यायावर साम्राज्य (Nomadic Empires)
यायावर साम्राज्य Nomadic Empires in Hindi
- सन् 1700 तक पुर्तगालियों को समुद्रपार के साम्राज्य पर अधिकार किए ढाई सौ वर्ष बीत चुके थे। सोलहवीं शताब्दी में उनकी प्रमुख उपलब्धि अफ्रीका (गिनी, कांगो, अंगोला और मौजाम्बीक) में सैनिक अड्डों की स्थापना और भारत से लेकर मकाओ द्वीपसमूह तक विस्तृत सामुद्रिक साम्राज्य की स्थापना थी। 1700 तक पुर्तगाल मुख्यतः एक अटलांटिक शक्ति था । गोआ एवं भारत के कुछ व्यापारिक बंदरगाहों. तिमूर द्वीप और मकाओ के अतिरिक्त सारे प्रदेशों पर पूर्व में डचों या अंग्रेजों ने अधिकार कर लिया था। अफ्रीका में उसके पूर्वी तटवर्ती प्रदेश बंदरगाहों और अर्धस्वतंत्र स्थलीय जागीरों के रूप में सीमित होकर रह गए थे। पश्चिम में उसने केवल उन बंदरगाहों को अपने पास रखा था जहाँ से दास व्यापार होता था। परंतु अटलांटिक में उसके पास मदीरा और आज़ोर्ज थे, जो कुछ तटवर्ती अमरीका और ख़ास तौर से ब्राज़ील पर नियंत्रण की स्थापना की सीढ़ी थे। पूर्वी साम्राज्य के विघटन के बाद ब्राज़ील पुर्तगाल के वैदेशिक प्रदेशों का केंद्रबिंदु हो गया क्योंकि ब्राज़ील दासों की सप्लाई करने वाले पश्चिम अफ्रीका के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा था. जिस पर ब्राजीली अर्थव्यवस्था आश्रित थी। यूरोपीय उपनिवेशीकरण के सामान्य इतिहास में भी ब्राजील का इस कारण महत्त्वपूर्ण स्थान था कि वह खेतिहर उपनिवेश (प्लान्टेशन कॉलोनी) का आदि प्रारूप (prototype) था। स्पेन ने यूरोप को एक ऐसे सुसंगठित औपनिवेशिक साम्राज्य की स्थापना का मार्ग दिखाया जो बहुमूल्य धातुओं के उपयोग तथा विशाल प्रगतिशील स्थानीय जनसंख्या पर आधारित था। परंतु इस प्रकार की व्यवस्था अत्यधिक अनुकूल भौगोलिक एवं जनांकिकीय ( demographic) परिस्थितियों पर ही निर्भर करती थीं जो मुख्यत: मैक्सिको और पेरू में ही उपलब्ध थीं।
- पुर्तगालियों ने ऐसी परिस्थितियों में सुधार लाना चाहा। इसलिए वे अटलांटिक द्वीपों से गन्ना (जिसे पहले वहाँ भूमध्यसागरीय प्रदेशों से लाकर लगाया गया था) और अफ्रीका से नीग्रो दास लाए। सत्रहवीं शताब्दी में तम्बाकू, कॉफी, कोकोआ और कपास जैसी उपजों के प्रचलन से फ्रांसीसी, ब्रिटिश, डच और यहाँ तक कि स्पेनी भी शीतोष्ण और अर्धशीतोष्ण प्रदेशों में धन अर्जित करने के सर्वोत्तम माध्यम के रूप में दास- श्रम का उपयोग कर रहे थे। इस प्रकार उक्त उपनिवेश में थोड़े-से श्वेत अल्पसंख्यक भू-स्वामियों और वर्णसंकर नीग्रो दासों (negros) के स्वामित्व वाली विशाल ग्रामीण जागीरों का उदय हुआ। इन जागीरों में नीग्रो गुलाम काम करते थे। अठारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में मीना ज़राइस में सोने और हीरों की खोज से एक विशाल खनिज उद्योग की स्थापना हुई और इससे जनसंख्या का दक्षिण की ओर स्थानांतरण हुआ। सुदूर दक्षिण में पशुपालन उद्योग का विकास हुआ और रीओ द जनेरी में कॉफ़ी पैदा की जाने लगी। ब्राज़ील में अठारहवीं शताब्दी के अंत तक जनसंख्या बढ़कर 40 लाख हो गई थी। ब्राजील धीरे-धीरे समृद्ध होता जा रहा था परंतु उसकी सादगी और ग्रामीणता पहले जैसी ही बनी हुई थी। वहाँ कोई भी बहुत बड़ा नगर नहीं था और उद्योग भी थोड़े थे। शक्कर के कारखाने अर्थव्यवस्था का आधार और समाज के केंद्रबिंदु थे। यद्यपि शासक वर्ग में प्रमुखतः श्वेत लोग थे पर औपचारिक रंगभेद न होते हुए भी अफ्रीकी रक्त के लोगों के विरुद्ध प्रतिकूल भावना बनी हुई थी। मिश्र जाति के नीग्रो लोगों (mulattoes) को चर्च या राज्य के ऊँचे पदों पर पहुँचने की कोई भी आशा नहीं थी ।
- दक्षिणी अमरीका के उपनिवेशीकरण के पुर्तगाली तरीके स्पेनी तरीकों से भिन्न थे। कास्तौलियाई साहसिक व्यापारियों ने जान-बूझकर दक्षिणी अमरीका के उन अंदरूनी पर्वतीय प्रदेशों को चुना क्योंकि ये ऐसे प्रदेश थे जिन्हें उपनिवेश बनाने में श्वेत लोगों को आसानी थी। परंतु पुर्तगालियों ने अपनी गतिविधियों को समशीतोष्ण तटवर्ती पट्टी तक ही सीमित रखा | पुर्तगालियों ने इतने लंबे समय तक अपने उपनिवेशों को समुद्रतटवर्ती क्षेत्रों तक ही सीमित क्यों रखा, इसके प्रमुख कारण आर्थिक थे। किंतु साथ ही इसके भौगोलिक कारण भी थे। उपनिवेशवादी शीघ्र समृद्धि के लिए गन्ने को मुख्य उपज मानते थे। यह गन्ना नदियों के किनारे खेतों में उगाया जाता था क्योंकि वहाँ सिंचाई के लिए जल की सुविधा थी और गन्ना पेरने के कोल्हू और शक्कर बनाने की मिलें जलशक्ति से चलती थीं। अतः नदियों के निकट स्थित होने के कारण जलशक्ति का सुगमतापूर्वक उपयोग किया जा सकता था। इसके अतिरिक्त ब्राजील की लकड़ी, खालें, तम्बाकू और कपास को थोक माल के रूप में ब्राजील से निर्यात किया जाता था। इस माल का सबसे सुगमतापूर्वक निर्यात केवल उस स्थिति में किया जा सकता था जब औपनिवेशिक बस्तियाँ नदियों के मुहानों के निकट या समुद्रतट के किनारे प्राकृतिक बंदरगाहों पर स्थित हों उनको अंदरूनी स्थलीय प्रदेशों की ओर स्थापित करने का कोई आधार नहीं क्योंकि उत्तर में अमेजन और दक्षिण में रिओदला प्लांटा तक कोई भी नदी नौपरिवहन योग्य नहीं थीं। उनके मार्ग बहुत दूर-दूर तक जल प्रपातों और बड़े-बड़े पत्थरों से अवरुद्ध थे। इन्कास और अजतेक जातियों द्वारा पेरू और मैक्सिको में बनाई गई पगडंडियों और सड़कों ने इन देशों में स्पेनी प्रवेश को और अधिक सुगम बना दिया था। परंतु ब्राजील में घुमक्कड़ जंगली जातियाँ रहती थीं। विभिन्न तटवर्ती औपनिवेशिक बस्तियों के साथ चूँकि थल मार्ग से संचार एवं संपर्क अत्यंत कठिन था, अतः उनके साथ संपर्क और संचार केवल समुद्र के माध्यम से होता था । स्पेनी लोगों ने स्पेन में ही धातुओं पर काम करने का काफी अनुभव प्राप्त कर लिया था। (क्योंकि विस्कयान प्रांत में लोहे की खानें थीं)। इसके विपरीत पुर्तगालियों के पास खनन इंजीनियरों का अभाव था और उनके व्यावसायिक खनिक स्पेनी या जर्मन होते थे। इन परिस्थितियों में पुर्तगालियों को केवल ब्राजीली कृषि-संपदा के उपभोग से ही संतुष्ट रहना पड़ा।
- पुराने साम्राज्यों के अंतर्गत औपनिवेशिक सिद्धांतों और व्यवहार में काफी भिन्नता थी। स्पेनी राजनीतिक केंद्रीकरण में अग्रगण्य थे जब कि पुर्तगाली आर्थिक मामलों में प्रवीण सिद्ध हुए। स्पेनी सम्राट औपनिवेशिक शासन के बारे में जरूरत से ज्यादा तुनकमिजाज थे। इसके विपरीत पुर्तगालियों ने ब्राज़ील में विकेंद्रीकरण को प्रोत्साहन दिया। पुर्तगाली बड़े ही व्यापारिक प्रवृत्ति के थे जब कि स्पेनी बड़े कानूनी स्वभाव के थे।
पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन और संवैधानिक सिद्धांत
- पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन और संवैधानिक सिद्धांत स्वयं पुर्तगाल के राजनीतिक स्वरूप के प्रतिबिंब थे। पुराने स्पेन की शासन व्यवस्था के साथ तुलना करने पर यह व्यवस्था अनगढ़ (किंतु उपयोगी) प्रतीत होती है। पुर्तगाल ने अपने उपनिवेशों और महानगरीय प्रदेशों के मध्य कोई सांविधानिक भेदभाव नहीं किया। 1604 तक उसका कोई औपनिवेशिक विभाग नहीं था, फिर भी पुर्तगाल शासन का कोई भी महानगरीय विभाग पुर्तगाली उपनिवेशों पर मनमाने ढंग से शासन करने के लिए पूर्णतः सक्षम था। 'काउंसिल ऑफ स्टेट' तथा 'काउंसिल ऑफ द इंडीज़ ' (विदेश के लिए) नामक संस्थाएँ कॉफी हद तक शासन के लिए जिम्मेदार थीं।
- ब्राजील और अन्य अटलांटिक उपनिवेशों के शासन का संवैधानिक स्वरूप पूरी तरह स्पष्ट नहीं था। साथ ही स्पेन की राजधानी में इन पर पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने का इरादा भी नहीं था। शाही शासन के स्थान पर धीरे-धीरे प्रदाताओं (donators) के शासन की स्थापना हुई। परिणामस्वरूप 1700 तक किसी भी उपनिवेश पर उसके स्वामी (proprietor) का शासन नहीं रह गया। सैद्धांतिक रूप से संपूर्ण ब्राज़ील वाइसराय द्वारा शासित एक छोटा प्रदेश था जिसे कैप्टन जनरल और कैप्टन के अधीन प्रांतों में उपविभाजित किया गया था। अफ्रीका और अटलांटिक में छोटे उपनिवेशों पर केवल कैप्टनों का ही शासन था। वस्तुतः प्रांतों पर वाइसराय का नियंत्रण नाम मात्र का था। कैप्टन जनरल अपने प्रांत विशेष की शासन व्यवस्था के संबंध में लिस्बन और पुर्तगाल सरकार से सीधा संपर्क करते थे। दोनों ही अर्थात् कैप्टन और कैप्टन जनरल, वाइसराय की परवाह नहीं करते थे। अपीली मुकदमों की औपनिवेशिक अदालतों द्वारा सुनवाई करने के कारण यह पराश्रयता और बढ़ गई। 1751 में दो औपनिवेशिक अपीली अदालतों की स्थापना के बावजूद भी यही स्थिति विद्यमान रही।
- उपनिवेशों में स्पेनी अमरीका की तुलना में शासन कम पेचीदा था। वहाँ 'ऑडियेन्सिया' (Audiencia) जैसी औपचारिक परिषदें नहीं थीं। लिस्बन सरकार द्वारा नियुक्त गवर्नर निरंकुश होते थे। इन्हें केवल न्यायाधीश ही परामर्श दे सकते थे और नियंत्रित करते थे। वहाँ कोई प्रतिनिधि संस्थाएँ भी नहीं थीं। केवल प्रांतीय राजधानियों में निर्वाचित नगरपालिका परिषदों के माध्यम से क्रिओल ही शासन पर किसी प्रभाव का प्रयोग कर सकते थे। स्पेनी परंपराओं के विपरीत लिस्बन सरकार द्वारा नियुक्ति के लिए सुरक्षित कुछ पदों के अतिरिक्त अधिकांश आधिकारिक पदों पर क्रिओलों का ही अधिकार था। चूँकि ब्राजील में कोई विश्वविद्यालय नहीं था जहाँ क्रिओल कानूनी योग्यता प्राप्त कर सकें, अतः न्यायिक पद प्रायद्वीपीय पुर्तगालियों के हाथों में ही सीमित थे। संक्षेप में सैद्धांतिक रूप से यद्यपि पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन निरंकुश था तथापि सार्वजनिक मामलों में उपनिवेशवादियों ने बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। पुर्तगाली व्यापारिक नीति बहुत सीमा तक स्पेन की ही भाँति थी। संभव है स्पेन ने पहले मूलतः पुर्तगाली परंपराओं का अनुसरण किया हो। औपनिवेशिक व्यापार पुर्तगाली नागरिकों के ही हाथों में सीमित था। किसी भी विदेशी जहाज़ को ब्राज़ीली या अन्य औपनिवेशिक बंदरगाहों में जाने की अनुमति नहीं थी। केवल लिस्बन से होने वाले आयात-निर्यात व्यापार को ही सीधा व्यापार करने की अनुमति थी। बाद में इस व्यापार पर और अधिक प्रतिबंध लगाए गए क्योंकि 1765 तक यह व्यापार वर्ष में एक बार जाने वाले जहाज़ी बेड़ों के द्वारा किया जाता था।
- विदेश व्यापार में पुर्तगाल की स्थिति बिचौलिए की भाँति थी। उक्त स्थिति के अतिरिक्त पुर्तगाल अपने औपनिवेशिक व्यापार से अधिक लाभ अर्जित करने की स्थिति में नहीं था क्योंकि उसकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। अटलांटिक पार के देशों के लिए व्यापारिक जहाजों के निर्माण और उनके संचालन तथा अंगोला से गुलामों की आपूर्ति करने के अतिरिक्त किसी भी विशिष्ट आर्थिक कर्तव्य का बिना निर्वाह किए वह अपने उपनिवेशों से लाभ अर्जित करता रहा। फिर भी उसे औपनिवेशिक राजस्व रूप में अकेले ब्राज़ील से 1711 में 72,000 पौंड और शताब्दी के मध्य में 9,00,000 पौंड प्राप्त हुए।
- और भी अजीब बात यह है कि पुर्तगाल की तुलना में कहीं अधिक जनसंख्या वाला और समृद्ध होने के बावजूद ब्राजील में किसी भी राष्ट्रीय आंदोलन का जन्म नहीं हुआ। ब्राजील और अटलांटिक पार के द्वीपों ने पुर्तगाल के प्रति - अभूतपूर्व निष्ठा का प्रदर्शन किया। समान भाषा, कानून, धर्म और संस्कृति उपनिवेशों एवं उनके अधिशासी राज्यों के मध्य कुछ प्रमुख संपर्क सूत्र थे।
उपनिवेशों के प्रकार
(Types of Colonies)
- यूरोप के वैदेशिक या समुद्रपार के विस्तार के प्रत्येक चरण में एक-दूसरे पर छा जाने वाली एक या एक से अधिक शक्तियाँ थीं। आधुनिक युग में ये शक्तियों ब्रिटिश और फ्रांसीसी थी परंतु 1815 से पूर्व ये थीं स्पेन और पुर्तगाल उन शक्तियों की प्रधानता केवल इस बात में निहित नहीं थी कि वे अन्वेषक थीं वरन् इस बात में थी कि उन्होंने उपनिवेशीकरण के पाँच प्रभावशाली तरीकों में से चार को अंगीकार किया था। ये तरीके प्रथम औपनिवेशिक साम्राज्य की सबसे बड़ी विशेषता थे और प्रत्येक औपनिवेशिक शक्ति ने इनका अनुसरण करने का प्रयास किया। स्पेन ने यूरोप को यह सिखाया कि नई दुनिया में प्राकृतिक उपादानों का पूरी तरह उपयोग करते हुए महान प्रादेशिक साम्राज्य की स्थापना कैसे की जाए।
- मैक्सिको और पेरू में स्पेनी उपनिवेश प्रारंभ में "मिश्रित " उपनिवेश थे जिनमें अधिकांश श्वेत अल्पसंख्यक उपनिवेश बसाने वालों ने विदेशी भूमि में पुराने स्पेन समाज से मिलते जुलते समाज की रचना की। अमरीका और फिलीपीन्स के जो भाग उतने लाभप्रद नहीं थे और जहाँ भौगोलिक या जनांकिकीय परिस्थितियों के कारण पूरी तरह उपनिवेश बसाना उतना आकर्षक नहीं था वहाँ स्पेनियों ने आधिपत्य वाले उपनिवेशों (colonies (of occupation) की स्थापना की। इन उपनिवेशों में उपनिवेशक थोड़े से और “सीमांत प्रणाली" (frontier system) के द्वारा लोगों पर एक शिथिल-सा नियंत्रण रखा जाता था। इसी प्रकार की शिथिल नियंत्रण की व्यवस्था का पुर्तगालियों ने अंगोला पर और मोजाम्बीक में भी प्रयोग किया, यद्यपि यह पुर्तगालियों की विशिष्ट व्यवस्था का अंग नहीं थी।
- पुर्तगालियों ने दो प्रतिरूपों या मॉडलों को चुना था। ब्राजील में उन्होंने पहले "बागान" उपनिवेश की स्थापना की जिसमें केवल एक छोटा-सा यूरोपीय अल्पसंख्यक वर्ग स्थायी रूप से निवास करता था। उन्होंने इन " मिश्रित " उपनिवेशों में स्पेन की ही भाँति अपनी महानगरीय सभ्यता को विकसित किया। चूँकि ब्राज़ील में ज्ञात बहुमूल्य धातुओं और चुपचाप काम करने वाले स्थानीय श्रमिक लोगों दोनों का अभाव था, अतः पुर्तगाली अफ्रीका से गुलामों का आयात करते थे और यूरोपीय बाजार के लिए शक्कर जैसे विदेशी किराने के सामान (groceries) का उत्पादन करते थे।
- पूर्व की सर्वथा भिन्न परिस्थितियों में पुर्तगालियों ने एक अन्य प्रवृत्ति का अनुसरण किया। उसका पूर्वी साम्राज्य छोटे-छोटे व्यापारिक उपनिवेशों का समूह था। उसके नाविक अड्डों में बहुत थोड़े प्रदेश और बहुत थोड़े स्थायी निवासी थे जिनका काम स्थानीय उत्पादनों या उपजों के लाभकारी व्यापार को संगठित करना था। अतः यह एक वाणिज्यिक साम्राज्य था, औपनिवेशिक नहीं। 1700 में उत्तरी अमरीका में ब्रिटेन तथा फ्रांस की "विशुद्ध" औपनिवेशिक बस्ती इस प्रकार के उपनिवेशीकरण का एक नमूना थी।
- अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में स्पेनी और पुर्तगाली साम्राज्य का महान् युग समाप्त हो गया। वे दोनों पतनोन्मुख शक्तियाँ थीं और ब्राजील के अतिरिक्त पुर्तगाल के सारे उपनिवेश उनके हाथ से निकल गए थे। स्पेनी उन क्षेत्रों में नहीं बसे जहाँ न तो सघन जनसंख्या हो और न ही सोने चाँदी के विपुल भंडार हों। पुर्तगाली, फ्रांसीसी, अंग्रेजी और डच उपनिवेशकों ने यह अनुभव किया कि भूमि पर काम करने के लिए अमरीका में श्रमिक शक्ति लाने की आवश्यकता है। इन शक्तियों द्वारा अधिकृत समशीतोष्ण प्रदेशों के समस्त निचले भागों में श्रमिक शक्ति का बसना और औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था का उदय ये दोनों विकास की एक जैसी स्थितियों में होकर गुजरे।
अर्थव्यवस्था के
विकास के चरण (Step of
Development of Economy )
- सबसे पहले जीवन की मूल आवश्यकताओं की चीज़ों का उत्पादन करने के लिए संघर्ष किया गया। संभव है कि इस मामले में अग्रणी लोगों के दिमाग में भारतीय व्यापार, ब्राजीली लकड़ी को काटना, पश्चिमी रास्ते की खोज करना या सामुद्रिक लूट को मदद देना रहा हो, फिर भी उन्हें मक्का जैसी फसलों को उगाने में अपना अधिकांश ध्यान लगाना पड़ा ताकि वे अपनी मातृभूमि से अनाज की आपूर्ति की नाजुक हालत से बच सकें।
- इसके बाद उपनिवेशवादियों ने ऐसी फसलें उगाने का प्रयत्न किया जिन्हें यूरोप में आसानी से बेचा जा सके, जिससे कि उनके उपनिवेश पूँजी निवेशकों और अप्रवासियों दोनों के लिए अधिक आकर्षक बन सकें। आरंभ में तंबाकू प्रमुख वेस्ट इंडियन व्यापारिक माल था, पर 1620-30 के आस-पास उसकी कीमतें गिर जाने से वह उतनी आकर्षक नहीं रह गई थी। अतः उपनिवेशकों ने विभिन्न प्रकार की अन्य उपजों को उगाना प्रारंभ किया जिनमें कपास और अदरक बहुत महत्त्वपूर्ण थे। अतः कुछ दशाब्दियों तक द्वीपीय अर्थव्यवस्था को विविध रूपों में नियोजित किया गया। 1640 से आरंभ होने वाले दशक में द्वीपों में ईख उत्पादन के प्रचलन से उनके विकास के नए द्वार खुल गए। ईख के उत्पादन के लिए कैरीबियाई जलवायु बहुत उपयुक्त थी और इसके अधिकाधिक कुशल उत्पादन से शक्कर की कीमतें कम हो गई। इससे यह स्पष्ट हो गया कि यूरोप में अन्य किसी कृषि उत्पादन की तुलना में शक्कर के विक्रय की संभावनाएँ कहीं अधिक अच्छी थीं।
- अंत में शक्कर का उत्पादन एक बार प्रारंभ हो जाने के बाद एक ही फसल की खेती करने की प्रवृत्ति ने सारे द्वीपों को घेर लिया। इससे अपने प्रकार के समाज की रचना की जिसका आदि स्रोत अब भी वेस्टइंडीज के द्वीप कैरीबियन हैं। इस प्रवृत्ति के कुछ अपवाद भी थे, जैसे ग्रेनाडा और डोमिनिका में केवल कॉफ़ी पैदा होती थी, जबकि ब्राज़ील में ईख के अतिरिक्त दूसरी फसलें भी भारी मात्रा में पैदा की जाती थीं । परंतु यूरोप के कैरीबियन या वेस्टइंडीज़ के उपनिवेशों का वास्तविक महत्त्व उनके शक्कर उत्पादन के कारण था। अतः शक्कर उत्पादन ने ही द्वीप की अर्थव्यवस्था और समाज को सबसे अधिक प्रभावित किया। ब्राजील में भी इसका इतना ही महत्त्व था। यूरोपीय समशीतोष्ण उपनिवेशों की मुख्य विशेषताएँ शक्कर उत्पादन के क्रमिक विस्तार के रूप में और उत्पादन की आवश्यकताओं के अनुरूप समाज के रूपांतरण में निहित हैं। 1660 के बाद इंग्लैंड में शक्कर का आयात उसके समस्त अन्य औपनिवेशिक उत्पादनों के संयुक्त आयात से कहीं अधिक था। स्पेन के संपूर्ण औपनिवेशिक युग में उसके निर्यात योग्य माल में आधे से अधिक मात्रा शक्कर की थी।
- पंद्रहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में शक्कर की आपूर्ति 4 हजार टन थी, जबकि इसके एक शताब्दी बाद इसकी मात्रा बढ़कर 20 हजार टन हो गई थी। शक्कर के उत्पादन ने समाज के प्रत्येक क्षेत्र में आमूल परिवर्तन कर दिया क्योंकि इसने एक व्यापक उत्पादक इकाई के रूप में अर्थव्यवस्था के विकास के बहुत अच्छे अवसर प्रदान किए थे। छोटे उत्पादक बड़े उत्पादकों का मुकाबला नहीं कर सकते थे और उपयुक्त भूमि में गन्ना उत्पादन सबसे अधिक लाभकारी था। जब भूमि का विशाल और अत्यधिक पूँजीकृत बागानों के रूप में विभाजन किया गया तो छोटे भूस्वामियों के लिए समृद्धि के अवसर बहुत सीमित रह गए। इसके अतिरिक्त यूरोपीय देशों से ऐच्छिक रूप से श्रमिकों के आगमन से होने वाली आपूर्ति भी समाप्त प्राय हो गई। इसके अलावा, जिस भूमि का कभी खेतों या बागानों के रूप में उपयोग किया जाता था और जिस पर विशाल दास श्रम आश्रित था, उसे दूसरे काम के लिए प्रयुक्त नहीं किया जा सकता था। जिस प्रकार फैक्ट्री या कारखाना व्यवस्था ने अंग्रेजी समाज को बदल दिया उसी प्रकार गन्ने की खेती एवं शक्कर के उत्पाद ने औपनिवेशिक समाजों में परिवर्तन ला दिया था। अर्थव्यवस्था के कुशल संचालन के लिए एक निश्चित पूँजी के विशाल जमाव की आवश्यकता थी। पूँजीपति पूर्णत: अधीनस्थ और कठोर रूप से अनुशासित श्रमिक शक्ति की अपेक्षा करते थे।
- अठारहवीं शताब्दी के मध्य भूमि के अतिरिक्त खेतों में लगी पूँजी का 9/10वाँ भाग गुलामों के रूप में नियोजित था।
- अतः खेतिहर उपनिवेशों ने अपने साधनों को उन फसलों के लिए संकेंद्रित किया जो यूरोप में सबसे ज्यादा आसानी से बेची जा सकती हों। इस प्रकार अर्जित आय द्वीपों में उनके उपयोग से संबंधित व्ययों के साथ-साथ लकड़ी, मशीनों, घोड़ों, गुलामों के खाने-पहनने और स्वयं गुलामों को खरीदने के लिए आवश्यक धन से कहीं अधिक थी। उपनिवेशकों ने अपने उपभोग के लिए विलास की चीजों, गुलामों के पहनने के लिए वस्त्रों पर यूरोप में खूब धन व्यय किया। परंतु यूरोप में भोजन और गुलाम दोनों ही नहीं मिल सकते थे। ब्राजील और स्पेनी द्वीपों में अनाज के साथ-साथ शक्कर भी पैदा होती थी परंतु गुलामों के लिए उन्हें पश्चिमी अफ्रीका पर आश्रित रहना पड़ता था ।
अटलांटिक पार
प्रवेशों की अर्थव्यवस्था (Economy of Trans-Atlantic Regions)
- स्पेनी नई दुनिया का प्रमुख व्यवसाय पशु-पालन था जो स्पेनी विजेताओं के स्वभाव के अनुकूल था। अत: घोड़ों, पशुओं और भेड़ों का विशाल संख्या में आयात किया गया और उनकी संख्या तेजी से बढ़ी। यूरोप में इन पशुओं के चमड़े की कीमत बहुत ऊँची थी।
- समशीतोष्ण तटवर्ती प्रदेशों में पशु धन का भली-भाँति फलना फूलना संभव नहीं था, अतः प्रमुख स्पेनी उत्पादन शक्कर था जिसे इंडीज में कोलंबस ने और मैक्सिको में कोर्टेज ने प्रचलित किया था। चूँकि शक्कर उत्पादन के लिए व्यापक साजो-सामान की आवश्यकता थी, अतः स्पेनियों ने कैरिबियन और खाड़ी के तटवर्ती प्रदेशों में गन्ने की खेती प्रारंभ की। यूरोप में शक्कर की बहुत अधिक माँग थी, अतः अपव्ययशील और तौर-तरीकों और शासकीय हस्तक्षेप के बावजूद यह उद्योग समृद्ध होता गया।
- सत्रहवीं शताब्दी में शक्कर एवं तंबाकू के उत्पादनों का बहुत अधिक आर्थिक महत्त्व था इनका मुख्यतः दास श्रमिकों द्वारा उत्पादन किया जाता था। इन कार्यों के लिए अफ्रीकी नीग्रो लोगों (negroes) का आयात किया जाता था। चूँकि नीग्रो लोग स्पेन के नरेशों के नहीं वरन् बर्बर अफ्रीकी नरेशों की प्रजा थे, अतः गुलामों के रूप में उनकी खरीद के लिए कोई कानूनी और मानवीय आपत्ति नहीं होती थी।
- अधिकांश स्पेनियों को भूगर्भिक उत्पादनों (अर्थात् बहुमूल्य धातुओं) की तुलना में इंडीज़ के पशु और वानस्पतिक उत्पादन बहुत मामूली लगते थे। सोलहवीं शताब्दी के मध्य में मैक्सिको में ज़कातेकास तथा ग्वानाह्वातो में और बोलीविआ पोतोसी में चाँदी की उत्पादक खानों की खोज की गई। चाँदी की खानों का वास्तविक स्वामी एक पूँजीपति होता था। वह कुशल तथा अकुशल स्थानीय मजदूरों के एक विशाल समूह का मालिक होता था । शाही ताज समस्त उत्पादित धातुओं का एक तिहाई भाग अपने हिस्से के रूप में वसूल करता था। यह सरकारी हिस्सा स्पेन के राजा के समस्त राजस्व की आय का केवल 10 प्रतिशत से 15 प्रतिशत अंश होता था। चाँदी के सतत आयात का कीमतों और स्पेन की समग्र अर्थव्यवस्था पर बहुत बुरा असर पड़ा। समकालीन आर्थिक सिद्धांतों के अनुसार सोना चाँदी इंडीज़ का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण एवं मूल्यवान उत्पादन था। सरकार सोना-चाँदी कर (bullion tax) की अदायगी को लागू करती थी और सोने एवं चाँदी के खनन को प्रोत्साहन देती थी। सत्रहवीं शताब्दी के मध्य में अटलांटिक पार करते समय सोने चाँदी के जहाजी माल की रक्षा के लिए 'सार्थवाह (convoy ) व्यवस्था' लागू की गई। 1564 से स्पेन से प्रत्येक वर्ष दो लड़ाकू जहाज़ी बेड़े भेजे जाते थे- एक मैक्सिको और खाड़ी के बंदरगाहों को और दूसरा पनामा की थल संधि की ओर। दोनों लड़ाकू जहाजी बेड़े शरद् ऋतु में अमरीका में निवास करते थे और वापसी यात्रा के समय हवाना में पुनः इकट्ठे हो जाते थे। बिना निर्धारित लाइसेंस प्राप्त किए किसी भी जहाज़ को इनमें से किसी सार्थवाह (convoy ) की छत्र-छाया के बिना अटलांटिक पार करने की अनुमति नहीं थी ।
- सामुद्रिक यात्राएँ चूँकि काफ़ी नियमित होती थीं, अतः लुटेरों के जहाज़ या दस्यु पोत उनकी ताक में रहते थे। सार्थवाह का व्यय अमरीका को जाने-आने वाले समस्त मालों पर लगने वाली एक बहुत भारी और पेचीदा चुंगी - व्यवस्था द्वारा पूरा किया जाता था।
- संपूर्ण सोलहवीं एवं सत्रहवीं शताब्दियों में अपने उपनिवेशों की ओर होने वाला व्यापार एक इजारेदारी था। इस पर राजा का एकाधिकार नहीं था (जैसा कि पुर्तगाल में था) वरन् कॉन्स्यूलादो (Consulado) अर्थात् कादीज़ में अपने अधीनस्थ संगठन वाले सेविल के व्यापारियों के व्यापारिक निगम का अधिकार था। सारे स्पेन के व्यापारिक संस्थान, यहाँ तक कि जर्मन, ब्रिटिश और फ्ले तक के व्यावसायिक संघ भी, सेविल निगम की अप्रत्यक्ष सदस्यता ग्रहण कर लेते थे।
शाही व्यापार संघ (Royal House of Trade) के लाइसेंसी -
- संबंधी अधिनियमों ने यहूदियों और धर्म-विरोधी उत्प्रवासियों को रोकने के लिए लाइसेंस व्यवस्था को अत्यधिक कठोर बनाया। इसके लिए उन्होंने यह आदेश निकाला कि सभी जहाज़ों को उनके समुद्र में चल पाने की सक्षमता का लाइसेंस लेना आवश्यक है।
- एकाधिकार एवं उपयुक्त कठोर नियमों के अतिरिक्त स्पेन के संपूर्ण आर्थिक ढाँचे में बड़ी कठोरता थी, जिसकी वजह से निर्यात व्यापार का तीव्रता से विस्तार बहुत कठिन हो गया था। मूरी युद्धों एवं यहूदियों व ईसाई बनाए गए मूर लोगों (Moriscos) के निष्कासन के कारण दस्तकारी और कृषि दोनों का पतन हुआ। खेतिहरों के हितों के स्थान पर पशु-पालन पर आधारित कृषि को अधिक महत्त्व प्रदान करके कृषि अर्थव्यवस्था को क्षति पहुँचाई गई। भारी कर- बोझ और सतत् यूरोपीय युद्धों ने भी अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डाला। स्पेन के दो सर्वाधिक समृद्ध व्यापारिक केंद्र, कैटेलुना और अरेगों इंडीज व्यापार के प्रति नहीं वरन् भूमध्यसागरीय संबंधों के लिए प्रतिबद्ध थे।
- कपड़ा, हथियार, औज़ार, लोहे का सामान, किताबें, कागज, तार, तेल और गुलामों को खरीदने के लिए संपूर्ण इंडीज़ उत्सुक था । स्पेनी उत्पादक या तो इन चीज़ों का स्वयं उत्पादन नहीं कर सकते थे या फिर पर्याप्त मात्रा प्रतिस्पर्धात्मक कीमत पर इनका निर्यात करने की स्थिति में नहीं थे। इस प्रकार इंडीज़ व्यापार सामुद्रिक लुटेरों और दस्यु-पोतों के साथ-साथ गुलामों के व्यापारियों, दस्तकारों एवं समस्त देशों के अवैध व्यापारियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ था।
अटलांटिक का मछली
उद्योग (Fishing
Industries of Atlantic)
- यद्यपि खोजों में इस युग की सबसे बड़ी उपलब्धि का कारण मसालों और बहुमूल्य धातुओं की खोज था, पर इसका एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण मत्स्य (मछली) उद्योग भी था। इससे पहले स्पेन और पुर्तगाल की सामुद्रिक शक्ति के कारण अन्य देशों के जहाज़, मसालों और बहुमूल्य धातुओं के खोजे गए स्रोतों से दूर रहते थे। चूँकि उत्तरी अटलांटिक में स्पेन या पुर्तगाली बहुत कम जाते थे, अतः हेनरी सप्तम ने केबॉट को वहाँ भेजा, जिससे न्यूफाउंडलैंड के किनारे समुद्र को मछलियों से भरपूर पाया। केबॉट के एक अन्य साथी फर्नान्डीज़ ने ग्रीनलैंड और लेब्राडोर की खोज की। बाद में कोर्ते रील्स बंधुओं ने जहाज़ों के मस्तूलों और बल्लियों के लिए उपयोगी लकड़ी के स्रोत के रूप में न्यूफाउंडलैंड के महत्त्व को समझा। इन्होंने इस सारे समुद्र तट के लिए पुर्तगाल के अधिकार के दावे को पेश किया। पुर्तगाल ने शीघ्र ही इस नवीन प्रदेश से बहुत बड़ी मात्रा में कॉड मछली का आयात करना प्रारंभ कर दिया। पुर्तगाली दावे की अवहेलना करके फ्राँसीसी और अंग्रेज भी पुर्तगालियों की भाँति मछली का आयात करने लगे। यूरोप एवं यूरोपीय विस्तार में कॉड मछली का इतनी बड़ी मात्रा में आयात एक बहुत उल्लेखनीय आर्थिक घटना थी, क्योंकि कॉड मछली (codfish) उन लोगों के भोजन का महत्त्वपूर्ण स्रोत थी, जो सर्दी के दिनों में भुखमरी के कगार पर रहते थे। मछली उद्योग से जहाजों और नाविकों का भी विकास हुआ। इसने रूस के साथ ब्रिटिश व्यापार के द्वार भी उन्मुक्त कर दिए। अब अन्वेषक अभियान उत्तरी अमरीका में बस्तियाँ बसाने और उत्तरी मार्ग की खोज की ओर उन्मुख हुए।