रिश्तेदारी व्यवस्था और पारिवारिक संरचना (Kinship Pattern and Family Structure)
रिश्तेदारी व्यवस्था और पारिवारिक संरचना - प्रस्तावना
मध्यकालीन
यूरोपीय परिवार और समाज आज के आधुनिक परिवार और समाज से मिलता-जुलता था। समाज के
सभी वर्गों के लिए 'परिवार' जीवन का केन्द्र
था। आज परिवार का 'एकल' रूप अधिक दिखाई
देता है, लेकिन मध्ययुग के यूरोपीय परिवार 'संयुक्त' परिवार थे जिनमें
अधिक पारिवारिक सदस्य शामिल रहते थे।
राजा या शासक
वर्ग का परिवार काफी बड़ा होता था जिनमें बहुत से व्यक्ति रहते थे। राजा पर आश्रित
राज - परिवार रिश्तेदार, नौकर-चाकर आदि। इनके लिए रहने की व्यवस्था भी
महल में ही बने विभिन्न तरह के कमरों में थी। निम्न वर्ग भी, जिनमें शामिल
हैं- किसान, मजदूर, पेशेवर आदि इनके परिवार भी आज के परिवारों से
सामान्यतः बड़े होते थे। विभिन्न रिश्तेदार और सेवक आदि एक साथ रहते थे ।
उत्तरोत्तर
मध्यकाल तक पारिवारिक संगठन की प्रक्रिया सामान्य बनी रही। आधुनिक काल आते-आते
परिवारों में गोपनीयता बढ़ने लगी। पारिवारिक गोपनीयता ने परिवार की संरचना को भंग
करना शुरू कर दिया।
1 मध्यकालीन पारिवारिक संरचना (Family Structure)
मध्यकालीन
परिवारों की प्रकृति सैन्य आधारित थी। प्रत्येक परिवार में सामान्यतः एक व्यक्ति
सैन्य कर्मी था। परिवार मुख्य रूप से पुरुष प्रधान था । मध्यकाल के अंत तक कुछ
परिवारों में महिला प्रधान भी पाई जाने लगी थी। घर में उनका दखल भी था लेकिन केवल
घर की चारदीवारी के भीतर ही ।
महिलाओं का मुख्य
कार्य घरेलू मामलों का प्रबंध करना था। महिलाएँ, उनकी बेटियाँ व
अन्य स्त्री सदस्य खाना बनाना, साफ-सफाई, धोना - मांजना
तथा पालतू पशुओं की देखभाल व अन्य कार्य किया करती थी । कुलीन परिवारों में
महिलाओं की सहायता के लिए घरेलू सेवक व सेविकाएँ भी थी जो उनके काम में सहायक थीं
आवश्यकता पड़ने पर घरेलू पुरुष नौकरों को भी सेना में शामिल कर लिया जाता था ।
शाही परिवार का पारिवारिक ढाँचा जनता व अन्य वर्गों से सर्वथा भिन्न था। शाही परिवार की देखभाल के लिए सेवकों, अनुचरों व दासों की लंबी-चौड़ी जमात थी जो केवल वंशानुक्रम आधार पर रखे जाते थे।
एक समारोह द्वारा पदानुक्रम की घोषणा शाही परिवार द्वारा की जाती थी। एक पदानुक्रम सामाजिक होता था जबकि दूसरा अपने शीर्ष पर होता था।
शाही परिवार की
प्रत्येक जरूरत के लिए सुसंगठित सेवकों, कर्मचारियों का
दल था। शाही परिवार के शयनकक्षों के लिए सेविकाएँ थीं। शाही रसोई के लिए मसालची
खानसामा तथा अन्य सहायक सेवक थे।
2 वंशानुक्रम संपत्ति हस्तांतरण ( Inheritance Transfer of Property)
पूर्वी और
दक्षिण-पूर्वी यूरोप में संपत्ति पर मालिकाना हक पुरुषों का था। ग्रामीण क्षेत्रों
में पुरुष परिवार का प्रधान होने के साथ ही सर्वेसर्वा था। वहीं पैतृक संपत्ति का
स्वामी था। अपनी अर्जित संपत्ति के साथ-साथ पूर्वजों से प्राप्त खेत, धन व अन्य
सम्पत्ति पर पुरुष का ही मालिकाना हक था। इस तरह की पैतृक परंपरा पीढ़ियों से चली
आ रही थी और उस काल तक बनी हुई थी। भूमि या मकान आदि के रूप में संपत्ति पर
महिलाओं का मालिकाना हक मध्य युग के आखिरी दशकों में मिला। पिता द्वारा पुत्री के
नाम संपत्ति हस्तांतरण या पति द्वारा पत्नी के नाम संपत्ति सौंपने की प्रक्रिया
आधुनिक काल में ही प्रारंभ हुई। हालाँकि मध्यकाल में भी इसके अपवाद मिल सकते हैं।
जबकि पश्चिमी और
केंद्रीय यूरोप में संपत्ति पर स्त्रियों का मालिकाना हक मध्यकाल में ही नजर आने
लगा था। इसमें परंपरा से चली आ रही संपत्ति पर पैतृक हक व अर्जित संपत्ति पर हक भी
शामिल है।
पैतृक संपत्ति और
संपत्ति हस्तांतरण की पद्धतियाँ परंपरागत रूप से लिंग आधारित श्रम विभाजन से जुड़ी
थीं। ये श्रम आधारित पद्धतियां भी समाज व परिवार में पुरुषों की प्रधानता का ही
समर्थन करती थीं तथा परंपरागत रूप से संपत्ति का मालिकाना हक पुरुषों को ही सौंपती
थीं।
मध्यकाल में
पुरुष परंपरागत रूप से कृषि कार्य करते थे, जिनमें महिलाओं
की भागीदारी न के बराबर थी। कृषि के अलावा पशुपालन (अस्तबल आदि को छोड़कर), मछली पकड़ना तथा
जंगल में शिकार करना पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी यूरोप में पुरुषों का प्रमुख कार्य
था।
आधुनिक काल से पूर्व कृषि व्यवस्था
आधुनिक काल से पूर्व तक पूर्वी तथा दक्षिण-पूर्वी यूरोप में कृषि की विभिन्न परंपराएँ तथा रूप प्रचलित थे, जिसमें अर्ध- सामंती कृषि प्रणाली का वर्चस्व था। ज्यादातर किसान बंधुआ सेवक थे। कृषि तकनीक उन्नत नहीं थी । मजदूर किसान को सुबह से शाम तक हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ती थी। किसान परिवार कुलीन परिवारों से बहुत छोटे व निम्न दर्जे के थे। सेवा करना उनके जीवन चक्र का स्वाभाविक हिस्सा था। किसानों व मजदूरों के घर कच्चे व सीलन भरे होते थे। प्रकाश की व्यवस्था तथा वायु का संचार (वेंटिलेशन) नहीं था। घरों में मानवों के साथ-साथ पशु भी रहते थे हालाँकि मध्यकाल के अंत तक स्थिति में धीरे-धीरे सुधार आने लगा था।
चर्च का प्रभाव
एक नियम के तहत ईसाइत ने खानदान तथा वंश की रूढ़िवादी परंपराओं को कमजोर करने में सहायता की। इसके साथ ही पति-पत्नी के भावनात्मक रिश्ते को मजबूती प्रदान की। पश्चिमी यूरोप में चर्च का प्रभाव पारिवारिक संबंधों पर अधिक था। चर्च के वैवाहिक कानूनों को पश्चिमी यूरोप में अधिक समर्थन प्राप्त था । सहयोगात्मक तथा सामुदायिक सामाजिकता को चर्च का ठोस समर्थन मिलता था। परंपरागत रूढ़िवादी चर्च के प्रभाव में आने वाले क्षेत्रों में पित्रात्मक सगोत्रता पर आधुनिकता का असर कम था जबकि प्रोटेस्टेंट चर्च दकियानूसी रीति-रिवाजों के बंधन को तोड़ने के लिए आम जनमानस को प्रोत्साहित कर रहा था।