कन्फ्यूशियस और लाओजी की शिक्षाएँ (Precept of Confucius )
कन्फ्यूशियस और लाओजी की शिक्षाएँ
कन्फ्यूशियस कौन था ?
प्राचीन चीन का कोई भी ऐतिहासिक वर्णन महात्मा कन्फ्यूशियस का उल्लेख किये बिना पूर्ण नहीं हो सकता। इस प्रकाण्ड विद्वान का जन्म 551 वर्ष ई. पू. में लून राज्य में हुआ था, जो वर्तमान शान्युंग प्रान्त में है। वह कुलीन वंश में पैदा हुआ था। जब वह बालक ही था तभी उनके पिता का देहावसान हो गया। बालक कन्फ्यूशियस मेधावी और जिज्ञासु था। अपनी योग्यता व व्यक्तिगत गुणों के कारण उसे चुंगदू नगर में सरकारी पद मिल गया। किन्तु जल्दी ही उन्होंने यह पद छोड़ दिया। वह अध्यापक भी रहा तथा उसने अपना महाविद्यालय ( Academy) खोल लिया, जहाँ वह अध्ययन करता था तथा छात्रों को भी उच्च शिक्षा देता था ।
कन्फ्यूशियस समाज को सुदृढ़ और सुगठित बनाना ही जीवन का आदर्श मानता था तथा व्यक्ति और समाज में एक सुन्दर सामंजस्य स्थापित करना ही उसका ध्येय था। अतएव वह किसी राजा या सामन्त का मन्त्री या सलाहकार बनकर अपनी कल्याणकारी योजना को क्रियान्वित करना चाहता था ।
आगे चलकर वह चुंगदू नगर में मजिस्ट्रेट हो गया तो उसे अपने विचारों को कार्यरूप में लाने का अवसर मिला। उसने सामाजिक जीवन को नियमित करने के लिए अनेक नियम लागू किए- परस्पर व्यवहार के नियम, स्त्रियों एवं पुरुषों को पृथक् रखने के लिए नियम क्या तथा कैसे भोजन किया जाए इससे सम्बन्धित नियम, सड़कों, समाधियों एवं अर्थियों की माप के नियम आदि । स्वार्थी लोगों ने कन्फ्यूशियस को बदनाम किया और उसके विरुद्ध प्रचार करने लगे। अतः बाद में कन्फ्यूशियस को यह पद छोड़ना पड़ा। उसके जीवन के अन्तिम वर्ष बड़े दुःख से बीते । फिर भी उसके उपदेशों एवं शिक्षाओं का चीनी जन-समुदाय पर स्थायी और गहरा प्रभाव पड़ा। 72 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
महात्मा कन्फ्यूशियस की शिक्षाएं एवं उपदेश -
उस समय चीन की राजनैतिक तथा सामाजिक अवस्था बहुत खराब थी। तत्कालीन अराजकता और कुव्यवस्था के कारण कन्फ्यूशियस की आत्मा बड़ी खिन्न थी। उसका कहना था कि मानव को मानव समाज में ही रहना है, चाहे समाज की दशा अच्छी हो या बुरी। मनुष्य अपने मानव समाज को छोड़कर बन्दरों के समाज में जाकर नहीं रह सकता । अतएव राज्य और समाज को सुधारना और व्यवस्थित करना ही व्यक्ति के लिये अत्यन्त कल्याणमय हो सकता है।
अतएव इस महात्मा ने मानव के सामाजिक व्यवहार को सुधारने की ओर ध्यान दिया। उसने परमेश्वर, आत्मा, प्रकृति आदि गहरे दार्शनिक विषयों पर ध्यान न दिया। उसकी शिक्षाएं इस संसार में आपस के व्यवहार के लिये सबसे अच्छा मार्ग दिखलाती हैं। कन्फ्यूशियस आदर्श समाज या राज्य की स्थापना करना चाहता था। अतएव उसने बहुत से व्यावहारिक नियम बनाए. जिनको पाँच भागों में बाँटा जा सकता है
1. पति-पत्नी के परस्पर व्यवहार के नियमः
2. पिता-पुत्र के आपसी व्यवहार के नियम;
3. राजा प्रजा के परस्पर कर्तव्य;
4. बड़ों-छोटों के परस्पर व्यवहार के नियम; तथा
5. मित्रों के परस्पर कर्तव्य और व्यवहार के नियम ।
कन्फ्यूशियस के अनुसार शासक और मंत्रीगण आदर्श व्यक्ति होने चाहिए। उनके चरित्र दूसरों के लिए आदर्श होते हैं तथा इससे सामाजिक व्यवस्था ठीक होती है। उस काल की अव्यवस्था और गड़बड़ी में उनके ये उपदेश ही चीन की रक्षा कर सकते थे। उनका विचार ठीक था कि यदि जनता या समाज की हर एक श्रेणी के लोगों का जीवन नियमों के अनुसार ठीक हो जायगा तो सांसारिक जीवन का दुख समाप्त हो जायेगा और समाज व्यवस्थित और सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हो जायेगा। उनके नियमों का पालन करने से चीनियों का जीवन बहुत कुछ व्यवस्थित और शान्तिमय हो गया।
सबसे अच्छी बात यह है कि महात्मा कन्फ्यूशियस के नियम सरल, समझ में आने वाले तथा पालन करने में भी अत्यन्त सरल हैं। उनके आदर्श देखने में बड़े ही कठिन लगते हों, परन्तु उन आदर्शों की प्राप्ति के नियम बड़े सुन्दर, अच्छे और आसान थे। श्रेष्ठ शासन, श्रेष्ठ शिक्षा और उच्च कोटि का नियमित व्यक्तिगत तथा सामाजिक जीवन ही उनके आदर्श थे। उनके बताये गये मार्ग पर चलकर चीनियों ने अपने जीवन को नियमित किया। कन्फ्यूशियस के अपने विचारों को लिपिबद्ध किया। उनके लिखे पाँच ग्रंथ हैं, जिन्हें चीन के लोग पंचचिंग कहते हैं।
अन्त में, हम यह कह सकते हैं कि कन्फ्यूशियस ने दैनिक जीवन के व्यवहार के सिद्धान्तों को सरल और सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया। चीनी लोग उठने-बैठने, वार्तालाप करने, भोजन करने, पानी पीने, वस्त्र पहनने, चलने-फिरने अर्थात् जीवन की प्रत्येक क्रिया में उनके नियमों का पालन करने लगे। वास्तव में उनके उपदेशों का अत्यन्त व्यापक प्रभाव हुआ। चीन में कन्फ्यूशियस के उपदेशों को बड़ा ऊँचा स्थान दिया गया।