनों यह जानने का प्रयत्न करते हैं विद्यार्थी अधिगम उद्देश्यों की प्राप्ति में कहाँ हैं एवं उन्हें अपेक्षित स्तर तक ले जाने का सर्वोत्तम तरीका क्या है | अधिगम के लिए आकलन, अधिगम के साथ साथ चलने वाली प्रक्रिया है अतः इसके द्वारा विद्यार्थी यह जान पाते है कि उन्हें क्या सीखना है, उनसे क्या अपेक्षित है, और शिक्षक आकलन के द्वारा उसके आधार पर उन्हें प्रतिपुष्टि एवं सलाह प्रदान करता है कि वे अपने अधिगम को और उन्न कैसे बना सकते है| अधिगम के लिए आकलन में शिक्षक के द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि उनके विद्यार्थी क्या जानते हैं, क्या कर सकते हैं एवं उनकी अधिगम कठिनाइयों क्या क्या हैं।
अधिगम के लिए आकलन की मुख्य विशेषताएं:
जैसा कि हमने जाना 'अधिगम के लिए आकलन' वस्तुतः रचनावादी दृष्टिकोण पर आधारित है जिसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नांकित हैं:
- रचनात्मक आकलन नैदानिक और उपचारात्मक होता है।
- रचनात्मक आकलन विद्यार्थियों शिक्षा प्राप्ति में सक्रिय भागीदार बनाता है
- रचनात्मक आकलन अध्यापक को प्रभावी अध्यापन में सहायता करता है
- रचनात्मक आकलन विद्यार्थियों की अभिप्रेरणा और आत्म-सम्मान को उन्नत बनाता
- रचनात्मक आकलन विद्यार्थियों में स्व-मूल्यांकन की प्रवृति को प्रोत्साहित करता है
- रचनात्मक आकलन क्या और कैसे पढ़ाया जाए, इसका निर्णय करने में शिक्षक को सहयोग करता है
- रचनात्मक आकलन विद्यार्थियों को उन मानदंडों को समझने के लिए प्रोत्साहित करता है,
- जिनका उपयोग उनके उनकी शैक्षिक संप्राप्ति का आकलन किया जानेवाला है रचनात्मक आकलन विद्यार्थियों को रचनात्मक फीडबैक प्रदान करके उन्हें सुधार करने का अवसर प्रदान करता है।
अधिगम के लिए आकलन के लाभ
- अधिगम के लिए आकलन विद्यार्थी को उसके अधिगम लक्ष्यों के अविभिन्न अवयवों को समझने में सहायता करता है, उन्हें उनके अधिगम के प्रति जिम्मेवार बनाता है एवं आगे के अधिगम को योजनाबद्ध करने में सहायक है।
- अधिगम के लिए आकलन अधिगम एवं आकलन के बीच एक मजबूत कड़ी का निर्माण करता है।
- अधिगम के लिए आकलन विद्यार्थियों के अधिगम के लिए प्रतिपुष्टि प्रदान करता है जो अधिगम को प्रभावी बनाता है और उनकी सम प्राप्ति पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।अधिगम के लिए आकलन संवेदनशील एवं रचनावादी है।
- अधिगम के लिए आकलन विद्यार्थियों को उनके अधिगम के प्रति रचनात्मक प्रतिपुष्टि प्रदान कर उनका आत्मविश्वास, अन्वेषण क्षमता एवं रचनात्मकता में वृद्धि करता है
- अधिगम के लिए आकलन विद्यार्थी कैसे सीखते हैं पर केन्द्रित है।
- अधिगम के लिए आकलन विद्यार्थियों की अभिप्रेरणा में वृद्धि करने में सहायक है
- अधिगम के लिए आकलन विद्यार्थियों में लक्ष्य एवं मानदंड की समझ विकसित करता है।
- अधिगम के लिए आकलन विद्यार्थियों की सर्वंगीण उन्नति में सहायक है।
- अधिगम के लिए आकलन विद्यार्थियों में स्व अधिगम की योग्यता विकसित करता है।
- अधिगम के लिए आकलन विद्यार्थी संप्राप्ति का विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक आकलन करता है।