पर्शिया (ईरान) का साम्राज्य की शासन व्यवस्था
पर्शिया (ईरान) का साम्राज्य की शासन व्यवस्था
विशाल साम्राज्य
- हरवामशी साम्राज्य की शासन व्यवस्था काफी सुदृढ़ थी। इस साम्राज्य की स्थापना विश्व साम्राज्य की स्थापना का महान प्रयत्न थी। इस साम्राज्य के अन्तर्गत ईरान, बेबीलोनिया, मीडिया, फिनिशिया, फिलीस्तीन, सीरिया, मिस्र, एशियामाइनर, भारतीय और यूनानी संस्कृति का सम्मिश्रण देखने को मिलता है। केवल चीन को छोड़कर विश्व के समस्त सांस्कृतिक देशों का कुछ भाग इसमें अवश्य सम्मिलित था। इस प्रकार हरवामशी वंश के शासकों ने अपने शौर्य और प्रताप से इस विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली थी। इस साम्राज्य का शासन दो भागों में विभक्त था केन्द्रीय तथा प्रान्तीय शासन।
पर्शिया (ईरान) का साम्राज्य केन्द्रीय शासन
सम्राट -
- ईरान के साम्राज्य का सबसे बड़ा पदाधिकारी सम्राट होता था। वह सर्वोच्च सत्ता सम्पन्न होता था। उसका प्रत्येक शब्द कानून था। वह बिना वजह किसी को दण्ड भी दे सकता था तथा किसी को उच्च पद पर बैठा भी सकता था। उनकी आज्ञा का उल्लंघन निषेध था। उसके अधिकार विस्तृत थे। हालाँकि वह स्वेच्छाचारी होता था । बावजूद इसके उसे विधि निषेधों, कौटम्बिक प्रथाओं और परम्पराओं का पालन करना पड़ता था। अपने द्वारा दिये वचनों का पालन उसे करना पड़ता था। उसे राजकीय कार्यों के सम्पादन हेतु सामन्त से परामर्श भी लेना होता था, लेकिन वे सामन्त के परामर्श को अस्वीकार भी कर सकते थे।
राज्य सभा -
- हरवामश वंश के शासकों ने एक विशाल राज्य सभा का प्रबन्ध भी किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य शासन सम्बन्धी समस्याओं पर विचार करना था। राज्य सभा का अध्यक्ष राजा होता था। उसकी राज्यसभा में सामन्त, अंगरक्षक, गुप्तचर, प्रतिहार तथा दूत आदि सदस्य होते थे। राज्यसभा का खर्च राजकोष से दिया जाता था, परन्तु ये राज्यसभा कुछ विशेष अवसर पर ही आयोजित होती थी।
सामन्त समुदाय
- फारस की सामन्तवादी व्यवस्था राज्य की शासन व्यवस्था का मूलाधार थी। राज्य में छः सामन्त वंश मुख्य थे। ये सामन्त राजा को परामर्श एवं सहयोग दिया करते थे। इन सामन्तों को राज्य की ओर से विशेषाधिकार भी प्रदान किया गया था। ये बड़े-बड़े भूमि के स्वामी थे तथा छोटे राजाओं की तरह अपने क्षेत्र पर शासन करते थे। इन्हें कर लगाने तथा न्याय करने का भी अधिकार प्राप्त था। इन सामन्तों के पास निजी सेवाएँ भी होती थीं।
सैन्य- व्यवस्था
- ईरानी सेना साम्राज्य के मूलाधार के रूप में जानी जाती थी। सेना का केन्द्रबिन्दु सम्राट होता था । राजा की रक्षा हेतु 2000 पदाति, 2000 घुड़सवार सैनिक नियुक्त थे। इसके अलावा 10000 मीडो और ईरानियों का 'अमरदल' था जो किसी भी समय युद्ध के लिए तत्पर रहता था। इस प्रकार फारस की सेना के दो दल थे- अंगरक्षक दल तथा अमर दल।
- युद्ध के समय राजा प्रान्तीय सेना भी बुला सकता था। इस अवसर पर राज्य के 15 वर्ष की आयु वाले प्रत्येक व्यक्ति को अनिवार्य सैनिक शिक्षा दी जाती थी ताकि आवश्यकता पड़ने पर उससे सैनिक का काम लिया जा सके। नियम का उल्लंघन करने पर मृत्युदण्ड दिया जाता था। यद्यपि हरवामशी नरेशों के पास विशाल सेना थी परन्तु फिर भी वे अपेक्षाकृत सबल नहीं थे। इसके अलावा ईरानी सम्राट के पास विशाल जलपोत भी था जिसका युद्ध और व्यापार दोनों के काम में प्रयोग किया जाता था।
कानून एवं न्याय-
- पारसी लोग अपने राजा को देवता 'अहुरमज्दा' का प्रतिनिधि मानते थे सम्राट समस्त देश का सर्वोच्च न्यायाधीश होता था तथा उसका राजदरबार ही न्यायालय था। राज्य का प्रत्येक व्यक्ति उसकी दया का भूखा रहता था।
- राजा के नीचे के न्यायालय में सात न्यायाधीश होते थे। विभिन्न प्रान्तों में स्थानीय न्यायालय होते थे। जमानत की प्रथा प्रचलित थी। न्यायालय न्याय के लिए पंच भी नियुक्त करते जाते थे। शपथ ग्रहण की भी प्रथा प्रचलित थी। कानूनवक्ता (आधुनिक वकील) भी होते थे जो अधिकतर पैरवी करते थे। मुकदमें के निर्णय में समय का निर्धारण किया जाता था। आरम्भ में न्यायाधीश का पद पुरोहित के लिए आरक्षित होता था किन्तु बाद में इसका सामान्यीकरण हो गया। महिलाएँ भी इस पद पर बहाल हो सकती थीं। न्याय-व्यवस्था काफी कठोर थी। छोटे-छोटे अपराधों में कोई मरवाना, जुर्माना किया जाना, देश से बाहर किया जाना आदि मुख्य थे। हत्या और बलात्कार के लिए मृत्युदण्ड दिया जाता था।
गुप्तचर विभाग-
- सम्राट का गुप्तचर विभाग अच्छा था। उसे सम्राट की आँख और कान माना जाता था। समस्त साम्राज्य में इसका जाल सा बिछा था। ये प्रान्तों, कार्यालयों की जाँच भी करते थे तथा सम्राट को सूचित करते थे। सम्राट गुप्तचरों की जाँच के आधार पर फैसला करते थे तथा दोषी व्यक्ति के दण्ड का निर्धारण करते थे।
कर संग्रह ( राजस्व आय ) -
- ईरानी सम्राट को अपने विशाल राज्य से अधिक राजस्व (धन) की आय होती थी। विभिन्न प्रान्तों में भिन्न-भिन्न कर निर्धारित थे। सम्राट प्रान्त की आय या पैदावार के अनुसार कर तय करते थे। प्रान्त से प्राप्त आय का आधा केन्द्र तथा आधा क्षत्रप प्रयोग करते थे। छोटे कर्मचारी जनता से अधिक कर लेते थे। प्राप्त आय से ईरानी शासकों के पास अपार धन एकत्र हो गया था। यही कारण है कि इस युग में सोने, चाँदी, काँसे के सिक्के ढलवाये गये थे। साथ ही साम्राज्य के सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए विशाल इमारतें बनवायी गयी थीं।
पर्शिया (ईरान) का साम्राज्य प्रान्तीय शासन-
- ईरानी नरेशों ने शासन व्यवस्था के लिए प्रान्तीय शासन प्रणाली को अपनाया था। समस्त राज्यों को प्रान्तों में विभक्त किया गया था। इन प्रान्तों की संख्या 20-25 तक होती थी। प्रत्येक प्रान्त के लिए अलग-अलग कर निर्धारित थे जो प्रान्त के उपज के आधार पर निर्धारित किया जाता था। मिस्र का कर 770 टैलेन्ट, बेबीलोन का 1000 टैलेण्ट, बलूचिस्तान का 179 टैलेण्ट, भारत का 4580 टैलेण्ट स्वर्ण था । प्रान्तों में विद्रोह नहीं हो इसके लिए भी वे लोग उपाय करते थे जैसे- असीरियन राज्य के लोगों के साथ प्रेम व्यवहार करना, बेबीलोनिया के लोगों के साथ उदार व्यवहार करना, यहूदियों को स्वदेश लौटाना, भेद करो की नीति को अपनाया, प्रान्तों के लिए निरीक्षक दल को बहाल करना, प्रान्तों से राज्यों को जोड़ने के लिए सड़क का निर्माण करना आदि।
- इसमें किंचित मात्र भी संदेह नहीं कि हरवामशी नरेशों की शासन व्यवस्था बड़ी सुदृढ़ थी। इतनी अच्छी शासन प्रणाली रोमन साम्राज्य के पहले कभी नहीं देखने को मिलती है। इनकी शासन व्यवस्था से प्रभावित होकर जेम्स ने लिखा है- " वे निर्दयी किन्तु बहादुर अपने साम्राज्य की शासन व्यवस्था के पूर्ण ज्ञाता थे। उनका प्रशासन अति सुन्दर था जिसका श्रेय डेरियस महान को है। "