सामन्तकाल में नगरों का महत्त्व एवं प्रभाव (Importance and Effect of Town )
सामन्तकाल में नगरों का महत्त्व एवं प्रभाव
ग्यारहवीं एवं बारहवी शताब्दियों की शहरी क्रान्ति ने यूरोपवासियों के जीवन के प्रायः सभी पहलुओं- राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक को अनुप्राणित किया। वस्तुतः मध्यकालीन यूरोपीय सभ्यता-संस्कृति के विकास में नगरों का योगदान बड़े ही महत्त्व का रहा है।
राजनीतिक प्रभाव -
मध्यकालीन नगरों का यूरोपीय राजनीति में व्यापक महत्त्व था । तेरहवीं शताब्दी से उनका राजनीतिक महत्त्व काफी बढ़ गया। नगरों ने यूरोप में निरंकुश राजतंत्र के विकास में सहायता की। सामन्ती अराजकता एवं अनुशासनहीनता के विरुद्ध राजाओं को नगरों में निवास करने वाले मध्यम वर्ग का भरपूर सहयोग मिला। इस वर्ग के लोगों ने राजकीय स्थायी सेना का व्यय भार वहन किया। अतः शासकों को अब सामन्तों की सेना पर निर्भर नहीं रहना पड़ता था ।
नगरों ने उत्तर-मध्यकाल तथा आधुनिक काल के राजनीतिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया। इंग्लैंड और फ्रांस में नगरवासियों को पार्लियामेंट में बैठने की अनुमति थी और वे उसमें बैठते थे। अतः पार्लियामेंट की शासन नीति तथा निर्णय को उन्होंने काफी दूर तक प्रभावित किया। उनके पास पैसा होता था और राजा यह जानते थे कि अगर उन्हें राष्ट्र में मामलों पर होने वाली बहस में भाग लेने का अवसर दिया जायेगा तो वे कर चुकाने के लिये अधिक तत्पर रहेंगे। इटली के नगरों में शार्लमेन के उत्तराधिकारियों से काफी अंशों में स्वतंत्रता अर्जित कर ली और वे ऐसे गणतंत्रों की स्थापना में सफल हुए जिनमें कुछ अमीर परिवारों का बोलबाला था। फ्रांस तथा इंग्लैंड के नगर इतने स्वतंत्र नहीं हुए, लेकिन इनमें से कुछ ने राजा या अमीरों से अधिकार-पत्र प्राप्त कर लिये। उदाहरण के लिए, राजा रिचार्ड शेर दिल ने लन्दन के नागरिकों से वसूल किये गये धन के एवज में उन्हें स्वशासन का अधिकार पत्र प्रदान किया. जिसमें उसे तीसरे धर्मयुद्ध के लिये पोतों को सज्जित करना था। कभी-कभी नगर के लोग एक साथ मिलकर अपने अधिकारों के लिये लड़ते थे जिससे उन्हें आमतौर से सामन्तों के करों की चुनौती से छूट मिल जाती थी और अपने कुछ अधिकारियों का चुनाव करने का अधिकार मिल जाता था।
सामन्ती मेनोरियल प्रणाली की परिसमाप्ति में भी नगरों की भूमिका सराहनीय मानी जाती है। मेनरों के महत्त्व के घटने का अर्थ केवल आर्थिक व्यवस्था में ही परिवर्तन नहीं था। इससे राजनीति भी प्रभावित हुई। सामन्तों का यूरोपीय राजनीति में महत्त्व घटता गया और मध्यम वर्ग शक्तिशाली हो चला।
आर्थिक प्रभाव-
नगरों ने यूरोप के आर्थिक पहलू को भी गहरे रूप से प्रभावित किया। सच पूछा जाए तो जीवन के इसी बिन्दु पर नगरों के विकास का अत्यधिक प्रभाव पड़ा। नगरों ने मध्ययुग में अनेक आर्थिक सिद्धांतों तथा आदर्शों का निरूपण कर आधुनिक जगत की अर्थ-व्यवस्था की पृष्ठभूमि के निर्माण में योगदान किया । नगरों ने श्रम को अधिक महत्त्व दिया जिससे दासता तथा कमियापन का शनैः शनैः विलोप होने लगा। नगरों में निर्मित व्यापारिक श्रेणियों तथा श्रेष्ठ निकायों ने नगर के प्रशासन को भी समुचित रूप से प्रभावित किया । श्रमिक वर्गों अथवा श्रेणियों के बन जाने से दो प्रत्यक्ष लाभ हुए। एक तो यह कि सारे लोग श्रम करना अपना धर्म समझने लगे और दूसरा यह कि, इस वर्ग के लोगों का महत्त्व बढ़ा और अब वे उपेक्षित नहीं रहे। स्वतंत्र श्रम की परिपाटी चलकर नगरों ने आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था का पृष्ठाधार तैयार कर दिया। आज का सम्पूर्ण व्यापार मध्ययुग के व्यापार का ही विकसित रूप है। दूसरे शब्दों में, स्वतंत्र श्रम पर आधारित आधुनिक औद्योगिक व्यवस्था का आरम्भ मध्ययुगीन नगरों से ही माना जा सकता है। आर्थिक दृष्टि से मध्यकालीन नगर तत्कालीन आर्थिक व्यवस्था को आधुनिक आर्थिक व्यवस्था से जोड़ने वाली कड़ी थे। आधुनिक व्यापारवाद का उदय भी वस्तुतः मध्यकालीन नगरों से ही हुआ।
सामाजिक प्रभाव -
मध्यकालीन यूरोपीय समाज भी नगरों के प्रभावों से बचा नहीं रहा। नगरों ने तत्कालीन समाज को अनेक दृष्टिकोण से अनुप्राणित किया। नगरों के कारण यूरोप के समाज में दो नये वर्ग पैदा हुए श्रमिक वर्ग तथा मध्य वित्तवर्ग प्रथम श्रेणी में कुशल तथा अकुशल श्रेणी के श्रमिक थे। दास तथा मजदूर इसी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे। दूसरी श्रेणी में धन कमानेवाले श्रमिक थे। ऐसे श्रमिकों में महाजन व्यापारी, उद्योगपति तथा पूँजीपति आते थे। स्मरण रहे कि नगरों के विकास के पूर्व यूरोप का समाज दो वर्गों में विभाजित था । पादरी वर्ग तथा सामन्त वर्ग। इन्हीं दोनों वर्गों के लोग सम्पन्न थे और वे शासन तथा राजनीति को धन-बल के बल पर काफी प्रभावित करते थे। जब नगरों ने धन पैदा करने वाले नये वर्ग (मध्यवित्त) को जन्म दे डाला तब इस वर्ग ने समाज के साथ-साथ प्रशासन में भी अपना प्रभावशाली स्थान बनाना प्रारंभ किया और शीघ्र ही यह वर्ग भी पादरी तथा सामन्त वर्ग की तरह प्रधान हो गया। 13वीं तथा 14वीं शताब्दियों में इस वर्ग के लोगों की प्रधानता इतनी अधिक बढ़ गयी कि वे उन प्रतिनिधि सभाओं की बैठकों में भी शामिल होने लगे जिनमें पादरी तथा सामन्त शामिल होते थे। आज शासन की जिस संसदीय प्रणाली का विकास देखने को मिला है, उसकी नींव मध्य युग में ही नगरों के इस वर्ग के कारण बढ़ चुकी थी। इसी वर्ग के कारण नगरों को स्वतंत्र हवा में सांस लेने का अवसर मिला और इसी कारण सामन्त वर्ग श्रीहीन होने लगा। भू-सम्पत्ति का महत्त्व घटा और व्यापार तथा उद्योग के माध्यम से भी लोग सम्पत्ति का अर्जन करने लगे। भूमि के घटते महत्त्व के क्रम में सामन्तों की शक्ति भी छीनती गयी तथा उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी घटती गयी। लोग विभिन्न उद्योगों से तथा विभिन्न सामग्रियों का व्यापार करके भी ठीक उसी प्रकार धन कमाने लगे जिस प्रकार सामन्त भूमि से धन का अर्जन करते थे। कम्मी लोग तो जैसे जी उठे क्योंकि वे अब कमाकर स्वतंत्र हो सकते थे। नगर में आये कम्मी सामन्ती बंधनों से मुक्त थे। भगोड़े कम्मी नब्बे दिनों तक लगातार शहर में रहकर स्वतंत्र नागरिक बन जाते थे। इसलिए यह कहावत चल पड़ी "शहर की हवा मनुष्य को स्वतंत्र बना देती है।"
सांस्कृतिक प्रभाव-
संस्कृति के विभिन्न पहलुओं को भी मध्यकालीन यूरोपीय नगरों ने गम्भीर रूप से प्रभावित किया। बौद्धिक चेतना के संचालन के अतिरिक्त नगरों ने मध्यकालीन साहित्य एवं विभिन्न कलाओं को अनुप्राणित किया।
सामाजिक विकास तथा परिवर्तन की सभी प्रक्रियाएं पहले से तीव्र हो गयीं। उद्योग एवं व्यापार के प्रसार के साथ-साथ नवीन विचारों एवं आदर्शों का सर्वत्र प्रचार हुआ। समृद्ध नगरवासियों ने नगरों की शोभा तथा सुविधा में वृद्धि की। नगरों की बढ़ती हुई आबादी के कारण नवीन समस्याओं को सुलझाने के लिए कई प्रकार के कदम उठाये गये। व्यापारी वर्ग ने कला; साहित्य तथा चित्रकारी को संरक्षण प्रदान किया। फलस्वरूप, सुन्दर भवनों, प्रवेश द्वारों, प्रासादों तथा देवस्थानों का निर्माण सम्भव हुआ। सभी प्रकार की सुविधाओं से युक्त नागरिक जीवन अब लोगों को मठीय तथा संन्यासी जीवन से कहीं अधिक आकर्षक जान पड़ने लगा। समृद्ध इटालियन नगरों के स्वतंत्र, विविध तथा गतिशील जीवन का समवेत प्रभाव पुनर्जागरण के रूप में पड़ा। जिनेवा में अभी भी मध्यकालीन स्थापत्य कला के कई सुन्दर नमूने देखे जा सकते हैं। फ्लोरेंस नगर उत्तर मध्यकालीन यूरोप में साहित्य तथा कला का केन्द्र था। वहीं के ऊनी तथा रेशमी वस्त्र विश्व विख्यात थे। किसी भी मध्ययुगीन नगर से इस नगर में रहनेवाले कवियों, इतिहासकारों, वास्तु-शिल्पियों तथा चित्रकारों की संख्या कहीं अधिक थी। एथेंस को छोड़कर अन्य किसी भी मध्यकालीन योरोपीय नगर में इतने महान व्यक्ति नहीं हुए। फ्लोरेंस की श्रेष्ठतम विभूतियों में दाँते, पेत्रांक, बोकासियों, मेकियावेली, माईकेल- एंजेलो, लियोनार्डो- द विसी, गैलिलियो तथा मेडिसी का नाम सहज ही लिया जा सकता है। वेनिस नाविकों तथा व्यापारियों द्वारा फैलाई गई देश-विदेश की कहानियों के लिए विख्यात था। ऐसे लोगों में मार्को पोलो का नाम सर्वाधिक विख्यात हुआ। मार्को पोलो ने चीन सहित ऐसे सुदूर देशों की यात्रा की जहाँ तक उन्नीसवीं - शताब्दी से पहले शायद ही कोई अन्य यूरोपवासी पहुँचा हो ।
कागज तथा छापाखाने का प्रभाव-
कागज तथा छापेखाने का विकास चीन में हुआ, जिसे बाद में अरबों ने सीखा। अरबों से ही यूरोप के लोगों ने इनका व्यवहार करना सीखा। इटली और जर्मनी में कागज निर्माण का कार्य शुरू हुआ। इसके साथ ही छापेखाने का भी प्रचार हुआ। बारहवीं शताब्दी में मुद्रण का काम शुरू हुआ। 1465 ई. में जर्मनी में गुटेनबर्ग (Gutenberg) नामक व्यक्ति ने पहला आधुनिक किस्म का छापाखाना खोला। सम्भवतः गुटेनबर्ग की बाइबिल आधुनिक मुद्रण प्रणाली की पहली पुस्तक है। 1476 ई. में विलियम कैक्सटन (William Caxton) ने इंग्लैंड में छापाखाना का विकास किया। बाद में इसका प्रयोग यूरोप के सभी देशों में किया जाने लगा।
छापेखाने के कारण पुनर्जागरण के विचारों के प्रचार और प्रसार में अपार सहयोग मिला। पुस्तकों की छपाई का काम तेजी से शुरू हो गया। इससे पुस्तकों के मूल्य कम हुए तथा जनता में शिक्षा के प्रति अभिरुचि बढ़ी। शिक्षा अब केवल पादरियों तक सीमित नहीं रही। बल्कि साधारण जनता भी पठन-पाठन में रुचि लेने लगी। इससे विज्ञान तथा तकनीकी की उन्नति का भी रास्ता खुल गया। बाइबिल की हजारों प्रतियाँ छपीं और लोगों को अपने धर्म को समझने का मौका मिला। यूनान तथा रोम के प्राचीन ग्रन्थों को छापा गया। इस प्रकार यूरोप के लोगों को यूनानी और रोमन ज्ञान-विज्ञान का ज्ञान प्राप्त हुआ। इसी प्रकार अरब की संस्कृति एवं विज्ञान की जानकारी भी यूरोपवासियों को हुई। यूरोप वालों की रुचि साहित्य, दर्शन तथा विज्ञान के प्रति बढ़ी। हजारों की संख्या में विचारोत्तेजक पुस्तकें प्रकाशित हुथीं, जिनके द्वारा नए विचारों तथा वैज्ञानिक अनुसंधानों का तेजी से प्रचार हुआ। इस संदर्भ में एक इतिहासकार ने लिखा है, “अब ज्ञान-विज्ञान एक पतली धारा न रहकर एक बड़ी बाढ़ के रूप में आ गया जिसमें हजारों करोड़ों दिमाग ने भाग लेना शुरू किया। "
विदेशी पुस्तकों का अनुवाद -
छापेखाने की सुविधा हो जाने के बाद पठन-पाठन का काम तेजी से चलने लगा। यूनानी, रोमन तथा अरबी ग्रन्थों का अनुवाद यूरोप की स्थानीय भाषाओं में किया गया तथा उन्हें छापा गया। स्थानीय भाषाओं में छपने के बाद विदेशों का ज्ञान साधारण जनता के लिए भी उपलब्ध हो गया। अब लोग अपनी भाषा में बाइबिल का अध्ययन करके धर्म के सच्चे स्वरूप को पहचानने लगे। लोग धर्म के पाखण्ड, आडम्बर और कुरीतियों के प्रति सावधान हो गये। साथ ही उनके बीच नयी विचारधाराओं एवं ज्ञान-विज्ञान का प्रचार हुआ।
यूरोपीय शासकों तथा सामन्तों का सहयोग
स्थानीय भाषाओं की उन्नति तथा साहित्य निर्माण में यूरोप के कुछ शासकों और सामन्तों का योगदान भी सराहनीय माना जाता है। फ्रांस के शासक फ्रांसिस प्रथम ने इटली के विद्वानों को अपने देश वासियों को शिक्षित करने के उद्देश्य से आमन्त्रित किया। इसी प्रकार इंग्लैंड के हेनरी अष्टम तथा स्पेन के चार्ल्स पंचम ने अपने दरबार में विद्वानों को आमंत्रित कर उनको सम्मानित किया। राजाओं तथा बड़े रईसों ने साहित्य के अतिरिक्त विभिन्न कलाओं को भी अपने दरबार में संरक्षण प्रदान किया।
वैज्ञानिक प्रगति
मानवतावाद, बौद्धिक विचारधारा और अरबों के साथ सम्पर्क के कारण यूरोप में विज्ञान की प्रगति शुरू हुई तथा अनेक वैज्ञानिक अन्वेषण हुए। वैज्ञानिकों ने प्राचीन मान्यताओं तथा अन्धविश्वासों पर गहरी चोट की। उन्होंने खुलकर नवीन प्रयोगों द्वारा प्रकृति के रहस्यों का पता लगाया। रोजक बैकन (1214-1295) ने बताया कि 'विज्ञान के अध्ययन के बगैर हम प्राकृतिक शक्तियों एवं रहस्यों को नहीं जान सकते हैं। उसने लोगों को वैज्ञानिक अध्ययन के लिए प्रोत्साहित किया। कोपरनिकस ने सिद्ध किया कि पृथ्वी सूर्य से चारों ओर घूमती है, न कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर, जैसा कि लोग अब तक विश्वास करते थे। ग्रीवो ने बताया कि दूसरे नक्षत्र भी सूर्य की भाँति हैं। उस पर नास्तिकता का अभियोग लगाकर पोप की आज्ञा से 1600 ई. में उसे जीवित जला दिया गया। गैलिलियो (1564-1642 ई.) ने गतिविज्ञान की नींव डाली और पहला टेलिस्कोप बनाया। लियोनार्डो-डी- विन्सी (1452 1519 ई.) ने पानी खींचने का यंत्र, लेथ मशीन तथा अन्य कई औजारों का आविष्कार किया। उसने शरीर विज्ञान, जीव-विज्ञान, टेक्नॉलॉजी और रेखा गणित-संबंधी अनेक खोजें की। न्यूटन ने पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का पता लगाया। इसी प्रकार कैप्लर, हार्वे, वैसेलियस डिकार्टे, गिलवर्ट, कोर्ड्स, हैल्मंट आदि वैज्ञानिकों ने अपने अन्वेषणों और नये विचारों के द्वारा जन-मस्तिष्क को उद्वेलित किया। विज्ञान की प्रगति ने पुनर्जागरण के चरणों द्वारा आनेवाले नवीन परिवर्तनों को बनाने के लिए मानव समाज को तैयार किया और पुनर्जागरण में सहायता प्रदान की।
सामन्तकाल में भौगोलिक खोज (Geographical Discoveries)
नये युग के निर्माण में भौगोलिक अन्वेषणों का भी महत्त्वपूर्ण हाथ था। पन्द्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दियों के बीच के वर्षों में यूरोप के साहसी नाविकों ने दूर-दूर तक की सामुद्रिक यात्राएँ कीं। व्यापार के विकास के लिए सामुद्रिक मार्गों की खोज शुरू हुई । इन्हीं दिनों कुछ ऐसे वैज्ञानिक आविष्कार भी हुए जिन्होंने सामुद्रिक यात्राओं को सरल बनाया। मैरिनर्स कम्पास के निर्माण से यह काफी आसान हो गया। वास्को डी गामा, कोलम्बस और मैगलन ने अनेक देशों तथा नये जल मार्गों का पता लगाया। इस युग के अन्य प्रसिद्ध अन्वेषक और नाविक थे- वार्थोलोमियो, कंबोज, कोटिस, पिजारो आदि।
नई खोजों के चलते यूरोप के लोगों की कूपमण्डूकता और अन्धविश्वास को गहरा धक्का लगा। नये मार्गों का पता लगने से न केवल यूरोप के लोगों की व्यापारिक उन्नति हुई बल्कि वे विश्व की अनेक समृद्ध सभ्यताओं के सम्पर्क में भी आए। फलस्वरूप यूरोप के लोगों में नवीन विचार तेजी से पनपने लगे। स्पष्ट है कि सामन्तवाद के पतन काल में यूरोप में होने वाली वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति ने समाज को गहरे रूप से प्रभावित किया और जीवन के सभी क्षेत्रों में एक नई चेतना पैदा की।