पर्शिया (ईरान) का साम्राज्य का इतिहास , ईरान का पतन
पर्शिया (ईरान) का साम्राज्य सामान्य परिचय
पश्चिमी एशिया के जिन देशों में सभ्यता-संस्कृति के आरम्भिक चरण के दर्शन हुए हैं, इनमें ईरान को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। विश्व इतिहास के साथ-साथ मानव सभ्यता के इतिहास में ईरान की सभ्यता, जिसे पर्शिया की सभ्यता (Persian Civilization) भी कहते हैं, अपना एक विशिष्ट स्थान रखती है। आज भी 'पैसारगेड या 'पर्सीपोलिस' के खंडहर उनके वैभव तथा महान सम्राटों का गुणगान करते प्रतीत होते हैं। अभी तक हम सेमेटिक जातियों के नेतृत्व में अनेक सभ्यताओं का विकास पाते हैं लेकिन ईरान की सभ्यता ने आर्य जाति के नेतृत्व में एक नया कीर्तिमान भी स्थापित किया।
पर्शिया (ईरान) का साम्राज्य ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
ईरान का भूगोल -
ईरान का मूल वास्तविक नाम 'एर्यान' है जिसका अर्थ आर्यों की भूमि है। ईरान का प्राच्य नाम 'पर्शिया' भी है जो प्राचीन शब्द 'पार्स' तथा फार्स (Fars) से बना है। इसी शब्द से पर्सिस शब्द भी बना है जो में। बाद में 'फारसी' हो गया। ईरान को भौगोलिक दृष्टि से तीन भागों में बाँटा गया है- (i) उत्तरी ईरान, (ii) मध्यवर्ती ईरान और (iii) पश्चिमी तथा दक्षिणी ईरान
उत्तरी ईरान-
पूर्व में सिन्धु नदी घाटी से लेकर दजला नदी की घाटी तक का फैला हुआ पठारी भाग उत्तरी ईरान के नाम से जाना जाता है। इसके उत्तर में कैस्पियन सागर, एलबुर्ज और कुपेहदाध का पर्वत, दक्षिण पूर्व में फारसी बलूचिस्तान, अफगानिस्तान तथा हेलमंडन स्थित है। यहाँ का प्रसिद्ध नगर 'मेशेद' है जो ईरान का धार्मिक स्थल है।
मध्यवर्ती ईरान-
मध्यवर्ती ईरान के
उत्तर में नमक तथा दक्षिण में लूट का रेगिस्तान है। यह संसार का सबसे बड़ा सूखा
प्रदेश माना जाता है, किंतु यहाँ की जमीन अधिक कृषि योग्य
है। यहाँ रेगिस्तान के बावजूद कृत्रिम सिंचाई की समुचित व्यवस्था है। इसके प्रमुख
शहरों में तेहरान, इस्फहान और हमादान आदि का नाम आता है।
पश्चिमी तथा दक्षिणी ईरान
ईरान के पश्चिम में
दक्षिण की ओर 'जगरोश पर्वत' और 'मकरान' पर्वत है। दक्षिण-पश्चिम का भाग 'करूथ' नदी
से सिंचित प्रदेश है। ईरान के दक्षिण की ओर फारस की खाड़ी और अरब सागर है।
प्राचीनकाल में यहाँ 'एलम' या 'सूसियाना' का प्रदेश था जिसकी राजधानी 'सूसा' ईरान
की सभ्य और वैभवपूर्ण नगरी थी।
ईरान की आदि जातियाँ
विद्वानों का मत है कि अति
प्राचीन काल में ईरान में द्रविड़ जातियाँ निवास करती थीं। दूसरी सहस्त्राब्दी ई.
पू. में ईरान पर आर्य इरानियों ने आक्रमण किया और वहीं बस गये, जो इन्डो-यूरोपियन परिवार की शाखा के सदस्य थे।
3000 ई. पू. के अन्त में भारत से लेकर
यूरोप तक इंडो-यूरोपियन परिवार अथवा आर्य जाति के सदस्य निवास करते थे। एकरिल, डोरियन, रोमन, केल्ट आदि इसी परिवार की शाखाएँ थीं। पश्चिमी
एशिया के हित्ती, कस्साइट और मितान्नी जातियों के शासक
भी आर्य ही थे। उस समय ईरान में दो जातियाँ निवास करती थी-पूर्वी भाग में ईरानी
लोग यानि आर्य और उत्तर पश्चिम में मीड जाति के लोग। इस प्रकार हम देखते हैं कि
अति प्राचीनकाल में ईरान में आर्य लोग ही निवास करते थे।
ईरानी इतिहास जानने के साधन -
ईरानियों के इतिहास एवं सभ्यता-संस्कृति पर प्रकाश डालने वाले साक्ष्य बहुत कम हैं। उनके हरवामशी युग के पूर्व अभिलेख अभी तक अनुपलब्ध हैं, इसलिये प्राचीनतम युग के इतिहास को जानने के लिए मुख्यत: इतिहास पर निर्भर रहना होता है। साहित्यिक ग्रन्थों के रूप में 'अवेस्ता' का नाम लिया जाता है। इसका उनके इतिहास में वही स्थान है जो भारत में वेदों का है। इसके अलावा 'यस्न' नामक ग्रन्थों से भी हमें अत्यल्प ही सही जानकारी मिलती है, साथ ही साथ हेरोडोटस की 'हिस्ट्री' तथा अन्य यूनानी लेखकों के वर्णन से भी हमें ईरानी इतिहास को जानने में सहायता मिलती है।
ईरान का राजनीतिक इतिहास प्राचीन ईरानी इतिहास को अध्ययन की सुविधा की दृष्टिकोण से सात भागों में विभाजित किया जा सकता है, यथा-
(1) पिशदादिकाल (4000-2000 ई. पू. तक)
(2) किमानी काल-(2000-1000 ई. पू. तक)
(3) मादिया (मीडियन) काल-(850-600 ई. पू. तक)
(4) हरवामशी काल-(600-325 ई. पू. तक)
(5) यूनानी काल (355-120 ई. पू. तक)
(6) पार्थियन काल-(125-229 ई. तक)
(7) ससैनियन काल-(625-651 ई. तक)
पिशद्वादि तथा किमानी काल-
4000 ई. पू. से लेकर 2000 ई. पू. तक का काल इस युग के अन्तर्गत आता है। इसके विषय में हमें अत्यल्प जानकारी है। दूसरी सहस्त्राब्दी ई. पू. की आरम्भिक शताब्दियों तक ईरानी आर्य उपनिवेश बसाने में संलग्न रहे। इस कार्य हेतु उन्होंने अपने को कई शाखाओं में बाँट लिया। जिनमें मीडियन्स, जिकीर्ज, पर्सियन्स, अवस्ती, ड्रेजन, बैक्ट्रीयन, मारजियन, कस्साइट आदि की जातियाँ आती हैं। ये समस्त जातियाँ अपनी प्रभुता के लिए संघर्षरत रहती थी। इस प्रकार अन्त में पिशदादि और किमानी जाति ने अपने को सुदृढ़ किया।
मादिया (मीडियन) काल
ईरान के इतिहास में मीडियन
का बहुत अधिक महत्त्व है। मीडिया ईरान का उत्तरी - पश्चिमी भाग था जिसकी राजधानी 'हगमतान' जिसे
आजकल 'हमदन' कहते हैं, थीं। इसका क्षेत्र 80 वर्ग मील था। इसमें अनेक प्रतिभाशाली शासक हुए
जिनमें डियोकीज (Deioces),
सायाजरस (Cyaxaras ), अष्टागीज (Astyagees) का नाम प्रमुख है। इस युग का अंतिम शासक अष्टागीज अधिक विलासी था।
उसके शासनकाल में सात प्रान्त के शासक कैम्बीसस प्रथम ने अपनी शक्ति और प्रभुता
बढ़ा ली, जिससे प्रभावित होकर अष्टागीज ने अपनी
पुत्री से उसका विवाह कर दिया। परन्तु कैम्बीसस प्रथम के पुत्र कुरुष द्वितीय
(साइरस) ने अपने असंतुष्ट सामन्तों से मिलकर 553 ई.
पू. में विद्रोह कर दिया तथा 500 ई.
पू. के आस-पास मीडिया को अपने अधीन कर लिया।
हरवामशी काल -
हरवामशी काल का आरम्भ विद्वानों
ने 650 ई. पू. के लगभग माना है 'हरवामश' इस
वंश का संस्थापक था। हरवामश ने अपनी प्रतिभा और शौर्य से एक उच्च कोटि का
साम्राज्य स्थापित किया। उसके बाद उसका पुत्र 'तिशपीज' (Tispes) गद्दी पर बैठा। उसके बाद उसके दो पुत्रों के
कारण राज्य दो भागों में विभक्त हो गया। साइरस प्रथम को 'अन्सार' और 'पशुमय' तथा
दूसरे पुत्र 'अरिम्यान' को फार्स का राज्य मिला। यहीं से हरवामशी की दो
शाखाएँ प्रचलित हो गई। साइरस प्रथम के पुत्र कैम्बीसस प्रथम ने अपनी दूसरी शाखा पर
विजय प्राप्त कर ली और वहाँ के राजा की पुत्री से शादी की। उसके बाद उसका पुत्र
कुरुष या साइरस द्वितीय ने गद्दी प्राप्त की और हरवामशी साम्राज्य के वैभव को
बढ़ाया। उसका शासनकाल 558 ई. पू. से 529 ई. पू. तक माना जाता है। उसने अपने राज्यकाल
में मीडिया यूनानी, उपनिवेश, उत्तरपूर्व और पूर्व प्रदेश, बेबीलोन, सीरिया, फिनिसिया
आदि प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। उसका ईरानी इतिहास में वही स्थान है जो भारत के
इतिहास में चन्द्रगुप्त मौर्य का है।
साइरस द्वितीय के बाद उसका पुत्र कैम्बीसस
द्वितीय गद्दी पर आसीन हुआ। उसका एक छोटा भाई था जिसकी हत्या उसने गुप्त रूप से
करवा दी ताकि राज्य का सम्पूर्ण हिस्सा उसे ही प्राप्त हो। उसके उदासीन तथा
जन-विरोधी व्यवहार से जनता ने विद्रोह कर दिया और उसे 522 ई. पू. में आत्महत्या करनी पड़ी। उसकी मृत्यु
के बाद सात अमीरों ने मिलकर 'डेरियस' (दारा) को गद्दी पर बैठाया। डेरियस की गणना
विश्व के महान शासकों में की जाती है। वह 521 ई.
पू. में गद्दी पर बैठा। उसने मिस्र, लीडिया, सुसियाना, मीडिया, बेबीलोनिया, असीरिया
आदि से भीषण युद्ध करके विशाल साम्राज्य का निर्माण किया था। 512 ई. पू. उसने थ्रेस और मेसीडोन पर 510 ई. पू. में भारत के पंजाब और सिन्ध प्रान्त पर
आधिपत्य स्थापित किया था। 490 ई. पू. में वह मरेथान के युद्ध में
पराजित भी हुआ था। 468 ई. पू. के मिस्र विद्रोह को दबाने के
क्रम में उसकी मृत्यु हो गई।
ईरान का पतन
डेरियस की मृत्यु के बाद उसका पुत्र क्षयार्ष गद्दी पर बैठा, लेकिन 466 ई. पू. के आस-पास उसकी - हत्या कर दी गई। क्षयार्ष के बाद उसके छोटे पुत्र जरेक्सीज ने 466-425 ई. पू. तक शासन किया। 425 ई. पू. से साम्राज्य के पतन 336 ई. पू. के बीच में डेरियस द्वितीय कुरुष, जरेक्सीज द्वितीय तथा डेरियस तृतीय ने शासन किया। लेकिन 336 ई. पू. के आस-पास ही अलेक्जेण्डर (सिकन्दर महान) ने हरवामशी वंश और साम्राज्य का अन्त किया। इस प्रकार सिकन्दर महान के द्वारा हरवामशी काल का पतन हो गया। एक इतिहासकार के शब्दों-" साइरस और डेरियस ने फारस (ईरान) को बनाया, जरेक्सीज ने उसे चलाया और उसके उत्तराधिकारियों ने उसे नष्ट कर दिया।"