पर्शिया (ईरान) साम्राज्य की सांस्कृतिक अवस्था (Cultural Condition of Persia)
पर्शिया (ईरान) साम्राज्य की सांस्कृतिक अवस्था
अति प्राचीनकाल में ईरान की महत्ता उसकी सांस्कृतिक विकास के कारण भी मानी जाती थी। उसने सांस्कृतिक क्षेत्र. कला तथा धर्म के क्षेत्र में विशेष रूप से विकास किया था। साहित्य और विज्ञान के क्षेत्र में उनकी अभिरुचि नहीं के बराबर थी। ईरानियों के सांस्कृतिक अवस्था का अध्ययन निम्नलिखित बिन्दुओं के द्वारा किया जा सकता है -
शिक्षा-
ईरानी लोग पुस्तकों की शिक्षक की अपेक्षा युद्ध की शिक्षा अधिक प्राप्त करते थे। युवकों को धनुष-बाण चलाने, घुड़सवारी करने, बछ भाले का प्रयोग करने आदि की शिक्षा देते थे। धर्म तथा कानून पढ़ने वालों के लिए भी सैनिक शिक्षा अनिवार्य थी। शिक्षा अधिकतर उच्चवर्ग के लोगों तक ही सीमित थी। अधिकतर शिक्षा 14 वर्ष की आयु तक समाप्त कर दी जाती थी। यहाँ शारीरिक श्रम पर अधिक बल दिया जाता था। गुरु पद पर सर्वगुण सम्पन्न व्यक्ति नियुक्त होता था। अधिकतर शिक्षक धार्मिक ही होते थे। अवेस्ता को याद करना जरूरी था। शिक्षा का स्वरूप मौखिक था तथा विद्यालय एकान्त में बनाये जाते थे। कुछ विद्यार्थियों को शासन व्यवस्था (प्रबन्ध) की भी शिक्षा दी जाती थी।
साहित्य-
युद्ध में अधिक संलग्न रहने के कारण पारसी साहित्य का विकास नहीं कर पाए थे। मात्र कुछ धार्मिक कहानी और गीतों की रचना तक ही उनका साहित्य सीमित था ।
लिपि -
- ईरान में प्राचीनकाल में तीन प्रकार की लिपि का प्रचलन था प्राचीन फारसी, बेबीलोनिया और अंश नाइट - या सूसियन । यहाँ की भाषा जेन्द सुसियन फारसी तथा ईरानी के साथ बेबीलोनियन आदि थी। भाषाओं को लिखने में कीलाक्षर लिपि का प्रयोग किया जाता था। लेकिन यहाँ इसकी 300 अक्षर के बदले मात्र 36 का ही प्रयोग किया जाता था।
विज्ञान-
- वैज्ञानिक क्षेत्र में ईरानियों की कोई विशेष अभिरुचि नहीं थी क्योंकि ये लोग शुरू से अंधविश्वासी थे। इनका विश्वास था कि दानवीय शक्तियों के द्वारा 9999 रोग उत्पन्न होते हैं जिनका निदान जंतर-मंतर के द्वारा किया जा सकता है। जन्तर-मन्तर का काम पुरोहित करते थे। धीरे-धीरे चिकित्साशास्त्र का विकास हुआ तथा चिकित्सा के शुल्क निर्धारित किये गये।
धर्म-
- इस युग में ईरान में तीन प्रकार के धर्मों का प्रचलन था। पहले धर्म में जरथ्रुष्ट का धर्म था जिसका अनुयायी सम्राट था। जरथ्रुष्ट धर्म की स्थापना दारा (डेरियस) महान से कई सदियों पहले हुई थी। इस काल में 'अहुरमज्दा ' देवता प्रमुख थे तथा अन्य देवताओं के अस्तित्व को भी स्वीकृत किया गया था।
- कालान्तर में सूर्य की उपासना पर बल दिया गया और 25 दिसम्बर प्रमुख पर्व माना गया। इस तरह यहाँ एकेश्वरवाद के साथ-साथ द्वैतवाद का भी प्रचलन हुआ। फारसी धर्म ने यहूदी धर्म को भी प्रभावित किया। दूसरा धर्म जनसाधारण का धर्म था जिसके विषय में पर्याप्त जानकारी का अभाव है। तीसरा धर्म मार्गी (Manichurcisur) था। यह धर्म एलम के लोगों का भी धर्म था जिस पर सेमेटिक धर्म का प्रभाव था।
ईरानी कला
- ईरानी कला का विकास अपने आप में अद्वितीय है। इसकी कला में विभिन्न कलाओं का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। धातु, स्वर्ण, शिल्प, पाषाणकला के उत्तम उदाहरण यहाँ देखने को मिलते हैं, जैसे वहाँ की समाधियों पर लीडिया की कला का प्रभाव पर्सीपोलिस और सूसा के भवनों पर मिस्र की कला का प्रभाव कृत्रिम चबूतरों और सीढ़ियों पर असीरियन कला का प्रभाव, ईंटों के निर्माण में मेसोपोटामिया की कला का प्रभाव तथा स्तम्भों के अलंकरण में यूनानी कला का प्रभाव देखने को मिलता है। अतः हम कह सकते हैं कि विभिन्न कलाओं का सम्मिश्रित रूप ही ईरान की राष्ट्रीय सम्पत्ति बन गया। ईरानी कला का सुन्दर रूप हमें उसकी वास्तुकला में देखने को मिलता है। जिसे साइरस, डेरियस आदि सम्राटों ने अनेक महलों, राजप्रासादों और समाधियों का निर्माण कराकर पूर्णता प्रदान की थी।
पेसरगेड-
- पेसरगेड में उत्खनन के द्वारा सम्राट साइरस की एक समाधि प्राप्त हुई है। सात चबूतरों पर 140 फीट लम्बा, 16 फीट चौड़ा और 35 फीट ऊँचा निर्मित यह भवन जिसको पत्थर के टुकड़ों से बनाया गया था। इसके चारों तरफ ऊँचे-ऊँचे खम्भे थे जो अब नष्ट हो चुके हैं। फारस के लोग इसे 'मशदाद ई- महार सुलेमान' के नाम से पुकारते थे। इसके अतिरिक्त 300 फीट लंबा चबूतरा मिला है जो 'तख्ते सुलेमान' के नाम से जाना जाता था। साइरस की एक पंख वाली मूर्ति भी यहाँ से प्राप्त हुई जिस पर विभिन्न कलाओं की छाप स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। पर्सीपोलिस-पर्सीपोलिस के खंडहर भी ईरानी कला के उदाहरण हैं। इसका सबसे प्रसिद्ध भवन 'तख्ते जमद' है जो चूने और पत्थर से बना था। सम्राट जरेक्सीज का एक विशाल महल मिला है जिसका क्षेत्रफल 150 वर्गफीट है। इस महल में 62 खम्भे थे जिसके 13 खम्भे आज भी प्राप्त हैं। 'चेल्सी मीनार' नामक 100 खम्भों वाला एक विशाल भवन भी पाया गया है। कहा जाता है कि सिकन्दर महान ने अपने आक्रमण के समय इस महल में भोजन किया था। यहीं पर सिंहासनारूढ़ डेरियस की एक मूर्ति मिली है जो मूर्तिकला का उत्कृष्ट नमूना है।
सूसा और एकबटना-
- ईरानी शासकों ने एकबटना में एक काठ का महल बनवाया था जो काफी सुन्दर था लेकिन इसके अवशेष प्राप्त नहीं हैं। सूसा का सम्राट जरेक्सीज का महल भी काफी सुन्दर था। इस महल में दो चित्र बने हुए थे। एक चित्र 5 फीट ऊँचा है जिसमें सैनिकों के बीच सम्राट को चित्रित किया गया है। दूसरा चित्र एक शिकारी सिंह का है। दोनों चित्र पेरिस संग्रहालय में देखे जा सकते हैं। इसके अलावा डेरियस महान का मकबरा जो 60 x 20 फीट लम्बा-चौड़ा है, अधिक प्रसिद्ध है। ईरानी लोगों ने मुहरों की निर्माण कला का भी विकास किया था। निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि प्राचीन ईरान की सभ्यता चतुर्दिक विकास की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण थी, जिसका श्रेय पूर्णरूपेण हरवामशी युग के शासकों को प्राप्त था।
ईरानी (पर्शिया) सभ्यता की देन
- ईरान की सभ्यता कला-कौशल, साहित्य आदि के क्षेत्र में दूसरों को प्रभावित - करने की बजाय स्वयं ही दूसरों से अधिक प्रभावित हुई। जिन-जिन सभ्यताओं के सम्पर्क में ईरानी लोग आये उन सभी का प्रभाव इन पर दिखाई पड़ता है।
- उनकी भाषा जेन्द पर वैदिक साहित्य का प्रभाव दिखाई पड़ता है। धर्म के क्षेत्र में उनके देवता, रीति-रिवाज, व्यवहार और उनके धार्मिक आचरण पर भारत का बहुत प्रभाव देखने को मिलता है। कला के क्षेत्र में ईरान की कला पर यूनान मिस्र, असीरिया, बेबीलोनिया, मेसोपोटामिया, लीडिया आदि की कलाओं का प्रभाव देखने को मिलता है।
- सैनिक संगठन एवं राज्य व्यवस्था में इसने अवश्य ही अन्य देशों को प्रभावित किया। इसका शासन - प्रबन्ध बहुत ही उच्चकोटि का था । इनकी शांति एवं सुव्यवस्था ने रोमन जैसी उन्नत जाति को प्रभावित किया । प्रान्तों की रचना, स्वतंत्र अधिकारियों की नियुक्ति करना, सेना का समुचित संगठन एवं उसकी रचना, राज्य संचालन में धर्म का महत्त्व और उदारता तथा न्याय का आधार अवश्य ही विश्व को प्रभावित करने वाली तकनीकें हैं।
- फिर भी ईरान ने देने की बजाय अनुकरण पर अधिक बल दिया था। लेकिन इसका गौरव इस बात से बढ़ जाता है कि इसने संसार को एक सुव्यवस्थित और सुरक्षित शासन प्रणाली प्रदान की, साथ ही उच्च नैतिक सिद्धान्तों पर आधारित एक धार्मिक विचारधारा का भी प्रादुर्भाव किया। भारत में महात्मा बुद्ध, चीन में कन्फ्यूशियस की भाँति ईरान ने जरथ्रुष्ट नामक उपदेशक को जन्म दिया।
- ईरान की सभ्यता की एक महत्त्वपूर्ण देन यह भी मानी जा सकती है कि इसने सभ्यता के विभिन्न केन्द्रों को एक ही शासन के अधीन रखा और उनकी सभ्यताओं से उन्होंने एक मिली-जुली सभ्यता-संस्कृति का विकास किया तथा इसे मानवता के लिए छोड़ गये। अतः ईरान की देन को बहुत मायनो में महत्त्वपूर्ण माना जा सकता है।