सोलहवीं शताब्दी में वाणिज्यिक पद्धति
वाणिज्यिक पद्धति प्रस्तावना ( Introduction)
यूरोप में सोलहवीं शताब्दी में दूसरी प्रमुख आर्थिक घटना
है- व्यापार में कई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन। इनके परिणामस्वरूप उस शताब्दी तथा बाद
की शताब्दियों में यूरोपीय व्यापार का स्वरूप निर्धारित हुआ। इन परिवर्तनों में
अधिक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन थे - अंतः क्षेत्रीय व्यापार में वृद्धि, स्थानीयतावाद की
समाप्ति समुद्रपारीय व्यापार का विकास बाजार का व्यापक और बढ़ता हुआ प्रभाव और नए
प्रकार के व्यापारिक संगठनों का गठन और विकास।
वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था में तीव्रता (Intensity in Commercial Economy)
आधुनिक युग के प्रारंभ में मौद्रिक अर्थव्यवस्था का विकास विशेष प्रभावकारी था। यूरोप के कुछ हिस्सों में यद्यपि सत्रहवीं शताब्दी में भी वस्तु विनिमय प्रथा ( barter system) चल रही थी, लेकिन यूरोप के अधिकतर विकासशील क्षेत्रों में मौद्रिक अर्थव्यवस्था का पूरी तरह विकास हो चुका था। विभिन्न प्रकार के भुगतान करने में मुद्रा का अधिकाधिक प्रयोग किया जाने लगा था। उधार लेन-देन की सुविधा का विकास हुआ। हुंडी (draft), ऋण-पत्र (letters of credit) तथा विनिमय-पत्र व्यापक रूप से स्वीकार किए जाने लगे। साख व्यापार (credit trading) भी बढ़ गया। लेकिन मूल्य निर्धारण पूरी तरह युक्तिसंगत नहीं हो सका। वस्तुओं के मूल्य में स्थान- देश आदि के अनुसार परिवर्तन होता रहता था। वस्तुओं के मूल्य को लेकर स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर परंपरा से चली आ रही खींचातानी चलती रही।
वितरण में भी कुछ खास परिवर्तन आए । साप्ताहिक हाट-बाजार
लगने लगे और मेलों में कमी आ गई। इससे अधिक व्यापक तथा स्थायी बाज़ार स्थापित करने
में मदद मिली। एन्टवर्प में 1550 तक व्यापार का जो विकास हुआ, उससे वर्ष में दो बार होने वाले मेले का स्थान
एक बाज़ार ने ले लिया जो प्रायः लगातार ही चलता रहता था। परिवर्तन पेरिस, लंदन तथा
एम्सटरडम जैसे बड़े शहरों में भी आया और ये स्थायी मेलों जैसा काम करने लगे । यहाँ
व्यापार वस्तुतः व्यापारियों अथवा उनके प्रतिनिधियों के बीच होता था। खुले बाजारों
से हटकर व्यापार माल गोदामों में पहुँच गया। माल बेचने के लिए नीलामी होने लगी।
थोक व्यापार बढ़ा तो बिचौलियों की संख्या तेजी से बढ़ गई और खुदरा व्यापारियों ने
अपना अलग वर्ग बना लिया।
व्यापारिक संचार (Commercial Communication)
शहरीकरण के चलते और बढ़े हुए व्यापार अथवा व्यापार संबंधी
सूचनाओं के लिए संचार साधनों में सुधार किए गए। डाक सेवाएं सुधारी गई। सन् 1500 तक स्पेन, फ्रांस और
इंग्लैंड में सरकारी डाक सेवाएँ शुरू हो चुकी थीं। सन् 1600 तक यूरोप के सभी
प्रमुख नगर डाक सेवा से जुड़ गए थे। इन सुविधाओं का विकास होने से व्यापार एवं
वाणिज्य संबंधी समाचार अधिकाधिक मिलने लगे। अखबारों का प्रचलन मुख्यतः सत्रहवीं
शताब्दी में हुआ था । लेकिन परिवहन सेवाओं में सीमित सुधार ही हो सके। वर्षा और
हिमपात के मौसम (शीतकाल ) में स्थानीय यातायात अस्त-व्यस्त हो जाता था। समुद्र
मार्ग से व्यापार के लिए उत्तरी नीदरलैंड और इंग्लैंड ने हल्के वजन के जहाज़ बना
लिए थे। लेकिन स्थलीय परिवहन की हालत बहुत खस्ता थी वहीं खराब सड़कें और वही
भारवाही पशु । स्थलीय परिवहन की ये कठिनाइयां कुछ हद तक उत्तरी नीदरलैंड और
इंग्लैंड जैसे देशों के सामने नहीं थी, क्योंकि इनका व्यापार मुख्यत: समुद्री मार्गों से होता था।
कृषि, उद्योग और व्यापार पर भी बाज़ार - व्यवस्था का असर पड़ा। सोलहवीं शताब्दी में इंग्लैंड की कृषि ने ऊन और कपड़े की माँग पूरी करने के लिए व्यापक स्तर पर बाड़बंदी का सहारा लिया तो लंदन जैसे नगरों ने बाग़बानी जैसे विशेष कृषि कार्य को प्रोत्साहन दिया।