चीन की प्राचीन सभ्यता (Ancient Civilisation of China)
चीन की प्राचीन सभ्यता प्रस्तावना ( Introduction)
मिस्र, मेसोपोटामिया और भारत के
समान चीन भी एक अत्यन्त प्राचीन देश है। चीनी अपनी सभ्यता को हजारों वर्ष पुरानी
मानते हैं। चीन में भी सभ्यता का विकास नदी घाटियों में ही हुआ था। चीन का
प्रसिद्ध मैदान (The
Great Plain of China) ह्वांगहो पीली नदी तथा यांग्ट्सीक्यांग नदियों से सींचा
जाता है। इसी मैदान में चीन की सभ्यता की उन्नति हुई तथा यह सभ्यता एशिया के
पूर्वी भाग में फैली। चीन,
जापान, हिन्दचीन, बर्मा आदि देशों में बसने
वाली जाति (Race) मंगोल कहलाती है।
चीन की सभ्यता का जन्म, उसका फैलाव और उन्नति संसार की अन्य प्राचीन सभ्यताओं से पृथक् रही है। चीन की प्राचीन सभ्यता का मिस्र, मेसोपोटामिया एवं सिन्धु घाटी की सभ्यता से कोई सम्पर्क नहीं था। लगभग 5000 वर्ष पूर्व चीन में पश्चिम की ओर से मंगोल जाति के लोगों या कबीलों का आक्रमण हुआ। ये कबीले मध्य एशिया की ओर से आये थे तथा सभ्यता में बढ़े- चढ़े थे। वे पशुपालन तथा कृषि के उद्योगों से भलीभाँति परिचित थे। वे भेड़ों एवं चौपायों के बड़े-बड़े झुण्ड रखते थे। उनका समाज संगठित था और वे घर बनाना जानते थे। इन लोगों ने ह्वांगहो नदी के मैदान में अपना डेरा जमा लिया और यहाँ के स्थायी निवासी बन गये। यही लोग चीन के प्राचीन निवासी थे।
चीनी अनुश्रुतियों के
अनुसार चीन में 3000 वर्ष ई. पू. सभ्यता की
बड़ी उन्नति हो चुकी थी और इस काल में वहाँ बड़े महान सम्राट हुये। चीनी इतिहास के
आधार पर पता लगता है कि लगभग 2852 ई. पू. में वहाँ फूसी नाम का शासक गद्दी पर था। वह चीन का
पहला सभ्य शासक था जिसके काल में चीन में लिखना पढ़ना, मछली पालन, संगीत और रेशम उद्योग का
विकास हुआ। इस शासक ने चीन के निवासियों के लिए अनेक कानून आदि भी बनाये। उसके बाद
शेननुंग शासक बना। इसने 2737 ई. पू. से 2697 ई. पू. तक शासन किया।
शेननुंग के शासन काल में चीन में कृषि, व्यापार और चिकित्सा विज्ञान की बड़ी उन्नति हुई।
ह्वांग-टी चीन का एक महान
शासक था। कहा जाता है कि उसने 2697 ई. पू. से 2597 ई. पू. तक शासन किया। इस शासक के काल में चीनियों ने पक्के
मकान बनवाये। उन्होंने ज्योतिष में उन्नति की; कलैण्डर में सुधार किया और एक व्यवस्थित भूमि व्यवस्था का
सूत्रपात किया।
याओ नामक एक अन्य शासक था, जो अपनी न्यायप्रियता के
लिए विख्यात था। इस सरल, प्रजा सेवक तथा आदर्श
सम्राट की चीनी अनुश्रुतियों में बड़ी प्रशंसा की गई है। जन कल्याण की ओर ध्यान
देने वाला एक अन्य शासक शुन था। शुन ने ह्वांगहो नदी की बाढ़ों से होने वाली तबाही
को रोकने के लिए अनेक उपाय किये। इसके काल में यू नामक एक चीनी इंजीनियर बहुत
विख्यात था।
चीन के प्राचीन राजवंश (Ancient Dynasty of China)
उपरोक्त वंशावली के बाद लगभग 1766 ई. पू. से चीन का क्रमबद्ध इतिहास मिलता है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से नीचे हम राजवंशानुसार इनका इतिहास पढ़ेंगे। प्राचीन राजवंशों का नामावली इस प्रकार है
1. शांग (Shang) वंश - 1766 ई. पू. से 1122 ई. पू.
2. चाऊ (Chou) वंश-1122 ई. पू. से 225 ई. पू.
3. सिन ( Tsin) वंश-225 ई. पू. से 206 ई. पू.
4. हान (Han) वंश - 206 ई. पू. से 221 ई. पू.
1. शांग राजवंश -
चीन में
शांग वंश ने 1766 ई. पू. से 1122 ई. पू. तक अर्थात् लगभग
साढ़े 6 सौ वर्षों तक राज्य
किया। इस राजवंश में 28 सम्राट हुए। इनमें से कई
शासकों ने देश की समृद्धि में योगदान दिया होनान नगर में जो प्राचीन अवशेष प्राप्त
हुए हैं, उनसे देश की शिल्प एवं
कलाओं की उन्नति का प्रमाण मिलता है। शांग वंश के शासकों के काल में चीन में कला
कौशल की उन्नति हुई। इस काल में बांस के पत्तों पर चीनी लोग लिखाई करते थे। कलम और
स्याही का भी उन्होंने आविष्कार कर लिया था। चीनी जनता का मुख्य उद्यम कृषि था। एक
क्रान्ति के फलस्वरूप यह राजवंश पदच्युत हो गया तथा चाऊ नामक व्यक्ति ने गद्दी पर
अधिकार करके चाऊ वंश की स्थापना की।
2. चाऊ राजवंश -
चाऊ वंश ने 1122 ई. पू. से 225 ई. पू. तक अर्थात् लगभग
नौ सौ वर्ष तक चीन में राज्य किया। इस वंश के शासन काल में एक सुसंगठित राज्य का
विकास हुआ और चीन ने एक अच्छे राज्य का रूप धारण किया। इसी काल में चीन में दो
बड़े महात्मा हुए- कन्फ्यूशियस (Confucius) तथा लाओजी (Lao-Tse) । इस काल में चीन में शिक्षा का बड़ा प्रचार
हुआ। पक्षपात समाप्त करने के लिये परीक्षाओं द्वारा अफसरों की नियुक्ति की प्रणाली
लागू की गई। यह प्रणाली चीन ने सारी दुनिया से पहले निकाली शान्ति एवं सुरक्षा की
स्थापना के लिये इस काल के सम्राटों ने सामन्तों को शक्ति का विनाश किया और शक्तिशाली
केन्द्रीय शासन की स्थापना की।
जब चाऊ ने इस वंश की नींव
डाली. तो शांग वंश का एक राज कर्मचारी 5,000 सैनिकों के साथ कोरिया (Korea) को ओर भाग गया और उसने वहाँ अपना राज्य स्थापित
कर लिया। कोरिया में इस कर्मचारी ने चीन देश की उपयोगी कलाओं की स्थापना और विस्तार
किया जैसे कृषि, पशुपालन, रेशम उत्पादन, गृह निर्माण आदि। बाद में
भी चीन के बहुत से निवासी चीन से जाकर कोरिया में रहने लगे।
इस वंश के अन्तिम समय में
देश में अराजकता फैल गई, केन्द्रीय शासन दुर्बल हो
गया तथा स्थानीय सामन्तों का जोर बढ़ गया। ये स्थानीय शासक छोटी-छोटी बातों के लिए
युद्ध करते रहते थे तथा प्रजा दुःखी रहती थी। सैकड़ों वर्षों तक यही दशा रही।
अराजकता का अन्त सिन नामक सामन्त ने किया। उसने दुर्बल चाऊ वंशीय सम्राट को
पदच्युत करके शासन की बागडोर स्वयं संभाल ली। इस प्रकार एक नवीन राजवंश-सिन वंश का
शासन आरम्भ हुआ।
3. सिन राजवंश -
सिन वंश का
शासन 225 ई. पू. से 206 ई. पू. तक रहा। इस वंश
के सम्राट चीन के प्रसिद्ध शासक हुए हैं। इन्होंने सामन्तों की शक्ति का विनाश
करके चीन में दृढ़ केन्द्रीय शासन की स्थापना की। इस महान सफलता का श्रेय सम्राट
एवं उसके सुयोग्य मन्त्री कुआन चुंग को है। इसी वंश के नाम पर देश का नाम 'चीन' हो गया इससे पहले इसके कई
और नाम थे।
इस वंश का सबसे प्रसिद्ध
सम्राट शि-ह्वांग-टी हुआ जिसने चीन की उन्नति, सभ्यता और दृढ़ता के अमिट चिह्न छोड़े हैं। इस सम्राट ने
सामन्तवाद की रही सही शक्ति भी मिटा दी । वास्तव में शि-ह्वांग-टी का शाब्दिक अर्थ
है 'प्रथम सम्राट'।
(क) उद्योग-धन्धे -
उस समय
चीनी लोग काफी प्रगति कर चुके थे। पुरुष मछली पकड़ने आखेट एवं कृषि में लगे रहते
थे और स्त्रियां कातने बुनने में संलग्न रहती थीं। समाज में लुहार व स्वर्णकार लोग
बर्तन व हथियार आदि बनाते थे। उस समय के अत्यन्त सुन्दर कांसे के पात्र आज भी
विद्यमान हैं। अत्यन्त सुन्दर रेशमी वस्त्रों की बुनाई की जाती थी क्योंकि
सम्राटों एवं सामन्तों तथा उनके वंशजों की ओर से इस उद्योग को प्रोत्साहन मिलता
था। मिट्टी के पात्र बहुत सुन्दर बनाये जाते थे तथा बाद में चीनी मिट्टी की खपरैल
और फर्श की टाइलें भी बनने लगीं।
(ख) लेखन कला-
प्राचीन काल
में चीन में लेखन कला का विकास हुआ तथा लेखन प्रणाली आज तक ऐसे ही बनी हुई है जैसी
कि उस समय थी। बाँस या लकड़ी के चपटे तथा चिकने पट्टों पर पुस्तकें लिखी जाती थीं।
स्याही के लिए स्याही (रंगीन द्रव) और ब्रुश के समान बनी हुई कलमें प्रयोग की जाती
थीं। यदि कोई अक्षर लिखने में गलत हो जाता था तो चाकू से खुरच कर उस स्थान को साफ
कर लिया जाता था और पुनः लिखाई की जाती थी। आगे चलकर बाँस के पत्ते बने तथा
तत्पश्चात् रेशम को कागज की भाँति प्रयोग किया गया। 1418 ई. में चीनियों ने
आधुनिक कागज बनाने का आविष्कार किया।
(ग) चीन की महान दीवार का निर्माण-
शि-हांग-टी के अनेक कार्य प्रसिद्ध हैं। उसने चीन पर बार-बार होने वाले बर्बर और जंगली हूणों के आक्रमणों को रोक दिया। उसने अपनी वीरता एवं सैन्य संचालन से उन्हें भयानक पराजय दी। उत्तर की ओर से जंगली जातियों के इन आक्रमणों को सदा के लिए असम्भव बनाने के लिए उसने चीन की महान दीवार का निर्माण कराया। यह दीवार लगभग 22 फुट ऊँची 20 फुट चौड़ी . और 1,800 मील लम्बी है। इसमें लगभग प्रत्येक 100 फुट पर चालीस फुट चौड़े स्तम्भ या बुर्ज बने हुए हैं जिनके बीच से होकर दीवार पर यातायात निरन्तर रूप से हो सकता है। दीवार पर और स्तम्भों पर किलेबन्दी है जिसके पीछे सुरक्षित खड़े होकर सिपाही तीर एवं अस्त्र छोड़ सकते हैं। इस दीवार को बनाने के लिए अधिकतर काम कैदियों से लिया गया था। हो सकता है कि काम करने वालों की संख्या बढ़ाने के लिए अनेक लोगों को दंडित कर दिया गया हो। चीनी लोग इस दीवार के निर्माण के विरुद्ध थे क्योंकि इसे बेगार के मजदूर पकड़ कर बनवाया गया था।
शि-ह्वांग-टी-
शि-ह्वांग-टी
अपने आप को चीन का प्रथम सम्राट कहता था तथा चाहता था कि चीन का इतिहास उसी के समय
से आरम्भ माना जाए। इसके लिए उसने यह निश्चय किया कि सारे प्राचीन साहित्य को नष्ट
कर दिया जाए। प्राचीन साहित्य के रहने पर उसकी इस आकाँक्षा का पूरा हो पाना असम्भव
था। उसने कृषि, ज्योतिष और चिकित्सा
शास्त्र की पुस्तकों को छोड़कर शेष सभी पुस्तकों को नष्ट करने की ठान ली। परिणाम
यह हुआ कि चीन के प्राचीन और बहुमूल्य साहित्य के असंख्य ग्रन्थ नष्ट कर दिये गये।
विद्वानों एवं विद्या प्रेमियों ने ग्रन्थों की रक्षा करनी चाही तो सम्राट ने या
तो उन्हें प्राण दण्ड दे दिया या विशाल दीवार पर मजदूरों की भाँति काम करने . को
भेज दिया। फिर भी ऐसे लोगों के साहस के बल पर अनेक ग्रंथों की रक्षा हो गई। इन
सुरक्षित ग्रंथों में महात्मा कन्फ्यूशियस व महात्मा लाओजी के ग्रन्थ भी हैं।
शि-द्वांग-टी की मृत्यु 210 ई. पू. में हो गई। उसके
संसार से विदा होते ही लोगों ने पुराने साहित्य को पुनः मान्यता तथा आदर प्रदान
किया।
हान राजवंश-
शि-ह्वांग-टी की मृत्यु के कुछ वर्षों के पश्चात् ही उसके वंश का शासन समाप्त हो गया तथा हान वंश का शासन काल आरम्भ हुआ। इस वंश का प्रभुत्व लगभग चार सौ वर्ष तक रहा। इस वंश के समय चीन में अभूतपूर्व उन्नति हुई, उसकी सीमाओं का विस्तार बढ़ा तथा संसार के दूरस्थ देशों से उसका प्रथम बार सम्बन्ध हुआ। हान वंश के समय उत्तर की ओर से तातारी कबीलों एवं जातियों का आक्रमण हुआ। चीन की बड़ी दीवार उन्हें रोकने में असमर्थ हुई। उधर हूणों एवं कोरियावासियों में संघर्ष होते रहे। फल यह हुआ कि चीनी सेनाएँ मध्य एशिया में बढ़ीं तथा उन्होंने पामीर और कोकन्द को चीनी साम्राज्य में मिला लिया। बाह्य युद्धों के साथ-साथ आन्तरिक विप्लव एवं विद्रोह भी होते रहे। इसी बीच वेंग मेंग (Wang-Mang) नामक एक अनाधिकारी ईसा से लगभग 50 वर्ष पूर्व सिंहासन पर बैठ गया तथा कई वर्षों तक राजा बना रहा। उसकी मृत्यु के पश्चात् हान वंश पुनः गद्दी पर प्रतिष्ठित हो गया। इस प्रकार की परिस्थिति के होते हुए भी इस काल में चीन की उन्नति होती रही।
हान वंश के समय में ही
कागज तथा स्याही के आविष्कार हुए थे। इस काल में चित्र कला में पर्याप्त उन्नति
हुई। ऊँट के बालों से ऐसे बुश बनाये गये, जो चित्रकारी के काम में आते थे। चित्रकारी के लिए
भाँति-भाँति के रंगों का निर्माण किया गया। शि-ह्वांग-टी के समय में साहित्य को जो
भारी हानि पहुँची थी, उसे पूर्ण करने का प्रयास
किया गया। कन्फ्यूशियस एवं लाओजी के उपदेशों को फिर से पुराने काल जैसी मान्यता दी
गई तथा कन्फ्यूशियस वंश के प्रमुख पुरुष को पैतृक उपाधि और सम्मान प्रदान किया
गया। इस काल में मूर्ति निर्माण- कला और भवन-निर्माण-कला की भी पर्याप्त उन्नति
हुई। पत्थर पर सुन्दर उभरी हुई खुदाई के अवशेष मिलते हैं। शान्युंग प्रान्त में एक
समाधि मन्दिर में अश्वारोहियों, युद्धों, मछली पकड़ने आखेट, दावतों और जुलूसों के चित्र पत्थरों पर उभरी खुदाई के रूप
में मिले हैं। चीन की निर्माण कला की उन्नति का मूल्यांकन करने की दृष्टि से ये
चित्र बड़े महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे चीन के प्राचीन इतिहास का स्पष्ट
दिग्दर्शन होता है, जैसा कि मिस्र के
पिरामिडों से मिस्र की सभ्यता का पता लगता है।
इसी वंश के समय में सरकारी नौकरी के ऊँचे पदों के लिये प्रतियोगिता परीक्षाएं शुरू की गई। संसार में यह प्रणाली सबसे पहले चीनी लोगों ने ही अपनाई। इसका कारण यह था कि चीन में सबसे अधिक आदर विद्वानों का ही होता था। समाज में निम्न से निम्न श्रेणी का और गरीब आदमी भी यदि विद्वान् हो तो आदरणीय माना जाता था। दूसरे, चीन में सैनिक या लड़ाई पेशा व्यक्ति अत्यन्त नीच माना जाता था। इसलिये सेना में केवल गरीब और खराब चरित्र के व्यक्ति ही भर्ती होते थे। चीनी समाज में राजवंश सबसे उच्च माना जाता था। उससे नीचे साहित्यिक एवं विद्वान् श्रेणी, उससे नीचे कृषक श्रेणी, उससे नीचे शिल्पी एवं दस्तकार तथा उससे नीचे व्यापारी माने जाते थे। समाज सैनिकों को कोई आदर नहीं देता था। इससे यह परिणाम निकलता है कि चीन का प्राचीन गौरव शान्तिपूर्ण था ।