स्पार्टा तथा एथेन्स राज्यों का उत्कर्ष Rise of State of Sparta and Athens
स्पार्टा तथा एथेन्स राज्यों का उत्कर्ष Rise of State of Sparta and Athens
अभी हमने पढ़ा कि किस तरह से धनतंत्र तथा आततायी युग ने यूनान में प्रजातंत्र के विकास का मार्ग प्रशस्त किया। परन्तु ऐसा सोचना हमारे लिए भूल होगी कि सारे यूनान में एक तरह की विचारधारा का जन्म हुआ। जहाँ तक प्रजातंत्र के विकास का प्रश्न है, नि:संदेह एथेन्स में हमें इसका चर्मोत्कर्ष देखने को मिलता है, किन्तु दूसरी ओर स्पार्टा में हम घोर निरंकुशवाद को फलते-फूलते देखते हैं। वस्तुत: इस काल में स्पार्टा तथा एथेन्स के नगर राज्यों में दो विरोधी विचारधाराओं का उदय हुआ। दोनों के आदर्श और दृष्टिकोण एक-दूसरे से सर्वथा भिन्न थे। स्पार्टा ने दैहिक बल, सैनिक शक्ति तथा सार्वजनिक प्रमुख में अटूट विश्वास व्यक्त किया। दूसरी ओर, एथेन्स ने कला कमनीयता तथा सुन्दरता को अपना आदर्श बनाया। स्पार्टा ने सैनिकतंत्र का और एथेन्स ने लोकतंत्र के पथ का आलिंगन किया। स्वाभाविक था कि एथेन्स की शक्ति एवं समृद्धि अपेक्षाकृत अधिक बढ़ी।
स्पार्टा का नगर-राज्य (Urban State of Sparta)
भौगोलिक प्रभाव -
स्पार्टा का नगर - राज्य यूनान के प्रायः सभी नगर राज्यों से भिन्न था। इसका एक कारण यह था कि इसकी भौगोलिक स्थिति ही ऐसी थी । स्पार्टा दक्षिण यूनान में स्थित है। पर्वत श्रेणियाँ इसे अन्य राज्यों से अलग करती हैं। यहाँ के निवासी यूनानी आर्यों के डोरियन शाखा के लोग थे। स्पार्टा का नगर राज्य चारों ओर से शत्रु नगर-राज्यों से घिरा हुआ था। इसलिए स्पार्टावासियों को असीरिया के लोगों की तरह अपनी रक्षा के लिए सैनिक शक्ति को बढ़ाना आवश्यक था। वे इस बात को छोड़कर दूसरी ओर ध्यान देने में असमर्थ रहे।
स्पार्टा के लोगों के सैनिक जीवन का स्वरूप-
स्पार्टा एक सैनिक राज्य था। स्पार्टा के निवासियों की सबसे अधिक अभिरुचि सैन्यवाद और युद्ध में थी। राज्य के सभी नागरिक सैनिक होते थे। स्पार्टा का सारा समाज एक सेना थी। प्रत्येक स्पार्टी को बाल्यावस्था से ही अनिवार्य रूप से सैनिक शिक्षा दी जाती थी। कभी-कभी तो लड़कियों को भी ऐसी शिक्षा प्राप्त करनी पड़ती थी। देश की सुरक्षा के उद्देश्य से नागरिकों के शारीरिक विकास पर विशेष ध्यान दिया जाता था। ज्ञान-विज्ञान, साहित्य तथा कला-सम्बन्धी बातें उनके लिए व्यर्थ थीं। इसी कारण वे सात वर्ष की अवस्था से ही अपने बच्चों को कठिनाइयाँ और कष्ट सहन करने का अभ्यास कराते और उन्हें कुशल योद्धा बनाने के लिए प्रशिक्षण देते थे। यही उनकी शिक्षा थी। बच्चों के स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान दिया जाता था। दुर्बल और रोगी बच्चों को जीने का कोई अधिकार नहीं था। बच्चों के पालन-पोषण के लिए सरकार की ओर से व्यवस्था थी। सात वर्ष की उम्र से बच्चों को सरकारी संरक्षण में रहना पड़ता था। साठ वर्ष के बाद ही लोगों को स्वतंत्र रूप से पारिवारिक जीवन व्यतीत करने की अनुमति दी जाती थी। सात से साठ वर्ष की उम्र के सभी नागरिकों को अपना सारा जीवन सैनिक बैरकों में व्यतीत करना पड़ता था। उनका जीवन अत्यन्त अनुशासित एवं नियन्त्रित था। राज्य में भोग-विलास को प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था। वाणिज्य-व्यवसाय पर प्रतिबन्ध लगे हुए थे। ऐसा इसलिए कि इसके चलते धन-दौलत में वृद्धि होती है और समाज में विलासिता आती है। सोना और चाँदी के सिक्के भी वर्जित थे। स्पार्टा में लोहे के सिक्कों का प्रचलन था जिससे लोग बड़ी संख्या में सिक्के संग्रहीत न कर सकें। विवाह आदि में भी कड़ाई बरती जाती थी जिससे नस्ल और रक्त की शुद्धता बनी रहे।
स्पार्टा शासन-व्यवस्था -
स्पार्टा में शासन सत्ता कुछ थोड़े-से लोगों के हाथों में केंद्रीभूत थी। प्रजा के ऊपर इनका पूरा अधिकार और कठोर नियंत्रण था। नागरिक के खाने-पीने की व्यवस्था, हेलोट्स (Heloots) लोगों के द्वारा की जाती थी, जो केवल शारीरिक श्रम करते थे वे गैर-नागरिक लोग थे और उन्हें किसी प्रकार का नागरिक अधिकार प्राप्त नहीं था। आर्थिक दृष्टि से उनकी हालत दयनीय थी।
राजा -
शासन का प्रधान राजा होता था। स्पार्टा में दो राजा होते थे जिससे राजतंत्र निरंकुश नहीं बन सकता था और सामन्तों का प्रभुत्व सदा बना रहता था। इन दोनों राजाओं को समान अधिकार प्राप्त थे और वे एक-दूसरे पर नियंत्रण स्थापित रखते थे। स्पार्टा के राजाओं का मुख्य कार्य सेना का नेतृत्व करना था। राजा मुख्य पुरोहित भी हुआ करते थे। जेरूसिया, अपीला और एफर्स- वस्तुतः स्पार्टा की शासन-प्रणाली कुलीनतंत्र थी। कुलीन व्यक्तियों की एक परिषद् और एक सभा शासन-कार्य में राजा को सहयोग देती थी। कुलीनों की सभा जेरूसिया (Gerusia) कहलाती थी। इनमें 28 सदस्य होते थे। समिति को अपीला ( Appela) कहा जाता था। स्पार्टा के सभी साधारण नागरिक जो 30 वर्ष की उम्र पार कर गये हों, इसके सदस्य होते थे। इसके अलावा नागरिकों द्वारा चुने हुए पाँच मजिस्ट्रेट होते थे। जिन्हें एफर्स ( Ephors) कहा जाता था। राज्य का शासन चलाने का वास्तविक उत्तरदायित्व इन्ही पर था। स्पार्टा का कोई भी नागरिक एफर्स के पद पर नियुक्त किया जा सकता था। एफर्स के अधिकार अत्यन्त व्यापक थे। वे राज्य तथा नागरिक संस्थाओं के संरक्षक होते थे। जेरूसिया के सदस्यों का चुनाव अपीला करती थी।
स्पार्टा शासन का स्वरूप -
स्पष्ट है कि स्पार्टा के शासन का स्वरूप मिश्रित था। न तो यह पूरी तरह से राजतन्त्रात्मक थी, न कुलीनतंत्र और न ही गणतान्त्रिक। फिर भी एक बात सत्य है कि शासन सेना द्वारा सेना के हितों को ध्यान में रखकर ही चलाया जाता था।
लाइकरगस के सुधार -
नवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध (825 ई. पू.) स्पार्टा में लाइकरगस (Lyeurgus ) नाम का एक प्रसिद्ध विद्वान हुआ, जो स्पार्टा का प्रमुख व्यवस्थापक और विधि-निर्माता था। नगर राज्य में सुरक्षा स्थापित करने तथा अनुशासन लाने के लिए उसने अनेक सुधार किए। उसी ने स्पार्टा में एक साथ दो राजाओं का शासन किया। ये दोनों राजा जेरूसिया के अधीन थे। एक तीसरी सभा की व्यवस्था की गयी जिसमें तीस वर्ष और अधिक उम्र के सभी नागरिक सदस्य होते थे। यही सभा एफर्स तथा जेरूसिया के सदस्यों का चुनाव करती थी।
स्पार्टा की उपलब्धियों का मूल्यांकन-
इस प्रकार हम देखते हैं कि लाइकरगस की प्रणाली में राजतंत्र, कुलीनतंत्र और गणतंत्र तीनों का समावेश था। यह प्रणाली अवरोध और संतुलन के सिद्धान्त पर आधारित थी, परन्तु अत्यन्त कठोर अनुशासन एवं नियंत्रण ने स्पार्टावासियों की आत्मा और मस्तिष्क के उन उच्चतर गुणों से वंचित रखा जो मनुष्य को पशुओं से ऊँचा उठाते हैं। निःसंदेह स्पार्टा के लोगों की शारीरिक शक्ति अतुल्य थी, उनकी सैनिक व्यवस्था अद्वितीय थी, लोग राजभक्ति, देश-प्रेम तथा आत्मविश्वास की भावनाओं से ओतप्रोत थे, परन्तु सभ्यता-संस्कृति के अन्य क्षेत्रों में उनकी प्रगति गौण रही। यूनान की संस्कृति के निर्माण में उनका योगदान नगण्य रहा है।