यूनानी उपनिवेशों की स्थापना (Establishment of Athens's Colony )
उपनिवेशों की स्थापना के कारण
800 ई. पू. से 600 ई. पू. के बीच यूनानी नगर- राज्यों की आर्थिक व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए, जिनका यूनान के इतिहास एवं सभ्यता पर गहरा प्रभाव पड़ा। यूनानी समाज दो वर्गों में बँट गया। बड़े-बड़े भूपतियों का वर्ग तथा छोटे किसानों का वर्ग साधारण किसानों की स्थिति असंतोष जनक थी। वे छोटे-छोटे क्षेत्रों में खेती करते थे। कठोर परिश्रम के बावजूद उन्हें जीवन-यापन में काफी कठिनाई उठानी पड़ती थी। बाहरी लोग नगर में जमीन खरीद सकते थे। उनकी कुछ सामाजिक प्रथाएँ ऐसी थी कि चाह कर भी बड़े कुलीन तथा सरदारों के बेटे अपना अलग घर नहीं बसा सकते थे और न ही जमीन-जायदाद खरीद सकते थे। नगर-राज्यों में एक ओर गरीबी बढ़ रही थी और दूसरी ओर प्रजा शासकों की निरंकुशता से पीड़ित थी। अतः सम्पन्न तथा साधन युक्त वर्ग के लोगों ने आजीविका की खोज में तथा अपना पृथक परिवार बसाने के उद्देश्य से पड़ोसी देशों में जाकर यूनानी उपनिवेशों की स्थापना की इस प्रकार एशिया माईनर, उत्तर अफ्रीका, इटली, दक्षिणी फ्रांस आदि देशों में यूनानियों के उपनिवेश स्थापित हो गए। उपनिवेशों की स्थापना के कारणों का विश्लेषण करते हुए टर्नर ने लिखा है, "उपनिवेश बसाने का प्रधान कारण व्यापार नहीं, वरन इसमें सामरिक और राजनीतिक प्रवृत्तियाँ सर्वप्रधान थीं। जोखिम उठाने की इच्छा एवं साहसपूर्ण कार्यों के प्रति आकर्षण भी उपनिवेश स्थापित करने का कारण कहा जा सकता है। "
उपनिवेशों की स्थापना के प्रभाव-
नव स्थापित उपनिवेश यूनानी सभ्यता एवं संस्कृति के केन्द्र बन गये । उपनिवेशों में यूनानी साहित्य, कला, विधि आदि का व्यापक प्रचार हुआ। इसके अलावा उपनिवेशों की स्थापना से यूनान की व्यावसायिक प्रगति हुई तथा यूनानियों के भौगोलिक ज्ञान का विस्तार हुआ। यूनान के अनेक शहर उद्योगों के प्रधान केंद्र बन गये। जहाज के निर्माण का कार्य तेजी से शुरू हुआ। मुद्रा का प्रचलन भी यूनान में शुरू हो गया। अब वस्तुओं का क्रय-विक्रय वस्तु विनिमय के माध्यम से नहीं बल्कि मुद्रा के माध्यम से किया जाने लगा। मुद्रा-संग्रह की होड़ शुरू हो गयी । सूद पर ऋण लेने-देने की प्रथा भी चल पड़ी। आन्तरिक तथा विदेशी व्यापार के क्षेत्र में काफी उन्नति हुई। किन्तु इसके कुछ बुरे परिणाम भी हुए। किसान तथा मजदूरों की आर्थिक स्थिति में और गिरावट आयी। समाज में वर्ग-विभेद बढ़ गया। इसके कुछ राजनीतिक परिणाम भी हुए। इस प्रकार उपनिवेशवाद के परिणाम बड़े ही महत्त्वपूर्ण साबित हुए।
धनतंत्र का उदय और सरदारतंत्र का पतन-
उपनिवेशों की स्थापना के कारण उद्योग तथा वाणिज्य-व्यवसाय में अभूतपूर्व उन्नति हुई। इस कारण यूनानी समाज में धनतंत्र का उदय हुआ। दास प्रथा को प्रोत्साहन मिला। सिक्कों के प्रचलन से वस्तुओं के क्रय-विक्रय में सुगमता हुई। धनी वर्ग के लोग मुद्रा-संग्रह करने लगे और सूद पर ऋण देने लगे। उनकी सम्पन्नता और बढ़ गयी। समाज में धनी मानियों की प्रतिष्ठा और भी बढ़ गयी। अब धनी वर्ग के लोग राजनीतिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए बेचैन हो उठे। दूसरी ओर अपनी गरीबी से तंग आकर किसान तथा मजदूर वर्ग के लोग भी तत्कालीन राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन की मांग करने लगे थे। पुरानी व्यवस्था में वंशानुगत अधिकारों तथा नगरों की रक्षा करने में सामर्थ्य रखने के कारण सरदार वर्ग का बोलबाला था। वे काँस्य निर्मित अस्त्र-शस्त्रों से नगरों की रक्षा करते थे, परन्तु सातवीं शताब्दी ई. पू. तक यूनान में लोहे का प्रयोग होने लगा। लोहा काँसे की अपेक्षा सस्ता और अधिक मजबूत होता है। अब लौह-अस्त्र तथा शस्त्रों की सहायता से साधारण सैनिक भी नगरों की रक्षा कर सकते थे। लिले के शब्दों में, "जिस प्रकार काँसा कुलीनतांत्रिक धातु था, उसी प्रकार लोहा जनतांत्रिक धातु सिद्ध हुई।" इन्हीं कारणों से यूनान में जनतांत्रिक शासन का विकास हुआ। अब यूनानी समाज तथा राजनीति में सरदारतंत्र का महत्त्व घट गया और उनका स्थान धनतंत्र ने ले लिया।
यूनान में आततायी युग-
धनतंत्र का चरम विकास यूनानियों के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ। समाज में अमीरों और गरीबों के बीच की खाई काफी गहरी हो गयी। अमीर लोग बड़े ही स्वार्थी तथा असीम महत्त्वाकांक्षी होते थे। अपने स्वार्थों की पूर्ति तथा हितों की रक्षा के लिए वे शासन- सूत्र पर अपना कठोर नियंत्रण स्थापित रखना चाहते थे। वे निरंकुश तथा प्रजापीड़क बन गये। इस प्रकार यूनान में प्रजापीड़न अथवा आततायी युग का प्रारंभ हुआ। आततायी शासक सर्वथा निरंकुश थे। प्रजा उनके विरुद्ध चूं तक नहीं कर सकती थी। आततायी युग में प्रजा को तरह-तरह की कठिनाइयों और दुखों का सामना करना पड़ा, किन्तु यह सोचना गलत होगा कि इस काल के सभी शासक प्रजापीड़क थे। कुछ ऐसे शासकों का उल्लेख भी मिलता है जिन्होंने हृदय से प्रजा की भलाई की कामना की और इसके लिए प्रयास किया। ऐसे शासकों में कोरिंथ का पेरीयान्डर तथा एथेन्स का पीसिसट्रैट्स विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
लोकहित के कार्य-
आततायी युग के अनेक शासकों ने जनहित के महत्त्वपूर्ण कार्य भी किये। भूमि का नये सिरे से बँटवारा किया गया। नए दासों की नियुक्ति पर प्रतिबन्ध लगाकर गरीब यूनानियों को रोजगार दिया गया। गरीब प्रजा को महाजनों के चंगुल से बचाने के लिए नए कानून पास किए गये। अनेक सार्वजनिक संस्थानों की स्थापना की गयी। देश में अनेक महल, दुर्ग, मंदिर, नहर आदि बनाए गए। इस युग में सरदारों की शक्ति बहुत कम कर दी गयी। इन कार्यों के द्वारा यूनान के तथाकथित आततायी शासकों ने यूनान में प्रजातंत्र की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। इस युग में यूनानी साहित्य, कला, धर्म, व्यापार आदि में व्यापक प्रगति हुई।
आततायी युग का महत्त्व -
इतिहासकार ब्रेस्टेड के शब्दों में “संसार के इतिहास में अत्याचारियों का युग महान् अध्यायों में से है। समाज, व्यापार और शासन का नेतृत्व करने के लिए परस्पर जो संघर्ष हुआ उससे एक प्रोत्साहन प्राप्त हुआ और युग के योग्यतम व्यक्तियों के मस्तिष्क आश्चर्यजनक रूप से विकसित हुए। उन्होंने परम्परा के बोझ को उतार फेंका तथा विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में प्रवेश किया। यूनान के इस नए शक्तिशाली जीवन की आन्तरिक शक्ति राजनीति, साहित्य और धर्म, स्थापत्य और चित्र कला, वस्तु कला, तथा भवन निर्माण में प्रवाहित हुई । " इस प्रकार अनेक दृष्टिकोणों से यूनान के इतिहास में यह युग महत्त्वपूर्ण है, फिर भी इस युग की त्रुटियों को आंखों से ओझल नहीं किया जा सकता है। लोगों में राष्ट्रीय भावना अथवा देश-प्रेम नहीं था। उदाहरण के तौर पर कहा जा सकता है कि इस भावना की कमी के कारण ही स्पार्टा के लोगों ने फारस के लोगों को एथेन्स पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया और उनकी सहायता से एगोस्पोटामी के युद्ध में फारस ने एथेन्स को परास्त किया।