अब्दुल रहीम का परिचय एवं दोहे
अब्दुल रहीम का परिचय एवं दोहे
अब्दुल रहीम खान-ए-खाना ( 17 दिसम्बर, 1550-1627), जिन्हें हम रहीम के नाम से जानते हैं, के चरमोत्कर्ष काल में अकबर के दरबार में कवि थे। रहीम बादशाह अकबर के दरबार के 'नौ रत्नों' में से एक थे। रहीम के लिखे दोहे तथा ज्योतिषशास्त्र पर लिखी पुस्तकें बहुत प्रसिद्ध हैं। मुगल काल रहीम के पिता बैरम खान थे। जिन्होंने हुमायूँ की मृत्यु के बाद अकबर का पालन-पोषण किया तथा साम्राज्य का संरक्षण किया।
रहीम का जन्म लाहौर के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन वे धार्मिक रूप से उदार और सहिष्णु थे। उनकी दानशीलता की प्रसिद्धि सुन कर तुलसीदास जी ने एक दोहा लिख कर पूछा-
'ऐसी देनी देंन ज्यूँ, कित सीखे हो सैन ज्यों-ज्यों कर ऊँचों करो, त्यों-त्यों निचे नैन'
यह जानते हुए कि तुलसीदास जी सब कुछ भली-भाँति जानते हैं। रहीम ने यह दोहा लिख कर अपना जवाब स्नेहपूर्वक भिजवाया-
'देनहार कोई और है, भेजत जो दिन-रैन
लोग भरम हम पर करै, तासौ निचे नैन'
रहीम को संस्कृत भाषा का अच्छा ज्ञान था। मुस्लिम संप्रदाय का होने के बावजूद उनका झुकाव सगुण भक्तिधारा की कृष्णधारा की ओर था। श्रीकृष्ण को रहीम अपना आराध्य मानते थे। ज्योतिषशास्त्र के उच्च विद्वान थे। ज्योतिषशास्त्र पर लिखी उनकी पुस्तकें 'खेतीकौतूकम' तथा द्वाविश्द योगावली है। उनके लिखे दोहे जगप्रसिद्ध हैं। इसके अलावा रहीम ने बाबर की आत्मकथा 'बाबरनामा' का फारसी में अनुवाद किया।
रहीम के दोहे
बड़े बड़ाई न करें, बड़े न बोले बोल,
रहिमन हीरा कब कहे, लखटका मेरो मोला
रहिमन देखि बड़ेन को, लग्हू न दीजे दारी,
जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारी ।
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय,
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए।
खीरा मुख ते काटिये, मलिय तलों लगाये।
रहिमन कड़वे मुख कों, चहियत इही सजाय ॥
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करी सकत कुसंग,
चंदन विष व्यापत नहीं, लिप्तात रहत भुजंग।
कही रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहुरीत,
बिपति कसौटी जे कसे, तेही सांचे मीत ।