स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था का स्तर (Status of Indian Economy on the Eve of Independence)
स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था का स्तर
सर्वप्रथम हम स्वतंत्रता के समय भारतीय अर्थव्यवस्था की एक झलक देखते हैं-
1. उपनिवेशिक अर्थव्यवस्था (Colonial Economy):
ब्रिटिश राजनैतिक प्रधानता ने हमें आर्थिक निर्भरता दिलाई, फलस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था घटकर एक ब्रिटिश उपनिवेश बनकर रह गई। यह निम्नलिखित कारकों से साबित होता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था घटकर एक कच्चे माल की पूर्ति करने वाली तथा ब्रिटिशों द्वारा निर्मित माल के लिए एक बाजार बनकर रह गई। म्यांमार (बर्मा) से होने वाले चावल के अतिरिक्त उत्पादन, भारत से इसके अप्रैल 1937 में हुए विभाजन के बाद से, पंजाब से होने वाले गेहूँ की अधिकता और पूर्वी बंगाल में होने वाले चावल की अधिकता आदि की हानि ने हमारी अर्थव्यवस्था को एक ब्रिटिश उपनिवेश बनाए रखने में मदद की। हमारी अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विदेशी पूँजी की अधिकता भी अर्थव्यवस्था की उपनिवेशिक विशेषता को दर्शाती है। इसमें कोई संदेह नहीं कि द्वितीय विश्व युद्ध में विदेशी पूँजी की पकड़ को ढीलाकर दिया था लेकिन यह स्वतंत्रता के समय तक बनी रही।
2. अर्थ सामंती अर्थव्यवस्था (Semi Feudal Economy):
ब्रिटिश सरकार ने भूमि के स्वामित्व के अधिकार को जमींदारों को सौंप दिया, जो सरकार को अत्यंत अल्प स्थायी किराया या लगान देते थे परंतु काश्तकारों से (जो किराये पर भूमि का इस्तेमाल करते थे) बड़ी मात्रा में लगान वसूल करते थे। बढ़ती हुई जनसंख्या ने भूमि पर और दबाव डाला, जिसकी वजह से लगान की कीमत लगातार बढ़ रही थी। इसके कारण अनेकों बिचौलियों (intermediaries) की अधिकता सरकार और काश्तकारों के मध्य उत्पन्न हुई। अतः परिवर्तनीय रूप में सामंती संबंध स्थापित थे। जिस प्रकार से भरतीय पूँजीवादी वर्ग भी उजागर हो रहा था. इसे अधिकांशः रूप से अर्थ सामंती अर्थव्यवस्था कहा जा सकता है।
पूँजीपतियों ने भी कृषि के क्षेत्र में प्रवेश किया तथा बड़ी मात्रा में श्रमिकों को रोजगार प्रदान किये। लेकिन यह बंधुआ मजदूरी को भी दर्शाता है। श्रमिकों की चिरस्थायी ऋणग्रस्तता ने उन्हें जीवनपर्यंत सेवक बना दिया था। इस प्रकार सामंतवाद एक या दूसरे रूप में उपस्थित था।
3. पिछड़ी अर्थव्यवस्था (Backward Economy):
ब्रिटिश शासन के अंत में भारत की प्रधान रूप से पिछड़ी हुई कृषि की अर्थव्यवस्था थी। लगभग 68 से 72% जनसंख्या कृषि से जुड़ी हुई थी। वे अपने रहन-सहन के लिए जरूरी वस्तुओं को कृषि या उससे संबंधित व्यवसायों से अर्जित करते थे। तबाह हो चुके काश्तकारों के पास भी कृषि के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था । कृषि के अलावा अन्य क्षेत्र बहुत छोटे तथा विभिन्न सेवाओं और व्यवसायों में विभक्त थे। पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था के अन्य लक्षणों में अत्यधिक गरीबी, अपर्याप्त तथा असंतुलित भोजन निम्न आय और बहुत असमान रूप से वितरण, प्राचीन किस्म का या कभी ना के बराबर आवासीकरण, नंगे पैर, फटे हुए कपड़े, वर्ग और जाति के नाम पर अत्याचार, बेरोजगारी तथा अल्प रोजगार, लगान तथा कर्जों का अधिक बोझ बढ़ते हुए निरंतर अकाल, बाढ़, सूखा, अशिक्षा, खाद्य पदार्थ की सीमितता तथा जनसंख्या विस्फोट आदि ।
4. स्थिर अर्थव्यवस्था (Stagnant Economy ):
भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई अर्थव्यवस्था तक सीमित न होकर यह एक स्थिर अर्थव्यवस्था भी बन गई। पिछड़ेपन को तो आर्थिक विकास की बढ़ती हुई गति से दूर किया जा सकता है परंतु स्थिरीकरण को दूर करना अत्यंत मुश्किल बात है। Mr. M. Mukerjee के एक अनुमान के अनुसार, उस काल के दौरान प्रति व्यक्ति आय 0.5% बढ़ गई। राष्ट्रीय आय में हुई लघु वृद्धि बढ़ती हुई जनसंख्या के बराबर हो गई। उपनिवेशिक तथा सामंती शोषण, Laissez faire की असंगत नीतियों, अत्याचारी राजनैतिक तरीकों, तथा असंवेदनशील ब्रिटिश प्रवृत्तियों ने अर्थव्यवस्था को विकास नहीं करने दिया तथा यह स्थिर बनी रही।
5. रिक्त अर्थव्यवस्था (Depleted Economy ):
युद्ध काल के दौरान, भारतीय उद्योगां ने बढ़ती हुई माँग को पूरा करने के लिए दिन-रात काम किया। मशीन, प्लांट तथा यंत्र आदि अत्यधिक प्रयोग से शोषित थे एवं भरपूर प्रयोग किए जा चुके थे। देश के पास कोई आधारभूत भारी इंजीनियरिंग उद्योग नहीं था। आयात तथा विस्थापन उपलब्ध नहीं थे। अतः देश ने वास्तविक पूँजी की हानि को सहन किया इसके बिना अर्थव्यवस्था की रिक्तता की भरपाई नहीं की जा सकी।
6. विखंडित अर्थव्यवस्था (Amputated Economy):
'ब्रिटिशों ने फूट डालो और शासन करो' की नीति को अपनाकर विभिन्न समूहों के बीच धर्म, जाति, भाषा और सभ्यता के आधार पर भेदभाव को प्रोत्साहन दिया। इस प्रकार उन्होंने राष्ट्रीय एकीकरण की भावना को समाप्त कर दिया और भारत का विभाजन हो गया। विभाजन हमारी अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ा आघात सिद्ध हुआ जैसाकि अर्थव्यवस्था के किसी महत्त्वपूर्ण अंग को उससे अलग कर दिया गया हो। कोलकाता की जूट मिलों को पूर्वी बंगाल ( पाकिस्तान का भाग, अब बांग्लादेश) से प्राप्त होने वाला कच्चा जूट मिलना बंद हो गया। मुंबई तथा अहमदाबाद की सूती वस्त्रों की मिलों को पंजाब तथा सिंध से मिलने वाली कपास भी बंद हो गयी। हमें पश्चिम के कुछ क्षेत्रों से प्राप्त होने वाले खाद्य पदार्थ की कमी को भी सहना पड़ा। खाद्य पदार्थों की कमी महसूस की जाने लगी। हमारी अर्थव्यवस्था को आर्थिक तथा संवेदनात्मक रूप से विखंडित करने वाले अन्य कारक थे- सांप्रदायिक दुर्भावना, दंगे, खून-खराबा तथा लोगों का सामूहिक रूप से अन्य स्थानों को प्रवास (migration)। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हमें पुनर्वासन ( rehabilitation), विकास तथा पुनर्निर्माण (reconstruction) जैसी मुश्किल समस्याओं का सामना करना पड़ा।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश शासन के लाभकारी प्रभाव
(Beneficial Effects of British Rule on Indian Economy)
यद्यपि ब्रिटिश नीति का आधारभूत उद्देश्य भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास नहीं था, परंतु इसने स्वभाविक रूप से कुछ लाभकारी प्रभाव भी छोड़े। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
(i) देश का राजनैतिक और आर्थिक एकीकरण ।
(ii) परिवहन (मुख्यतः रेलवे) तथा संचार के साधनों का विकास।
(iii) बैंकिंग और मौद्रिक पद्धतियों का विकास।
(iv) उत्पादन तथा प्रबंध की आधुनिक तकनीकियों का परिचय ।
(v) तर्क तथा प्रगतिशीलता पर आधारित नये सामाजिक ढाँचे का विकास।
(vi) नागरिक कानून (Civil laws) और कोर्ट की स्थापना ।
(vii) शिक्षा की नई पद्धति की स्थापना ।
(viii) बाज़ार अर्थव्यवस्था तथा पूँजीवादी उद्यम की उत्पत्ति ।
(ix) स्थिरता, शांति तथा कानून।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर विभाजन के बुरे प्रभाव
(Adverse Effects of Partition on Indian Economy)
1947 में भारत दो अलग-अलग देशों भारत और पाकिस्तान में विभाजित हो गया था। स्वतंत्र भारत को 77% क्षेत्र - 82% जनसंख्या के साथ प्राप्त हुआ था। विभाजन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत बड़ा आघात सिद्ध हुआ। विभाजन ने राष्ट्रीय विकास को क्षति पहुँचाई। इसने कोलकाता की जूट - मिलों तथा मुंबई और अहमदाबाद की कपड़े की मिलों के लिए कच्चे माल की समस्या को जन्म दिया। विभाजन के परिणामस्वरूप पश्चिमी पंजाब तथा सिंध भारत से अलग हो गये। ये भारत के अनाज भंडार थे। इनके अलग होने के कारण भारत को खाद्य पदार्थों की कमी की समस्या झेलनी पड़ी। इनसे अथाह संपत्ति की भी हानि हुई। बड़े पैमाने पर दंगों और खून-खराबों ने हमारी कमर ही तोड़ दी। जनता में भी बिखराब हुआ। लोगों के एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक देश से दूसरे देश में आने-जाने का लंबा सिलसिला शुरू हुआ । इस स्थिति से पुनर्स्थापना की समस्या का उदय हुआ। इसके कारण एक दूसरे पर अविश्वास होने लगा। राष्ट्रीय सुरक्षा और एकीकरण की समस्या भी इन्हीं की देन है। इन सभी समस्याओं के फलस्वरूप अर्थव्यवस्था चकनाचूर हो गई।