इतिहास में सामुद्रिक व्यापार , सामुद्रिक व्यापार के क्षेत्र
प्रस्तावना (Introduction)
पंद्रहवीं शताब्दी में यूरोप की कुछ घटनाएँ परस्पर विरोधी
लगती हैं। एक ओर तो यूरोप आंशिक रूप से ऐसी स्वायत्तशासी इकाइयों के समूह में
विभाजित हो गया था जिनकी अर्थव्यवस्थाओं में विकास की अवस्था की दृष्टि से बहुत
भिन्नता दिखाई देती थी और दूसरी ओर इन देशों अथवा क्षेत्रों के बीच का संपर्क
यूरोपीय महाद्वीप के व्यापार में बराबर नियमित और अधिक स्थायी होता गया ।
इतिहास में सामुद्रिक व्यापार (Oceanic Trade)
(i) भूमध्यसागर क्षेत्र
सन् 1500 में भूमध्यसागर क्षेत्र प्रायः आत्मनिर्भर था। उस क्षेत्र से व्यापार मार्ग पूर्व में ओरियंट तथा उत्तर में मध्य और पश्चिमी यूरोप तक है। स्थल मार्ग से मसाले और निर्मित वस्तुएँ दक्षिण जर्मनी ले जाई जाती थीं। व्यापार मुख्यतः यूनान के आसपास और तुर्की में होता था। अधिकांश व्यापार नेपल्स से कुछ दूरी पर एड्रियाटिक सागर क्षेत्र से तथा उत्तर में लीयन्स की खाड़ी से आरंभ होता था। भूमध्यसागर के सभी क्षेत्रों में उत्तरी इटली की गणना सबसे व्यस्त और समृद्ध क्षेत्र के रूप में होती थी। उसके नगरों में आबादी बहुत घनी थी। वैसे तो दक्षिणी फ्रांस और स्पेन में भी बड़े व्यापारिक नगर थे।
इस क्षेत्र में खाद्य पदार्थों का खूब व्यापार होता था। इनमें अनाज, फल, शराब, चीनी और मछली शामिल थे। कपड़ा, रेशम, कपास, चमड़ा और खनिज पदार्थ आम वस्तुओं में थी। मसाले इस क्षेत्र में एशिया से एलेक्जेंड्रिया और त्रिपोली के रास्ते से आए तथा एशिया के अन्य माल के साथ वेनिस, जेनेवा और पीसा भेजे गए। इन वितरण केंद्रों से यह आयातित सामान स्थलीय मार्ग से उत्तरी यूरोप अथवा समुद्र मार्ग से स्पेन पहुँचाया जाता था।
लेकिन धीरे-धीरे भूमध्य सागर क्षेत्र के इस व्यापार में
अटलांटिक क्षेत्र के नवोदित राष्ट्र घुसपैठ करने लगे। वैसे पहला हस्तक्षेप
भूमध्यसागर क्षेत्र से ही हुआ। पुर्तगाल ने इंडीज़ (Indies) तक के लिए समुद्र
मार्ग खोज निकाला और इस कारण वेनिस का यूरोप को मसाले सप्लाई करने का लाभदायक
व्यापार खतरे में पड़ गया। पुर्तगाल के मालवाहक जहाज़ 1501 में एन्टवर्प
पहुँचे। इससे एन्टवर्प मुख्य वितरण केंद्र बन गया, यद्यपि केप के रास्ते (समुद्र मार्ग ) मसालों
की गुणता के लिए हानिकारक थे। कुछ ही समय के बाद युद्ध और स्पेन के आक्रमण के कारण
एन्टवर्प तबाह हो गया और यूरोप को मसाले पहुँचाने का काम फिर वेनिस के हाथ में आ
गया। 1580 के आसपास तुर्की
और फ़ारस में लड़ाई छिड़ जाने से वेनिस की स्थिति को फिर धक्का लगा और जब 1600 के आसपास यूरोप
में मसाले उत्तरी नीदरलैंड लाने लगा तब तो वेनिस का दबदबा अंतिम रूप से खत्म हो
गया।
भूमध्यसागर- क्षेत्र में अन्य सूत्रों से व्यापार के जरिए
घुसपैठ सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अधिक जाहिर होने लगी थी। अपनी कुछ सबसे
जरूरी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमध्यसागर के देश अन्य देशों पर निर्भर करने
लगे थे। इस अवधि के दौरान पश्चिमी भूमध्यसागर में अनाज की सप्लाई अस्त-व्यस्त हो
गई थी और पहले स्पेन, फिर इटली और
अंतत: कुस्तुनतुनिया ( कॉन्स्टेन्टीनोपल) के नगरों में अकाल और भुखमरी का प्रकोप
हो गया।
परिणामतः अनाज का आयात ज़रूरी हो गया। उत्तरी यूरोप से अनाज लेकर उत्तरी नीदरलैंड और इंग्लैंड के जहाज़ इस क्षेत्र में पहुँचे। उत्तरी नीदरलैंड के जहाज़ उत्तरी सागर से बड़ी मात्रा में मछली भी लाए, पोलैंड और रूस से भारी मात्रा में चमड़ा स्पेन और इटली में आया। इसके बाद उत्तरी नीदरलैंड और इंग्लैंड भूमध्यसागर क्षेत्र के कपड़ा बाज़ार में भी दखल देने लगे और इससे उत्तरी तथा दक्षिणी यूरोप के बीच बढ़ते संबंध अधिक मजबूत हुए। भूमध्य क्षेत्र आत्मनिर्भर क्षेत्र नहीं रह सका। जीवन निर्वाह के लिए वह बाहर से सप्लाई पर अधिकाधिक निर्भर होता गया ।
(ii) मध्य यूरोप-
मध्य यूरोप भी सोलहवीं शताब्दी के दौरान यूरोप की व्यापक अर्थव्यवस्था से अधिकाधिक जुड़ता गया। वस्तुतः यह क्षेत्र यूरोप के व्यापक व्यापार में सन् 1500 से ही भाग लेने लगा था। इस क्षेत्र में चाँदी और ताँबे जैसे खनिज पदार्थों की यूरोप की सबसे कीमती खानें थीं। भूमध्यसागर और यूरोप महाद्वीप के बीच पारगमन व्यापार मुख्यत: फ्यूगर परिवार के पास था और उसके मुख्य केंद्र तीन नगरों- आग्सवर्ग रोगन्सवर्ग और न्यूरमवर्ग में थे। यूरोप के इस भाग का विशाल व्यापार धातुओं और धातु पात्रों पर आधारित था। पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जर्मनी ने अपना चाँदी का उत्पादन इटली और निचले देशों की बढ़ती माँग पूरी करने के लिए बढ़ाया। सोलहवीं शताब्दी में भी उत्पादन का विस्तार होता रहा। ऊपर बताया जा चुका है कि खनिज पदार्थों का व्यापार एन्टवर्प में अधिकाधिक केंद्रित होता गया था। अन्य वस्तुएँ भी एन्टवर्प स्थित अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहुँची इटली और एन्टवर्प के बीच स्थलीय पारगमन व्यापार में दक्षिण जर्मनी की फर्मों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
लेकिन, सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इस क्षेत्र का ह्रास हुआ। जहाजरानी व्यापार आगे बढ़ गया और महाद्वीप के आर-पार का व्यापार उखड़ गया। जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर धार्मिक संघर्षों का बुरा असर पड़ा और शताब्दी के अंतिम एक-चौथाई भाग में इटली के उद्योग पर भूमध्यसागर क्षेत्र में उत्तरी नीदरलैंड और इंग्लैंड की सीधी व्यापारिक घुसपैठ का दबाव पड़ना शुरू हो गया। भाग्य ने एन्टवर्प का साथ तभी छोड़ दिया जब युद्ध से क्षतिग्रस्त उसके व्यापार पर 1585 में ड्यूक ऑफ़ परमा ने कब्जा कर लिया तथा उसके समुद्री निर्गम मार्ग में उत्तरी नीदरलैंड ने अवरोध खड़े कर दिए।
(iii) बाल्टिक सागर क्षेत्र-
यूरोप की अर्थव्यवस्था के साथ बाल्टिक की अर्थ-व्यवस्था यद्यपि बहुत पहले से जुड़ने लगी थी, लेकिन प्रभावकारी रूप में यह कार्य सोलहवीं शताब्दी में शुरू हुआ। पूर्व अथवा बाल्टिक और पूर्वी यूरोपीय क्षेत्र में सामान्यतः दो प्रकार की व्यापार प्रणालियाँ थीं- समुद्रमार्गी और स्थलमार्गी । दोनों ने रोज़मर्रा के काम आने वाली स्थूल वस्तुओं, जैसे अनाज, नमक, मछली, ऊनी कपड़ा फ़र, इमारती लकड़ी, कोलतार, पटसन, लोहा और ताँबा का कारोबार सँभाला।
बाल्टिक क्षेत्र उत्तरी यूरोप का अन्न भंडार था। यह क्षेत्र
पंद्रहवीं शताब्दी के अंत से यह भूमिका निभा रहा था, क्योंकि पश्चिमी यूरोप में जनसंख्या बढ़ने लगी
थी। बदले में पूर्वी यूरोप के ज़मींदारों ने पश्चिमी यूरोप में बना क़ीमती सामान और
आम उपभोग की वस्तुएँ खरीदीं। बाल्टिक सागर में मछली भी उपलब्ध हुई लेकिन सोलहवीं
शताब्दी के दौरान इसका निर्यात घट गया। उसके स्थान पर हॉलैंड उत्तरी समुद्र से
पकड़ी गई मछलियाँ सप्लाई करने लगा।
समुद्री मार्ग से व्यापार में दो गुटों-उत्तरी जर्मनी की
हैंसलीग और हॉलैंड के बीच प्रतियोगिता चली। पंद्रहवीं शताब्दी में हँसलीग हावी रहा, क्योंकि यह बाल्टिक, स्कैंडिनेविया और
आईलैंड के अधिक निकट था और उसने प्रतियोगियों को उस क्षेत्र में नहीं घुसने दिया
था। लेकिन हॉलैंड ने अपनी बढ़ती संपदा और शक्ति के बलबूते पर अंततः हँसलीग को हरा
दिया। सोलहवीं शताब्दी के दौरान वह अनाज और मछली दोनों के व्यापार में अग्रणी था।
निचले देशों और इटली के बीच महाद्वीप के आर-पार व्यापार से
हैंसलीग द्वारा किया जाने वाला व्यापार घट गया और उनके पुराने केन्द्र ब्रूजेज को, एन्टवर्प ने
महत्त्वहीन बना दिया। दक्षिणी जर्मनी का फ्यूगर परिवार मध्य यूरोप से एन्टवर्प तक
पोलैंड के रास्ते ताँबे के व्यापार पर अपना नियंत्रण स्थापित करने में कामयाब हो
गया। इंग्लैंड और स्कैंडिनेवियाई देशों के व्यापारियों ने भी हँसलीग के व्यापार
में से अपना हिस्सा काटना शुरू कर दिया। हैंस के कुछ नगरों ने हॉलैंड के अपने
प्रतिद्वंद्वियों को सहयोग दिया, हम्बर्ग जैसे नगर स्वतंत्र रूप से व्यापार करने लगे । लुवेक
जैसे कुछ अन्य नगर अलग-थलग पड़ गए और उनका पतन हो गया।
यूरोप की अर्थव्यवस्था में पूर्वी क्षेत्रों के एकीकृत होने
का एक अन्य संकेत सन् 1550 के बाद सोवियत
संघ के साथ इंग्लैंड के बढ़ते व्यापार से मिला। इंग्लैंड में इमारती लकड़ी और फ़र
की वस्तुओं के बदले में सोवियत संघ को कपड़ा बेचा।
(iv) अटलांटिक क्षेत्र -
सोलहवीं शताब्दी के दौरान यह क्षेत्र व्यापार की दृष्टि से भूमध्यसागर क्षेत्र और पूर्वी क्षेत्र के साथ पूरी तरह से जुड़ गया। यह व्यापार भी मुख्यतः कपड़ा, मछली, शराब और नमक जैसी हर रोज काम आने वाली स्थूल वस्तुओं का था।
अटलांटिक क्षेत्र तथा यूरोप के अन्य व्यापारिक क्षेत्रों के
बीच वस्तुओं के विनिमय में सबसे अधिक सक्रिय उत्तरी क्षेत्र के व्यापारी ही थे।
सोलहवीं शताब्दी में डच और अंग्रेज़ व्यापारी हावी हो गए। नमक और मसाले सप्लाई
करने वाले लिस्बन (पुर्तगाल) और अनाज की मुख्य मंडी डेजिंग (Denzing) के बीच वस्तुओं
के विनिमय - व्यापार पर डच व्यापारी कैसे हावी रहे, यह देखकर आश्यर्च ही होता है। इस मध्यवर्ती
व्यापार को अपने काबू में करने के लिए हॉलैंड भौगोलिक दृष्टि से बहुत ही अच्छी
स्थिति में था ।
एन्टवर्प, दक्षिण जर्मनी और इटली के बीच पुराने व्यापारिक संबंध 1550 के आस-पास टूटने लगे थे। अमरीकी चाँदी के आयात से मध्य यूरोप की चाँदी को आघात लगा । एन्टवर्प का ह्रास हो गया। दक्षिण जर्मनी ढीला पड़ गया, स्पेन और इटली या तो बढ़ती माँग पूरी करने में असमर्थ हो गए या उनके परंपरागत बाज़ारों में उत्तरी भाग के प्रतियोगी भी आकर डट गए। इस प्रकार एन्टवर्प का स्थान अम्सटरडम और लंदन ने ले लिया। इसके परिणामस्वरूप दक्षिण यूरोपीय और भूमध्यसागरीय केंद्र ओझल हो गए तथा यूरोप की अर्थव्यवस्था अधिक जटिल तथा पराश्रित हो गई।
सन् 1550 तक यूरोप अपने समय का सबसे असाधारण व्यापार करने के लिए
कूच करने को तैयार हो गया था। यह था - एशिया और अमरीका के साथ समुद्रपारीय व्यापार
इन दोनों में इवीरियाई (स्पेन, पुर्तगाल) अथवा भूमध्यसागर के देशों ने बढ़-चढ़कर योगदान
किया। पंद्रहवीं शताब्दी में पुर्तगाली खोजबीन करने, मछली पकड़ने, उपनिवेश बसाने और व्यापार करने के लिए अटलांटिक
क्षेत्र में पहुँच गए और पूर्व के लिए महासागरीय यातायात पर एकाधिकार जमा लिया, जो लगभग 100 साल तक कायम
रहा।
समुद्रपारीय व्यापार में वृद्धि (Increasement in Trans-Ocean Trade)
सन् 1550 तक यूरोप अपने समय का सबसे असाधारण व्यापार करने के लिए
कूच करने को तैयार हो गया था। यह था - एशिया और अमरीका के साथ समुद्रपारीय व्यापार
इन दोनों में इवीरियाई (स्पेन, पुर्तगाल) अथवा भूमध्यसागर के देशों ने बढ़-चढ़कर योगदान
किया। पंद्रहवीं शताब्दी में पुर्तगाली खोजबीन करने, मछली पकड़ने, उपनिवेश बसाने और व्यापार करने के लिए अटलांटिक
क्षेत्र में पहुँच गए और पूर्व के लिए महासागरीय यातायात पर एकाधिकार जमा लिया, जो लगभग 100 साल तक कायम
रहा। 1600 में उत्तरी
यूरोप के प्रतिद्वंद्वी वहाँ पहुँचे और उन्होंने अगली शताब्दी में अपनी
महत्त्वपूर्ण स्थिति बना ली।
एशिया के साथ यूरोप के व्यापार की एक सामान्य विशेषता यह थी
कि सोने चाँदी के बदले यूरोप के लोग मुख्यतः ऐसी वस्तुएँ मँगाते थे, जो उनकी तश्तरी
का स्वाद बढ़ाती थीं और शरीर को अलंकृत करती थीं। सोलहवीं शताब्दी में मसालों, खासकर काली मिर्च
और कपड़े का व्यापार मुख्य रूप से होता था। सन् 1700 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी के निर्यात में 40 प्रतिशत भारतीय
कपड़ा था।
नए विश्व (उत्तरी व दक्षिणी अमरीका, New World) में उपनिवेशों की
स्थापना के कारण अटलांटिक क्षेत्र का व्यापार एशिया से बहुत भिन्न था। पुराने
विश्व (एशिया, अफ्रीका और
यूरोप) तथा नए विश्व के बीच संपर्क, भूमि को हस्तगत करने तथा स्थानीय या बाहर से मँगाए गए
मज़दूरों के जरिये उस ज़मीन से लाभ उठाने के रूप में हुआ । इन क्षेत्रों के बीच
संपर्क का एक और साधन था और वह था अमरीकी महाद्वीप की मूल्यवान धातु का दोहन । जिन
खानों का 'स्वामित्व स्पेन
के पास था वहाँ से पहले और फिर यूरोप में खजाना आने लगा। बाद में इस व्यापार में
ब्राजील का सोना शामिल कर लिया गया। चीनी इमारती लकड़ी, तम्बाकू, कपास और मछली
जैसी वस्तुओं से व्यापार काफी बढ़ गया।
इसके विपरीत, यूरोप से अमरीका महाद्वीप को भेजी जाने वाली वस्तुएँ गुलाम
समुदायों की जरूरतों की परिचायक थी। इनमें सबसे प्रमुख वस्तुएं थीं- कपड़ा, घरेलू फ़र्नीचर
और उपकरण, शराब तथा
उपभोक्ता सामान एक और खास व्यापार होता था - इंसानों का । स्पेनवासी और पुर्तगाली
अमरीकी महाद्वीप में बस गए,
आइलैंड और
ब्राजील में चीनी के लिए गन्ने की बढ़ती खेती के लिए नीग्रो गुलामों का आयात किया
गया।
सत्रहवीं शताब्दी के दौरान हॉलैंड और इंग्लैंड महाद्वीप के
आर-पार बढ़ते व्यापार में अधिक भाग लेने लगे। हॉलैंड ने 1602 में अपनी ईस्ट
इंडिया कंपनी स्थापित की। इसका मकसद यह था एशिया के साथ महासागरीय व्यापार पर
पुर्तगाल का एकाधिकार खत्म करना तथा हॉलैंड के नगरों के संसाधनों को पूर्व के
संसाधनों के साथ एकीकृत करना। ये दोनों कंपनियाँ यूरोप तथा विश्व के अधिक व्यापक
भाग के बीच समुद्रपारीय व्यापार बढ़ने की सूचक थीं। इनसे उन परिवर्तनों का भी
संकेत मिला जो सत्रहवीं शताब्दी में होने वाले थे।
इस प्रकार यूरोप के इतिहास में पहली बार महाद्वीपों के बीच
नियमित ढंग का व्यापार शुरू हो गया। भले ही यह स्पेन या पुर्तगाल के ज़रिए हुआ हो
अथवा हॉलैंड या इंग्लैंड के ज़रिए । यूरोप अपने तक सीमित अलग-थलग महाद्वीप नहीं
रहा, बल्कि वह विश्व
अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा बनता गया ।