आदिकालीन साहित्य परंपरा चंदबरदाई - जीवन परिचय कविता एवं रचनाएँ
चंदबरदाई जीवन परिचय कविता एवं रचनाएँ
चंदबरदाई (सितंबर 1149-1200 ई.) एक हिंदू ब्राह्मण थे। वे पृथ्वीराज चौहान, जिन्होंने (1165 से 1192 तक ) अजमेर और दिल्ली में शासन किया, के दरबारी कवि थे। चंदबरदाई न केवल राजकवि थे बल्कि पृथ्वीराज के मंत्रिपरिषद् के अहम् सदस्य भी थे। चंदबरदाई ने कई लड़ाईयों में पृथ्वीराज चौहान का साथ दिया। चंदबरदाई का दो बार विवाह हुआ था। कमला और गौरन नामक दो पत्नियों से कवि की दस संतानें थीं। पृथ्वीराज रासो चंदबरदाई की प्रसिद्ध रचना है। यह काव्य रूप में है इसमें दस हजार से भी ज्यादा पद हैं। कवि ने इस ग्रंथ में पृथ्वीराज चौहान के शासन व व्यक्तित्व का बखान किया है। इस ग्रंथ का ऐतिहासिक महत्त्व है। ग्रंथ ब्रज भाषा में लिखा गया है।
चंदबरदाई की कविता
पद्मसेन कुँवर सुघर ताघर नारि सुजान।
ता उर इक पुत्री प्रकट, मनहुँ कला ससभान ।।
मनहुँ कला ससभान कला सोलह सौ बन्निय ।
बाल वैस, ससि ता समीप अमित रस पिन्निय ।।
बिगसि कमल स्त्रिग, भ्रमर, बेनु खंजन, म्रिग लुट्टिय ।
हीर, कीर, अरु बिंब मोति नष सिष अहि घुट्टिय ।।
छप्पति गयंद हरि हंस गति, बिह बनाय संचै सँचिय ।
पदमिनिय रूप पद्मावतिय मनहुँ काम कामिनि रचिय ||
मनहुँ काम -कामिनि रचिय, रचिय रूप की रास
पसु पंछी मृग मोहिनी, सुर नर मुनियर पास।।
सामुद्रिक लच्छिन सकल, चौंसठ कला सुजान।
जानि चतुर्दस अंग खट, रति बसंत परमान।।
सषियन संग खेलत फिरत, महलनि बग्ग निवास |
कीर इक्क दिष्षिय नयन, तब मन भयो हुलास ||
मन अति भयौ हुलास, बिगसि जनु कोक किरन - रबि ।
अरुन अधर तिय सुघर, बिंबफल जानि कीर छबि ।।
यह चाहत चष चकित उह जु तक्किय झरंप्पि झर।
चंचु चहुट्टिय लोभ, लियो तब गहित अप्प कर ।।
हरषत अनंद मन मँह हुलस, जु महल भीतर गइय।
पंजर अनूप नग मनि जटित, सो तिहि मँह रष्षत भइय ।।
लै तिहि महल रष्षत भइय गइय खेल सब भुल्ला .
चित चट्टयो कौर सॉ राम पदावत फुल्ल ।।
कीर कुंवरि तन निरषि दिषि, नष सिष लौं यह रूप ।
करता करी बनाय कै, यह पद्मिनी सरूप ।।
कुटिल केस सुदेस पोहप रचयित पिक्क सद
सेत वस्त्र सोहे सरीर, नष स्वाति बूँद जस
कमल-गंध, वय-संध, हंसगति चलत मंद मंद ।।
नैनन निरषि सुष पाय सुक, यह सुदिन्न मूरति रचिय ।
उमा प्रसाद हर हेरियत, मिलहि राज प्रथिराज जिय ।।