रोमन साम्राज्य की स्थापना,रोमन साम्राज्य का इतिहास
Roman Empire History in Hindi
रोमन साम्राज्य की स्थापना इतिहास
पाँचवीं शताब्दी के मध्य में प्राचीन रोमन
साम्राज्य नष्ट हो गया। मध्य यूरोप की बर्बर जातियों के आक्रमणों ने रोम साम्राज्य
को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इनके आक्रमणों के फलस्वरूप सम्पूर्ण यूरोप में अशान्ति व
असुरक्षा की भावना व्याप्त थी। यूरोप के राजाओं और पोप का भी अस्तित्व संकट में
था। राजा लोग एक ओर अपनी रक्षा चाहते थे और दूसरी ओर यह भी चाहते थे कि उनकी प्रजा
उनके प्रति निष्ठावान रहे। प्रजा को निष्ठावान बनाये रखने के लिए राजा लोग पोप के
प्रति निष्ठा दिखाते रहते थे। उधर पोप अपने विरोधियों तथा बर्बर जातियों के
आक्रमणों से अपनी रक्षा करने हेतु राजाओं का सहयोग चाहता था। अतः राजाओं और पोप के
सहयोग से इन दोनों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पवित्र रोमन साम्राज्य की
स्थापना की गई।
पवित्र रोमन साम्राज्य का मुख्य केन्द्र रोमन
था, किन्तु यह केन्द्र केवल नाममात्र का
था। इस साम्राज्य का बड़ा भाग तो आल्प्स पर्वत के उत्तर में ही था। जर्मनी के शासक
को ही पवित्र रोमन साम्राज्य का सम्राट बनाया जाता था । इटली के ऊपर तो पवित्र
रोमन सम्राट का प्रायः कोई अधिकार भी नहीं होता था।
चार्ल्स मारटेल कौन था (Charles Martel)
जिन बर्बर जातियों ने यूरोप के राज्यों में
अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया था, उनमें
फ्रांक, लम्बार्ड और गोप के नाम उल्लेखनीय हैं।
इनमें फ्रांक जाति सबसे शक्तिशाली थी। इस जाति का एक प्रमुख शासक चार्ल्स मारटेल (Charles Martel) था। चार्ल्स मारटेल ने 732 ई. में टूर्स के युद्ध में मुसलमानों को
पराजित किया था। इस प्रकार उसने स्पेन में मुसलमानों को आगे बढ़ने से रोका और बाद
में भगा दिया। पश्चिमी यूरोप से मुसलमानों की शक्ति को उखाड़ फेंकने का श्रेय
चार्ल्स मारटेल को ही है। चार्ल्स मारटेल एक वीर तथा विजेता शासक था। फ्रांस, जर्मनी और हालैंड का बहुत-सा भाग उसके अधीन था।
पेपिन-
चार्ल्स मारटेल का पुत्र पेपिन भी एक
वीर शासक था। उसने फ्रांक जाति को संगठित करके उसे शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न
किया। उसने रोम को लम्बाडों के आक्रमण से बचाया। इतना ही नहीं, उसने कुछ ऐसे प्रदेश भी जीतकर पोप को वापस किये
जो लम्बार्डों के अधिकार में चले गये थे।
चार्ल्स मैगने-
पेपिन का पुत्र चार्ल्स मैगने था। वह 771 ई. में गद्दी पर बैठा। वह अपने काल का एक महान शासक माना जाता है। वह सुन्दर, हृष्ट-पुष्ट और प्रभावशाली व्यक्तित्व का राजा था। अपने विजयों के द्वारा चार्ल्स मैगने ने अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उसने लम्बार्डों को पराजित करके उत्तरी इटली को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। मुसलमानों को भी उसने हराया। सैम्सन कबीलों को भी उसने हराया और उनका कुछ क्षेत्र भी उनसे छीन लिया। स्पष्ट है कि चार्ल्स मैगने स्पेन में मुसलमानों को दबाकर रखने वाला इटली में लम्बार्डों को पराजित करने वाला, राइन व एल्ब नदियों के बीच बसने वाली सैक्सन जाति को अपनी अधीनता स्वीकार कराने वाला शासक एक महान् शासक था। फ्रांस, बेल्जियम, हालैंड, स्विट्जरलैंड और जर्मनी के एक बड़े भाग पर उसका अधिकार था। उसे चार्ल्स महान भी कहा जाता है
हर काउण्टी का प्रबन्ध एक काउण्ट करता था। चार्ल्स मैगने स्वयं काउण्टों को नियुक्त करता था। सुधार लाने के लिए वह सामन्तों और पादरियों से परामर्श लिया करता था। वह कला व साहित्य का आश्रयदाता था। धर्म में उसे विशेष रुचि थी। वह पोप में बड़ी निष्ठा रखता था और पोप के सम्मान को बढ़ाना चाहता था। ईसाई धर्म के प्रचार में चार्ल्स मैगने ने बड़ी सहायता की। पोप के साथ उसके मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। उसने सदैव पोप की रक्षा की तथा उसके गौरव को बढ़ाया।
रोमन साम्राज्य की स्थापना (Establishment of Roman Empire)
पोप चार्ल्स मैगने की निष्ठा के कारण बहुत प्रसन्न था। वह उसकी शक्ति को भी मानता था। वह जानता था कि चार्ल्स मैगने उसकी रक्षा कर सकता है और ईसाई धर्म को फैलाने में शानदार भूमिका अदा कर सकता है। अतः 800 ई. में क्रिसमस के दिन रोम नगर में पोप लियो तृतीय (Pope Leo III) ने चार्ल्स मैगने को ताज पहनाकर रोमन सम्राट की उपाधि से विभूषित किया। इस प्रकर एक नये रोमन साम्राज्य की नींव पड़ी, जिसे पवित्र रोमन साम्राज्य कहा जाता है। इस साम्राज्य को पवित्र रोमन साम्राज्य इसलिए कहा जाता है कि इसकी स्थापना स्वयं पोप के पवित्र हाथों से हुई थी और इस साम्राज्य का लक्ष्य पोप तथा चर्च की रक्षा करना व ईसाई धर्म का प्रचार करना था। पवित्र रोमन साम्राज्य लगभग 1000 वर्ष तक चलता रहा। 1806 ई. में नेपोलियन ने इस साम्राज्य को पूरी तरह से नष्ट कर दिया।
चार्ल्स मैगने का शासन प्रबन्ध-
चार्ल्स महान
एक योग्य शासक था। उसने साम्राज्य को कई काउण्टियों में बाँटा प्रत्येक काउण्टी का
अधिकारी एक काउण्ट होता था। प्रत्येक काउण्टी का शासन तथा वहाँ की न्याय व्यवस्था
काउण्ट के हाथ में होती थी। उसने काउण्टों को एक काउण्टी से दूसरी काउण्टी में
तबादला करने की परिपाटी आरम्भ की। इस प्रकार उसने काउण्टों पर प्रभुत्व स्थापित
किया। उसने यह भी कोशिश की कि कानूनों का ठीक ढंग से पालन हो और कानून कम से कम
संख्या में हों। चार्ल्स मैगने हर वर्ष सामन्तों और पादरियों की सभा बुलाता था और
सुधार के सम्बन्ध में उनसे विचार-विमर्श करता था।
चार्ल्स मैगने का विद्या कला से प्रेम-
चार्ल्स मैगने ने विद्या- कला को भी बड़ा प्रोत्साहन दिया। बहुत ही व्यस्त होते हुए भी वह विद्वानों से वार्तालाप करने तथा उनसे सम्पर्क स्थापित करने के लिये समय निकालता था। उसके प्रोत्साहन ही का यह फल हुआ कि ग्रीस और रोम की महत्त्वपूर्ण पुस्तकों की रक्षा हुई तथा उनके अनुवाद हुए। उसने बालकों की शिक्षा को भी प्रोत्साहन दिया तथा निम्न श्रेणी में उत्पन्न विद्वानों को भी आदर-सम्मान प्रदान किया। चार्ल्स मैगने की मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य तीन भागों में बंट गया। एक भाग में फ्रांस और बेल्जियम थे। दूसरे भाग में जर्मनी था और तीसरे भाग में इटली तथा उसके आसपास का क्षेत्र था। इन तीनों राज्यों की स्थिति बड़ी दुर्बल थी।
चार्ल्स मैगने के बाद विदेशी आक्रमण
इन तीनों
राज्यों की स्थिति आपसी झगड़े के कारण बड़ी दुर्बल हो गई - थी। इसी दुर्बलता का
लाभ उठाकर बाहर के लोगों ने आक्रमण आरम्भ कर दिये। मुसलमानों ने सिसली पर अधिकार
कर लिया और इटली एवं दक्षिणी फ्रांस में अत्याचार करने आरम्भ कर दिये। पूर्व की ओर
से स्लाव और हंगेरियन जाति के लोग आक्रमण करने लगे तथा उत्तर की ओर से भयानक और
निर्दय नार्समेन, डेन और वाइकिंग निरन्तर लूटपाट और
मारकाट मचाने लगे। चार्ल्स मैगने की मृत्यु के बाद लगभग ढाई सौ वर्ष के समय में
यूरोप की दशा बहुत ही गड़बड़ी से भरी और अराजकतापूर्ण हो गई। गिरजाघरों में
प्रार्थना की गई कि भगवान हमें नार्समेनों की लूटपाट और क्रोध से बचाये। नार्समेन
मठों को नष्ट करने, गिरजाघरों को गिराने तथा भिक्षु
भिक्षुणियों को बड़ी संख्या में मार डालने में कोई कसर नहीं रखते थे। परन्तु
धीरे-धीरे नार्समेन ईसाई हो गये तथा इनके कबीले बसने लगे।
रोमन साम्राज्य का विस्तार (Expansion of Roman Empire)
आरम्भ में पवित्र रोमन साम्राज्य के अन्तर्गत सारा पश्चिमी और मध्य यूरोप माना जाता था। परन्तु स्पेन, फ्रांस और इंग्लैंड के स्वतन्त्र राज्यों का विकास होने से यह साम्राज्य केवल जर्मनी, इटली आदि तक ही सीमित रह गया। विशेष रूप से सम्राट फ्रेडरिक बारबरोसा के पश्चात् पवित्र रोमन साम्राज्य का प्रभाव केवल जर्मनी में ही रह गया। इस सम्राट ने इटली और रोम पर आधिपत्य जमाकर रोमन साम्राज्य के प्राचीन वैभव को फिर से स्थापित करने का इरादा किया। वह यह समझता था कि कम-से-कम उत्तरी इटली तो साम्राज्य का भाग है ही। परन्तु उसका यह प्रयत्न सफल न हुआ क्योंकि इस काल (1152 ई.) तक इटली के उत्तरी मैदान में कई स्वतन्त्र नगरों का विकास हो चुका था । मिलान, वेरोना, पैडुआ, यारमा, बोलोना, वेनिस आदि नगर स्वतन्त्र राज्य थे तथा इन्होंने सम्राट के चंगुल से बचने के लिये लम्बाई संघ (Lombard League) की स्थापना की। सम्राट की एक न चली तथा उसे इटली में साम्राज्य विस्तार का विचार त्यागना पड़ा। फिर उसने दक्षिणी इटली पर आधिपत्य जमाने की योजना बनाई तथा नेपल्स के शासक के कुटुम्ब से अपने कुटुम्ब का वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया। पोप को सम्राट का यह आचरण अच्छा न लगा और अब वह चाहने लगा कि इटली में सम्राट का प्रभाव न रहे। अतएव जब 1211 ई. में फ्रेडरिक द्वितीय साम्राट हुआ तो पोप ने उससे यह शर्त लिखवा ली कि वह इटली के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा। इस समझौते के पश्चात् तो पवित्र रोमन साम्राज्य का जर्मनी के बाहर कोई विशेष प्रभाव न रह गया। आगामी सम्राटों ने कभी प्राचीन रोमन साम्राज्य के वैभव को पुनः स्थापित करने के स्वप्न नहीं देखे.
मंगोलों की रोकथाम -
तेरहवीं शताब्दी में
सम्राट फ्रेडरिक द्वितीय ने (1211-50
ई.) में यरूसलम को विजय कर लिया तथा रोमन साम्राज्य ने चंगेज खाँ (मंगोल जाति का
नेता) के उत्तराधिकारियों को यूरोप में बढ़ने से रोकने का प्रयत्न किया।
धर्म-सुधार (Reformation ) -
सोलहवीं शताब्दी में सम्राट चार्ल्स पंचम के समय में रोमन साम्राज्य पर्याप्त शक्तिशाली हो गया था परन्तु इस समय धर्म सुधार आरम्भ हो गया था तथा कैथोलिकों और प्रोटेस्टेन्टों के मतभेद दूर करने में सम्राट को सफलता न मिली। अनेक सामन्त लगभग स्वतन्त्र राजा बन बैठे। इसी समय से पूर्व की ओर से तुर्क लोग भी साम्राज्य पर हमले करने लगे क्योंकि 1453 ई. में उन्होंने पूर्वी रोम साम्राज्य को नष्ट कर दिया था। सत्रहवीं शताब्दी में रोमन सम्राट ने भारी प्रयत्न किया कि साम्राज्य दृढ़ हो जाए। तीस वर्षीय युद्ध इसी लक्ष्य से लड़ा गया था। किन्तु यह प्रयत्न सफल न हुआ।
पवित्र रोमन साम्राज्य की समाप्ति-
अठारहवीं
शताब्दी में लगभग यह नियम हो गया कि आस्ट्रिया हंगरी का राजा ही पवित्र रोमन
साम्राज्य का सम्राट होता था तथा अपने प्रभाव को आस्ट्रिया के स्वार्थ के लिए
प्रयोग करता था। जर्मन लोग इस नीति से चिढ़ते थे क्योंकि यूरोप में राष्ट्रीयता की
भावना प्रबल हो गई थी और राष्ट्रीय राज्य बन चुके थे। 1789 ई. में फ्रांस की राज्य क्रांति प्रारम्भ हुई
जिसमें नेपोलियन नेता बन गया तथा फिर फ्रांस का सम्राट हो गया। उसने 1806 ई. में यह घोषणा की कि वह पवित्र रोमन
साम्राज्य को मान्यता देने को तैयार नहीं है। इस पर रोमन सम्राट ने स्वयं इस
साम्राज्य को समाप्त कर दिया।
पवित्र रोमन साम्राज्य का मूल्यांकन
पवित्र
रोमन साम्राज्य की स्थापना पोप की इच्छा से हुई थी। आरम्भ में पवित्र रोमन
साम्राज्य की बड़ी प्रतिष्ठा थी। आरम्भ में लगभग 3 शताब्दी तक पवित्र रोमन साम्राज्य का दबदबा रहा और इसने मध्य युग
में उपयोगी कार्य किया। इसके माध्यम से एक ओर ईसाई धर्म का प्रचार हुआ और दूसरी ओर
बाह्य आक्रमणों पर रोक लगाई जा सकी। किन्तु बाह्य आक्रमणों को बिलकुल रोक पाना उस
युग में सम्भव ही नहीं था। पवित्र रोमन साम्राज्य के पीछे एक लक्ष्य यह भी था कि
कम-से-कम पश्चिमी यूरोप और दक्षिणी यूरोप को संगठित करके एक सूत्र में बाँध दिया
जाये ताकि शान्ति की स्थापना की जा सके। किन्तु यह लक्ष्य भी पूरा नहीं हो पाया
क्योंकि सामन्तों तथा बाद में राष्ट्रीय राज्यों ने इस साम्राज्य का विरोध किया।
जब पवित्र रोमन साम्राज्य का सम्राट कोई
शक्तिशाली राजा होता था, तो वह शान्ति स्थापना के काम में सफल
होता था। पवित्र रोमन सम्राटों ने जर्मनी में सामन्तवाद की बुराइयों को दूर करने
में काफी सफलता प्राप्त की। इसके अतिरिक्त इन सम्राटों ने लूटपाट, हिंसा और युद्धों के ऊपर भी कुछ अंकुश रखा।
यद्यपि पश्चिमी तथा दक्षिणी यूरोप को पवित्र रोमन साम्राज्य एक सूत्र में संगठित
नहीं कर पाया किन्तु संगठन का आदर्श सदैव उसके समक्ष रहा। इस साम्राज्य के
सम्राटों तथा रोम के पोपों के बीच बाद में संघर्ष पैदा हो गया और इस संघर्ष ने
सम्राटों की प्रतिष्ठा तथा उनकी शक्ति को पंगु बना दिया। इन सब कठिनाइयों के कारण
पवित्र रोमन साम्राज्य अपने लक्ष्यों की पूर्ति में सफल नहीं हो पाया।
रोमन साम्राज्य का संक्षिप्त में वर्णन
पवित्र रोमन साम्राज्य का मुख्य केन्द्र रोमन था किन्तु यह केन्द्र केवल नाममात्र का था। इस साम्राज्य का बड़ा भाग तो आल्प्स पर्वत के उत्तर में ही था। जर्मनी के शासक को ही पवित्र रोमन साम्राज्य का सम्राट बनाया जाता था। इटली के ऊपर तो पवित्र रोमन सम्राट का प्राय: कोई अधिकार भी नहीं होता था ।
चार्ल्स मारटेल का पुत्र पेपिन भी एक वीर शासक था। उसने फ्रांक जाति को संगठित करके उसे शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया। उसने रोम को लम्बार्डों के आक्रमण से बचाया। इतना ही नहीं उसने कुछ ऐसे प्रदेश भी जीतकर पोप को वापस किये जो लम्बार्डों के अधिकार में चले गये थे।
पोप चार्ल्स मैगने की निष्ठा के कारण बहुत प्रसन्न था। वह उसकी शक्ति को भी मानता था। वह जानता था कि चार्ल्स मैगने उसकी रक्षा कर सकता है और ईसाई धर्म को फैलाने में शानदार भूमिका अदा कर सकता है। अत: 800 ई. में क्रिसमस के दिन रोम नगर में पोप लियो तृतीय (Pope Leo III) ने चार्ल्स मैगने को ताज पहनाकर रोमन सम्राट की उपाधि से विभूषित किया।
चार्ल्स मैगने की मृत्यु के बाद उसका साम्राज्य तीन भागों में बँट गया। एक भाग में फ्रांस और बेल्जियम थे। दूसरे भाग में जर्मनी था और तीसरे भाग में इटली तथा उसके आसपास का क्षेत्र था। इन तीनों राज्यों की स्थिति बड़ी दुर्बल थी।
सम्राट फ्रेडरिक बारबरोसा के पश्चात् पवित्र रोमन साम्राज्य का प्रभाव केवल जर्मनी में ही रह गया। इस सम्राट ने इटली और रोम पर आधिपत्य जमाकर रोमन साम्राज्य के प्रचीन वैभव को फिर से स्थापित करने का इरादा किया। वह यह समझता था कि कम-से-कम उत्तरी इटली तो साम्राज्य का भाग है ही।
सोलहवीं शताब्दी में सम्राट चार्ल्स पंचम के समय में रोमन साम्राज्य पर्याप्त शक्तिशाली हो गया था परन्तु इस समय धर्म-सुधार आरम्भ हो गया था तथा कैथोलिकों और प्रोटेस्टेन्टों के मतभेद दूर करने में सम्राट को सफलता न मिली। अनेक सामन्त लगभग स्वतन्त्र राजा बन बैठे। इसी समय से पूर्व की ओर से तुर्क लोग भी साम्राज्य पर हमले करने लगे।
जब पवित्र रोमन साम्राज्य का सम्राट कोई
शक्तिशाली राजा होता था, तो वह शान्ति स्थापना के काम में सफल
होता था। पवित्र रोमन सम्राटों ने जर्मनी में सामन्तवाद की बुराइयों को दूर करने
में काफी सफलता प्राप्त की।