अफ्रीका का उपनिवेशीकरण (Colonization of Africa)
अफ्रीका का उपनिवेशीकरण (Colonization of Africa)
- उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक यूरोपवासियों को अफ्रीका महाद्वीप के भीतरी भाग के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था। इसके कई कारण थे। एक कारण यह था कि यहाँ की जलवायु बहुत गर्म थी। इसके अतिरिक्त अफ्रीका घने जंगलों तथा विशाल रेगिस्तान का देश है। अफ्रीका के मूल निवासियों को दास बनाकर अमेरिका ले जाया जाता था, जहाँ उनसे खेती कराई जाती थी। किन्तु 1850 ई. के बाद यूरोप के लोगों ने अफ्रीका महाद्वीप के भीतरी भागों में जाकर पता लगाने का काम शुरू किया। अफ्रीका के भीतरी भागों की खोज करने वालों में डेविड लिविंगस्टोन, स्टेनली, स्त्रीक और बेकर का नाम विख्यात है। इन लोगों के अलावा ईसाई मिशनरियों ने भी अफ्रीका के भीतरी भागों में जाकर वहाँ के लोगों की सेवा की और उन्होंने अपने काम में काफी कठिनाइयाँ झेलीं। उनके माध्यम से भी अफ्रीका के भीतरी भागों के बारे में काफी जानकारी प्राप्त हुई।
- इन साहसी खोजकर्ताओं और ईसाई मिशनरियों के द्वारा जब यूरोपवासियों को पता लगा कि अफ्रीका में बहुमूल्य खनिज, रबर, सोना, हीरे-मोती और अन्य कीमती चीजें हैं, तो यूरोपवासियों के मुँह से लार टपकने लगी। अफ्रीका में सबसे पहले बेल्जियम ने प्रवेश किया। उसने कांगो पर कब्जा किया और वहाँ के रबर का लाभ उठाने लगा। बेल्जियम की देखादेखी स्पेन, पुर्तगाल, इंग्लैण्ड, जर्मनी, फ्रांस और इटली ने भी अफ्रीका में घुसने की कोशिश की। स्पेन ने अफ्रीका के उत्तरी तट के कुछ भाग पर कब्जा कर लिया। पुर्तगाल ने पूर्वी तट का कुछ भाग हथिया लिया। अल्जीरिया और ट्यूनीशिया पर फ्रांस ने प्रभुत्व स्थापित किया। फ्रांस ने कांगो में भी अपना पैर बढ़ाना शुरू किया। किन्तु वहाँ बेल्जियम जमा हुआ था। फ्रांस व बेल्जियम में झगड़ा हो गया; अतः दोनों ने कांगो को बाँट लिया।
पूर्वी अफ्रीका का बँटवारा
- पूर्वी अफ्रीका में प्रथम एक जर्मन अन्वेषक कॉर्ल पीटर्स (Karl Peters) ने प्रवेश - कर वहाँ के मूल निवासियों को अपनी ओर मिलाकर उनके प्रदेश पर अधिकार कर लिया। जर्मनी की इस घुसपैठ से अंग्रेज और फ्रांसीसी चौंक गए। उन्होंने शीघ्र ही पूर्वी अफ्रीका पर अधिकार प्राप्त करने के लिए सैनिक तैयारियाँ आरम्भ कर दीं, परन्तु युद्ध की भयंकरता से भयभीत होकर इस भाग का बँटवारा करने का निर्णय किया गया। जर्मन और अंग्रेजों ने पूर्वी भाग का बँटवारा करने का निर्णय किया। फ्रांस में मेडागास्कर (Medagascar ) द्वीप पर अधिकार कर लिया। पुर्तगाल का भी पूर्वी अफ्रीका के कुछ भाग पर पहले से ही अधिकार था। इटली ने भी इस लूट में हिस्सा लिया। उसने इरीट्रिया (Eritrea ) और सुमालीलैंड (Somaliland) पर अधिकार कर लिया। इटली ने सीरिया, लीबिया से लेकर इथोपिया (Ethiopin) पर भी अधिकार करने के लिए हमला किया, किन्तु उस समय उनकी वह विजय स्थायी नहीं रही। उसको वहाँ से कुछ समय बाद हटना पड़ा।
पश्चिमी अफ्रीका का बँटवारा
पश्चिमी अफ्रीका के लिए भी बड़ा संघर्ष हुआ। अन्त में 1884-85 ई. में बर्लिन सम्मेलन (Berlin Conference) में इसके बँटवारे के लिए निर्णय किया गया। इंग्लैण्ड, जर्मनी और फ्रांस ने आपस में समझौता किया। जर्मनी ने दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीका, आँरैन्ज नदी के उत्तर की ओर केमेरून्ज अपने अधिकार में किए। कांगो नदी के मुहाने के भाग का भी बँटवारा किया गया। फ्रांस और अंग्रेजों ने अपने अधिकार क्षेत्रों को संगठित करने का कार्य शुरू किया।
उत्तरी अफ्रीका का बँटवारा-
उत्तरी अफ्रीका में फ्रांस, अंग्रेज जर्मनी और इटली सब अपना-अपना उपनिवेश स्थापित करना चाहते थे। फ्रांस ने सबसे पहले सन् 1830 ई. में अल्जीरिया (Algeria) पर कब्जा किया। फिर उसने धीरे-धीरे ट्यूनिशिया (Tunisia), सैनीगल, मोरक्को व सुमालीलैंड पर अपना अधिकार क्षेत्र बढ़ा लिया। ग्रेट ब्रिटेन ने भी मिस्र (Egypt) और सूडान ( Sudan) अपने अधिकार में किए लीबिया (Libya) इटली का अधिकार-क्षेत्र हुआ।
दक्षिण अफ्रीका पर अधिकार-
उत्तर में जिस प्रकार फ्रांस की शक्ति व अधिकार था, दक्षिणी अफ्रीका में उसी प्रकार अंग्रेजों का अधिकार बहुत हो गया। केप कॉलोनी (Cape Colony) नैटाल, ऑरेन्ज फ्री-स्टेट ट्रान्सवाल, (Orange-Free-State), बिचुआनालैण्ड (Bechuanaland), रोडेशिया (Rhodesia) और न्यासालैण्ड (Nyasaland) सब अंग्रेजों के अधिकार में आ गये।
रोडेशिया -
- दक्षिणी अफ्रीका में अंग्रेजों का उपनिवेश बसाने में सिसिल रोड्स नाम के व्यक्ति ने बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। दक्षिणी अफ्रीका में उसे ब्रिटिश उपनिवेश का निर्माता कहा जाता है। वह अपनी युवावस्था में अफ्रीका में जाकर बस गया। धीरे-धीरे वह बड़ा धनी हो गया। धीरे-धीरे उसका प्रभाव बढ़ता रहा और वह केप कॉलोनी का प्रधानमंत्री बन गया। सिसिल रोड्स ने बेचुआनालैंड पर कब्जा कर लिया। उसने उत्तमासा अन्तरीप से काहिरा तक रेल लाइन बनाने की योजना तैयार की। इसके बाद उसने केप कॉलोनी के उत्तर में एक काफी बड़े भाग पर कब्जा कर लिया। इस भाग को उसने ब्रिटिश उपनिवेश बना दिया। उसी के नाम पर इस उपनिवेश का नाम रोडेशिया रख दिया गया। 19वीं शताब्दी में मिस्र एक शक्तिशाली राज्य था। वहाँ का शासक मुहम्मद अली था। उसके समय में मिस्र की स्थिति बड़ी सुदृढ़ थी। किन्तु 1848 में मुहम्मद अली की मृत्यु के बाद मिस्र के शासक अयोग्य निकले। इस्माइल नामक शासक के समय में मिस्र ने फ्रांस व इंग्लैण्ड की सहायता से स्वेज नहर का निर्माण कराया। मुहम्मद अली की मृत्यु के बाद से ही मिस्र के शासक इंग्लैण्ड और फ्रांस के चंगुल में फंसने लगे थे। स्वेज नहर बनने के बाद तो मिस्र के शासक उनके हाथों में कठपुतली बन गए। इस्माइल के बाद तिपलिक शासक बना। उसके शासनकाल में शासन के अनेक मामलों में फ्रांसीसियों व अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया। इसी बीच इंग्लैण्ड की सरकार ने स्वेज नहर पर से मिस्र के प्रभुत्व को धन देकर खरीद लिया। मिस्र की सरकार ब्रिटिश से ऋण लेती रही थी। अतः ऋणदाता होने की हैसियत से ब्रिटेन उस पर धीरे-धीरे अपना प्रभुत्व जमाता गया।
- धीरे-धीरे स्थिति वह आ गई कि मिस्र पर ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधि शासन करने लगा। यह उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त के लगभग की बात है। अंग्रेजों ने मिस्र का खूब शोषण किया और वहाँ की राष्ट्रीय भावनाओं को खूब निर्दयता से कुचला । अंग्रेज हमेशा यह कहते थे कि मिस्र पर उनका जो ऋण है, वह जब अदा हो जायेगा, तो वे मिस्र छोड़कर चले जायेंगे, लेकिन उनकी नीयत साफ नहीं थी। अभी तक मिस्र में फ्रांस का भी कुछ अधिकार था किन्तु 1908 में फ्रांस ने भी अपने अधिकार ब्रिटेन को सौंप दिये। अब मिस्र पर ब्रिटेन का पूर्ण अधिकार हो गया। (1922 ई. में ब्रिटेन ने एक समझौता होने पर मिस्र को छोड़ा ) । इस प्रकार उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक लगभग सारे अफ्रीका को यूरोप के देशों ने हड़प लिया। अफ्रीका में यूरोपवासियों के उपनिवेश बनने की कहानी बड़ी दर्दनाक है।