भारत में आर्थिक सुधार - 1991 (Economic Reforms in India Since 1991 )
भारत में आर्थिक सुधार - 1991 -प्रस्तावना ( Introduction )
पिछले लगभग 40 वर्षों से
सार्वजनिक क्षेत्र का प्रभुत्व होने के बाद यह महसूस किया गया कि सार्वजनिक
क्षेत्र की उपयोगिता अब समाप्त हो चुकी है और यह विकास की प्रक्रिया में रुकावट
पैदा कर रहा है।
इस बात का अनुभव
किया गया कि सरकार के खर्च उसकी आय से बहुत अधिक है। वस्तुओं के आयात में तीव्र
गति से वृद्धि हुई है, जबकि उसकी तुलना
में निर्यात में वृद्धि नहीं हुई है। विदेशी विनिमय संचय दो सप्ताह से अधिक भुगतान
करने के लिए अपर्याप्त है। मुद्रा प्रसार दो अंकों के स्तर पर पहुँच चुका है। इस
वित्तीय संकट से निकलने के लिए हमने विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक कोष (IMF) से 7 बिलियन ऋण की
माँग की। विश्व बैंक द्वारा यह परामर्श दिया गया कि भारत वर्ष निजी क्षेत्र पर
लगाए गए प्रतिबंधों को समाप्त करे। सरकार की भूमिका को कम करे और व्यापारिक
प्रतिबंधों को समाप्त करे एवं अपनी अर्थव्यवस्था को खुली बनाकर उदारीकरण की नीति
अपनाए। इसी के आधार पर हमने नई आर्थिक नीति, (जिसे आर्थिक सुधार भी कहते हैं) को अपनाया।
भारत में आर्थिक
सुधार (Economic Reforms
in India Since 1991)
भारत सरकार द्वारा जुलाई 1991 से अपनाई गई आर्थिक नीति नई आर्थिक नीति के नाम से जानी जाती है। स्वतंत्रता से जून 1991 तक हमारे द्वारा अपनाई गई आर्थिक नीतियाँ तीव्र आर्थिक वृद्धि के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल नहीं रहीं। इसने हमें आर्थिक संकट की ओर, राजकोषीय घाटे, प्रतिकूल भुगतान संतुलन, असक्षमता और लाल फीताशाही की तरफ ढकेला । आर्थिक संकट से बाहर आने के लिए और आर्थिक वृद्धि की दर को तेज करने के लिए जुलाई 1991 में नई आर्थिक नीति सामने आई। नई आर्थिक नीति निम्नलिखित उद्देश्य प्राप्त करना चाहती है:
1. सार्वजनिक क्षेत्र के विकास की प्राथमिकता को कम करना (Reducing Priority Development of Public Sector)-
सार्वजनिक
क्षेत्र अब उच्च टेक्नोलॉजी और आधारभूत ढाँचे के महत्वपूर्ण क्षेत्र जैसे- सड़कें, रेलवे, ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य, जल आपूर्ति और
सीवेज सुविधाओं आदि पर ध्यान देगी। सार्वजनिक क्षेत्र को दी गई 17 उद्योगों में से
9 जुलाई 1991 की औद्योगिक
नीति के अंतर्गत आते हैं। ये उद्योग हैं लौह और इस्पात, विद्युत वायु
यातायात नौका निर्माण, भारी विद्युत
मशीनरी, दूर संपर्क केबल
और यंत्र- संयंत्र आदि के हैं। सरकार ने इनके अंशों को वित्तीय संस्थाओं, जनता और श्रमिकों
में अंशों का कुछ भाग देने की योजना बनाई।
2. विदेशी निजी निवेश के लिए खुले दरवाजे ( Open Door to Foreign Private Investment) -
नई आर्थिक नीति
ने निजी विदेशी निवेश नीति का स्वागत किया और बाहरी निवेश पर लगे प्रतिबंधों को
हटाया। पहले विदेशी सहायता,
उनकी एजेंसियाँ, एशियन बैंक और IMF पर प्रतिबंध था।
3. अर्थव्यवस्था का उदारीकरण (Liberalisation of Economy ) -
सरकार द्वारा प्रत्यक्ष और भौतिक नियंत्रण को निम्नलिखित के संदर्भ में उदार बनाया गया-
(i) औद्योगिक लाइसेंसिंग
(ii) उत्पादों की कीमत और वितरण नियंत्रण
(iii) आयात लाइसेंसिंग
(iv) विदेशी विनिमय नियंत्रण
(v) कंपनियों द्वारा पूँजीगत व्ययों पर नियंत्रण
(vi) बड़े व्यापार संगठनों द्वारा निवेश पर प्रतिबंध।
उदारीकरण नीति के
पीछे मुख्य उद्देश्य कीमतों और प्रतियोगिता को अर्थव्यवस्था में मुख्य भूमिका
निभाने देना है। सरकार ने यह महसूस किया कि ये प्रतिबंध उचित नहीं थे। ये सिर्फ
भ्रष्टाचार, विलंब और अकुशलता
के लिये जिम्मेदार हैं।
4. अर्थव्यवस्था का विश्व अर्थव्यवस्था से एकीकरण (Integration of the Economy with the World Economy ) -
नई आर्थिक नीति का यह मानना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था, विश्व अर्थव्यवस्था के साथ गहरा संबंध रखे। इसके परिणामस्वरूप वस्तुओं, टेक्नोलॉजी और अनुभव के विनिमय में आसानी हुई। अतः आयात लाइसेंसिंग पर लगे मात्रात्मक प्रतिबंधों को हटाया गया। आयात चुंगी की दर घटा दी गई। हमारी नीतियों में किए गए ये सभी परिवर्तन हमारे आर्थिक विकास और इससे संबंधित नीतियों पर अपना असर डालेंगे। अतः नई आर्थिक नीति का उद्देश्य अधिक प्रतियोगी और बेहतर वातावरण बनाना है जिससे अर्थव्यवस्था में सुधार किया जा सके।
आर्थिक सुधार / नई आर्थिक नीति की आवश्यकता
(Need of the Economic Reforms / New Economic Policy)
अप्रैल 1951 से नियोजित
विकासात्मक अर्थव्यवस्था अपनाई गई है। हमारा मुख्य उद्देश्य अधिक सामाजिक कल्याण
और पिछड़े गरीब लोगों को ऊपर उठाना था। हमने समाजवादी पद्धति को अपनाया। इन
उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आर्थिक प्रणाली की तरह मिश्रित अर्थव्यवथा
सामने आई। 1951-1990 के काल के दौरान
सार्वजनिक क्षेत्र को ऊँची प्राथमिकता दी गई। इस काल ने सफलता असफलता दोनों को
पाया। 1951-91 के काल की मुख्य
विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता ।
(ii) निजी क्षेत्र के कार्यों पर नियंत्रण।
(iii) सार्वजनिक क्षेत्र में अफसरशाही (Bureaucracy) और लालफीताशाही (Red Tapism) |
(iv) जून 1991 तक आर्थिक संकट की शुरूआत।
(v) विदेशी विनिमय में कमी।
(vi) नए विदेशी ऋण की अनुपलब्धता ।
(vii) गैर-निवासियों (Non-Resident ) द्वारा अपने खातों को बंद करना।
(viii) USSR के बिखराव (Disintegration) और टूटने का बुरा असर ।
(ix) राजकोषीय घाटे में वृद्धि।
(x) भुगतान संतुलन घाटे में वृद्धि
(xi) विदेशी विनिमय
कोष में भारी गिरावट ।
आर्थिक नीति की आवश्यकता
1. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) -
यद्यपि हमने
नियोजित विकासात्मक अर्थव्यवस्था को अपनाया है। लेकिन हमारे गैर विकासात्मक व्यय
कुल व्यय के बहुत अधिक अनुपात में हैं। राजकोषीय घाटा जो 1981-82 में GDP का 5.4% था 1991 में GDP का 8.4% तक बढ़ गया। इस
घाटे को पूरा करने के लिए सरकार भारी ऋण लेती है। परिणामस्वरूप ऋण और ब्याज की
अदायगी बढ़ती जाती है। राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज जो कुल सरकारी व्यय का 1980-81 में 10% था 1991 में बढ़कर 36% हो गया। उस
अवस्था में हमारी अर्थव्यवस्था कर्जो के जाल में फँसी थी। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा
फंड जैसे IMF ने हमारी आर्थिक
प्रणाली से अपना विश्वास खो दिया। इस तरह की स्थिति ने सरकार को नई आर्थिक नीति
बनाने के लिए विवश किया जिससे गैर विकासात्मक व्यय को रोककर ऋणों के जाल से बचा जा
सके।
2. प्रतिकूल भुगतान शेष (Unfavourable Balance of Payment)-
भुगतान संतुलन, जो हमें विदेशों को भुगतान करना है और जो हमें विदेशों से
प्राप्त करना है उसके बीच का अंतर है। प्रतिकूल भुगतान संतुलन की स्थिति में हमें
प्राप्त करने से अधिक भुगतान करना पड़ता है। हमारा भुगतान संतुलन घाटा जो 1980-81 में 2,214 करोड़ से 1990-91 में बढ़कर 17.367 करोड़ हो गया।
इसे पूरा करने के लिए सरकार के पास बाहरी ऋणों पर निर्भर होने के अलावा कोई चारा
नहीं था। परिणामस्वरूप हमारे विदेशी ऋण जो हमारे GDP के 12% थे 1990-91 में बढ़कर 25% हो गए। यह स्थिति अर्थव्यवस्था के लिए घातक सिद्ध हुई। इस
प्रकार नई आर्थिक नीति की आवश्यकता प्रतिकूल भुगतान संतुलन को कम करने के लिए
महसूस की गई।
3. विदेशी विनिमय कोष में कमी (Reduction in Foreign Exchange Reserve)-
बढ़े हुए राजकोषीय घाटे और प्रतिकूल भुगतान संतुलन के कारण विदेशी विनिमय कोष में कमी आई। 1990-91 में यह स्थिति इतनी खराब हो गई कि हम लोग 10 दिनों तक विदेशी आयात बिलों का भुगतान नहीं कर पाए। यह संकट इस कदर बढ़ा कि चंद्रशेखर सरकार ने देश के रिजर्व कोष से स्वर्ण कोष गिरवी रखा जिससे वह ऋण की अदायगी के लिए ऋण प्राप्त कर सकें। इस संकट ने सरकार पर अंतर्राष्ट्रीय रूप से दबाव डाला कि वह उदारीकरण तथा निजीकरण की नई आर्थिक नीति लागू करे।
4. कीमतों में वृद्धि (Increase in Prices) -
1951-91 के काल के दौरान अर्थव्यवस्था में स्फीतिकारी दबाव महसूस
किए गए। कृषि और औद्योगिक विकास की दर को बढ़ाने के लिए सरकार अत्यधिक व्यय करने
लगी। सामाजिक कल्याण को देखते हुए भी हमारे व्यय बढ़ गए। गैर विकासात्मक व्यय भी
अधिक थे। उत्पादन और व्यय में तालमेल कभी भी नहीं बैठ सका। परिणामस्वरूप वस्तुओं
की कीमतें बढ़ती रहीं। इस सब ने सरकार पर दबाव डाला कि वह अपने व्ययों को
नियंत्रित करे। इसलिए अर्थव्यवस्था में नई आर्थिक नीति की जरूरत हुई जिसे जुलाई 1991 में लागू किया
गया।
5. खाड़ी संकट (Gulf Crises) –
1990-91 के दौरान इराक
की लड़ाई चल रही थी। इसने अरब देश को युद्ध में शामिल किया, जिससे पेट्रोल का
संकट उत्पन्न हो गया। पेट्रोल की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इस संकट से
खाड़ी देशों पर हमारे द्वारा किए जाने वाले निर्यात पर भी बुरा असर पड़ा। फलस्वरूप
हमारे भुगतान संतुलन की स्थिति बिगड़ने लगी। बढ़ गई।
6. सार्वजनिक क्षेत्र की अकुशलता (Inefficiency of Public Sector ) -
40 वर्षों के बाद हमने ये अनुभव किया है कि सार्वजनिक क्षेत्र
में भ्रष्टाचार और संसाधनों की बर्बादी हुई है। सार्वजनिक क्षेत्र में 1100 करोड़ रुपयों का
निवेश करने के बाद हमें इससे केवल 3% का लाभ मिला। अतः नई आर्थिक नीति सार्वजनिक क्षेत्र की
सक्षमता और दूसरी इकाइयों के कार्य करने के ढंग में सुधार लाने का प्रयास है।
आर्थिक सुधार (नई आर्थिक नीति) की विशेषताएँ
(Main Features of Economic Reforms) (New Economic Policy)
1. अर्थव्यवस्था का उदारीकरण (Liberalisation of Economy) -
उदारीकरण का अर्थ अनावश्यक व्यापार प्रतिबंधों को हटाकर
अर्थव्यवस्था को प्रतियोगी बनाना है। नई आर्थिक नीति ने निजी क्षेत्र से अधिक
नियंत्रण और लाइसेंसिंग को हटाकर अर्थव्यवस्था को अधिक उदार बनाया। नई आर्थिक नीति
ने उदारीकरण के निम्नलिखित उपाय प्रस्तुत किए हैं-
(i) लाइसेंसिंग से उद्योगों को छुटकारा (Exemption of Industries from Licensing) -
सरकार ने सभी उद्योगों को लाइसेंस से छुटकारा (exemption) प्रदान करा दिया।
आजकल कोई भी व्यापारी बिना किसी प्रतिबंध के अपनी कंपनी बना सकता है।
(ii) उद्योगों का विस्तार ( Expansion of Industries) -
आजकल उद्योग बाजार की जरूरत के अनुसार अपना विस्तार कर सकते हैं। यहाँ तक कि सरकार की अनुमति की भी जरूरत नहीं होती।
(iii) उत्पादन की स्वतंत्रता (Freedom of Production) -
नई आर्थिक नीति के अनुसार उत्पादन अपनी मर्जी की वस्तु का उत्पादन कर सकते हैं।
(iv) MRTP की धारणा से दूर जाना (Going Away with the Concept of MRTP) -
अब MRTP
कंपनियाँ नहीं
हैं। कंपनियाँ अब अपने निवेश निर्णय और व्यय से संबंधित योजनाएँ खुद बना सकती हैं।
(v) लघु उद्योगों की निवेश सीमा को बढ़ाना (Extending Investment Limit of Small Industries) -
नई आर्थिक नीति के अनुसार
लघु उद्योगों की निवेश सीमा को बढ़ाकर 1 करोड़ कर दिया जाय जिससे वे अपने उद्योग को आधुनिक कर सके।
(vi) विदेशों से कच्चे माल और मशीनरी का मुक्त आयात (Free Import of Machinery and Raw Material from Abroad) -
अब कंपनियाँ
जरूरी विदेशी चीजों को खुले बाजार से खरीद सकती हैं। इसके लिए सरकार से अनुमति
लेने की कोई जरूरत नहीं है। ये उदार नीति बाजार में प्रतियोगिता को पैदा करती है
जिससे कुशलता में बढ़ोत्तरी होती है।
2. अर्थव्यवस्था का निजीकरण (Privatisation of the Economy )-
निजीकरण से हमारा अभिप्राय निजी क्षेत्र पर से कड़े नियंत्रण को हटाकर उन्हें जरूरी निर्णय लेने के लिए मुक्त बनाना है। स्वतंत्रता से हमने सार्वजनिक क्षेत्र को ऊँची प्राथमिकता दी है लेकिन इससे अच्छे परिणाम नहीं मिल सके। अब नई आर्थिक नीति निजी क्षेत्र को बढ़ाना चाहती है। निजी क्षेत्र को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाये जाते हैं:
अर्थव्यवस्था में
निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के उपाय (Measures to encourage Private Sector in the economy)
(i) सुरक्षित सार्वजनिक क्षेत्र उद्योगों की संख्या को कम करना (Reduction in the number of reserve public sector Industries) - सरकार ने आर्थिक नीति के द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र उद्योगों की संख्या को 17 से घटाकर 4 कर दिया। इसका अर्थ है कि निजी क्षेत्र अब अलग-अलग क्षेत्रों में 13 और उद्योग लगा सकता है।
(ii) निजी क्षेत्र
निवेश की भागदारी को बढ़ाना (Increasing the share of private sector Investment) -अब यह योजना बनाई
गई है कि सार्वजनिक क्षेत्र निवेश के भाग को कम करके 45% और निजी क्षेत्र
के भाग को बढ़ाकर 55% कर दिया जाए।
(iii) सार्वजनिक
उद्यमों के अंशों को बेचना (Selling the Share of Public Enterprise) - अब यह निर्णय
लिया गया है कि सामान्य जनता और कर्मचारियों की भागीदारी बढ़ाई जाये और उन्हें
सार्वजनिक उद्यमों के अंश बेचे जाएँ।
(iv) परिवर्तन पर जोर
ना देना (No Insistance
on Conversion)- अब वित्तीय कॉरपोरेशन उद्योगों को अपने ऋण समता अंशों में
तब्दील करने के लिए दबाव नहीं डाल सकते। निजीकरण के प्रोत्साहन ने निश्चय ही
उद्योगों की कुशलता को बढ़ा दिया है।
(a) बाह्यय साधन
सेवाएँ (Outsourcing)
इसका तात्पर्य
अपनी व्यवसायिक इकाई से बाहर निकलकर विभिन्न प्रकार की विशिष्ट सेवाएँ विभिन्न
साधनों से प्राप्त करना है। साधारणतया से सेवाएँ निरंतर एवं प्रमापित होती हैं।
कानूनी परामर्श, कंप्यूटर सेवाएँ, सुरक्षा, विज्ञापन, लेखांकन आदि इसके
उदाहरण हैं। संप्रेषण की तेज वृद्धि ने खास तौर पर सूचना तकनीकी ने बाह्य साधन (Outsourcing) सेवाओं को
प्रोत्साहित किया है। आज संप्रेषण से संबंधित व्यवसायिक प्रक्रिया को उचित रूप से BPO या Call Centres के नाम से जाने
जाते हैं। लेखांकन, बैंकिंग सेवाएँ, संगीत रिकार्ड, फिल्म संपादक (Film Editor), पुस्तकों की नकल
(Transcription), चिकित्सा परामर्श
का कार्य करती है। विकासात्मक देशों में शिक्षा भी Outsourced की जाती है। आधुनिक Telecommunication जिसमें इंटरनेट, Text, आवाज (Voice), प्रदर्शन ( Visual) आदि आँकड़ों की
सहायता से सेवाओं (Services)
को द्वीपों (Continents) एवं राष्ट्रीय
सीमा में वास्तविक समय में हस्तांतरित (Tranismitted) एवं अंकों में परिवर्तित (Digitized) किया जा सकता है।
अधिकतर बहुराष्ट्रीय संस्थाएँ (Multinational Corporations) एवं छोटी कंपनियाँ भी अपनी सेवाओं को भारत को Outsourcing द्वारा प्रदान
करती है। जहाँ पर वह कम लागत पर उपयुक्त कुशलता एवं शुद्धता के साथ काम कर सकते
हैं। भारत जहाँ पर मजदूरी कम एवं कुशल कर्मचारी बहुत अधिक हैं तो वहाँ प्रतियोगिता
का लाभ उठाया जा सकता है।
(b) विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation)
General Agreement on Tariffs and
Trade (GATT) के उत्तराधिकारी के रूप में विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना 1995 में की गई।
इसका उद्देश्य व्यवसाय के लिए अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सभी देश के सदस्यों को समान अवसर प्रदान करता था। आधुनिक WTO की निम्नलिखित विशेषताएँ -
WTO की विशेषताएँ (Special Features of WTO)
(i) नियम पर आधारित व्यापार की स्थापना करना, जो कि देशों के एकतरफा (Arbitrary) प्रतिबंधों से मुक्त हो।
(ii) विश्व के साधनों का आदर्शतम उपयोग किया जाना ।
(iii) वातावरण की सुरक्षा ।
(iv) सदस्य देशों को कर एवं गैर-कर प्रतिबंधों से मुक्त करके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करना ।
(v) भारतवर्ष विश्व
व्यापार संगठन का महत्त्वपूर्ण सदस्य होने के कारण विकासशील देशों के हितों की
सुरक्षा की वकालत करता है। WTO में लिए गए निर्णय के आधार पर भारतवर्ष में आयात के
परिणामात्मक प्रतिबंधों एवं आयात कर में कमी करके अपनी अर्थव्यवस्था को उदार बना
दिया है।
3. अर्थव्यवस्था का सार्वभौमिकरण ( Globalization of Economy) -
अर्थव्यवस्था के सार्वभौमिकरण का अर्थ विश्व की
अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार के क्षेत्र में वित्त, उत्पादन, टेक्नोलॉजी और
निवेश आदि को लेकर खुले तौर पर पारस्परिक बातचीत एवं व्यवहार करना है।
सार्वभौमिकरण, विदेशी व्यापार
एवं निजी और संस्थागत विदेशी निवेशों को बढ़ाती है। यह वास्तव में विदेशी व्यापार
पर लगे सभी प्रतिबंधों और बाधाओं को हटाता है।
नई आर्थिक नीति का पुनरावलोकन (Review of New Economic Policy)
स्वतंत्रता से 1991 तक आर्थिक नीति को बहुत सी सफलतायें और असफलता मिलीं। यह अनुभव किया गया कि हमारे यहाँ की आर्थिक वृद्धि पूँजीवादी देशों की आर्थिक वृद्धि की तरह तेज नहीं है। यह नीति हमें आर्थिक संकट की ओर ले जाती है। इसलिए यह जरूरी हो गया कि हमारी नई आर्थिक नीति हमारी जरूरतों के अनुसार हो । यह नहीं कहा जा सकता है कि हमारी पुरानी नीति शत प्रतिशत गलत थी। इसके अपने अलग लाभ थे।
आर्थिक सुधार
के पक्ष में तर्क (Arguments
in Favour of Economic Reforms)
नई आर्थिक नीति
के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं: 1. आर्थिक वृद्धि की दर में वृद्धि (Increase in the Rate of Economic
Growth) - 1991 से पहले के 40 वर्षों के दौरान हमारे काफी प्रयासों और भारी निवेश के
बावजूद हमारे घरेलू उत्पाद 3.6% तक और प्रति व्यक्ति आय 1.4% तक बढ़ी। 1981-92 के दौरान ये दरें 5.5% और 3.4% थीं। यह आर्थिक
वृद्धि दूसरे एशियाई देशों जैसे- हाँगकाँग, सिंगापुर, ताइवान और मलेशिया से कम थी। आर्थिक विकास की निम्न दर ने
हमें आर्थिक सुधार के लिये विवश किया और फलस्वरूप नई आर्थिक नीति इसका परिणाम है।
2. राजकोषीय घाटे में गिरावट (Fall in the Fiscal Deficit)-
हमारा राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जाता है। सरकार ने देश के अंदर और बाहर से काफी ऋण लिया। इन ऋणों के भुगतान का मतलब राजस्व को कम करना था। परिणामस्वरूप, हमारे पास निवेश के लिए पर्याप्त फंड नहीं बचे। इस समस्या को सुलझाने के लिए घाटे की वित्त व्यवस्था लागू की गई जिसके कारण उच्च स्फीति की स्थिति पैदा हुई।
3. कीमत नियंत्रण (Price Control) -
यह निश्चित किया गया कि नई आर्थिक नीति के परिचय के बाद कर की दरों को कम किया जाएगा। पूर्ति को नियंत्रित किया जाएगा। सरकारी व्यय में भी कभी भी कमी की जाएगी और उत्पादन को बढ़ाया जाएगा। ये सभी उपाय कीमत को नियंत्रित करेंगे।
4. गरीबी और असमानता में कमी (Reduction in Poverty and Inequality)-
नई आर्थिक नीति सामूहिक शिक्षा के विकास पर जोर
देती है जो 20वीं शताब्दी के
अंत तक पूर्ण रोजगार ला सके। यह नीति संतुलित क्षेत्रीय विकास को भी अपना उद्देश्य
बनाती है। यह हमारी राष्ट्रीय और प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाएगी। फलस्वरूप आय की
असमानता और गरीबी कम होगी।
5. सार्वजनिक क्षेत्र की कुशलता में सुधार लाना (Improving the Efficiency of Public Sector)-
हमने भारत में
सार्वजनिक क्षेत्र को विशेष मान्यता दी है, लेकिन दुर्भाग्यवश सार्वजनिक क्षेत्र को सफलता प्राप्त नहीं
हुई। समय के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र अक्षमता और हानियों से भर गया। ये बहुत
अजीब बात है कि हम 11000 करोड़ रु. के
निवेश के द्वारा सिर्फ 3% लाभ अर्जित करते
हैं। नई आर्थिक नीति मुख्य रूप से असफल इकाइयों पर ध्यान देगी। परिणामस्वरूप केवल
कुशल सार्वजनिक क्षेत्र बाजार में रहेंगे। यह अपने आप ही सार्वजनिक क्षेत्र की
उत्पादकता को बढ़ाएगा।
6. छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास (Development of Small Scale Industries) -
छोटे पैमाने के उद्योग सरकारी नियंत्रण और
लाइसेंसिंग नीति के कारण विकास नहीं कर पाते हैं। यह आशा की जाती है कि नई आर्थिक
नीति छोटे पैमाने के उद्योगों के लिए अनुकूल स्थितियाँ लाएगी।
7. प्रतिकूल व्यापार संतुलन में कमी (Fall in the Unfavaourable Balance of Trade ) -
हमारा प्रतिकूल व्यापार
संतुलन बहुत अधिक बढ़ गया था। नई आर्थिक नीति आयात प्रतिस्थापन पर जोर देती है और
निर्यात को भी प्रोत्साहन दिया जाता है। ये दोनों उपाय हमारी बढ़ती हुई कीमतों की
समस्या का समाधान करेंगे।
8. औद्योगिक क्षेत्र की प्रतियोगी शक्ति का निर्माण ( Building Competitive Strength of industrial Sectors) -
नई आर्थिक नीति
भारतीय उद्योगों के लिए अपनी क्षमता विश्व की तकनीकी रूप से सक्षम उद्योगों की तरह
बनने का अवसर प्रदान करती है। यह अनुभव किया गया है कि भारतीय उद्योग अन्य देशों
के उद्योग की अपेक्षा तकनीकी रूप से पिछड़े हुए हैं। यह इसलिए है क्योंकि यहाँ
(भारत में) उद्योगों को बहुत अधिक सुरक्षा प्रदान की जाती है। हमारी नीतियों के
कारण अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में हमारा शेयर जो 1950 में 2% था 1993 में घटकर 0.5% हो गया। यह सोचा गया है कि नई आर्थिक नीति औद्योगिक
क्षेत्र में उत्साह पैदा करेगी और उद्योगों को अधिक लाभ प्राप्त होगा। इस प्रकार
हम दूसरे देशों के साथ कड़ी प्रतियोगिता की स्थिति में होंगे।
नई आर्थिक नीति के विपक्ष में तर्क (Argument Against New Economic Policy)
यहाँ कुछ अर्थशास्त्रियों ने नई आर्थिक नीति की
आलोचना भी की है। इनके निरीक्षण को निम्नलिखित रूप से संक्षेप में दिया जा सकता
है:
1. कृषि के साथ अन्याय ( Injustice to Agriculture)-
भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसलिए कोई भी नीति जो कृषि को
नजरअंदाज करती है सफल नहीं हो सकती। नई आर्थिक नीति औद्योगिक विकास में आधुनिकीकरण
पर जोर देती है।
2. विदेशी ऋण पर भारी निर्भरता (Heavy Dependence on Foreign Debt) -
नई आर्थिक नीति आंतरिक संसाधनों के विकास की
नजरअंदाज करती है। ये बाहरी सहायता पर बहुत अधिक निर्भर हैं। बाहरी ऋणों पर बहुत
अधिक निर्भरता देश के लिए घातक सिद्ध होगी।
3. विदेशी प्रौद्योगिकी पर निर्भरता (Dependence on Foreign Technology ) -
हमारी नई आर्थिक नीति बहुत अधिक विदेशी टेक्नोलॉजी पर निर्भर रहती है। बाहरी देशों से उनकी उन्नत तकनीकी की खरीद बहुत महँगा सौदा है। यह हमारी वित्तीय स्थिति के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। विदेशी टेक्नोलॉजी देश में एकाधिकार क्षेत्रीय असमानता अनैच्छिक क्षेत्रों मतें निवेश, सार्वजनिक क्षेत्र को कम मान्यता, आय की असमानता और आर्थिक केंद्रीकरण की स्थिति लाती है। बड़े पैमाने के उद्योग जो विदेशी टेक्नोलॉजी की सहायता से स्थापित होते हैं बेरोजगारी की स्थिति को खराब कर देते हैं।
4. निजीकरण को बहुत ज्यादा महत्व (Excessive Importance to Privatization ) -
यह महसूस किया गया है कि नई आर्थिक नीति निजी
क्षेत्र को बढ़ावा देती है और सार्वजनिक क्षेत्रों को हतोत्साहित (Discourage) करती है। यह बात
उठाई गई थी कि निजी क्षेत्र अधिक सक्षमता, अच्छी उत्पादकता और अधिक लाभ आदि प्रदान करता है लेकिन यह
नहीं भूलना चाहिए कि यह एक सार्वजनिक क्षेत्र ही है जो सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं
की पूर्ति करता है। ये सेवाएँ पिछड़े लोगों और क्षेत्रों को मुफ्त में प्रदान की
जाती हैं। सार्वजनिक क्षेत्र ने अधिक रोजगार अवसर प्रदान करने के लिए लघु पैमाने
के उद्योगों को प्रोत्साहित किया। निजी क्षेत्र कभी भी सार्वजनिक क्षेत्र का
विकल्प नहीं बन सकता। इसलिए निजी क्षेत्र को शत प्रतिशत सही नहीं कहा जा सकता है।
हमारे पास 2.5 लाख खराब हाल की
निजी कंपनियाँ हैं जिन पर 12,600 करोड़ रुपए का
बैंक ऋण बाकी है। निजी क्षेत्र की समृद्धि एकाधिकार, शोषण, काला धन आदि बुराइयों को पैदा करेगी। इसका अर्थ है कि नई
आर्थिक नीति हमारी समस्याओं को सुलझाने की बजाय उन्हें और बढ़ायेगी ।
5. विलासिता की वस्तुओं के उत्पादन को बढ़ावा (Encouragement to the Production of Luxuries) -
नई आर्थिक नीति
मशीनीकरण और बड़े पैमाने के उत्पादन पर जोर डालती है। उत्पादन के ये तरीके अगर
इस्तेमाल किए गए तो श्रमिकों की संख्या को कम कर देंगे। श्रमिकों को काम से निकाला
जाएगा और श्रमिकों को काम नहीं मिल पाएगा। ये आय की असमानता और वर्ग संघर्ष भी
उत्पन्न करेगा। नए
6. रोजगार अवसरों में कमी (Reduction in the Employment Opportunities) -
नई आर्थिक नीति मशीनीकरण एवं बड़े पैमाने के उद्योगों को प्रोत्साहित करती है। इन उद्योगों में रोजगार के अवसर कम होते हैं। परिणामस्वरूप काम में लगे हुए कर्मचारियों की छटनी और बंकर प्रत्याशियों को रोजगार न मिलना इसकी विशेषता है। 7. नई आर्थिक नीति में नया क्या है? (What is New is New Economic Policy)- डा. जे. डी. सेठी के अनुसार नई आर्थिक नीति में कुछ भी नया नहीं है। इसमें केवल कुछ संरचनात्मक परिवर्तन किए गए हैं।
नई आर्थिक नीति की उपलब्धियाँ (Achievements of New Economic Policy)
1. राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि (Increase in National Product )-
नई आर्थिक नीति की इन सब अलोचनाओं के बावजूद इस बात से पीछे
हटा नहीं जा सकता है कि राष्ट्रीय आय की वृद्धि जो 1990-91 में 4.7% थी। 1996-97 में बढ़कर 7% हो गई। 1997-98 में यह फिर से गिरकर 4.9% हो गई। आठवीं योजना की वास्तविक वृद्धि दर 6.6% तक बढ़ी। 1998-99 में वृद्धि दर 6.8% थी।
2. कृषि उत्पादन में वृद्धि (Increase in the Agricultural Production ) -
कृषि उत्पादन की वृद्धि दर जो 1990-91 में केवल 3% थी 1998-97 में बढ़कर 9.3% हो गई। आठवीं
योजना के दौरान कृषि उत्पादन बढ़कर 7.5% हो गया। इसमें कोई संदेह नहीं कि इसमें काफी उतार-चढ़ाव आए
हैं। वृद्धि दर धनात्मक (+) वृद्धि दर को दर्शाती है।
3. औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि (Increase in Industrial Production) -
हमारी नई नीति का उद्देश्य उत्पादन में तीव्र
गति से वृद्धि करना है परंतु हम अभी तक इसे प्राप्त नहीं कर सके हैं।
10. बेरोजगारी पर प्रभाव (Impact on Unemployment ) -
हमारी नई आर्थिक नीति सार्वजनिक व्यय घटाने पर जोर देती है।
इसलिए बेरोजगारी में स्वाभाविक रूप से वृद्धि होगी। बेरोजगारी की दर में वृद्धि जो
1990-91 में 4% थी। 1992-93 में बढ़कर 5% हो गई। 1998-99 में यह 6% तक बढ़ गई ।
यद्यपि नई आर्थिक नीति विदेशी निवेश को बढ़ाने पर जोर देती है लेकिन ये बड़े
पैमाने के उद्योग होते हैं जिनमें पूँजी प्रधान तकनीकी का प्रयोग किया जाता है।
परिणामस्वरूप ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा नहीं होंगे। अमेरिका में एक प्रयोग के
अनुसार बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने 40 लाख कर्मचारियों को निर्माण क्षेत्र से बाहर निकाल दिया।
अगर यही बात भारत में हुई तो यहाँ भारी बेरोजगारी होगी। यह नीति असफल सार्वजनिक
कंपनियों को बंद कर देगी। फलस्वरूप इन कंपनियों में लगे हुए श्रमिक बेरोजगार हो
जाएँगे। नई आर्थिक नीति की शुरूआत के बाद छटनी (Retrenchment) की प्रक्रिया शुरू हो गई।
सरकारी विभागों में नई भर्तियों पर रोग लगा दी गई, जिसके कारण यहाँ बड़े स्तर पर बेरोजगारी फैलने
लगी ।
11. गरीबी पर प्रभाव (Impact on Poverty ) -
नई आर्थिक नीति
गरीबी की समस्या का समाधान नहीं कर सकती। यह महसूस होता है कि यह गरीबी की समस्या
को बढ़ा देगी। गरीबी में वृद्धि की वजह गरीबों के लिए लाभदायक योजनाओं में कमी, खाद्य और कृषि
उत्पादों पर से आर्थिक सहायता को हटाना है। सरकार ने राशन की दुकानों पर शक्कर और
कपड़ों आदि के मूल्य भी बढ़ा दिए हैं। नई आर्थिक नीति की योजना सार्वजनिक सेवाओं, जैसे विद्युत, यातायात आदि का
निजीकरण करना भी है। इन सेवाओं की लागतें गरीबों पर बुरा प्रभाव डालेंगी। इसलिए यह
उचित कहा जाता है कि नई आर्थिक नीति बहुर्राष्ट्रीय कंपनियों, विदेशी निवेशकों
और उच्च निवेशकों और उच्च वर्ग के लोगों की आर्थिक स्थिति में तो सुधार लाएगी
लेकिन यह गरीबों को बहुत बुरी तरह से प्रभावित करेगी ।