राज्य और साम्राज्यों का निर्माण : एक सामान्य परिचय
(Formation of States and Empires : A General Introduction)
प्रस्तावना (Introduction)
यूनान एक पहाड़ी प्रदेश है। यह अनेक छोटे-छोटे टापुओं में बिखरा पड़ा है। साथ ही इनके बीच आवागमन की कठिनाइयाँ भी रही है। यही कारण है कि प्रारम्भ में छोटे-छोटे नगर-राज्यों की स्थापना हुई। नगर राज्यों के उत्कर्ष के कुछ और भी कारण थे। यूनान में आकर बसने वाले आर्यों की अनेक उप-शाखाएँ थी। सबसे पहले एकीयन (Achean) जाति के लोग आए। इसके बाद क्रमशः आयोनियन (Ionian), डोरियन (Dorian) तथा स्पार्टन (Spartan) कबीले के लोग आए। धीरे-धीरे यूनान में आर्यों की संख्या बढ़ती गयी। एक समय वह भी आया जब उन्होंने यूनान के मूल निवासी, जो भूमध्यसागरीय अथवा माईसीनियन (Mycenean) जाति के थे, को परास्त कर सम्पूर्ण यूनान पर अपना अधिकार कर लिया। जल्द ही यूनान की मूल जातियों को आर्यों ने आत्मसात कर लिया।
प्राचीन राज्यों का उदय (Rise of State)
प्राचीन यूनान निवासी आर्य जाति के थे। ये भारतीय-यूरोपीय कुल की एक भाषा बोलते थे। प्रारम्भ में ये दक्षिण-पूर्वी यूरोप के चारागाहों में रहते थे। ये उपयुक्त वास स्थान की खोज में इधर-उधर भटक रहे थे। लगभग दो हजार ई. पू. और पन्द्रह सौ ई. पू. के बीच इनके अनेक कबीले ईजियन क्षेत्र में आकर बस गये। इस प्रकार यूनान में आर्यों का आगमन हुआ, परन्तु उनका यह आगमन किसी आक्रमण के रूप में नहीं हुआ। वस्तुतः वे काफी कम संख्या में थे और धीरे-धीरे यूनान में आकर बस रहे थे। यूनान में आकर बसने वाले आर्यों की अनेक उप-शाखाएँ थीं। सबसे पहले एकीयन (Achean) जाति के लोग आए। इसके बाद क्रमशः आयोनियन (Ionian), डोरियन (Dorian) तथा स्पार्टन (Spartan) कबीले के लोग आए। धीरे-धीरे यूनान में आर्यों की संख्या बढ़ती गयी। एक समय वह भी आया जब उन्होंने यूनान के मूल निवासी, जो भूमध्यसागरीय अथवा माईसीनियन (Mycenean) जाति के थे, को परास्त कर सम्पूर्ण यूनान पर अपना अधिकार कर लिया। जल्द ही यूनान की मूल जातियों को आर्यों ने आत्मसात कर लिया। कालान्तर में यूनान की सभी जाति के लोग अपने को हैलेन कहने लगे। हैलेन का अर्थ यूनानी होता था। आज भी यूनानियों के लिए यूनानी शब्द के स्थान पर हैलेन शब्द का व्यवहार अनेक रूपों में किया जाता है।
आर्यों के आगमन का प्रभाव-
यद्यपि यूनान में आर्यों की अनेक उपजातियाँ आईं, परन्तु इनमें एकीयन तथा डोरियन जाति का विशेष महत्त्व रहा। एकीयन लोगों ने एथेन्स में अपना प्रभुत्व स्थापित किया और डोरियन जाति ने स्पार्टा को अपने कार्यकलापों का मुख्य केन्द्र बनाया। यूनान में आर्यों के आगमन का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि इस क्षेत्र की प्राचीन ईजियन सभ्यता का अन्त हो गया और पुरानी सभ्यता की समाधि पर एक नयी सभ्यता के भव्य भवन का निर्माण हुआ। किन्तु इस सम्बंध में इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि केवल भाषा को छोड़कर आर्यों ने अन्य बातों में यूनान के पुराने निवासियों के साथ वैवाहिक सम्बंध भी स्थापित कर लिए। इस प्रकार अब दोनों के बीच कोई अन्तर नहीं रह गया।
यूनान में नगर राज्यों का उत्कर्ष (Rise of Urban State in Athens)
नगर-राज्यों की स्थापना के कारण-
यूनान एक पहाड़ी प्रदेश है। यह अनेक छोटे-छोटे टापुओं में बिखरा पड़ा है। साथ ही इनके बीच आवागमन की कठिनाइयाँ भी रही है। यही कारण है कि प्रारम्भ में छोटे-छोटे नगर- राज्यों की स्थापना हुई। नगर राज्यों के उत्कर्ष के कुछ और भी कारण थे। प्रारम्भ में यूनानी आर्यों का जीवन भ्रमणशील ढंग का था। किन्तु बाद में लोग गाँव में जाकर स्थायी रूप से बस गये। यद्यपि वे मूलत: पशुपालक थे, परन्तु अब वे कृषि कार्यों में भी दिलचस्पी लेने लगे। प्रारम्भ में इनका कोई कानून नहीं था। कानून का आधार इनकी प्रथाएँ एवं परम्पराएँ थीं। शासन वृद्धों की समिति (Council of Elders) और योद्धाओं की एसेम्बली के द्वारा चलाया जाता था। कुछ शताब्दियों के बाद (1000 ई. पू. से 600 ई. पू. के बीच) गाँवों को मिलाकर नगर राज्य स्थापित किये गये। इस प्रकार यूनान में अनेक नगरों की स्थापना हुई। इन नगरों में स्वतंत्र शासन की व्यवस्था थी। पहले लोग अपनी रक्षा के लिए किलाबन्दी किया करते थे, किन्तु धीरे-धीरे नगरों ने शक्तिशाली राज्यों का रूप धारण कर लिया। इन राज्यों में किले, नगर और आस-पास के गांव भी सम्मिलित थे। ये राज्य पोलिस अथवा नगर- राज्य कहलाए।
नगर-राज्यों का शासन-
नगर - राज्यों की स्थापना प्राचीन यूनान की एक महत्त्वपूर्ण देन मानी जाती है। ये नगर - राज्य एक-दूसरे से पूर्णतः स्वतंत्र थे । प्रत्येक नगर-राज्य की स्वतंत्र शासन व्यवस्था थी । कबीले का सरदार इनका राजा होता था । नगर- राज्यों की शासन पद्धति लोकतंत्रात्मक थी। नगर के बीच में राजा का दुर्ग होता था। उसके आस-पास अन्य नागरिकों के मकान होते थे। राजा एक समिति (Council) तथा एक सभा (Assembly) की सहायता से शासन का संचालन करता था। प्रशासन में कौन्सिल अथवा समिति की प्रधानता थी। बड़े भूपति, सैनिक तथा कृषक समिति के सदस्य होते थे। राजा समिति के परामर्श से ही कार्य करता था। इसकी अनुमति के बिना वह कोई काम नहीं कर सकता था। समिति के पास राजा को पदच्युत करने का भी अधिकार था। नगर रक्षा का भार भी समिति पर रहता था। सभा के सदस्य सभी नागरिक होते थे। यह समिति की भाँति शक्तिशाली संस्था नहीं थी ।
राष्ट्रीयता की भावना -
यूनान में नगर - राज्यों की संख्या कोई डेढ़ सौ की थी । प्रत्येक नगर- राज्य एक-दूसरे से स्वतंत्र था। लोग अपने राज्य को काफी प्रेम करते थे । इसकी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए वे सदा तत्पर रहते थे। नगर- राज्यों के निवासियों को अपनी स्वतंत्रता इतनी प्रिय थी कि इनमें कभी सम्पूर्ण देश की एकता की भावना अथवा शक्तिशाली साम्राज्य की इच्छा उत्पन्न नहीं हुई। फिर भी उनके बीच सम्पर्क के अनेक साधन थे। उनके पूर्वज एक कुल के थे। उनमें भाषाई समानता भी थी। ट्रोजन का युद्ध यूनानियों की कीर्ति समझी जाती थी । इलियड तथा ओडीसी महाकाव्य उनके राष्ट्रीय साहित्य माने जाते थे। सभी यूनानी होमर को श्रद्धा की दृष्टि से देखते थे। यद्यपि यूनानी अनेक शाखाओं में विभक्त थे फिर भी इनके रहन-सहन, खान-पान, पोशाक, धर्म आदि में समानता भी थी । इनमें एक ही धार्मिक विचार और एक ही देवी-देवताओं की मान्यता, पूजा तथा प्रथा प्रचलित थी । कभी-कभी सम्मिलित रूप से ये धार्मिक अनुष्ठान करते थे। खेल-कूद के माध्यम से भी यूनानियों के बीच एकता का बीजारोपण हुआ। यूनानी प्रत्येक चौथे वर्ष डेलफी में एपोलो के मन्दिर के निकट खेल-कूद, दौड़, नाटक इत्यादि के लिए एकत्रित होते थे, जिन्हें ओलम्पिक खेल कहा जाता था। कभी-कभी किसी विशेष प्रयोजन में अनेक नगर- राज्य अपना संघ भी संगठित कर लेते थे । विदेशी शत्रुओं से मुकाबला करने में यूनानी नगर-राज्यों ने बड़ी एकता का परिचय दिया। यूनान के नगर राज्यों में एथेन्स एवं स्पार्टा के नगर-राज्य विशेष रूप से उल्लेखनीय थे। भविष्य में इनके नेतृत्व में ही यूनान की सभ्यता का वांछित विकास हुआ।