लाओजी का जीवन परिचय , लोओजी का दृष्टिकोण
लाओजी का जीवन परिचय
आप का जन्म 604 वर्ष ई. पूर्व में हुआ था। आप का प्रभाव अधिकतर दक्षिणी चीन क्षेत्र में पड़ा । आपके विचार वैसे नहीं थे जैसे कन्फ्यूशियस के थे। लाओजी चाऊ वंश के चीनी सम्राट के राज पुस्तकालय का अध्यक्ष था। लाओजी कहता था कि मनुष्य को संसार के आनन्दमय और विलासमय जीवन से दूर रहना चाहिए तथा त्याग भावना, संयम और आत्मनिग्रह पूर्वक रहना चाहिए। माया मोह बुरा है तथा मानव को पतित करने वाला है। लाओजी का धर्म ताओ धर्म (Taoism) कहलाता था।
लोओजी का दृष्टिकोण
लोओजी का दृष्टिकोण रचनात्मक न होकर नकारात्मक था। वह यह उपदेश नहीं देते थे कि चीन के लोगों को क्या करना चाहिए। उनका कहना था कि प्रवृत्ति के अनुसार काम करना ही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है। उनकी शिक्षा का सार 'कुछ मत करो, सब अपने आप होता जाएगा' था। इसी शिक्षा का एक भाग यह था कि महात्मा लाओजी विलासमय जीवन त्यागने और सांसारिक माया के बन्धनों से दूर रहने का उपदेश देते थे। ताओ धर्म का अनुशासन, नियंत्रण तथा संयम से कोई सम्बन्ध न था। इसी तर्क के आधार पर लाओजी का कहना था कि जनता के कामों में कम से कम हस्तक्षेप करने वाली सरकार ही सर्वोत्कृष्ट सरकार है। महात्मा लाओजी की प्रसिद्ध पुस्तक 'ताऊ-ती चिंग' जिसमें उनके विचार संग्रहीत हैं।
चीन के सामाजिक जीवन पर महात्मा कन्फ्यूशियस, महात्मा लाओजी तथा महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का बड़ा प्रभाव पड़ा। इस प्रकार चीन में तीन धर्म या तीन प्रकार की शिक्षा का प्रचार हुआ कन्फ्यूशियस धर्म, लाओ धर्म और बौद्ध धर्म | ये तीनों धर्म अपनी शिक्षाओं में बहुत कुछ मिलते हैं। तीनों ही जीवन में श्रेष्ठ आचार और आदर्श सहयोग पर बल देते हैं तथा नीच और पाप कर्मों और तुच्छ भावनाओं से दूर रहने की शिक्षा देते हैं। तीनों ही धर्म चीनियों के जातिगत स्वभाव - शान्तिप्रियता, युद्धों से उपरामता, शिष्टाचार नियमित व्यवस्थित और कर्तव्य परायण जीवन के अनुकूल थे।